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अमेरिका की नाक में दम करने वाले जूलियन असांज की कहानी!

अमेरिका इस शख़्स से इतना डरता क्यों है?

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26 जुलाई, 2010 को लंदन में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान, जूलियन असांज गार्जियन अखबार उठाते हुए (AFP)

आज से 12 बरस पहले की बात है. लंदन पुलिस शहर की खाक़ छान रही थी. एक शख़्स की तलाश मे. तभी एक कूरियर बॉय इक़्वाडोर के दूतावास के बाहर पहुंचा. बेल बजाई. गार्ड ने वजह पूछी. उसने कहा, मेरी जान को ख़तरा है. मुझे शरण चाहिए. उसको अंदर ले जाया गया. अंदर जाकर उसने डेलिवरी पर्सन की वर्दी उतारी. और, अपना आइकार्ड आगे बढ़ाया. उसपर लिखा था, जूलियन पॉल असांज. उम्र - 40 वर्ष.

जूलियन असांज कौन?

- सीक्रेट डॉक्यूमेंट्स लीक करने वाली वेबसाइट विकीलीक्स के फ़ाउंडर.

- कुछ के लिए नायक. कुछ के लिए खलनायक. कुछ कहते हैं, उनको नोबेल मिलना चाहिए. कुछ कहते हैं, उनको गोली मार देनी चाहिए. कुछ लोगों की नज़र में वो क्रांतिकारी हैं. कुछ उसको सनकी और अपराधी मानते हैं.

इसी द्वंद के केंद्र में खड़े असांज एक बार फिर से चर्चा के केंद्र में हैं. क्यों? क्योंकि उनके अमेरिका भेजे जाने की आशंका बढ़ गई है. जहां उनके ऊपर सीक्रेट जानकारियां लीक करने, अमेरिकी नागरिकों की जान ख़तरे में डालने समेत 18 संगीन आरोप लगे हैं. आरोप साबित हुए तो उनको 175 बरस तक की जेल हो सकती है. असांज के वकील कहते हैं, अमेरिका में उनकी जान को ख़तरा है. वहां उनकी हत्या कर दी जाएगी. इसी आशंका के बिना पर वे असांज का प्रत्यर्पण रुकवाने की कोशिश कर रहे हैं. कहां? लंदन की अदालत में. अपील खारिज हुई तो क्या होगा? कुछ हफ़्तों के अंदर उनको अमेरिका भेज दिया जाएगा. जेल में रखा जाएगा. और, वहां की अदालत में मुकदमा चलेगा.

तो, आइए जानते हैं,

- जूलियन असांज की पूरी कहानी क्या है?
- अमेरिका उनको अपने यहां लाने को आतुर क्यों है?
- और, विकीलीक्स के खुलासों ने कैसे दुनिया बदल दी?

टाउन्सविले ऑस्ट्रेलिया के उत्तर-पूर्वी छोर पर बसा है. यहीं पर जुलाई 1971 में असांज पैदा हुए थे. असांज का दावा है कि जब वो एक साल के थे, मां-पिता का तलाक हो गया. परवरिश उनकी मां क्लैर ने की. वो घुमक्कड़ मिज़ाज की थीं. जूलियन का बचपन ऑस्ट्रेलिया के 30 अलग-अलग शहरों में बीता. अलग-अलग स्कूलों में पढ़ाई हुई. 1996 में एक केस के दौरान उनके वकील ने दावा किया कि असांज ने 12 स्कूलों में पढ़ाई की है. 2006 के एक इंटरव्यू में असांज ने कहा कि स्कूलों की संख्या 37 है.

