The Lallantop

अमिताभ की शूटिंग देखने को गोला मारा, पिता की मार और फिर एक ट्विस्ट ने IPS बना दिया

उस IPS की कहानी, जिन्होंने कोरोना लॉकडाउन में महिलाओं के लिए बहुत बड़ा काम कर दिया.

Advertisement
post-main-image
रायपुर के डीआईजी आरिफ शेख ने घरेलू हिंसा के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया है.
1991 की बात है. मुंबई के मरोल पुलिस कैंप इलाके में रहने वाले आरिफ को पता चला कि पड़ोस के इलाके में अमिताभ बच्चन आने वाले हैं. शूटिंग करने. शूटिंग भी कोई ऐसी वैसी नहीं. फाइट वाला सीन था भाई. आरिफ, बच्चन का बहुत बड़ा फैन. आरिफ ने ठाना कि यहां तो जाना ही है. चाहे कुछ हो जाए. मगर सामने एक धर्मसंकट.
आरिफ था क्लास 7 में. पढ़ाई-लिखाई बढ़िया चलती, मगर इस मैथ्स नाम के सब्जेक्ट ने जीना दुश्वार कर रखा था. फर्स्ट यूनिट टेस्ट में फेल. सेमेस्टर टेस्ट में फेल. थर्ड यूनिट टेस्ट में फेल. अब बारी थी फाइनल मुकाबले की. मगर बीच में आ गए बच्चन. मुसीबत ये कि जिस दिन बच्चन साहब को विलेन को हौंकना था, उसी दिन था इस फाइनल टेस्ट के पहले वाला प्रैक्टिस टेस्ट. और ये प्रैक्टिस टेस्ट जो था, वो पास होने की गारंटी था. काहे से ये टेस्ट कोचिंग में होना था. और कोचिंग वाले मास्टर ही स्कूल वाले मास्टर थे. इस टेस्ट में जो आता, वही फाइनल टेस्ट में आता. पर आरिफ ने ली रिस्क. उसने सोचा -
मैथ्स का एग्जाम हर साल आएगा. बच्चन ना आएगा.
तारीख आई. आरिफ ने कोचिंग का गोला मारा. मौका-ए-वारदात पर पहुंचा. शूटिंग देखने वालों की लाइन में सबसे आगे बैग रखकर बैठ गया. और इससे पहले एक जुगाड़ भी बैठा लिया था. एक पुलिसवाले से दोस्ती बना ली थी. ये आरिफ के लिए बड़ा काम नहीं था. पिता पुलिस इंस्पेक्टर. बचपन से पुलिस लाइन में रहा था. सो उस पुलिस वाले ने आरिफ से प्रॉमिस किया कि तुझे अमिताभ से मिलवाऊंगा. यहीं बैठे रहना. फिर आए अमिताभ. शूटिंग हुई. विलेन पस्त. और प्रॉमिस पूरा हुआ. हुआ सामना. आरिफ और अमिताभ का. अमिताभ ने स्कूल ड्रेस पहने आरिफ से पूछा -
स्कूल नहीं गए क्या?
Akela
1991 में आई अमिताभ बच्चन की 'अकेला' फिल्म का पोस्टर.

