यह लेख दी लल्लनटॉप के लिए मुन्ना के. पाण्डेय ने लिखा है. 1982 को बिहार के सिवान में जन्मे डॉ. पाण्डेय के नाटक, रंगमंच और सिनेमा विषय पर नटरंग, सामयिक मीमांसा, संवेद, सबलोग, बनास जन, परिंदे, जनसत्ता, प्रभात खबर जैसे पत्र-पत्रिकाओं में दर्जनों लेख/शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं. दिल्ली सरकार द्वारा ‘हिन्दी प्रतिभा सम्मान(2007)’ से सम्मानित डॉ. पाण्डेय दिल्ली सरकार के मैथिली-भोजपुरी अकादमी के कार्यकारिणी सदस्य भी हैं. उनकी हिंदी प्रदेशों के लोकनाट्य रूपों और भोजपुरी साहित्य-संस्कृति में विशेष दिलचस्पी. वे वर्तमान में सत्यवती कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) के हिंदी-विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं.
कहानी गढ़वाल के अंग्रेज राजा फ्रेडरिक विल्सन की, जो आज भी अपने घोड़े पर पूर्णिमा को गुजरता है
जिसने गढ़वाल को इस कदर जिया कि उसका ब्रिटेन उसके जिंदगी से कोसों पीछे रह गया.

विल्सन ने गढ़वाल को इस कदर जिया कि उसका ब्रिटेन उसके जिंदगी से कोसों पीछे रह गया. (फोटो साभार: राजा ऑफ़ हर्षिल)
एक युवा ब्रिटिश अधिकारी पहले अफगान युद्ध (1839-42) के दौरान अपनी टुकड़ी से विमुख हो गया और टिहरी-गढ़वाल के जंगलों, घाटियों और पहाड़ों में समा गया. वह नौजवान अधिकारी फ्रेडरिक 'पहाड़ी' विल्सन (1817-1883) था. हिमालय के इस खतरनाक और ख़ूबसूरत इलाके में रहकर फ्रेडरिक 'पहाड़ी' विल्सन ने इस क्षेत्र का चेहरा हमेशा के लिए बदल दिया और उसकी जिंदगी इधर के लोक में व्याप्त एक विलक्षण कथा बन गई. उन्होंने महान खेल में एक साहसी भूमिका निभाई, फ्रेडरिक विल्सन 1845 के एंग्लो-शेख युद्ध का हिम्मती गवाह और साहसी भागीदार भी था. अपनी टुकड़ी से निकल कर वह बेमिसाल शिकारी, पक्षी विज्ञानी और वनस्पति शास्त्री, गंगा (भागीरथी) के उद्गम स्रोत के बेहद पास स्थित सुंदर घाटी हर्षिल में बस गया. उसने हर्षिल, गंगोत्री में रहकर गढ़वाली लोगों के जीवन, उनके संघर्ष, उनकी संस्कृति को साझा किया.
उसने गढ़वाल के इस हिस्से को इस कदर जिया कि उसका ब्रिटेन उसके जिंदगी से कोसों पीछे रह गया. वह गंगा और हिमालय का मानस पुत्र अब हर्षिल का राजा कहा जाने लगा था. उसने वहीं की स्थानीय लड़की से शादी की. कहते हैं हर्षिल के इलाके में सेब के बीज भी इसी ने लाये थे.