26 जुलाई, 2010 को लंदन में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान, जूलियन असांज  गार्जियन अखबार उठाते हुए (AFP)

ख़ैर, असांज को शुरुआत से ही कंप्यूटर से लगाव था. वो कंप्यूटर्स प्रोग्रैम्स लिखने लगे. दूसरों की प्रोग्रैमिंग में सेंधमारी कर लेते थे. हिडन मेसेज़ेस तक पढ़ लेते थे. उन्होंने अपनी पहचान एक काबिल प्रोग्रैमर की बना ली थी. हैकिंग में भी माहिर थे. फिर उन्होंने दो और हैकर्स के साथ मिलकर अपना ग्रुप बनाया. नाम रखा- इंटरनैशनल सबवर्सिव्स. ये ग्रुप सरकारी कंप्यूटर सिस्टम में सेंधमारी करता. वहां से जानकारियां लेकर दूसरे लोगों के साथ साझा करता. इस ग्रुप का नाम तब चर्चा में आया, जब इसने यूरोप के कुछ देशों के सरकारी कंप्यूटर्स में घुसपैठ की. उसी दौर में ग्रुप ने एक बार अमेरिका के रक्षा विभाग का नेटवर्क हैक कर लिया.

असांज के कांड की जानकारी ऑस्ट्रेलिया पुलिस को मिल गई. उनके ग्रुप पर जांच बिठाई गई. 20 की उम्र में पहली बार गिरफ्तारी हुई. उनके ख़िलाफ़ 31 मामले दर्ज किए गए. 10 बरस की जेल की तलवार लटक रही थी. मगर किसी तरह सज़ा से बच गए. कैसे?

असांज ने तर्क रखा कि उनकी हैकिंग निर्दोष है. इससे किसी को नुकसान नहीं हुआ. उन्होंने अपने ख़िलाफ़ दर्ज 31 में से 25 आरोप स्वीकार कर लिए. इसके बदले बाकी चार्जेज़ हटा दिए गए. छोटा सा जुर्माना चुकाकर उन्हें केस से मुक्ति मिल गई. जज ने कहा, असांज ने ये सब जवानी के जोश में किया.

असांज के बारे में जो कुछ जानकारी पब्लिक डोमेन में उपलब्ध है, वो उन्हीं के हवाले से है. इसलिए, उनकी कहानी को लेकर हमेशा संशय़ बना रहा.
इसका एक उदाहरण सुनिए.

1997 में ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार सुलेट ड्रिफ़स ने एक किताब लिखी. अंडरग्राउंड: टेल्स ऑफ़ हैकिंग, मेडनेस एंड ऑब्सेसन ऑन द इलेक्ट्रॉनिक फ़्रंटियर. असांज इस किताब के मेन रिसर्चर थे. इसी किताब में उनका इंट्रो लिखा था. ऑस्ट्रेलियाई पत्रिका द मंथली ने 2011 में अपनी रिपोर्ट में लिखा, असांज के इंट्रो की शुरुआत ऑस्कर वाइल्ड की एक पंक्ति से हुई थी - Man is least himself when he talks in his own person. Give him a mask, and he will tell you the truth.
यानी, आदमी अपने चेहरे के साथ अपना सच नहीं बताता. उसे एक मुखौटा दे दो, और वो तुम्हें सब सच बता देगा.

इस किताब में मेन्डेक्स नाम का एक किरदार था. कहा जाता है कि मेन्डेक्स जूलियन असांज ही थे. 1980 के दशक में मेन्डेक्स ने ट्रैक्स और प्राइम सस्पेक्ट के साथ इंटरनेट सबवर्सिव्स की नींव रखी. वे सरकार के विरोधी थे. और, उनका हैकिंग से पैसा कमाने का कोई इरादा नहीं था. उन्हीं दिनों मेन्डेक्स ने साइकोफ़ैंट नाम का एक प्रोग्राम बनाया. इसके सहारे यूएस मिलिटरी का सिस्टम हैक कर लिया. फिर उन्होंने कनाडा की टेलिकॉम कंपनी नॉरटेल को निशाना बनाया. यहां पर असांज के हैकिंग ग्रुप पर पुलिस की नज़र पड़ी. 

ऑस्ट्रेलिया पुलिस ने ऑपरेशन वेदर लॉन्च किया. पुलिस ने सबसे पहले ट्रैक्स को टारगेट पर लिया. कड़ी पूछताछ के बाद वो टूट गया. उसने ग्रुप का पता बता दिया. 1991 में एक सुबह पुलिस ने छापा मारा. असांज को गिरफ़्तार कर लिया गया. उस वक़्त वो अवसाद में डूबा हुआ था. कुछ समय तक उसका इलाज भी चला. 1994 में चार्जेज़ लगाए गए. जैसा कि हमने पहले बताया, 1996 में वो रिहा हो चुका था.