आरिफ मुस्कुराया और उसी मैथ्स की नोटबुक आगे कर दी, जिसका गोला मार वो यहां पहुंचा था. अब ये मैथ्स की बुक कीमती हो चुकी थी, क्योंकि इसमें अमिताभ. अमिताभ बच्चन का ऑटोग्राफ था.
मगर वो आपने गाना तो सुना ही होगा, 'पल में माशा, पल में तोला, कितने रूप बदलती है...' जिंदगी भी कुछ ऐसी ही होती है. अब इसी मैथ्स ने आरिफ को पिटवाने का इंतजाम कर दिया था. आरिफ टेस्ट में फिर फेल हो गया था. पिता ने कोचिंग वाले मास्टर से पता लगाया, तो गोले वाला सच सामने आ गया. आरिफ को अब घर में एक दूसरे बच्चन, 'एंग्री यंग मैन' माने अपने इंस्पेक्टर पिता का सामना करना था. आरिफ खूब पीटे गए. इतना पीटे गए कि आरिफ के ज्ञान चक्षु खुल गए.
आरिफ का आठवीं क्लास से मैथ्स में मन लगने लगा. डंडा काम कर गया था. 10वीं में आरिफ ने स्कूल टॉप मारा. 86 पर्सेंट नंबर. 12वीं भी अच्छे से पास किया. तब तक आरिफ के मन में एक और चीज आ चुकी थी कि उसे बनना क्या है. क्या करना है. ये लक्ष्य उसके मन में कहीं न कहीं बचपन से ही आने लगा था. वर्दीधारियों के बीच रहके. इंस्पेक्टर पिता ने भी कह दिया था-
तुझे अधिकारी बनना है. आईपीएस. 
कहानी में ट्विस्ट
आरिफ ने पिता का ये सपना पूरा किया भी. बने आईपीएस. मगर इससे पहले की कहानी भी मजेदार है. आरिफ ने 12वीं के बाद की इंजीनियरिंग. पुणे यूनिवर्सिटी में टॉपर्स में रहे. इंजीनियरिंग के बाद 2001 में उनकी नौकरी भी लग गई. एचसीएल में. बढ़िया वाले पैकेज पर. माने उनका आईपीएस बनने का सपना किनारे लग चुका था. मगर फिर आया एक ट्विस्ट.
आरिफ को बोला गया था कि उनको साइबर सिक्योरिटी डिपार्टमेंट में रखा जाएगा. मगर उनको डाल दिया गया रिसर्च एंड कम्युनिकेशन में. ये इंट्रेस्ट का काम तो नहीं था, मगर सैलरी देख आरिफ ने गाड़ी आगे बढ़ाई. पर फिर एक बॉस नाम की चीज होती है. वो भी महा खड़ूस. और इसने आरिफ को और पुश किया कि उन्हें नौकरी छोड़ यूपीएससी की ही तैयारी करनी चाहिए. पर घर की जिम्मेदारियां थीं. भाई-बहन पढ़ रहे थे, तो उन्होंने फैसला किया दो-ढाई साल नौकरी करने का. पैसा इकट्ठा किया. फिर सितंबर, 2003 में उन्होंने पिता को फाइनल बताया कि वो नौकरी छोड़ तैयारी करने जा रहे हैं. मगर पिता ने यहां एक चैलेंज दे डाला. कहा -
कर लो तैयारी, मगर एग्जाम एक ही बार देना है. हुआ तो हुआ, वरना नौकरी करना.
Whatsapp Image 2020 05 04 At 7.47.01 Pm
आईपीएस आरिफ शेख ने अपने पहले ही अटेंप्ट में यूपीएससी क्लीयर किया था.

आरिफ ने पिता के इस चैलेंज को एक्सेप्ट किया. एक साल झोर के पढ़ाई की. मई, 2004 में प्री दिया. और पहले ही अटेंप्ट में यूपीएससी फोड़ दिया. रैंक आई 91. यही आरिफ अभी छत्तीसगढ़ के रायपुर में डीआईजी हैं. यहां उन्होंने एक बहुत तगड़ी मुहिम चलाई है. क्या है ये? समझिए -
कट टू 27 मार्च, 2020.
सुबह-सुबह रायपुर पुलिस को एक हत्या की खबर मिली. हत्या हुई थी सगीरा खातून की. हत्या करने वाला था उसका पति मोहम्मद रियाजुल. वजह सगीरा खाने में नमक डालना भूल गई थीं. यहां से शुरू हुआ विवाद सगीरा की जान लेने पर खत्म हुआ. रियाजुल ने खुद की भी जान ले ली.
इस घटना के एक महीने बाद राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा सामने आईं. एक आंकड़ा जारी किया. बताया कि अप्रैल में ही उनके पास कुल 800 शिकायतें आईं, जिनमें 325 शिकायतें घरेलू हिंसा माने डोमेस्टिक वायलेंस की थीं. माने यहां कीवर्ड है - लॉकडाउन में घरेलू हिंसा के मामले बढ़े.
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के डीआईजी आरिफ शेख ने इस कीवर्ड को नमक वाली घटना के बाद ही पकड़ लिया था. जब लॉकडाउन अपने शुरुआती दौर में था. शेख को लगा कि इस पर कुछ करना चाहिए. उन्होंने एक मुहिम शुरू की. घरेलू हिंसा को रोकने की मुहिम. नाम रखा - चुप्पी तोड़. अब इस मुहिम की हर तरफ तारीफ हो रही है.
Whatsapp Image 2020 05 04 At 8.06.44 Pm
रायपुर पुलिस ने चालाया चुप्पी तोड़ अभियान.