इसी पहाड़ी राजा फ्रेडरिक विल्सन की दुनिया का वितान रॉबर्ट हचिसन ने 'द राजा ऑफ हर्षिल : द लीजेंड ऑफ फ्रेडरिक पहाड़ी विल्सन' में खूबसूरती से समेटा है. इसमें पहाड़ी विल्सन के मेरठ, मसूरी और शिमला में ऑफिसर्स क्लब की अजीब दुनिया के दोयम ठिठोली वाली नकली दुनिया में रहते हुए, तिब्बत में ऊंची पहाड़ियों पर कड़ी हवाओं की ठिठुरन और गढ़वाल की दुर्गम घाटी में जीवन की कठिनाइयों को समेटे हुए, चार दशकों से फैले प्रेम, शक्ति और रोमांच की एक आकर्षक कहानी दर्ज है. जब भारत सैन्य साहस और उग्र साम्राज्यवाद, राज घरानों और कंपनी राज की बनती बिगड़ती साजिशों, राजनीतिक समीकरणों, क्रांति, विरोधों और चरम राष्ट्रवाद का एक बड़ा केंद्र था. उसी समय दक्ष सैनिक फ्रेडरिक पहाड़ी विल्सन को 'उस व्यक्ति के रूप में जाना गया, जिसने इन सबसे दूर हिमालय के सुंदर किन्तु निर्जन, बर्फ ढंके पहाड़ों और देवदार से घिरे इलाके में एक ऐसे जीवन को जिया और उसका नेतृत्व किया जो राजाओं और उनके प्रपंचों से ईर्ष्या करता था. हचिसन लिखते हैं "मेरा मानना है और मेरा शोध इस बात की पुष्टि करता है कि रुडयार्ड किपलिंग ने अपनी लघु कहानी 'वह आदमी जो राजा होगा' पर आधारित थी. वास्तव में, विल्सन को हरसिल के राजा के रूप में जाना जाता है. ऊपरी तांग्नोर के गांव में - यह नाम तब गढ़वाली पहाड़ी जिले के लिए इस्तेमाल किया जाता था जहां हरसिल स्थित है - विल्सन के सबसे बड़े बेटे, नाथनियल के कुख्यात कारनामों के बारे में लोक गाथाएं आज भी गाई जाती हैं."
धराली मा चान/रुदा गोदाम्बरी बांदा/मी धराली जांदू/बांको नाथू साब/मी जिंदो मारन/मीन रुदा गोदाम्बरी लावनी/बंगला हो सजा
ऊपरी टैंगमोर गांव में विल्सन ने एक झूला पुल का निर्माण किया था, जो हर्षिल और गंगोत्री के बीच लगभग आधे रास्ते भवन जड़गंगा दर्रे के पास है. कुछ साल बाद, एक बेहद तूफानी मौसम में वह पुल टूटा जिससे स्थानीय चरवाहों की कुछ भेड़ों की भी मृत्यु हुई थी.
फ्रेडरिक विल्सन नामक इस ब्रिटिश पर इस इलाके की जनता ने अपना प्यार भी खूब लुटाया. लोकव्याप्त किस्सा यह भी है कि हर्षिल से आगे भैरों घाटी और गंगोत्री के बीच नदी पर रस्सियों का झूलापुल भी विल्सन ने बनाया था, जिस पर कोई स्थानीय नागरिक चढ़कर उसपर जाने को तैयार न था. तब फ्रेडरिक पहाड़ी विल्सन ने अपने घोड़े पर बैठकर उस पुल से आर पार होकर दिखाया और जनता का चहेता बन गया. इसके एक प्रसंग का जिक्र हचिसन अपनी किताब में कुछ यूं करते हैं- खैर, इधर के इलाके में आज भी यह मशहूर है कि पूर्णिमा की रात को पहाड़ी राजा विल्सन गंगा पर बने पुल से अपने घोड़े पर बैठकर गुजरता है और उसके घोड़े की टापों की आवाजें आज भी उस पुल की ओर से आती है. यह विल्सन से जुड़ी कथाओं में से एक हिस्सा है. इस हिस्से को 2006 में आउटलुक ने 100 पहाड़ी टूरिस्ट डेस्टिनेशंस वाले स्पेशल एडिशन में दर्ज भी किया है.