जूलियन असांज की साल 2010 की एक तस्वीर (AFP)

कट टू 2006. उस बरस उन्होंने विकीलीक्स की बुनियाद रखी. असांज का मानना था कि सरकारें देश को सुचारू ढंग से चलाने के नाम पर परदे के पीछे से अनैतिक तरीके अपनाती हैं. ये एक अपराध है. इस साज़िश को नाकाम करने के लिए पारदर्शिता ज़रूरी है. सरकार और आवाम के बीच कुछ छिपा नहीं रहना चाहिए. इसी आइडिया के तहत विकीलीक्स बनाया गया था.

कैसे काम करता था विकीलीक्स?

विकीलीक्स को आप एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म की तरह समझ सकते हैं. ये एनक्रिप्शन और सेंसरशिप-प्रूफ वेबसाइट है. इसमें कोई भी अपनी पहचान बताए बिना सीक्रेट फाइल्स अपलोड कर सकता था. इसमें क्लासिफाइड डॉक्यूमेंट, वीडियो, फोटो आदि शामिल था.

विकीलीक्स पर क्या बड़े खुलासे हुए? टाइमलाइन के साथ जान लेते हैं.

> नवंबर 2007.

ग्वांतानामो बे की जेल के लिए बना ‘स्पेशल ऑपरेटिंग प्रॉसीजर’ छापा गया. ये S.O.P. 2003 में बना था. ग्वांतनामो बे चलाने वाले अमेरिकी सैनिकों के लिए. ग्वांतनामो बे क्यूबा में है. यहां यूएस मिलिटरी का बेस है. 9/11 के हमले के बाद यहां पर जेल बनाई गई थी. इसमें आतंकी हमले के आरोपियों को रखा गया.
क्या खुलासा हुआ था?
यूएस आर्मी ने क़ैदियों को रेडक्रॉस से छिपाकर रखने की पॉलिसी बनाई थी. दरअसल, अमेरिका नहीं चाहता था कि टॉर्चर और दूसरी गैर-न्यायिक हरक़तें दुनिया की नज़र में आए.
इसके अलावा, नए क़ैदियों को 15 दिनों तक आइसोलेशन में रखने की नीति भी थे. इस दौरान उन्हें मेंटली और फ़िजिकली टॉर्चर किया जाता था.

> नवंबर 2009.

विकीलीक्स ने पांच लाख से ज़्यादा पेजर मेसेज पोस्ट किए. ये 11 सितंबर, 2001 को भेजे गए थे. ये वही दिन था जब अमेरिका पर आतंकी हमला हुआ था. दावा ये भी कि ये मेसेज पेंटागन, FBI और न्यू यॉर्क पुलिस डिपार्टमेंट ने एक दूसरे को भेजे थे.

> अप्रैल 2010.

विकीलीक्स ने एक वीडियो रिलीज़ किया. वीडियो इराक़ की राजधानी बग़दाद का था. इसमें अमेरिकी हेलिकॉप्टर से आम लोगों को मारा जा रहा था. हमले में 09 आम नागरिकों और न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स के दो पत्रकारों की मौत हुई थी.

> जुलाई 2010.

"द अफ़गान वॉर लॉग्स" नाम से 75 हज़ार से ज़्यादा दस्तावेज़ पोस्ट किए,
इनमें अमेरिका और गठबंधन सेना द्वारा आम नागरिकों की हत्या की जानकारी थी. साथ ही मारे गए लोगों की संख्या का भी ज़िक्र था. इसके अलावा अमेरिकी सेना का ओसामा बिन लादेन का पीछा करने की पूरी डिटेल भी थी.

> अक्टूबर 2010.

इराक़ वॉर से जुड़े 4 लाख सीक्रेट डाक्यूमेंट्स लीक किए गए. इन्हें "द इराक वॉर लॉग्स" का नाम मिला. क्या था इनमें?
- कैदियों के साथ अमेरिकी सैनिक का बर्ताव.
- युद्ध में मारे गए आम नागरिकों की संख्या और उसकी डिटेल्स.
- इराक़ी विद्रोहियों को ईरान कैसे समर्थन देता रहा, उसका ज़िक्र  

> फरवरी 2011.

