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'3 इडियट्स' वाली पैंगोंग झील के पास भारत-चीन के सैनिक क्यों झगड़ते रहते हैं?

पिछले दिनों एक बार फिर दोनों ओर के सैनिकों में तनाव बढ़ा.

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फिल्म थ्री इडियट्स (बाएं) के अंतिम सीन की वजह से ये झील चर्चा में काफी आई थी. इसके पास पहले भी सीमा विवाद को लेकर भारत और चीन के सैनिक झगड़ते रहे हैं. फोटो: YouTube Screengrab/ India Today
रैंचो को खोजा जा रहा है. उसके दो दोस्त फरहान और राजू इस मिशन पर निकले हैं. तमाम फ्लैशबैक, हंसने-रोने-गाने के बाद इस खोज का चक्र पूरा होता है. रैंचो लद्दाख के एक गांव में बच्चों का क्रिएटिव स्कूल चलाता है. उनके साथ पतंग उड़ा रहा है. हैप्पी एंडिंग की तरफ बढ़ रही '3 इडियट्स' के इस आखिरी सीक्वेंस का बैकग्राउंड ध्यान खींचता है. सुर्ख नीली झील. स्लेटी पहाड़. सफेद रेत. 'आसमानी' शेड हावी है. जैसे सब कुछ वॉटर कलर से पेंट किया गया हो. असल में ये बैकग्राउंड इस ध्यान खींचने वाले 'बैकग्राउंड' की वजह से ही बताना पड़ा. ये नीली झील पैंगोंग त्सो लेक है. पूर्वी लद्दाख में पड़ती है. भारत से होती हुई चीन के अधीन आने वाले तिब्बत में बहती है. लेकिन इसकी चर्चा क्यों?
3 इडियट्स की शूटिंग यहां होने के बाद टूरिज़्म में काफी उछाल आया था. फोटो: YouTube Screengrab
3 इडियट्स की शूटिंग यहां होने के बाद टूरिज़्म में काफी उछाल आया था. फोटो: YouTube Screengrab

पिछले दिनों झील के पास भारत और चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के सैनिकों में तनाव हो गया. झड़प की भी ख़बर आई. रिपोर्ट कहती है कि 5-6 मई की रात को ये सब हुआ. लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर सैनिकों को हाई अलर्ट पर रखा गया. इस एरिया में भारतीय सेना रहती है. लेकिन वायुसेना के सुखोई-30 लड़ाकू विमान यहां देखे गए. हालांकि सेना ने कहा कि अब टकराव की स्थिति नहीं है. वहीं, वायु सेना ने भी कहा कि किसी भी पक्ष की तरफ से हवाई क्षेत्र का उल्लंघन नहीं किया गया. समझौते के मुताबिक, दोनों तरफ का कोई प्लेन LAC के 10 किलोमीटर के दायरे में बगैर पहले से अनुमित के नहीं जा सकता. हेलीकॉप्टर के लिए एक किलोमीटर की दूरी बनाए रखने की शर्त है. ये इलाका सेना की भाषा में 'फिंगर 5' के नाम से जाना जाता है.
पैंगोग लद्दाख में है जो कि अब एक केंद्र शासित प्रदेश है. इसके दायीं तरफ चीन है. बायीं तरफ पाकिस्तान. उत्तर में अफगानिस्तान है. फोटो: गूगल मैप्स
पैंगोग लद्दाख में है जो कि अब एक केंद्र शासित प्रदेश है. इसके दायीं तरफ चीन है. बायीं तरफ पाकिस्तान. उत्तर में अफगानिस्तान है. फोटो: गूगल मैप्स

