गणित के दो बड़े ज्ञाता, दोनों दिमागी रूप से बीमार
दुनिया का महान गणितज्ञ. जॉन नैश. आज ही पैदा हुआ था. उसके जैसा एक और था. इंडिया में. कहां है, मालूम नहीं.
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फोटो - thelallantop
'अ ब्यूटीफुल माइंड' नाम की एक फ़िल्म आई थी. हमें तो उसी फ़िल्म से पता चला कि अमेरिका में जॉन नैश नाम के एक ऐसे महामानव हैं जिनसे गणित के नम्बर कांपते हैं. गणित वो बला है जिसने अच्छे अच्छों को नचाया है. जॉन नैश ने गणित को नचाया है. आज उनका हैप्पी बड्डे है. 1928 में जन्मे नैश, शुरूआती पढ़ाई केमिकल इंजीनियरिंग और केमिस्ट्री से करने के बाद प्रिन्सटन यूनिवर्सिटी चले गए. वहां उन्हें मैथ्स का चस्का लगा और प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से मैथ्स में रिसर्च किया. यहीं पर उन्होंने अपनी इक्वीलिब्रियम थ्योरी पर काम करना शुरू कर दिया. बाद में इस थ्योरी को नैश इक्वीलिब्रियम नाम दिया गया. 1945 से 1996 के बीच में नैश ने 23 रिसर्च पेपर्स पब्लिश किए. नैश नॉर्मल से थोड़ा इधर या उधर ही पाए जाते थे. वो नॉर्मल नहीं थे. प्रिन्सटन में वे कई बार आधी रात को दीवारों और ब्लैकबोर्ड पर मैथ्स के सवाल लगाते हुए देखे जाते थे. लेकिन वो होता है न कि अपनी पहचान बनाने के लिए कुछ बड़ा कांड करना पड़ता है. नील आर्मस्ट्रांग को हमने कब जाना? जब वो चांद पर पहुंचा. मलाला को हमने कब जाना? जब उसे गोली लगी. स्कूल तो वो रोज़ ही जाती थी. वैसा ही केस नैश के साथ भी हुआ. दिन रात लगे रहते थे. लेकिन फ़ेमस हुए गेम थ्योरी से. इस थ्योरी से लॉजिक, पॉलिटिकल साइंस, साइकोलॉजी और इकॉनॉमिक्स को बेहतर समझने में काफी मदद मिलती है. हालांकि नाम 'गेम थ्योरी' था लेकिन खेल पूरा गणित का ही था. 1959 में जॉन नैश को दिमागी बीमारी ने घेर लिया. बेचैनी और घबराहट से शुरू हुई इस बीमारी ने जल्दी ही paranoid schizophrenia का रूप ले लिया. बीमारी उतनी ही विकट है जितना उसका नाम. यहां से शुरू हो गए दिमागी अस्पतालों में आने-जाने के दौर. नैश अनजाने डर से घिर गए. उन्हें लगने लगा कि लाल टाई पहनने वाला हर आदमी कम्युनिस्ट है. और उनके खिलाफ़ भयानक वाली साज़िश रच रहा है. उन्होंने अमरीका की एम्बेसी को चिठ्ठी लिखी कि ये लाल टाई वाले लोग अपनी सरकार बना रहे हैं. नैश डिप्रेशन में चले गए. उनकी पत्नी से उनका तलाक़ हो गया. लेकिन पत्नी भी एकदम डेडिकेटेड. वो तलाक़ ले लेने के बावजूद उनके साथ रहतीं, और उनकी देखभाल करतीं. 1970 से नैश ने दवाइयां खाने से इनकार कर दिया. उनका मानना था कि मानसिक बीमारी की दवाइयों के साइड इफेक्ट्स अक्सर नज़रअंदाज कर दिए जाते हैं. उन्होंने अस्पताल जाना भी बंद कर दिया. और तब धीरे-धीरे उनकी हालत में सुधार होने लगा. और फिर उन्होंने 1985 के करीब वापस पढ़ाई शुरू कर दी. उनकी बीमारी और उससे उबरने की पूरी जद्दोजहद सिल्विया नासर ने अपनी किताब 'अ ब्यूटीफुल माइंड' में दर्ज की है. अगर अभी तक अंदाजा न लगाया हो तो बता दें कि इसी किताब के नाम पर फिल्म का नाम पड़ा है. फ़िल्म को लोगों ने बहुत पसंद किया. यहीं से हमको रसेल क्रो के बारे में मालूम चला. गजब ऐक्टिंग करी थी. कुल 4 ऑस्कर अवार्ड जीत कर लायी थी. और हमारी ही तरह बहुत सारे लोगों को जॉन नैश नाम के जीनियस के बारे में मालूम चला. 