एक अंग्रेज का लीजेंड बनना
इस पहाड़ी विल्सन पर आधिकारिक जानकारी रखने वाले रॉबर्ट हचिसन एक बेहद रोचक जानकारी देते हुए लिखते हैं-
मिलना टिहरी गढ़वाल के राजा से
कुछ साल पहले हर्षिल में बसने के बाद विल्सन ने गढ़वाल हिमालय में कस्तूरी मृग का शिकार करने के लिए विशेष रियायत के लिए टिहरी गढ़वाल के राजा सुदर्शन शाह के समक्ष एक याचिका दी. राजा ने उसकी याचिका को खारिज कर दिया लेकिन विल्सन को भविष्य में शाही ताबूतों के लिए राजस्व उगाहने के स्रोत के रूप में मान्यता दे दी. साथ ही, राजा ने विल्सन से यह भी पूछा कि क्या इस अंग्रेज की कुछ और इच्छा भी है? तब विल्सन ने इस काम के बजाय लकड़ी की कटाई और व्यापार में विशेष रियायत का देने अनुरोध किया. यह 150 रुपये वार्षिक भुगतान के एवज में विरुद्ध स्वीकार कर लिया गया, जो बाद में बढ़ाकर 400 रुपये प्रति वर्ष हो गया. विल्सन ने हिमालय के इस क्षेत्र पर व्यावसायिक इमारती लकड़ी के कारोबार की शुरुआत की और इस व्यापार ने उसे उत्तर भारत का सबसे अमीर आदमी बना दिया. ऐसा माना जाता है कि इस व्यापार के साथ उसने इस तरह की आश्चर्यजनक प्रगति की. जिसे कभी भी नकदी अर्थव्यवस्था के रूप में नहीं जाना जा सका. जब तक कि वह अपने स्वयं के सिक्के विल्सन रुपये (विल्सन मनी) का प्रचलन न चला गया. इधर के स्थानीय लोगों ने उसे हुलसिन साहब कहा, हुलसिन गढ़वाली लोगों की अपनी जबान का बातचीत मौखिक अनुदित प्रयोग था. आखिर वह विल्सन का उच्चारण करते भी कैसे यह नाम और यह जबान दोनों ही उनकी भाषा और संस्कृति से कोसों दूर का था.

(फोटो साभार: राजा ऑफ़ हर्षिल)
विल्सन का परिवार
वैसे जो तथ्यात्मक बात हचिसन ने अपनी किताब में लिखी हैं, वह सही मानी जा सकती हैं. विल्सन की दो पत्नियां थीं. दोनों ही स्थानीय और हर्षिल के पड़ोसी गांव मुखबा की रहने वालीं थीं और एक दूसरे के रिश्ते में भी थीं. एक का नाम रैमाता चंद और दूसरी पत्नी का नाम सुंग्रामी उर्फ गुलाबी. यह गुलाबी नाम ही चर्चित रहा और इसी से विल्सन के तीन बेटे नाथनियल, चार्ल्स और हेनरी हुए. मुखबा और हर्षिल के लोग इनके किस्से बताते हुए इनके स्थानीय पुकार नामों से संबोधित करते हैं. नाथनियल बना नत्थू, चार्ल्स बने चार्ली साहब और हेनरी हुए इन्द्री.

रैमाता चंद (फोटो साभार: राजा ऑफ़ हर्षिल)
विल्सन का आखिरी समय
चर्च के रिकॉर्ड की माने तो फ्रेडरिक विल्सन 21 या 22 जुलाई 1883 की रात को गठिया और ब्रोंकाइटिस की तकलीफ से जूझते अपनी आंखें बंद करके मसूरी के कैमल बैक स्थित अंग्रेजी कब्रिस्तान में एक लंबे पुराने शानदार देवदार के नीचे सो गया. हेनरी मां गुलाबी/रूथ के साथ ही रहा और चार्ल्स ने अपने को विल्सन की जागीर का नया स्वामी घोषित कर दिया. एक शानदार शख्सियत 66 साल और 7 माह की उम्र में हिमालय की गोद में लेट गया था. विल्सन अभी भी मसूरी के उसी अंग्रेजी कब्रिस्तान में है जहां उसकी कब्र पर घासों की हरियाली और समय की मार की कालिमा छाई हुई है और उसी समय ने उसकी कब्र के सफेद मार्बल के क्रॉस को क्षतिग्रस्त कर दिया है. और हां! वहीं उसके पैताने की ओर उसकी पत्नी, गुलाबी रूथ विल्सन भी चिरनिद्रा में है.