बॉर्डर-बॉर्डर
इसके अलावा एक और घटना हुई, जब भारत-चीन के आमने-सामने आए. 9 मई को नॉर्थ-ईस्ट में सिक्किम के नाकू ला सेक्टर में भारत और चीन के सैनिकों में झड़प हो गई. सैनिक चोटिल हो गए. हालांकि बाद में बातचीत से मसला सुलझा लिया गया. लेकिन ये कोई नई बात नहीं है. अक्सर उत्तर में लद्दाख और नॉर्थ-ईस्ट में अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम की सीमा पर ऐसे तनाव देखने को मिलते हैं. असल में यहां भारत की सीमाएं तिब्बत से लगती हैं. 1914 के शिमला समझौते में ब्रिटिश हुकूमत और तिब्बत के बीच नॉर्थ-ईस्ट के लिए सीमा तय हुई थी, जिसे मैकमोहन रेखा कहते हैं लेकिन चीन इसे मानता नहीं है. चीन का कहना है कि ये समझौता तिब्बत-ब्रिटेन के बीच हुआ था. इसलिए चीन भारत में घुसपैठ करता रहता है. 1962 के भारत-चीन युद्ध के पीछे सीमा का यही संघर्ष था. थोड़ा पीछे जाएं तो युद्ध की भूमिका तब से ही बन रही थी, जब जवाहरलाल नेहरू ने तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा को भारत में शरण दी थी.
मार्च, 1959 में दलाई लामा तिब्बत से अरुणाचल प्रदेश आए थे. चीन की सेना उनका पीछा कर रही थी. तब मसूरी में जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें आधिकारिक तौर पर शरण दी. फोटो: thenortheasttoday.com
मार्च, 1959 में दलाई लामा तिब्बत से अरुणाचल प्रदेश आए थे. चीन की सेना उनका पीछा कर रही थी. तब मसूरी में जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें आधिकारिक तौर पर शरण दी. फोटो: thenortheasttoday.com

पैंगोंग त्सो
पैंगोंग त्सो पर वापस लौटते हैं . हिमालय में 4,350 मीटर की ऊंचाई पर बनी पैंगोंग झील से लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) गुजरती है. झील करीब 135 किलोमीटर लंबी है. झील का पश्चिमी भाग भारत के पास है. करीब 45 किलोमीटर. बाकी के पूर्वी भाग पर चीन का कंट्रोल है. 90 किलोमीटर. सर्दियों में पैंगोंग झील पूरी तरह जम जाती है. कहा जाता है कि 19वीं सदी में डोगरा जनरल जोरावर सिंह अपने सैनिकों और घोड़ों को जमी हुई झील पर ट्रेनिंग कराते थे. लद्दाख सरकार की वेबसाइट के मुताबिक, पैंगोंग त्सो का तिब्बती में मतलब ''ऊंचे घास के मैदान वाली झील'' है. हालांकि कुछ पुराने यात्रा वृत्तांत कहते हैं कि पैंगोंग का मतलब 'खोखला' है.
गूगल मैप्स पर पैंगोंग लेक की पोजीशन. फोटो: गूगल मैप्स
गूगल मैप्स पर पैंगोंग लेक की पोजीशन. फोटो: गूगल मैप्स

LAC पर बवाल
झील के उत्तरी किनारे पर कटे हुए पहाड़ हैं, जिन्हें भारतीय सेना 'फिंगर्स' कहती है. भारत का कहना है कि फिंगर 8 तक LAC खत्म होती है. फिंगर 4 तक भारत का कंट्रोल है. चीन के बॉर्डर पोस्ट फिंगर 8 पर हैं जबकि भारत के बॉर्डर पोस्ट फिंगर 3 पर हैं. चीन दावा करता है कि LAC फिंगर 2 से होकर गुजरती है. LAC से 20 किमी आगे झील के पूर्वी हिस्से को भारत अपना कहता है लेकिन चीन उसे अक्साई चिन का हिस्सा बताता है. अक्साई चिन भी विवादित जगह है, जिस पर चीन का कब्जा है. अक्साई चिन भारत के नक्शे में है. नक्शे को लेकर भी भारत और चीन में कई बार कहा-सुनी हुई है.
भारत के नक्शे में अक्साई चिन, जिस पर चीन का कब्जा है. फोटो: विकीमीडिया
भारत के नक्शे में अक्साई चिन, जिस पर चीन का कब्जा है. फोटो: विकीमीडिया

पुराने टकराव
सीमा तय ना होने की वजह से इस तरह के टकराव पहले भी हुए हैं. जून-अगस्त, 2017 में भूटान की सीमा पर डोकलाम विवाद चरम पर था. उस साल भारत के स्वतंत्रता दिवस समारोह में भी चीन के सैनिकों ने भाग लेने से मना कर दिया था. ऐसा 2005 के बाद पहली बार हुआ. एक और समारोह, जो 1 अगस्त को चीन में पीपल्स लिबरेशन आर्मी के फाउंडिंग डे पर हुआ करता है, वो भी नहीं हुआ. 19 अगस्त, 2017 को पैंगोंग झील पर पथराव-मारपीट की घटना हुई. इसका एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें कथित तौर पर दोनों तरफ के सैनिक झगड़ते दिखे.
वायरल हुए वीडियो का स्क्रीनशॉट, जिसमें दावा किया गया कि भारत-चीन के सैनिकों में हाथापाई हुई. फोटो: सोशल मीडिया
वायरल हुए वीडियो का स्क्रीनशॉट, जिसमें दावा किया गया कि भारत-चीन के सैनिकों में हाथापाई हुई. फोटो: सोशल मीडिया