2015 में एक सड़क हादसे में उनकी मौत हो गई. जब जॉन नैश के बारे में पता चला तब ये भी पता चला कि भारत में भी कुछ ऐसी ही कहानी है. इंडिया का अपना जॉन नैश है. गणित का ज्ञाता है. डॉक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह. बिहार के भोजपुर में पले-बढ़े वशिष्ठ नारायण ने दसवीं और बारहवीं में टॉप करने के बाद पटना साइंस कॉलेज में दाखिला लिया. इनके बारे में एक कहानी बहुत ही मशहूर है. पटना में एक बार वशिष्ठ नारायण को मैथ्स के 5 कठिन सवाल दिए गए. डॉक्टर नारायण ने न केवल उन्हें हल किया, बल्कि हर एक सवाल को कई अलग-अलग तरीकों से हल कर दिखाया. यहां उनके लक्षण सबके सामने आये. इसके कुछ वक़्त बाद उन्हें स्कॉलरशिप पर अमेरिका की यूनिवर्सिटी में पढ़ने का मौका मिला. वहीं पर उन्होंने अपनी PhD भी पूरी की. फिर उन्होंने NASA के साथ बतौर साइंटिस्ट काम करना शुरू कर दिया. उन्होंने आइंस्टाइन की थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी को भी चुनौती दी. हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि नारायण NASA में मशीन या प्रोग्रामिंग में ग्लिच (गलतियां) गिनते थे. साथ ही दबी जुबान में ये भी कहा जाता है कि नारायण सिंह की आइन्स्टाइन को दी चुनौती उनके दिमाग में चल रही बीमारी का फल थी. देश के बाहर रहते- रहते वशिष्ठ नारायण ऊब चुके थे और अपने देश वापस लौटना चाहते थे. 1974 में वे वापस भारत आ गए. यहां आकर उन्होंने IIT कानपुर, TIFR मुंबई और ISI कलकत्ता में पढ़ाया. कलकत्ता में ही उनकी दिमागी हालत और भी बिगड़ने लगी. उन्हें रांची के मानसिक अस्पताल में दाखिल कर दिया गया. वे भी schizophrenia के शिकार हो गए. कुछ समय बाद वे सरकार और लोगों की याद से गायब होते चले गए. उन्हें अस्पताल से निकाल दिया गया. इसी समय के आसपास उनकी पत्नी भी उन्हें छोड़कर चली गईं. जिससे उनके स्वास्थ पर और बुरा असर पड़ा. उनकी हालत बिगड़ती चली गई. उनका परिवार उनके इलाज का भार उठा पाने में लायक भी नहीं था. काफ़ी दिनों तक उनका कुछ पता-ठिकाना नहीं था. कहा जाता है कि मेरठ के मानसिक अस्पताल से भाग जाने के बाद उन्हें छपरा में कूड़ा बीनते हुए देखा गया था. तब उन्हें भूल चुकी दुनिया में वापस पहचाना गया. एक सम्मान समारोह में मंच पर से उनकी उपलब्धियां बताई जा रही थीं. और वे उस सब से बेखबर बच्चों की तरह मुस्करा रहे थे. बीमारी की ऐसी हालत में भी वशिष्ठ नारायण ने अपनी कुछ चीज़ें संभाल कर पकड़ी हुई थी. वो चीज़ें थीं, मैथ्स की किताब और उनकी मैथ्स के फ़ॉर्मूले और सवालों वाली नोटबुक. जॉन नैश अपनी बीमारी से उबरकर वापस सामान्य ज़िन्दगी जीने लगे थे, और देर से ही सही लेकिन उन्हें वो पहचान मिली जिसके वो हक़दार थे. जबकि वशिष्ठ नारायण आज तक schizophrenia से जूझ रहे हैं. कुछ संस्थाओं और लोगों ने उनके इलाज में काफ़ी मदद की है. आज भी कोई उनसे मिलने जाता है तो वो सब कुछ से बेखबर बच्चों की तरह जीभ निकाल कर सबसे मिलते हैं. नैश की मेडिकल हिस्ट्री को समझकर वशिष्ठ नारायण की हालत में सुधार की उम्मीद की जा रही है.
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