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सलीम की अनारकली, जो बिना मदद लिए शुक्रिया अदा कर देती

मुगल-ए-आज़म वाली अनारकली से तो आप कई बार मिल लिए, अब हमारे मंटो की अनारकली से मिलिए. क्योंकि आज है उसी मंटो का बर्थडे.

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आज मेरे मंटो का जन्मदिन है. माफ कीजिए. लालची हूं मंटो को लेकर. इसलिए मेरा लिख दिया. पर ये गलत है. मंटो सिर्फ मेरा नहीं, हम सबका है. सबकी जिंदगियों को चुभने वाली चुटकियां देकर चला गया. कमबख्त कहानी लिख गया. खुद मर गया. और कहानियों को पढ़ते वक्त जिंदा दिखने वाले लोगों को मरने के लिए छोड़ गया. आज उसी मंटो का जन्मदिन है. आज मंटो जिंदा होते तो 104 बरस के होते. न जाने कितनी और कहानियां लिख जाते. पर अब भी जितनी लिखी हैं. क्या कम हैं. मंटो का जन्मदिन भले ही आज रात 12 बजे खत्म हो जाएगा. पर हमारा जश्न पूरे महीने चलेगा. क्योंकि मई यानी मंटो का महीना. हम आपको रोज मंटो की एक कहानी पढ़वाएंगे. ये रचनाएं हमें उपलब्ध कराई हैं वाणी प्रकाशन ने. इस पब्लिकेशन हाउस से मंटो अब तक शीर्षक के साथ मंटो की सभी कहानियां प्रकाशित हुई हैं. आज की कहानी ‘मैडम डिकोस्टा’ किताब से ली गई है.
 