ईजिप्ट के प्रो-डेमोक्रेसी प्रोटेस्ट की डिटेल. इनमें प्रोटेस्ट के दौरान मानवाधिकार उल्लंघन और नागरिक स्वतंत्रता का विवरण था.

> जून 2015. सऊदी अरब के विदेश मंत्रालय से लीक हुए दस्तावेज़ पोस्ट किए.

> जुलाई 2015.

अमेरिका की नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी के लीक डॉक्यूमेंट्स पोस्ट किए. इसमें ज़िक्र था कि कैसे अमेरिका जर्मनी की तत्कालीन चांसलर एंजेला मर्केल, फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद, UN के महासचिव, इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और इटली के उस समय के पीएम सिल्वियो बर्लुस्कोनी की निगरानी कर रहा था.

ये तो कुछ चुनिंदा लीक्स की कहानी है. विकीलीक्स का दावा है कि उन्होंने अब तक 01 करोड़ से अधिक डॉक्यूमेंट्स पब्लिश किए हैं.

अब सवाल ये आता है कि असांज जेल कैसे पहुंचे?

2007 के बाद से ही विकीलीक्स और असांज ने अमेरिका को परेशान करना शुरू कर दिया था. जैसे-जैसे अफ़ग़ानिस्तान और इराक़ वॉर में यूएस मिलिटरी के काले कारनामे बाहर आए, उसकी नाराज़गी बढ़ती गई. इसी बीच अगस्त 2010 में एक अजीबोग़रीब घटना घटी. स्वीडन के प्रॉसीक्यूटर्स ऑफ़िस ने असांज के ख़िलाफ़ अरेस्ट वॉरंट जारी किया. इसमें असांज पर लगाए गए दो आरोपों का ज़िक्र था. पहला, बलात्कार. दूसरा, मॉलेस्टेशन. असांज ने कहा, ये आरोप बेबुनियाद हैं.

असांज उन दिनों लंदन में थे. दिसंबर 2010 में लंदन पुलिस ने उनको गिरफ़्तार कर लिया. कुछ दिनों बाद असांज को जमानत भी मिल गई. मगर ये केस चलता रहा. मई 2012 में इसी केस की सुनवाई करते हुए ब्रिटिश सुप्रीम कोर्ट ने अपना फ़ैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि असांज को स्वीडिश अथॉरिटीज़ के हवाले कर दिया जाए. ताकि वो असांज को स्वीडन ले जाकर उनसे पूछताछ कर सकें. लेकिन गिरफ़्तारी से बचने के लिए असांज ने इक्वाडोर से मदद मांगी. 19 जून 2012 को वो लंदन स्थित इक्वाडोर के दूतावास में शरण लेने पहुंचे. राजनीतिक शरण देने की अपील की. इक्वाडोर मान गया. इंटरनेशनल लॉ के मुताबिक़, अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे देश से राजनीतिक शरण लेता है, और उस देश के दूतावास में रहता है तो वहां दूतावास वाले देश का कानून चलेगा. माने इक्वाडोर के दूतावास में वहीं का कानून चल रहा था. ब्रिटेन की पुलिस इक्वाडोर की इजाज़त के बिना वहां कोई ऑपरेशन नहीं चला सकती थी. असांज ने इसी नियम का इस्तेमाल कर ब्रिटेन को धप्पा बोला था. ख़ुद को गिरफ़्तार होने, प्रत्यर्पित किए जाने से बचाया था.

फिर क्या हुआ? ब्रिटेन को आया गुस्सा. उसने दबाव डाला. लेकिन इक्वाडोर ने भी ब्रिटेन को दो टूक जवाब दिया. हम आपके गुलाम नहीं हैं जो आपका हुक्म माने. बहरहाल. ये मामला टल गया, और असांज दूतावास में यहां रहने लगे. अगस्त 2015 में स्वीडन ने असांज पर लगे मॉलेस्टेशन के केस में जांच बंद कर दी. मगर रेप केस चलता रहा. मई 2017 में ये केस भी ड्रॉप कर दिया गया. मगर फिर भी असांज दूतावास में ही बंद रहे. उनके ऊपर अमेरिका प्रत्यर्पित किए जाने की तलवार लटक रही थी.