(फोटो साभार: राजा ऑफ़ हर्षिल)
विल्सन के बेटे और राजा विल्सन का बंगला
अपने पिता की मृत्यु के कुछ दिनों के भीतर ही चार्ल्स ने अपने पिता के हिस्सों और साझेदारियों की तलाश में विल्सन एंड संस ऑफिस में तोड़फोड़ की, लेकिन उसे कुछ खास नहीं मिला. उसके पिता ने बहुत पहले ही अपने वन सहयोगियों और वनोपज के सामान्य व्यापारियों को कमतर कर दिया था. चार्ल्स ने हरिद्वार के आराघर 'ओ' कैलाघन अपनी वहां की संपति बाजार औने पौने कीमत पर ही बेच दी. हेनरी ने कभी शादी नहीं की. कुछ साल बाद मुखबा के ऊपर जंगलों में शिकार खेलते हुए एक दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गई. उसका भाई चार्ल्स इस दुर्घटना का एकमात्र गवाह था. जहां हेनरी गिरा वहीं एक पुराने देवदार के नीचे उसको दफनाया गया. मास्टर शुभध्यानु जिन्होंने इंद्री/हेनरी के शव को देखा था उनके हवाले से हचिसन ने लिखा है कि हेनरी उर्फ इंद्री के पीठ में गोली लगी थी. इसी से हेनरी की मौत हो गई. अब गोली लगी या मारी गयी इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं हैं क्योंकि विल्सन की वसीयत के अनुसार अब चार्ल्स उस पूरी जागीर का अकेला स्वामी हो गया था. उसने बतौर इन्वेस्टमेंट सलाहकार अपना हिसाब किताब मसूरी में सेट किया और पिता के शानदार नाम के सहारे खूब फला फूला. लेकिन एक जानने वाली बात यह भी है कि फ्रेडरिक विल्सन ने अपने पीछे दो बेटे और दोनों पत्नियों को पारिवारिक वकील के सामने वसीयत करके रैमाता को हर्षिल और एक घर लैंढूर स्थित चार दुकान में रोकेबाय हेनरी को, इवानहो चार्ल्स को और परेड पॉइंट गुलाबी को दिया और कुल पांच लाख रुपयों का एक ट्रस्ट बनाकर बैंक ऑफ बंगाल में सुरक्षित कर दिया. चार्ल्स ने इन पैसों और दूसरी और चीजों के लिए इस परिवार में बेहद हंगामा किया. बाद में, विल्सन से जुड़ी चीजों को चार्ल्स ने एक पब्लिक नीलामी में क्रूरता से बेच दिया. इनमें कुछ विलक्षण वस्तुओं और शिकार के चिन्हों के अलावा फ्रेडरिक विल्सन की पुस्तकें, लेखनी, प्राकृतिक इतिहास के नोट्स, पेंटिंग्स, स्केचस भी शामिल थे.
विल्सन ने अपने बैंकर एलन फाइन्डले अपनी मुलाकात में बताया था-
विल्सन के बंगले का क्या हुआ ?
रैमाता चंद के तरफ से चंद परिवार को वह बंगला हासिल हुआ. लेकिन उनको समझ नहीं आया कि इसका करें क्या. गुलाबी उर्फ रूथ ने मसूरी के एशले हॉल को अपने नाम पर करने की बात की थी. बाद में यह बंगला गढ़वाल मंडल निगम और इंडो तिब्बत बॉर्डर पुलिस के बीच झगड़े की वजह बना. 1997 की एक़ रात यह बंगला जल गया. अब यह नए रूप में है और जंगलात वालों के हाथ में है. पुराना रहा नहीं नए में वह बात नहीं. एक शानदार किस्से का एक शानदार अध्याय हिमालय के इस हिस्से में दफन हो गया. रह गयी तो मौखिक परंपरा में उसकी कच्ची-पक्की कहानी और लोक गीतों में उसकी उपस्थिति.
वैसे मुझे उम्मीद है आप हर्षिल जानते होंगे. यह गंगोत्री से 25 किलोमीटर पहले पड़ता है. महार और जाट रेजिमेंट से घिरा यह छोटा सा कस्बा समुद्र तल से लगभग 2500 मीटर ऊंचा है. देवदारों से घिरे इस इलाके को इतनी ऊंचाई पर इतना सपाट समतल देख आश्चर्य होता है. पास ही स्थित मुखबा गांव गंगा माता (गंगोत्री धाम) की शीतकालीन गद्दी है.
यह किस्सा अंग्रेज पहाड़ी राजा का है, जिसने गढ़वाल के इस हिस्से से सच्चा इश्क किया था. आपको हर्षिल नया लग रहा हो तो जान लीजिए उत्तराखंड स्थित गंगोत्रीधाम जाने के क्रम में यह इलाका राजकपूर की फ़िल्म राम तेरी गंगा मैली की शूटिंग के लिए भी चर्चित रहा है.
