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वो कौन है जो सात साल से तुम्हारे दो हजार रुपये खाकर बैठा है?

'छोड़िए', तीन पीढ़ियों के गबद्दूपन का सार है. छोड़िए वाली जनरेशन 'छोड़िए' के नैनो संस्करण की खोज कर लेगी.

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फोटो - thelallantop
ये लेख विभांशु केशव ने लिखा है. विभांशु बनारस के हैं. आधी बात यहीं खत्म हो चुकी है. आधी बात ये कि लिखते हैं. और फिरते हैं. छोड़ने और जाने देने की आदत पर ये लेख लिखा है. आपके पास भी कुछ साझा करने को हो तो lallantopmail@gmail.com पर भेज डालिए.
12243232_1523367674649959_8343908049620191564_n'छोड़िए', तीन अक्षरों के इस शब्द में महात्मा गांधी के तीनों बंदर हैं. बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो. आधुनिकता की दौड़ में शामिल प्रतिभागियों के पास समय का अकाल है. दौड़ को जीतने के लिए नैनो सेकेंड का वक्त भी जाया नहीं होना चाहिए. बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो कहने में कई सेकेंड का वक्त लगता है. आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है. तो प्रतिभागियों ने समय बचाने के लिए छोड़िए की खोज की.
ग्राहक अधिकतम मूल्य पर मोल-भाव कर सकता है. छोड़िए. ग्राहक को चिरकुट समझ रखा है क्या? ऑटो वाला किराया अधिक ले रहा है. छोड़िए. कौन इनसे बहस करे. सड़क पर दुर्घटना हुई. सड़क पर पड़ा घायल कराह रहा है. छोड़िए. कौन पुलिस के पचड़े में पड़े. मोहल्ले में मवाली आ गया. छोड़िए. शरीफ, मवालियों के मुंह नहीं लगते.
शरीफों के मोहल्ले में अन्याय करने वाला बदमाश आता है तो शरीफ अपने घरों के दरवाजे खिड़कियां बंद लेते हैं. कुछ शरीफ रोशनदान पर दफ्ती लगाकर रोशनदान का रास्ता भी बंद कर देते हैं. डर लगा रहता है कि बदमाश रोशनदान के रास्ते भी घर में घुस सकता है.शरीफ बनने के लिए अन्याय सहना पड़ता है. अन्याय सहने की क्षमता जितनी अधिक होती है, शराफत को उतनी अधिक प्रसिद्धि मिलती है. रोशनदान का रास्ता बंद कर अन्याय को रोकने वाले उच्चतम दर्जे के शरीफ होते हैं.
शरीफों की आबादी अधिक हो जाने पर मोहल्ले का नाम देश हो जाता है.
आधुनिकता की दौड़ में शामिल प्रतिभागियों के पास ये सोचने का भी वक्त नहीं है कि बुराई नहीं देखने के लिए बुराई रोकनी पड़ेगी. बुराई रुक गई तो बुरा मत सुनो और बुरा मत कहो स्वतः अमल में आ जायेंगे. पर क्या करिए, आंख पर पट्टी बांधकर अंधे होने की परंपरा सिद्धांतों पर भारी पड़ जाती है. हम तो अंधे हैं जी. हमें तो कुछ दिखाई ही नहीं देता. आंख पर पट्टी बांध अंधे होने के नाटक से छोड़िए की खोज हुई. आधुनिकता की दौड़ असल में धनवान बनने की दौड़ है. लक्ष्मी का उल्लू बनने की होड़ है. इस होड़ में मूर्ख और समझदार दोनों शामिल हैं. लक्ष्मी का उल्लू बनने की होड़ में प्रतिभागी आश्चर्यजनक रूप से अपने पैसों को नजरंदाज कर रहे हैं. लक्ष्मी का बड़ा उल्लू दान करता है तो अखबार और टीवी में उसकी दयालुता के चर्चे छा जाते हैं. छोटे उल्लू छोड़िए के माध्यम से आये दिन कई तरीकों से दान कर रहे हैं पर इसकी चर्चा कहीं नहीं होती. मात्र पांच व्यक्तियों पर डेढ़ लाख करोड़ से अधिक का आयकर बकाया! छोड़िए, देश के जिम्मेदार नागरिक बनिए. समय से आयकर जमा करिए. क्योंकि देश आपके पैसों से ही चल रहा है.