फिर भी गोलियां नहीं चलती हैं, क्यों?
हालांकि इन झड़पों में गोलियां नहीं चलती हैं. दोनों तरफ से पैट्रोलिंग होती है. समझौते के तहत ज़्यादातर सैनिकों के पास बड़े हथियार नहीं होते. कई बार हथियार होते ही नहीं हैं या छोटे हथियार होते हैं. अगर वो कभी आमने-सामने आते भी हैं तो समझौते की ही वजह से गन पॉइंट एक दूसरे के सामने नहीं करते. अक्सर चीन वाले अपना दावा जताने घुस आते हैं. जब ये आमने-सामने आते हैं तो पहले 'बैनर ड्रिल' होती है. बताया जाता है कि ये इलाका भारत का है और दूसरे पक्ष से इलाका छोड़ने को कहा जाता है. तब भी घुसपैठ नहीं रुकती तो विवाद हो जाता है.
ऐसे विवाद अक्सर बातचीत से सुलझाए जाते हैं. अक्सर पथराव और झड़प की नौबत आ जाती है. फोटो: India Today
ऐसे विवाद अक्सर बातचीत से सुलझाए जाते हैं. अक्सर पथराव और झड़प की नौबत आ जाती है. फोटो: India Today

अक्सर अफसरों के हस्तक्षेप से कुछ घंटों में टकराव खत्म होता है. तब प्रोटोकॉल के हिसाब से मीटिंग होती है. ब्रिगेड या डिवीजन कमांडर के बीच. इस तरह की मीटिंग अक्सर ठीक-ठाक रहती हैं. दोनों पक्ष ज़मीन पर अपना-अपना दावा करते हैं. अंत में यथास्थिति पर पीछे हट जाते हैं. ये चलता रहता है. चलता रहेगा, जब तक सीमा पर अंतिम राय नहीं बनती.
झील सुरक्षा के लिहाज से क्यों इतनी ज़रूरी है?
ये झील चुशूल के रास्ते में पड़ती है, जो कि भारत का अहम हिस्सा है. चुशूल एक गांव है, जो बॉर्डर से 15 किलोमीटर दूर है. आर्मी की पोस्ट है यहां पर. झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारे को 'चुशूल अप्रोच' कहते हैं, जिसका इस्तेमाल चीन भारत में घुसने में कर सकता है. 1962 के युद्ध में चुशूल में ही चीन ने सबसे बड़ा हमला किया था. रेज़ांग ला पर भारतीय सेना डटकर लड़ी. 13 कुमाऊं की अहीर रेजिमेंट के मेजर शैतान सिंह शहीद हो गए थे. 1964 में इस पर बलराज साहनी और धर्मेंद्र की फिल्म 'हक़ीक़त' बनी थी.
ये फिल्म चेतन आनंद ने बनाई थी. फोटो: विकीमीडिया
ये फिल्म चेतन आनंद ने बनाई थी. फोटो: विकीमीडिया

चीन का रोड नेटवर्क
चीन ने कई सड़कें इस तरफ मोड़ रखी हैं. चीन के रोड का नेटवर्क काराकोरम हाईवे से जुड़ता है. 1999 में करगिल युद्ध के दौरान भारत के क्षेत्र में पांच किलोमीटर अंदर तक चीन ने एक सड़क बना दी थी. झील के किनारे. इस पर चीन के सैनिक बाइक से पैट्रोलिंग करते हैं. फिलहाल भारत की तरफ से सुरक्षा के लिए कई हाईस्पीड बोट्स झील पर तैनात रहती हैं और झील पर पैट्रोलिंग होती रहती है. झील जाने के लिए डिप्टी कमिश्नर ऑफ लेह से इनर लाइन परमिट की ज़रूरत होती है. सुरक्षा कारणों से यहां बोटिंग की इजाज़त नहीं है.


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