वो एक ऐसे पेशे में हैं, जिसमें दूसरी महिला ढूंढने के लिए हमें तीन पीढ़ी पीछे जाना होगा. वे एक ऐसी इंडस्ट्री में हैं, जहां आज भी लड़कियों की सफलता फिल्म के सबसे सफल गीत में 'आइटम गर्ल' हो जाने में गिनी जाती है. वे एक ऐसे देश में हैं जहां लड़कियां स्कूलों में टॉप करती हैं अौर तकनीकी कॉलेजों में आकर क्लासेस से गायब हो जाती हैं.
सिनेमाई संगीत को खूंटे से आज़ाद करने वाली स्नेहा खानवलकर
हिन्दी सिनेमा की सबसे डेयरिंग म्यूजिक डाइरेक्टर के जन्मदिन पर लल्लन ख़ास.

लेकिन उन्हें धेला फरक नहीं पड़ता.
स्नेहा खानवलकर वो नाम है जिसने इतिहास का ज़रा भी बोझ अपने कांधे नहीं रखा. ना अपना निजी इतिहास, ना सिनेमाई संगीत का इतिहास. आप उनसे सवाल पूछें कि मर्दाना फिल्म इंडस्ट्री में अकेली लड़की संगीतकार होना कैसा लगता है, तो वो भड़क जाती हैं. उनका परिवार हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के ग्वालियर घराने से ताल्लुक रखता है. लेकिन उनके सिनेमा में इस महादेश का जनसंगीत, हिलोरे मारता है. हिन्दी सिनेमाई संगीत के पोस्ट-रहमान इस समय में, जब हमारा सारा संगीत बड़े गौरव के साथ स्टूडियोज़ के भीतर कंप्यूटर्स अौर मंहगे कंसोल्स पर तैयार हो रहा है, उन्होंने गीतों को खेतों की मुंडेरों पर रचा है, घरों के बैठकखानों में रचा है, भरे बाज़ारों में रचा है. उनके संगीत में लोक भी है अौर जैज़ भी, अौर चटनी म्यूज़िक भी.
उन्होंने हिन्दी सिनेमा के खूंटे से बंधे संगीत की रस्सी खोल दी है.
अनुराग कश्यप ने उन्हें 'गैंग्स अॉफ वासेपुर' की कहानी देकर कहा था कि इसके लिए ऐसा संगीत रचना है जिसमें बिहार की असली धड़कन सुनाई दे. अौर इसकी तलाश उन्हें पटना की भीड़ भरी गलियों से त्रिनिदाद के खुले समन्दरों तक ले गई. वे बिहार से 'वुमनिया' जैसा गीत लेकर आईं, बिल्कुल नई आवाज़ रेखा झा के साथ. चटनी म्यूजिक की तलाश में वे सात समन्दर पार चली गईं अौर कैरेबियन से 'हन्टर' जैसा गीत लेकर आईं. दिबाकर के लिए 'अोये लक्की लक्की अोये' का संगीत रचते हुए वे ठेठ हरियाणवी जुगणी के दंगलों तक पहुंच गईं अौर 'तू राजा की राजदुलारी' जैसा अद्भुत गीत लेकर आईं.
सिनेमा में एंट्री का रास्ता उन्हें तिग्मांशु से होता पीयुष मिश्रा तक लेकर आया, जिन्होंने उन्हें अनुराग कश्यप से मिलवाया. ये वो दौर था जब कश्यप फिल्में बनाते तो थे लेकिन वो रिलीज़ तक नहीं पहुंचती थीं. अनुराग ने उन्हें फौरन अपने तब के गहरे दोस्त रामगोपाल वर्मा से मिलने को कहा. यहीं से स्नेहा के पहले सिनेमाई क्रेडिट 'गो' का रास्ता निकलता है, जिसमें उन्होंने दो गानों का संगीत दिया था.
फिर दिबाकर की 'अोये लक्की लक्की अोये' घटित हुई अौर स्नेहा प्रयोगशील सिनेमाई संगीत की वंडरगर्ल बन गईं. वे डाइरेक्ट हैं. साफ इतनी कि दिबाकर से पहली मुलाकात में ही उन्होंने बोल दिया था कि मैंने आपकी 'खोसला का घोंसला' नहीं देखी है. साल में अकेली फिल्म की रफ़्तार से फ़िल्में करती हैं. निर्देशक की रफ़्तार से भी धीमें. कई बार उतनी भी नहीं. मर्ज़ी की मालिक हैं, महीनों नेटवर्क से गायब हो जाती हैं अौर जब वापस आती हैं तो उनके पास बहुत सारी ध्वनियां होती हैं, अौर हर ध्वनि के साथ एक कहानी.
'गैंग्स अॉफ वासेपुर' के गानों के रचे जाने की कहानी तो अौर भी मज़ेदार है. अनुराग ने फिल्म का असल शूट शुरु होने के भी बहुत पहले उन्हें फिल्म के लिए म्यूज़िक बनाने को कहा था, लेकिन ये नहीं बताया कि गाने की सिचुएशंस क्या हैं. उन्हें फिल्म की कहानी पढ़कर अपनी समझ से गानों की सिचुएशंस बनानी थीं अौर उसके अनुसार संगीत रचना था.