(नोट : इस पोस्ट के सभी रेफरेन्स रॉबर्ट हचिसन के किताब "द राजा ऑफ हर्षिल, द लीजेंड ऑफ फ्रेडरिक 'पहाड़ी' विल्सन" में का भाव अनुवाद है. फोटो www.raja-of-harsil.com से साभार ली गई हैं.)
विडियो- उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी होगी गैरसैंण लेकिन इसकी कहानी क्या है?
एक अंग्रेज का लीजेंड बनना
इस पहाड़ी विल्सन पर आधिकारिक जानकारी रखने वाले रॉबर्ट हचिसन एक बेहद रोचक जानकारी देते हुए लिखते हैं-
यदि आप विल्सन की कथा के सूत्र को खोजने निकलते हैं तो सबसे बड़ी समस्याओं में से यह समस्या है कि हर किसी के पास उसका अपना किस्सा है. यानी आज भी अगर टिहरी गढ़वाल में किसी भी छह जानकार माने जाने वाले लोगों से बात किया जाए, तो आपको विल्सन के जीवन के छह अलग-अलग संस्करण प्राप्त होने की संभावना है. सभी कुछ ठोस तथ्य के साथ लेकिन अनिवार्य रूप से अलग-अलग मिलेंगे.हर्षिल, गंगोत्री, गोमुख तपोवन ट्रेक के रास्ते पर मेरे साथ के साथियों को शायद हो कि गंगोत्री से गोमुख फिर तपोवन की श्रमसाध्य चढ़ाई चढ़ते हुए हमारे गाइड हिम्मत सिंह नेगी और उसके साथियों ने विल्सन की की कई चमत्कारी बातें भी बताई, जिन पर विश्वास करना गदहे के सिर पर सिंह ढूढ़ने जैसा था. उन्हीं एक किस्सों में से था-
विल्सन के वश में भूत और जिन्न भी थे, इसीलिए वह रात भर जंगल पहाड़ों में घूमता, सुरक्षित वापिस अपने कोठी में आ जाता. दूसरी कथा भूतों से खेती करवाने वाली बात थी.आप हंस सकते हैं. मैं भी हंसा था पर एक ब्रिटिश भारतीय जनमानस में ऐसे भी बसा हुआ है 200 सालों से अधिक के समय में, यह कम आश्चर्यजनक नहीं.
मिलना टिहरी गढ़वाल के राजा से
कुछ साल पहले हर्षिल में बसने के बाद विल्सन ने गढ़वाल हिमालय में कस्तूरी मृग का शिकार करने के लिए विशेष रियायत के लिए टिहरी गढ़वाल के राजा सुदर्शन शाह के समक्ष एक याचिका दी. राजा ने उसकी याचिका को खारिज कर दिया लेकिन विल्सन को भविष्य में शाही ताबूतों के लिए राजस्व उगाहने के स्रोत के रूप में मान्यता दे दी. साथ ही, राजा ने विल्सन से यह भी पूछा कि क्या इस अंग्रेज की कुछ और इच्छा भी है? तब विल्सन ने इस काम के बजाय लकड़ी की कटाई और व्यापार में विशेष रियायत का देने अनुरोध किया. यह 150 रुपये वार्षिक भुगतान के एवज में विरुद्ध स्वीकार कर लिया गया, जो बाद में बढ़ाकर 400 रुपये प्रति वर्ष हो गया. विल्सन ने हिमालय के इस क्षेत्र पर व्यावसायिक इमारती लकड़ी के कारोबार की शुरुआत की और इस व्यापार ने उसे उत्तर भारत का सबसे अमीर आदमी बना दिया. ऐसा माना जाता है कि इस व्यापार के साथ उसने इस तरह की आश्चर्यजनक प्रगति की. जिसे कभी भी नकदी अर्थव्यवस्था के रूप में नहीं जाना जा सका. जब तक कि वह अपने स्वयं के सिक्के विल्सन रुपये (विल्सन मनी) का प्रचलन न चला गया. इधर के स्थानीय लोगों ने उसे हुलसिन साहब कहा, हुलसिन गढ़वाली लोगों की अपनी जबान का बातचीत मौखिक अनुदित प्रयोग था. आखिर वह विल्सन का उच्चारण करते भी कैसे यह नाम और यह जबान दोनों ही उनकी भाषा और संस्कृति से कोसों दूर का था.

