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रेखा भारद्वाज ने रियलिटी शोज़ के लिए जो कहा, वो उसकी घिनौनी असलियत दिखाता है

रियलिटी शोज़ में हिस्सा लेने वाले बच्चों पर उनका क्या असर पड़ता है?

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क्या आप रेखा भरद्वाज की बात से सहमत हैं, जो उन्होंने रियलिटी शोज़ को लेकर कही हैं ?
‘नमक इस्क का’ और ‘ससुराल गेंदा फूल’ फ़ेम सिंगर रेखा भरद्वाज आजकल ख़बरों में हैं. वजह है उनके कुछ ट्वीट्स, जो उन्होंने रियलिटी शोज़ पर निशाना साधते हुए किए. रेखा का कहना है कि ये शोज़ संगीत के नाम पर ड्रामा बेच रहे हैं. रेखा ने लिखा-
‘मुझे समझ में नहीं आता कि म्यूजिक रियलिटी शोज़ पर इतना ड्रामा क्यों होता है.’
कई लोगों ने रेखा की इस बात का सपोर्ट किया. एक ट्विटर यूज़र ने लिखा-
‘सही बात है. मैंने पिछले तीन-चार सालों से ये शोज़ देखने बंद कर दिए हैं. ये मशहूर होने के लिए इमोशन को बेचते हैं. साथ ही ये उन बच्चों का फ्यूचर भी खराब कर रहे हैं जो इनमें भाग लेते हैं. इनमें भाग लेने वाले बच्चे कुछ पलों की शोहरत के लिए इनमें शामिल हो जाते हैं.’

एक और यूज़र ने कहा-
‘ये रियलिटी शोज़ की असलियत है. दुखद है. पर किसी को फ़र्क नहीं पड़ता. चैनल के मालिक, प्रोड्यूसर, जज, दर्शक, यहां तक कि माता-पिता भी लाइमलाइट का लुत्फ उठाना चाहते हैं. वो भी इन बच्चों के टैलेंट का फ़ायदा उठाकर. ये एक तरह का बाल श्रम है.

किसी ने लिखा-
‘इन कंटेस्टेंट्स को कोई नहीं देखता, अगर वो रोते नहीं हैं. या ये नहीं बताते कि वो कितनी मेहनत से वहां तक पहुंचे हैं.’

अपने पोस्ट पर ये रिएक्शन देखकर रेखा ने लिखा-
‘आज मुझे बहुत दुःख हो रहा है. ख़ुदा न करे मैं कभी ऐसे शोज़ का हिस्सा बनूं. ये म्यूजिक के नाम पर सिर्फ़ शोर है. हर गाना आपको नचाने के लिए है.’

 

रेखा आगे लिखती हैं-
‘किसी को इन बच्चों के फ्यूचर से कोई मतलब नहीं है. जिस बात का मुझे और ज़्यादा दुःख होता है वो ये कि कोई भी इन बच्चों को गाइड नहीं कर रहा. कोई इन्हें म्यूजिक को इबादत की तरह नहीं सिखा रहा. उन्हें सिखाया जा रहा है तो बस वोट मांगना. आपस में कंपीट करना. या ग्लैमरस दिखना. ये सब बच्चों की मासूमियत का फ़ायदा उठाता है.'
कई लोग रेखा की इन बातों से सहमत हैं. और शायद रेखा की बात ग़लत भी नहीं है. रियलिटी शोज़ कांटेस्टेंट्स पर काफ़ी प्रेशर डालते हैं. जब ये कांटेस्टेंट्स बच्चे होते हैं, तो दिक्कत और भी बढ़ जाती है. बच्चों को आपस में कम्पटीशन करना सिखाया जाता है. उनमें हार और जीत को प्रोसेस करने की समझ नहीं होती. इसलिए जब वो हारते हैं, तो स्टेज पर ही फूट-फूटकर रोने लगते हैं. इस सब का उनके दिमाग पर क्या असर पड़ता है, इससे किसी को कोई मतलब नहीं है.
बच्चों में हार और जीत को प्रोसेस करने की समझ नहीं होती. (फ़ोटो कर्टसी: यूट्यूब/ वौइस् ऑफ़ इंडिया)
बच्चों में हार और जीत को प्रोसेस करने की समझ नहीं होती. (फ़ोटो कर्टसी: यूट्यूब/ वॉइस ऑफ़ इंडिया)

एकदम से मिला फ़ेम ये बच्चे हैंडल नहीं कर पते. रियलिटी शोज़ से मिली शोहरत ज़्यादा दिनों तक नहीं रहती. जब ये बच्चे जीतते हैं तो हर तरफ़ इनका नाम होता है. सब इन्हें पहचानते हैं. पर बच्चों के लिए ये सब नया होता है. कुछ दिन बाद लोग इन्हें भूल जाते हैं. इसका सीधा असर पड़ता है उनके कॉन्फिडेंस पर. बड़े होते-होते ये उनकी पर्सनालिटी को भी आहत करता है. रियलिटी शोज़ को इंटरेस्टिंग बनाने के लिए ख़ूब मसाला डाला जाता है. पर अक्सर इस मसाले की कीमत इन बच्चों को चुकानी पड़ती है.


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