क्या है ये मुहिम?
डीआईजी आरिफ बताते हैं- इस घटना के बाद हमने पिछले तीन साल के घरेलू हिंसा, दहेज प्रताड़ना के मामले निकाले. करीब 1500 मामले छंटकर सामने आए. फिर इसका पहला चरण शुरू किया. इसमें सभी केस में पीड़ित महिलाओं से बात करने का प्लान बनाया. मगर ये इतना आसान नहीं था, क्योंकि सब महिलाओं के पास फोन नहीं थे. किसी के पति के पास था, तो किसी और रिश्तेदार के पास. अब पति के फोन पर महिला खुलके बात नहीं कर सकती. तो हमने 11 सवाल तैयार किए, जिसमें सिर्फ 'हां' या 'ना' में जवाब देना था. जब फोन मिलाते, तो पति को बताते कि हमें कोरोना के सर्वे के लिए पत्नी से बात करनी है. फिर पत्नी के जवाब से चीजें क्लियर हो जाती थीं कि सब ठीक है या नहीं.
दूसरे चरण में जो केस गड़बड़ मिले, वहां पुलिस भेजी. इसके लिए चार टीमें बनाई गईं. जहां कार्रवाई की जरूरत थी, वहां कार्रवाई की. जहां काउंसलिंग से काम चल सकता था, वहां वो किया. और जहां आरोपी को हिरासत में लेने की जरूरत लगी, वहां वो किया गया.

आरिफ बताते हैं कि ये मुहिम इतनी कामयाब हुई कि 29 अप्रैल से लेकर 6 मई तक ऐसे 224 मामलों में कार्रवाई हुई. इसमें 197 मामलों में समझौता फोन पर ही हो गया. 27 में घर जाकर बात करनी पड़ी. दो को हिरासत में लिया गया. इसमें 26 मामले ऐसे भी थे, जहां पीड़ित पुरुष थे.
आरिफ बताते हैं कि रायपुर पुलिस ने एक टोल फ्री नंबर और वॉट्सऐप नंबर जारी किया है, जिसमें भी ऐसी शिकायतें आने लगी हैं और उन पर भी तुरंत कार्रवाई की जा रही है. नतीजा ये है कि रायपुर में लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा जैसी घटनाएं काफी कम हो गई हैं, जो कि महिला आयोग के मुताबिक देश में बढ़ रही हैं.
पहले भी चलाई हैं कई मुहिम
आरिफ छत्तीसगढ़ में आठ जिलों में रह चुके हैं. 2013 में उन्हें छत्तीसगढ़ के एक छोटे जिले बालोद में पोस्टिंग मिली. इसे शंटिंग पोस्टिंग मान लीजिए. शंटिंग पोस्टिंग तब मिलती है, जब सरकार नाराज हो. आरिफ बताते हैं कि उन्होंने इसे भी मौके की तरह लिया. बालोद में कम्युनिटी पुलिस पर जमके काम किया. विमिन इंपावरमेंट के लिए, साइबर क्राइम कंट्रोल के लिए. 2016 में इंटरनेशनल असोसिएशन ऑफ चीफ्स ऑफ पुलिस (IACP) ने इसके लिए उनको अवॉर्ड भी दिया.
इसके बाद आरिफ को नक्सल प्रभावित बस्तर का एसपी बनाया गया. यहां उन्होंने एक 'आमचो बस्तर-आमचो पुलिस' नाम की मुहिम चलाई. इसमें आदिवासियों को पुलिस से जोड़ना, इनके जो रिश्तेदार नक्सली बने हैं, उनको सरेंडर करवाना. उनको सूत्र बनाना. और जो सरेंडर करते हैं, उनका पुनर्वास करवाना. अलग-अलग तरह के स्किल्स सिखाके. इस काम के लिए उनको IACP का होमलैंड सिक्योरिटी अवॉर्ड मिला.
Whatsapp Image 2020 05 04 At 7.48.31 Pm
आरिफ 40 अंडर 40 का अवॉर्ड लेने शिकागो गए थे.

बिलासपुर में उन्होंने 'राखी विद खाकी' मुहिम चलाई, जिसमें महिलाओं को पुलिस से जोड़ा गया, ताकि वो अपनी समस्याएं खुलके पुलिस को बता सकें. फिर रायपुर में उन्होंने पिछले साल हर सर हेलमेट मुहिम चलाई. शहर के लोगों का सहयोग लेकर. इंडिपेंडेंस डे के दिन रायपुर पुलिस ने 15,000 हेलमेट बांटकर रिकॉर्ड बनाया. इसके लिए रायपुर पुलिस को इंडियन बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स और एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स का अवॉर्ड मिला. 2019 में उनको IACP ने इन्हीं कामों के लिए अपनी 40 अंडर 40 लिस्ट में जगह दी.


लल्लनटॉप वीडियो देखें-

Add Lallantop as a Trusted Sourcegoogle-icon
Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement