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लोन की क़िस्त न भरने पर अब सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा है, जान लीजिए

देशबंदी के दौरान EMI पर छूट की फांस अब सरकार के गले में अटक गई है. एक तरफ बैंक हैं, दूसरी तरफ कोर्ट.

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सांकेतिक फोटो
सुप्रीम कोर्ट ने लोन मोराटोरियम पर सरकार को एक नई तारीख दे दी है. यह तारीख है 28 सितंबर. लेकिन इस बार कोर्ट ने कहा है कि यह फाइनल मौका है और बार-बार इस तरह से तारीख पर तारीख नहीं दी जाएगी. आखिर क्या है ये लोन मोराटोरियम का मामला जो कोर्ट और सरकार दोनों के लिए सिरदर्द बना हुआ है.
लोन मोराटोरियम की ये माथापच्ची है क्या
कोरोना के कारण जब देश में तालाबंदी थी तो मोदी सरकार ने 'बड़ा दिल' दिखाते हुए लोन की क़िस्तें भरने के लिए वक्त देने की घोषणा की थी. घोषणा में कहा गया था कि इस दौरान जिसकी लोन की क़िस्त पेंडिंग हैं, उन्हें कुछ वक्त के लिए महलोत दी जाती है. सरकार की घोषणा के बाद आरबीआई ने लोन लेने वालों को तय वक्त तक के लिए लोन की ईएमआई का भुगतान न करने का विकल्प दिया. यह वक्त छह महीने के लिए यानी मार्च से अगस्त तक का दिया गया. इसे ही लोन मोराटोरियम कहा गया. 31 अगस्त को जब यह समयसीमा खत्म हुई तो लोन लेने वालों को क़िस्तें भरने के लिए बैंकों के नोटिस आने लगे. इन नोटिसों में लोन की राशि भरने के साथ ही उस रकम पर ब्याज और उस ब्याज पर भी ब्याज लगाने की बात थी. लोग हैरान-परेशान होकर सुप्रीम कोर्ट की शरण में गए. सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस अशोक भूषण की बेंच ने मामले को सुना और सरकार से कहा कि ये क्या कंफ्यूजन है? इस पर अपनी स्थिति साफ करें. लोन भरने वालों को बताएं कि बैंक क्या उनके साथ ऐसा कर सकते हैं जबकि आपने ही उन्हें लोन न भरने की छूट दी थी?
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सरकार और बैंकों के बीच फंसी हैरान-परेशान आम जनता को सुप्रीम कोर्ट से आस है.