बिजली का कनेक्शन लिया. दो हजार रूपये धरोहर राशि के रूप में जमा किया. सात साल बाद कनेक्शन कटवाया. वापस मिले दो हजार रूपये ही. दो हजार का सात साल का ब्याज कहां गया? छोड़िए, देश के जिम्मेदार नागरिक बनिए. समय से आयकर जमा करिए. क्योंकि देश आपके पैसों से ही चल रहा है. विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया. दो हजार रूपये धरोहर राशि के रूप में जमा किया. सात साल बाद टीसी कटवाई. वापस मिले दो हजार रूपये ही. दो हजार का सात साल का ब्याज कहां गया? छोड़िए, देश के जिम्मेदार नागरिक बनिए. समय से आयकर जमा करिए. क्योंकि देश आपके पैसों से ही चल रहा है. ब्रॉडबैंड कनेक्शन लिया. दो हजार रूपये धरोहर राशि के रूप में जमा किया. सात साल बाद कनेक्शन कटवाया. वापस मिले दो हजार रूपये ही. दो हजार का सात साल का ब्याज कहां गया? छोड़िए, देश के जिम्मेदार नागरिक बनिए. समय से आयकर जमा करिए. क्योंकि देश आपके पैसों से ही चल रहा है. रसोई गैस का कनेक्शन लिया. दो हजार रूपये धरोहर राशि के रूप में जमा किया. सात साल बाद कनेक्शन कटवाया. वापस मिले दो हजार रूपये ही. दो हजार का सात साल का ब्याज कहां गया? कहां गया? डेढ़ लाख का बकाया आयकर जमा करने में चला गया.
प्राइवेट कोचिंग में प्रवेश लिया. दो हजार रूपये धरोहर राशि के रूप में जमा किया. सात साल बाद नाम कटवाया. वापस मिले दो हजार रूपये ही. दो हजार का सात साल का ब्याज कहां गया? क्या ये भी डेढ़ लाख करोड़ का बकाया आयकर जमा करने में चला गया? छोड़िए के माध्यम से सरकार को लाखों करोड़ को दान देने वाले दानदाता किसी को हजार-दस हजार रूपये कर्ज दे दें तो इतनी बार तगादा करेंगे कि कर्ज लेने वाला परेशान होकर आत्महत्या भी कर लेता है. आयकर के बड़े बकायेदारों का आयकर समायोजित करने और और कर्ज नहीं लौटाने वालों को बचाने के लिए सरकार ने भी धरोहर राशि की खोज कर ली. छोड़िए, कौन वसूली करने जाए. 'छोड़िए', तीन पीढ़ियों के गबद्दूपन का सार है. 2G, 3G और 4G की आंख पर बंधी पट्टी है. फिफ्थ, सिक्स्थ, सेवेंथ जनरेशन में आधुनिकता और विकास की दौड़ में प्रतिस्पर्धा और कड़ी होगी. वैज्ञानिक नैनो सेकेण्ड से छोटी इकाई की खोज करेंगे. छोड़िए वाली जनरेशन छोड़िए के नैनो संस्करण की खोज करेगी. छोड़िए बोलकर सेकेंड बर्बाद करने की जगह मुंह बिचका लेगी. होंठ टेढ़ा कर लेगी. गहरी सांस ले लेगी या छोड़ देगी. गहरी सांस छोड़ने को छोड़िए के नैनो संस्करण के रूप में शायद ही मान्यता मिले? इसमें भी तो छोड़ना है.

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