यहीं स्नेहा की प्रतिभा सबसे ज़्यादा निखरकर आती है. उन्होंने सिनेमा के संगीत को फिल्म की पटकथा का इतना गहरा हिस्सा बना दिया है कि वो फिल्म में किसी किरदार सी भूमिका अदा करने लगता है. वे उन खाली जगहों को भरता है जिन्हें कहानी में अभिनय, संवाद अौर चुप्पियां पीछे छोड़ जाते हैं. वे हिन्दी सिनेमा की उस नई पीढ़ी की संगीतकार हैं जिसे सीधे हॉलीवुड से मुकाबला करना है, अौर इसके लिए वे अपने सिनेमा को तैयार कर रही हैं.
साउंड ट्रिपिंग के लिए भारत की दसों दिशाएं नापती हैं अौर पूरे देश का नक्शा अपने इकठ्ठा किए संगीत से बना देती हैं.
आज उनके जन्मदिन पर सुनें उनके ये पांच सुनहरे गीत -
वुमनिया
https://www.youtube.com/watch?v=PBqaM8txf9Iपटना में कोरस में गाती महिलाअों में स्नेहा को रेखा झा मिली थीं. तलवार सी तीखी आवाज़. सटीक, करारी. गीत यहीं बन गया जैसे. बाद में खुशबू राज की आवाज़ जुड़ी. हाथों हाथ संगीत तैयार हुआ अौर अॉन दि स्पॉट गीत लिखा गया. 'वुमनिया' शब्द भी स्नेहा ने ही वरुण को दिया. पटना के किसी खटारा से स्टूडियो में यह गाना रिकॉर्ड हुआ, अौर नए समय का एंथम बन गया. इस गीत की बदमाशी में एक कमाल की पवित्रता है. स्त्री स्वर की सामुहिकता जैसे उसे आज़ाद कर देती है.
जिया हो बिहार के लाला
https://www.youtube.com/watch?v=0Sf2RGK8QYg"भैय्या सबकुछ गलत जा रहा है जिन्दगी में, अौर आदमी सब एक्सपेक्ट कर रहे हैं कि साले को रोना चाहिए. लेकिन वो रो नहीं रहा है, गा रहा है, हंस रहा है. तब वो अन्दर से आता है अौर सडनली आदमी रो पड़ता है. वो गाने वाला नहीं रो रहा है, लेकिन दुनिया रो पड़ती है." कश्यप ने यह गीत के सिंगर मनोज तिवारी को कहा था, रिकॉर्डिंग के ठीक पहले. स्नेहा का रचा यह गीत हिन्दी सिनेमा में कतई नया प्रयोग है. नायक की मृत्यु पर विजय गीत भी गाया जा सकता है, यह किसने सोचा था.
प्रीत
https://www.youtube.com/watch?v=BJXl0kO0YC0यह डूबता हुआ गाना है. इस गाने में पहली बार दिल टूटने का दर्द छिपा है. चमत्कार तब होता है जब स्नेहा इसे गाने के लिए एक बिल्कुल नई तरुण लड़की को चुनती हैं. जसलीन की आवाज़ में 'पहली बार' वाला भाव उभरकर आता है. संगीत में जब कोरस में इको साउंड अाता है, लगता है जैसे निरे बियाबान में आ गए हैं. यह भक्तिकाल की कविता की याद दिलाता है. मीरां के विरह की याद दिलाता है.
तू राजा की राजदुलारी
https://www.youtube.com/watch?v=ph2inMRTklUयह गीत सुनना किसी जुगाड़ पर बैठकर न्यू यॉर्क की सैर की तरह है, या किसी मर्सिडीज़ पर बैठकर डूंगरपुर के धूल-धक्कड़ में उतर जाना. लोकगायक राजबीर की देशज आवाज़ को वे डिज़ाइनर संगीत में पिरो देती हैं. विकासपुरी का तरुण लड़का लक्की दिल्ली की सड़क पर खड़ा भूंगड़े खाता अपने दोस्तों के साथ मर्सिडीज़ से उतरती पब्लिक स्कूल वाली अंग्रेज़ीदां लड़कियों को निहार रहा है. यहां स्नेहा हरियाणवी रागिनी को पिरोती हैं. यह शिव की वाणी है.
आई कांट होल्ड इट
https://www.youtube.com/watch?v=6j7P_I2dCCcदिल छलनी करनेवाला गीत है. खुला आमंत्रण है. यह गीत मारवाड़ी की अड़ में खांटी अंग्रेजी की मिलावट कर तैयार होता है. भपंग की ध्वनि भेलपुरी है तो चटख ड्रमबीट्स में बदमाश पूपाड़ी गुल्ला कर जाती है. इसे सुनकर लोककथाअों में पैठी तोता-मैना वाली कथाएं याद आ जाती हैं. गर्ल्स हॉस्टल्स का नेशनल एंथम. स्नेहा की आवाज़. यहां मालूम हो कि स्नेहा को उनके माता-पिता बचपन में सिंगर बनाना चाहते थे. शायद सेमी-क्लासिकल. मेरी राय में इस गीत को गाने के लिए उन्हें ग्रैमी, ऐमी टाइप कोई पुरस्कार दिया जाना चाहिए.