अनारकली

  नाम उसका सलीम था मगर उसके यार दोस्त उसे शहज़ादा सलीम कहते थे. ग़ालिबन इसलिए कि उस को ख़दो-ख़ाल मुग़लई थे. ख़ूबसूरत था. चाल-ढाल से रौनक टपकती थी. उसका बाप पीडब्ल्यूडी के दफ़्तर में मुलाज़िम था. तनख़्वाह ज़्यादा से ज़्यादा दो सौ रुपये होगी, मगर बड़े ठाठ से रहता. ज़ाहिर है कि रिश्वत ख़ाता था. यही वजह है कि सलीम अच्छे से अच्छा कपड़ा पहनता. जेबख़र्च भी उसको काफ़ी मिलता था, इसलिए कि वह अपने वालदैन का इकलौता लड़का था. madam dicostaबहुत बन-ठन के रहता. उसके पास कई सूट, कई कमीज़ें थीं, जो बदल-बदल के पहनता. शू कम अज़ कम बीस के क़रीब होंगे. जब कॉलेज में था तो कई लड़कियां उस पर जान छिड़कती थीं-मगर वह बेएतनाई बरतता. आख़िर उसकी आंख एक शोख़ो शंगलड़की, जिसका नाम सीमा था.. से लड़ गई थी. सलीम ने उससे राहो रस्म पैदा करना चाहा. उसे यक़ीन था कि वह उसका हल्तेफ़ात हासिल कर लेगा-नहीं, वह तो यह तक समझता था कि सीमा उसके क़दमों में गिर पड़ेगी और उसकी ममनूनो मुतशक्किर होगी कि उसने मुहब्बत की निगाहों से उसे देखा. एक दिन कॉलेज में सलीम ने सीमा से पहली बार मुख़ातिब हो कर कहा, 'आप किताबों का इतना बोझ सटाए हुई हैं. लाइए मुझे दे दीजिए-मेरा तांगा बाहर मौजूद है. आपको और इस बोझ को घर तक पहुंचा दूंगा. सीमा ने अपनी भारी भरकम किताबें बग़ल में दाबते हुए बड़े खुश्क लहजे में जवाब दिया, 'आपकी मदद की मुझे कोई ज़रूरत नहीं. बहरहाल शुक्रिया अदा किए देती हूं.' शहजादा सलीम को अपनी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा सदमा पहुंचा. चन्द लमहात के लिए वह अपनी ख़िफ्फत मिटाता रहा. इसके बाद उसने सीमा से कहा,
'औरत को मर्द के सहारे की ज़रूरत होती है. मुझे हैरत है कि आपने मेरी पेशकश को क्यों ठुकरा दिया. सीमा का लहजा और ज्यादा खुश्क हो गया. 'औरतों को मर्द के सहारे की ज़रूरत होगी. मगर फ़िलहाल मुझे ऐसी कोई ज़रूरत महसूस नहीं होती. आपकी पेशकश का शुक्रिया मैं अदा कर चुकी हूं. इससे ज़्यादा आप और क्या चाहते हैं.' यह कह कर सीमा चली गयी.
शहज़ादा सलीम जो अनारकली के ख़्वाब देख रहा था, आंखों झपकाता रह गया. उसने बहुत बुरी तरह शिकस्त खायी थी. इससे कव्ल उसकी ज़िन्दगी में कई लड़कियां आ चुकी थीं, जो उसके आबरू के इशारे पर चलती थीं. मगर यह सीमा क्या समझती है अपने को, इसमें कोई शक नहीं कि ख़ूबसूरत है. जितनी लड़कियां मैंने अब तक देखी हैं उनमें सबसे ज़्यादा हसीन है, मगर मुझे ठुकरा देना. यह बहुत बड़ी ज़्यादती है. मैं ज़रूर इससे बदला लूंगा. चाहे कुछ भी हो जाय. शहज़ादा सलीम ने उससे बदला लेने की कई स्कीमें बनाई, मगर बार आवर साबित न हुई. उसने यहां तक सोचा कि उसकी नाक काट डाले. वह यह जुर्म कर बैठता, मगर उसे सीमा के चेहरे पर यह नाक बहुत पसंद थी. कोई बड़े से बड़ा मुसव्वर भी ऐसी नाक का तसव्वर नहीं कर सकता था.
सलीम तो अपने इरादों में क़ामयाब न हुआ, मगर तक़दीर ने उसकी मदद की. उसकी वालदा ने उसके लिए रिश्ता ढूंढ़ना शुरू किया. निगाहे इन्तेख़ाब आख़िर सीमा पर पड़ी, जो उस की सहेली की सहेली की लड़की थी.
बात पक्की हो गयी, मगर सलीम ने इंकार कर दिया. इस पर उसके वालदैन बहुत नाराज़ हुए. घर में दस-बारह रोज़ तक हंगामा मचा रहा. सलीम के वालिद ज़रा सख़्त तबीयत के थे. उन्होंने उससे कहा, देखो तुम्हें, हमारा फ़ैसला कुबूल करना होगा. सलीम हठधर्मी था. जवाब में यह कहा, 'आप का फ़ैसला कोई हाईकोर्ट का फ़ैसला नहीं. फिर मैंने क्या जुर्म किया है जिसका आप फ़ैसला सुना रहे हैं.' उसके वालिद को यह सुन कर तैश आ गया, तुम्हारा यह जुर्म है कि तुम ना ख़लफ़ हो. अपने वालदैन का कहना नहीं मानते उदूल हुकमी करते हो. मैं तुम्हें आक़ कर दूंगा. सलीम का जोश थोड़ा ठंडा हो गया, 'लेकिन अब्बा जान, शादी मेरी मर्ज़ी के मुताबिक तो होनी चाहिए. 'बताओ तुम्हारी मर्ज़ी क्या है.' 'अगर आप ठण्डे दिल से सुनें तो मैं अर्ज़ करूं.' मेरा दिल काफ़ी ठंडा है. तुम्हें जो कुछ कहना है फ़ौरन कह डालो. मैं ज़्यादा देर इंतज़ार नहीं कर सकता. सलीम ने रुक-रुक कर कहा, मुझे...मुझे...एक लड़की से मुहब्बत है. उसका बाप गरजा, किस लड़की से? सलीम थोड़ी देर हिचकिचाया, एक लड़की है. कौन है वह? क्या नाम है उसका? सीमा...मेरे साथ कॉलेज में पढ़ती है. मियां हफितख़ारुद्दीन की लड़की? जी हां, उसका नाम सीमा इफितखार है...