(फोटो साभार: राजा ऑफ़ हर्षिल)
विल्सन का परिवार
वैसे जो तथ्यात्मक बात हचिसन ने अपनी किताब में लिखी हैं, वह सही मानी जा सकती हैं. विल्सन की दो पत्नियां थीं. दोनों ही स्थानीय और हर्षिल के पड़ोसी गांव मुखबा की रहने वालीं थीं और एक दूसरे के रिश्ते में भी थीं. एक का नाम रैमाता चंद और दूसरी पत्नी का नाम सुंग्रामी उर्फ गुलाबी. यह गुलाबी नाम ही चर्चित रहा और इसी से विल्सन के तीन बेटे नाथनियल, चार्ल्स और हेनरी हुए. मुखबा और हर्षिल के लोग इनके किस्से बताते हुए इनके स्थानीय पुकार नामों से संबोधित करते हैं. नाथनियल बना नत्थू, चार्ल्स बने चार्ली साहब और हेनरी हुए इन्द्री.

रैमाता चंद (फोटो साभार: राजा ऑफ़ हर्षिल)
विल्सन का आखिरी समय
चर्च के रिकॉर्ड की माने तो फ्रेडरिक विल्सन 21 या 22 जुलाई 1883 की रात को गठिया और ब्रोंकाइटिस की तकलीफ से जूझते अपनी आंखें बंद करके मसूरी के कैमल बैक स्थित अंग्रेजी कब्रिस्तान में एक लंबे पुराने शानदार देवदार के नीचे सो गया. हेनरी मां गुलाबी/रूथ के साथ ही रहा और चार्ल्स ने अपने को विल्सन की जागीर का नया स्वामी घोषित कर दिया. एक शानदार शख्सियत 66 साल और 7 माह की उम्र में हिमालय की गोद में लेट गया था. विल्सन अभी भी मसूरी के उसी अंग्रेजी कब्रिस्तान में है जहां उसकी कब्र पर घासों की हरियाली और समय की मार की कालिमा छाई हुई है और उसी समय ने उसकी कब्र के सफेद मार्बल के क्रॉस को क्षतिग्रस्त कर दिया है. और हां! वहीं उसके पैताने की ओर उसकी पत्नी, गुलाबी रूथ विल्सन भी चिरनिद्रा में है.

(फोटो साभार: राजा ऑफ़ हर्षिल)
विल्सन के बेटे और राजा विल्सन का बंगला
अपने पिता की मृत्यु के कुछ दिनों के भीतर ही चार्ल्स ने अपने पिता के हिस्सों और साझेदारियों की तलाश में विल्सन एंड संस ऑफिस में तोड़फोड़ की, लेकिन उसे कुछ खास नहीं मिला. उसके पिता ने बहुत पहले ही अपने वन सहयोगियों और वनोपज के सामान्य व्यापारियों को कमतर कर दिया था. चार्ल्स ने हरिद्वार के आराघर 'ओ' कैलाघन अपनी वहां की संपति बाजार औने पौने कीमत पर ही बेच दी. हेनरी ने कभी शादी नहीं की. कुछ साल बाद मुखबा के ऊपर जंगलों में शिकार खेलते हुए एक दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गई. उसका भाई चार्ल्स इस दुर्घटना का एकमात्र गवाह था. जहां हेनरी गिरा वहीं एक पुराने देवदार के नीचे उसको दफनाया गया. मास्टर शुभध्यानु जिन्होंने इंद्री/हेनरी के शव को देखा था उनके हवाले से हचिसन ने लिखा है कि हेनरी उर्फ इंद्री के पीठ में गोली लगी थी. इसी से हेनरी की मौत हो गई. अब गोली लगी या मारी गयी इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं हैं क्योंकि विल्सन की वसीयत के अनुसार अब चार्ल्स उस पूरी जागीर का अकेला स्वामी हो गया था. उसने बतौर इन्वेस्टमेंट सलाहकार अपना हिसाब किताब मसूरी में सेट किया और पिता के शानदार नाम के सहारे खूब फला फूला. लेकिन एक जानने वाली बात यह भी है कि फ्रेडरिक विल्सन ने अपने पीछे दो बेटे और दोनों पत्नियों को पारिवारिक वकील के सामने वसीयत करके रैमाता को हर्षिल और एक घर लैंढूर स्थित चार दुकान में रोकेबाय हेनरी को, इवानहो चार्ल्स को और परेड पॉइंट गुलाबी को दिया और कुल पांच लाख रुपयों का एक ट्रस्ट बनाकर बैंक ऑफ बंगाल में सुरक्षित कर दिया. चार्ल्स ने इन पैसों और दूसरी और चीजों के लिए इस परिवार में बेहद हंगामा किया. बाद में, विल्सन से जुड़ी चीजों को चार्ल्स ने एक पब्लिक नीलामी में क्रूरता से बेच दिया. इनमें कुछ विलक्षण वस्तुओं और शिकार के चिन्हों के अलावा फ्रेडरिक विल्सन की पुस्तकें, लेखनी, प्राकृतिक इतिहास के नोट्स, पेंटिंग्स, स्केचस भी शामिल थे.