फिर इक्वाडोर में सरकार बदली. नई सरकार असांज को लेकर बहुत सहज नहीं थी. उसने विकीलीक्स पर कई संगीन आरोप लगाए. दावा किया कि असांज ने राष्ट्रपति के बेडरूम की तस्वीरें लीक की हैं. इसके बाद असांज का केस कमज़ोर पड़ता गया. दूतावास में सुविधाएं कम की जाने लगीं. उन्हें कभी भी दूतावास से बाहर निकाला जा सकता था. जब ये ख़बर उनके देश ऑस्ट्रेलिया पहुंची तो हंगामा हुआ. उनके समर्थन में प्रोटेस्ट निकाले गए. फ़रवरी 2019 में ऑस्ट्रेलिया ने असांज के नाम पर एक नया पासपोर्ट जारी किया. ताकि अगर इक्वाडोर असांज को दी गई प्रतिरक्षा हटाए तो कुछ किया जा सके.कुछ किया जाता, उससे पहले इक्वाडोर ने साथ छोड़ दिया. 

अप्रैल 2019 में लंदन पुलिस इक्वाडोर के दूतावास में घुसी. और, असांज को घसीटते हुए अपने साथ ले गई. मई 2019 में उन्हें जमानत की शर्तों को धता बताने के लिए 50 हफ़्ते की जेल हुई. उसी महीने अमेरिका ने असांज के ख़िलाफ़ 18 चार्जेज़ लगाए. और, उनके प्रत्यर्पण की मांग की. अमेरिका का आरोप है कि असांज ने जो जानकारी लीक की, उससे अमेरिकी नागरिकों की जान ख़तरे में पड़ी. उन्होंने अमेरिका की सुरक्षा के साथ समझौता किया.

- जनवरी 2021 में ब्रिटेन की एक अदालत ने कहा, असांज को अमेरिका नहीं भेजा जा सकता. वहां उनकी जान को ख़तरा है.

- जुलाई 2021 में ब्रिटिश हाईकोर्ट ने जनवरी 2021 के फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील की इजाज़त दे दी.

- दिसंबर 2021 में हाईकोर्ट ने असांज के प्रत्यर्पण पर सहमति दे दी.

- मार्च 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रत्यर्पण के ख़िलाफ़ अपील खारिज कर दी. अब डोर ब्रिटिश सरकार के हाथों में थी.

- जून 2022 में ब्रिटेन की सरकार ने प्रत्यर्पण रोकने से मना कर दिया. असांज ने इसके ख़िलाफ़ अपील की.

- 20 फ़रवरी 2024 को अपील पर सुनवाई शुरू हुई. जिस वक़्त ये वीडियो रेकॉर्ड हो रहा है, अदालत में सुनवाई जारी थी. अगर कोर्ट ने अपील खारिज की फिर क्या होगा? असांज के पास एक विकल्प बचेगा. यूरोपियन कोर्ट ऑफ़ ह्यूमन राइट्स (ECHR). वो वहां अपील कर सकते हैं. ECHR टेंपररी तौर पर प्रत्यर्पण पर रोक लगा सकती है. लेकिन इसकी उम्मीद कम है.
इसलिए, ब्रिटेन की अदालत में मिला झटका असांज का भविष्य तय कर सकता है.

असांज अमेरिका जाने के ख़िलाफ़ क्यों हैं?

- उनके वकीलों का कहना है कि अमेरिका में उनकी हत्या हो सकती है. आरोप ये भी है कि इक्वाडोर के दूतावास में उनको सात बार मारने की कोशिश हुई. हालांकि, इसको लेकर कोई सबूत पेश नहीं किया गया है.

- कहा जा रहा है कि सारे आरोप साबित हुए तो असांज को 175 बरस तक की जेल हो सकती है. अमेरिका कहता है, मैक्सिमम 4 से 6 बरस की सज़ा होगी. और, उन्हें सज़ा भुगतने के लिए उनके देश ऑस्ट्रेलिया भेजा जा सकता है.