अब सरकार, बैंकों और कोर्ट के बीच फंसी है. इधर कोर्ट ने कह दिया है कि 28 सितंबर तक किसी भी लोन को एनपीए (NPA) यानी नॉन परफॉर्मिंग असेट्स में न डाला जाए. यह भी बोला कि लोन न भरने वालों की क्रेडिट रेटिंग पर इसका बुरा असर नहीं पड़ना चाहिए. कोर्ट ने कहा है कि सरकार 28 सितंबर तक साफ-साफ बताए कि ब्याज के ऊपर ब्याज को लेकर और क्रेडिट रेटिंग घटाने के बारे में वह क्या चाहती है. कोर्ट ने ये भी कह दिया है कि अगर आप समाधान नहीं लाएंगे तो हम फैसला सुनाएंगे. इसके बाद सरकार ने एक एक्सपर्ट्स की कमेटी बना दी है, जो इस माथापच्ची में जुट गई है कि लोन न भरने वालों से ब्याज पर ब्याज लिया जाए या कोई ऐसा रास्ता निकाला जाए, जिससे बैंक की जेब भी ढीली न हो और लोन लेने वाले भी परेशानी से बच जाएं.
अब जानिए कि ये एनपीए होता क्या है
जब कोई व्यक्ति या संस्था बैंक से लोन लेते हैं तो ज़रूरी नहीं कि वो लोन वापस करें ही करें. कभी मजबूरियों के चलते और कभी इसलिए कि उसका लोन लेते वक़्त ही फ़्रॉड करना उद्देश्य था, वे पूरा लोन या बचे हुए लोन की क़िस्तें देना बंद कर देते हैं. इन लोन वापस न करने वालों को डिफ़ॉल्टर कहा जाता है. हो सकता है डिफ़ॉल्टर कुछ दिनों बाद पैसे देने शुरू दें. शायद एक-दो क़िस्तों के बाद. या फिर कुछ फ़ॉलोअप वग़ैरह लेने के बाद.
लेकिन अगर काफ़ी दिनों बाद और सारे लीगल हथकंडे अपनाने के बावज़ूद भी बैंक को अपना पैसा इन डिफ़ॉल्टर्स से वापस नहीं मिलता तो, वो मान के चलते हैं कि अब ये पैसे वापस नहीं आने वाले. इसे अपनी बैलेंस शीट में ‘एसेट’ वाले कॉलम में रखना, अपनी बैलेंस शीट को ख़राब करना होगा क्यूंकि इस पैसे पर ब्याज़ भी तो बढ़ता चला जाएगा. जो कि आना था, मगर नहीं आ रहा. यानी वो भी एक नुक़सान है, जो मूलधन के विपरीत समय के साथ-साथ बढ़ता भी चला जाएगा. तो इसलिए उस अमाउंट को किसी और मद में रख दिया जाता है, ताकि बैंक की ऑडिट रिपोर्ट ‘हाथी के दांत’ सी न बनती चली जाए. वास्तविकता से और दूर, और दूर. इसी मद को कहा जाता है ‘एनपीए’ यानी ‘नॉन परफ़ॉर्मिंग एसेट’.
यानी ‘एनपीए’ वो लोन (मूलधन+ ब्याज़) हैं, जिनकी वापसी की उम्मीद उतनी ही है जितनी जिस्म से जुदा हुई रूह की. इसलिए ही तो ऐसे पैसे का वापस आना किसी जादू से कम नहीं होता. एनपीए का शब्दशः अनुवाद करें तो ‘ऐसी संपत्ति, जिसका कोई मूल्य नहीं’ या ‘ऐसी संपत्ति, जो परफ़ॉर्म नहीं कर रही.’ सोचिए न, जो लोन बैंक ने किसी को दिया है, वो अन्यथा तो उसके लिए एसेट (संपत्ति) ही था. और उस पर मिलने वाला ब्याज़ भी. लेकिन अब उसके लिए ये सारा पैसा वैसा ही है जैसा, लंका में ख़ूब सारा सोना.
काफ़ी समय बाद जब बैंक निश्चित हो जाता है कि एनपीए अब नहीं मिलने वाला तो उसे अब अपनी बैलेंस शीट में से भी हटा देता है. मतलब ‘राइट ऑफ़’ कर देता है. थोड़ा ब्लैक रेफेरेंस है लेकिन जज़्ब कीजिएगा प्लीज़. एनपीए अगर लोन की असामयिक मृत्यु है तो राइट ऑफ़ उसके बाद के सारे मृत्यु संस्कार.
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लोन भरने में छूट देने के सरकार के फैसले का फायदा उठाने के बाद लाखों लोग इसे भरने में दिक्कत का सामना कर रहे हैं.