मेरा ख़याल है वही है. उसके वालिद बेतहाशा हंसने लगे. ख़याल के बच्चे. तुम्हारी शादी इसी लड़की से करार पाई है. क्या वह तुम्हें पसंद करती है? सलीम बौखला-सा गया. यह सिलसिला कैसे हुआ उसकी समझ में नहीं आता था. कहीं उसका बाप झूठ तो नहीं बोल रहा है? सलीम से जो सवाल किया गया था उसका जवाब उसके वालिद को नहीं मिला था. चुनांचे उन्होंने कड़क कर पूछा, मुझे बताओ क्या सीमा तुम्हें पसन्द करती है. सलीम ने कहा, जी नहीं. तुमने यह कैसे जाना. उससे...उससे एक बार मैंने मुख़्तसर अल्फाज़ में...मुहब्बत का इज़हार किया...लेकिन उसने मुझे..' तुम्हें दर खौरे एवना न समझा. जी हां...बड़ी बेरुखी बरती.
सलीम के वालिद ने अपने गंजे सर को थोड़ी देर के लिए खुजलाया और कहा, तो फिर यह रिश्ता नहीं होना चाहिए. मैं तुम्हारी मां से कहता हूं कि वह लड़की वालों से कह दे कि लड़का रजामन्द नहीं. सलीम एकदम जज़्बाती हो गया, नहीं अब्बाजान...ऐसा न कीजिएगा. शादी हो जाय तो सब ठीक हो जायगा. मैं उससे मुहब्बत करता हूं. और किसी की मुहब्बत अकारत नहीं जाती. लेकिन आप उन लोगों को...मेरा मतलब है सीमा को यह पता न लगने दीजिए कि उसका ब्याह मुझसे हो रहा है, जिससे वह बेरुखी और बेएतनाई का इज़हार कर चुकी है.
उसके बाप ने अपने गंजे सर पर हाथ फ़ेरा, मैं उसके मुताल्लिक सोचूंगा. यह कह कर वह चले गये कि उन्हें एक ठेकेदार से रिश्वत वसूल करनी थी. अपने बेटे की शादी के अख़राजात के सिलसिले में. शहज़ादा सलीम जब रात को पलंग पर सोने के लिए लेटा तो उसे अनार की कलियां ही कलियां नज़र आईं. सारी रात वह इनके ख़्वाब देखता रहा.
घोड़े पर सवार बाग़ में आया है. शाहाना लिबास पहने. अस्पेताजी से उतर कर बाग़ की एक रविश पर जा रहा है. क्या देखता है कि सीमा अनार के बूटे की सबसे ऊंची शाख़ से एक नौख़ेज कली तोड़ने की कोशिश कर रही है. उसकी भारी भरकम किताबें ज़मीन पर बिख़री पड़ी हैं. जुल्फें उलझी हुई हैं. और वह उचक-उचक कर उस शाख तक अपना हाथ पहुंचाने की कोशिश कर रही है मगर हर बार नाकाम रहती है.
वह उसकी तरफ़ बढ़ा. अनार की झाड़ी के पीछे छुप कर उसने उस शाख को पकड़ा और झुका दिया. सीमा ने कली तोड़ ली जिसके लिए वह इतनी कोशिश कर रही थी. लेकिन फ़ौरन उसे इस बात का एहसास हुआ कि वह शाख़ नीचे कैसे झुक गयी. वह अभी यह सोच ही रही थी कि शहज़ादा सलीम, उसके पास पहुंच गया. सीमा घबरा गयी, लेकिन संभल कर उसने अपनी किताबें और बगल में दाब लीं, अनारकली अपने जूड़े में अड़स ली और यह ख़ुश्क अल्फाज़ कह कर वहां से चली गयी. आपकी इमदाद की मुझे कोई ज़रूरत नहीं थी. बहरहाल शुक्रिया अदा किए देती हूं.' तमाम रात वह इसी क़िस्म के ख़्वाब देखता रहा. सीमा, उसकी भारी भरकम किताबें, अनार की कलियां और शादी की धूम-धाम. शादी हो गयी. शहज़ादा सलीम ने इस तक़रीब पर अपनी अनारकली की एक झलक भी नहीं देख पायी थी. वह उसे लम्हे के लिए तड़प रहा था जब सीमा उसकी आगोश में होगी. वह उसके इतना प्यार करेगा कि वह इतना तंग आकर रोना शुरू कर देगी. सलीम को रोने वाली लड़कियां बहुत पसन्द थीं. उसका यह फ़लसफ़ा था कि औरत जब रो रही हो तो बहुत हसीन हो जाती है. उसके आंसू शबनम के कतरों की मानिन्द होते हैं जो मर्द के जज़्बात के फूलों पर टपकते हैं जिनसे उसे ऐसी राहत ऐसी फ़रहत मिलती है जो और किसी वक़्त नसीब नहीं हो सकती. रात के दस बजे दुल्हन को हजलए उरूसी में दाख़िल कर दिया. सलीम को भी इजाज़त मिल गयी कि वह उसके कमरे में जा सकता है. लड़कियों की छेड़-छाड़ और रस्मों रसम सब ख़त्म हो गयी थीं. वह कमरे के अन्दर दाख़िल हुआ. फूलों से सजी हुई मसहरी पर दुल्हन घूंघट काढ़े रेशम की गठरी-सी बनी बैठी थी शहज़ादा सलीम ने ख़ास एहतमाम कराया था कि फूल, अनार की कलियां हों. वह धड़कते हुए दिल के साथ मसहरी की तरफ़ बढ़ा और दुल्हन के पास बैठ गया. काफ़ी देर तक वह अपनी बीवी से कोई बात न कर सका. उसको ऐसा महसूस होता था कि उसकी बगल में किताबें होगी, जिनको वह उठाने नहीं देगी. आख़िर उसने बड़ जुरअत से काम लिया और उससे कहा ''सीमा...''
यह नाम लेते ही उसकी जबान खुश्क हो गयी. लेकिन उसने फिर जुरअत फ़राहम की और अपनी दुल्हन के चेहरे से घूंघट उठा दिया और भौचक्का रह गया. यह सीमा नहीं थी, कोई और ही लड़की थी. अनार की सारी कलियां उसको ऐसा महसूस हुआ कि मुरझा गयी हैं.

manto bumper मई यानी मंटो का महीना में कल आपने पढ़ी कहानी- शरीफन..