विल्सन ने अपने बैंकर एलन फाइन्डले अपनी मुलाकात में बताया था-
मुझे शायद चार्ल्स के दिखावे और पागलपन पर लगाम लगाने और पैसों के लिए उसकी बेतहाशा भूख के लिए काम करना चाहिए था. मुझे अधिक सख्त होना चाहिए था. मुझे लगता है लेकिन मैं खुद को यह स्वीकार करने के लिए कभी तैयार नहीं कर सकता कि वह एक सड़ा हुआ सेब है. एक हारा हुआ बाप था, जिसने पहाड़ों में अपनी एक साख बनाई थी.मास्टर शुभध्यानु ने शायद सच ही कहा था - इंद्री/हेनरी को गोली मारी गयी थी.
विल्सन के बंगले का क्या हुआ ?
रैमाता चंद के तरफ से चंद परिवार को वह बंगला हासिल हुआ. लेकिन उनको समझ नहीं आया कि इसका करें क्या. गुलाबी उर्फ रूथ ने मसूरी के एशले हॉल को अपने नाम पर करने की बात की थी. बाद में यह बंगला गढ़वाल मंडल निगम और इंडो तिब्बत बॉर्डर पुलिस के बीच झगड़े की वजह बना. 1997 की एक़ रात यह बंगला जल गया. अब यह नए रूप में है और जंगलात वालों के हाथ में है. पुराना रहा नहीं नए में वह बात नहीं. एक शानदार किस्से का एक शानदार अध्याय हिमालय के इस हिस्से में दफन हो गया. रह गयी तो मौखिक परंपरा में उसकी कच्ची-पक्की कहानी और लोक गीतों में उसकी उपस्थिति.
वैसे मुझे उम्मीद है आप हर्षिल जानते होंगे. यह गंगोत्री से 25 किलोमीटर पहले पड़ता है. महार और जाट रेजिमेंट से घिरा यह छोटा सा कस्बा समुद्र तल से लगभग 2500 मीटर ऊंचा है. देवदारों से घिरे इस इलाके को इतनी ऊंचाई पर इतना सपाट समतल देख आश्चर्य होता है. पास ही स्थित मुखबा गांव गंगा माता (गंगोत्री धाम) की शीतकालीन गद्दी है.
यह किस्सा अंग्रेज पहाड़ी राजा का है, जिसने गढ़वाल के इस हिस्से से सच्चा इश्क किया था. आपको हर्षिल नया लग रहा हो तो जान लीजिए उत्तराखंड स्थित गंगोत्रीधाम जाने के क्रम में यह इलाका राजकपूर की फ़िल्म राम तेरी गंगा मैली की शूटिंग के लिए भी चर्चित रहा है.
(नोट : इस पोस्ट के सभी रेफरेन्स रॉबर्ट हचिसन के किताब "द राजा ऑफ हर्षिल, द लीजेंड ऑफ फ्रेडरिक 'पहाड़ी' विल्सन" में का भाव अनुवाद है. फोटो www.raja-of-harsil.com से साभार ली गई हैं.)
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