अगर लोन न भरे जाने पर एनपीए हो गया तो कस्टमर को क्या फर्क पड़ता है
फर्क तो पड़ता है. बहुत फर्क पड़ता है. ऐसा होने के बाद बैंक से आपके रिश्ते खराब हो जाएंगे. सिर्फ एक बैंक से नहीं बल्कि सभी बैंकों से. कैसे? आइए जानते हैं
# लोन की क़िस्तें वक्त पर न भरने से आपकी क्रेटिड रेटिंग खराब हो सकती है. क्रेडिट रेटिंग वह रेटिंग होती है, जो आपके बैंकिंग के तौरतरीके को लेकर बैंकों को ताकीद करती है. ये किसी फिल्म को रिव्यू में मिली रेटिंग जैसा ही है. ज्यादा रेटिंग मतलब बेहतरीन फिल्म, कम रेटिंग मतलब पैसा और वक्त दोनों बर्बाद. क्रेडिट देने वाली एजेंसियां भी बैंक के हर कस्टमर के बैंकिंग के तरीके से रेटिंग देते हैं. इसमें अकाउंट में कितना पैसा है, क्रेडिट कार्ड की क़िस्तें वक्त पर जमा हो रही हैं कि नहीं, लोन कितना और कब तक के लिए ले रखा है, जैसी कई चीजें शामिल होती हैं. इस क्रेडिट रेटिंग के आधार पर ही बैंक तय करते हैं कि किसी शख्स को लोन देना है या नहीं. फिलहाल 4 मुख्य रेटिंग एजेंसियां हैं जो इस तरह की रेटिंग देती हैं. इनमें शामिल हैं सिबिल, हाईमार्क, एक्सपेरियान और इक्वीफैक्स. लेकिन ज्यादतर लोग क्रेडिट रेटिंग को सिबिल रेटिंग ही कहते हैं. ये वैसा समझिए जैसे घी में डालडा, डिटरजेंट में सर्फ और टूथपेस्ट में कोलगेट.  कुल मिला कर ये रेटिंग ही तय करती हैं कि किसी को कितना लोन, कितने दिनों के लिए मिल सकता है. किसी का लोन एनपीए हो जाता है तो उसे आगे लोन मिलने के रास्ते बंद हो जाते हैं.
# बैंक वसूली की कार्रवाई शुरू कर सकते हैं. इसमें लोन के बदले जो कोलैटरल जैसे कोई संपत्ति या सोना आदि जो बैंक के पास लोन के बदले गिरवी रखा जाता है, उसे जब्त करने की कार्रवाई शुरू होती है. मतलब जो अमानत आपने उस लोन के बदले बैंक को दी थी, वो तो हांथ से जाएगी ही, बैंकों का भरोसा भी आपसे उठ जाएगा.
# वसूली के लिए बैंक थर्ड पार्टी की मदद ले सकते हैं. हालांकि नियम-कायदों के अनुसार रिकवरी एजेंट कर्ज लेने वाले को परेशान नहीं कर सकते, लेकिन ऐसा असल जिंदगी में होता नहीं है. रिकवरी एजेंटों के हद दर्जे तक परेशान करने की खबरें लगातार आती रहती हैं. इसकी वजह से कई लोग टेंशन में आकर आत्महत्या तक का कदम उठा लेते हैं.
बैंकों को अपने लोन की इतनी चिंता इसलिए भी होती है क्योंकि यही उनकी कमाई का सबसे बड़ा जरिया है. बैंक का असल बिजनेस सेविंग खातों में रखे पैसों पर लोन देना नहीं बल्कि लोन देकर उस पर कर्ज कमाना है. ऐसे में अगर उनके कर्ज पर मिलने वाला ब्याज उनके हाथ से जाता दिखता है तो उन्हें दर्द होता है. ये वैसा ही है, जैसे बाबा को बेटे-बेटी से ज्यादा पोते-पोती और नाती-नातिन प्यारे होते हैं. तो इस प्यारे पोते-पोतियों, नाती-नातिनों को बचाने के लिए ही बैंक सरकार से मोराटोरियम की शर्तों में रियायत पर सवाल उठा रहे हैं. बाकी आगे क्या होगा, ये 28 सितंबर तक कोर्ट में पता चल ही जाएगा.
 
वीडियो देखें - क्या सुप्रीम कोर्ट की नई राहत आपके बैंक लोन के लिए भी है?