अमेरिका के संदर्भ में बड़ी मशहूर कहावत है कि, ‘जमीन पूरी दुनिया में किसी की भी हो, आसमान पर राज अमेरिका करता है’. उसके बेड़े में ऐसे-ऐसे एयरक्राफ्ट हैं जो किसी देश के ऊपर से उसकी जासूसी करते हुए गुजर जाएं और संभव है कि उस देश को इसकी भनक तक न लगे. अगर हम कहें कि जब आप ये खबर पढ़ रहे हैं, उस समय अमेरिका की सैटेलाइट आपको देख रही है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. मॉडर्न जमाने के युद्ध को देखें तो आसमानी लड़ाई का रोल सबसे अहम है. इसे देखते हुए कई देशों ने अपने आसमान की रक्षा के लिए कई तरह के एयर डिफेंस सिस्टम का इस्तेमाल करते हैं. शुरुआती वॉरफेयर में विमानभेदी तोपें (Anti-Aircraft Guns) और फाइटर जेट्स ही वो जरिया थे जो आसमानी खतरों को रोक सकें. आगे चलकर जैसे-जैसे हथियार उन्नत होते गए इनकी जगह मॉडर्न रडार से लैस एयर डिफेंस सिस्टम्स ने ले ली.
रूस ने क्रीमिया के मोर्चे पर तैनात किया S-500; स्टेल्थ विमान, सैटेलाइट्स को मार गिराने में है सक्षम
500 किलोमीटर के दायरे में ये Hypersonic Cruise Missiles और Stealth Aircrafts का पता लगा लेता है. S-500 एक साथ Mach 20 (1 Mach में 1234.8 किलोमीटर प्रति घंटा) की रफ्तार से आ रहे 10 बैलिस्टिक/हाइपरसॉनिक टारगेट्स को इंगेज करने में सक्षम है.
.webp?width=360)

हथियार सिर्फ जंग के लिए नही होते, बल्कि इसलिए भी होते हैं कि शांति बनी रहे. 1945 में दुनिया ने परमाणु बम की विनाश लीला देखी. इस बम ने दुनिया को ये आभास करा दिया था कि इंसान की बनाई हुई परमाणु तकनीक से बिजली या बम, दोनों बनाए जा सकते हैं. दूसरे हथियारों के बारे में भी ये बात कुछ हद तक सही बैठती है. 1945 के बाद से परमाणु हथियारों की होड़ तो बढ़ गई पर इसकी तबाही लाने की क्षमता की वजह से ही दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से परमाणु संपन्न देश भी युद्ध में इसके इस्तेमाल से बचते रहे हैं. दूसरे विश्वयुद्ध को देखें तो उस समय परमाणु हमला करने के लिए एक B-29 Superfortress बॉम्बर जहाज का इस्तेमाल किया गया था. पर आज की तारीख में देखें तो जरूरी नहीं कि परमाणु बम गिराने के लिए बॉम्बर जहाज ही इस्तेमाल किया जाए. अब तकनीक इतनी उन्नत है कि सुपरसॉनिक क्रूज़ मिसाइल्स (Supersonic Cruise Missiles) और इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल्स (ICBM) का इस्तेमाल , परमाणु हमले के लिए किया जा सकता है.

वर्तमान में अमेरिका अपने देश के आसमान को सुरक्षित करने के लिए THAAD, Patriot और Aegis नाम के एयर डिफेंस का इस्तेमाल करता है. वहीं अमेरिका का धुर विरोधी रूस, खुद को आसमानी खतरों से बचाने के लिए S-400 Triumf और S-500 Prometheus नाम के एयर डिफेंस सिस्टम का इस्तेमाल करता है. भारत फिलहाल स्वदेश में बने पृथ्वी एयर डिफेंस सिस्टम (PAD), एडवांस्ड एयर डिफेंस (AAD) सिस्टम और सबसे लेटेस्ट रूस से खरीदे गए S-400 Triumf एयर डिफेंस सिस्टम का इस्तेमाल करता है. भारत ने रूस से कुल 5 ऐसे सिस्टम्स के लिए 5.43 बिलियन डॉलर की डील पर साइन किया था. ये सिस्टम 400 किलोमीटर की दूरी तक एयरक्राफ्ट, ड्रोन और बैलिस्टिक मिसाइल जैसे खतरों से निपटने में सक्षम है.
हालांकि अभी तक इसकी सिर्फ 3 बैटरीज़ की डिलीवरी ही हो पाई है. रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से बाकी 2 बैटरीज़ की डिलीवरी में देरी हो रही है. इस बीच खबरें आई हैं कि रूस अपने नए और आधुनिक एयर डिफेंस सिस्टम S-500 Prometheus को यूक्रेन के मोर्चे पर तैनात करने जा रहा है. कहा जा रहा है कि ये देश पर आ रहे हाइपरसॉनिक (ध्वनि की रफ्तार से 5 गुना) खतरों को भी रोक सकता है. और तो और इसका रडार सिस्टम पृथ्वी की निचली कक्षा में तैनात सैटेलाइट्स को भी मार गिराने में सक्षम है. तो समझते हैं कि क्या है ये S-500 Prometheus एयर डिफेंस सिस्टम जो यूक्रेन के मोर्चे पर रूस का नया तुरुप का इक्का साबित हो सकता है.
प्रॉमेथियसग्रीक माइथोलॉजी में प्रॉमेथियस नाम के एक देवता हुए जिन्हें God of Fire यानी आग का देवता कहा गया. प्रॉमेथियस को इंसानी सभ्यता के संघर्ष का प्रतीक माना गया है. साथ ही उन्हें ह्यूमन आर्ट्स एंड साइंस का भी जनक माना जाता है. कहा जाता है कि प्रॉमेथियस ने ओलंपियन देवताओं से आग चुराई और उसे इंसानों को सौंप दिया. प्रॉमेथियस द्वारा दी हुई इस आग को ही तकनीक, जानकारी और इंसानी सभ्यता का प्रतीक माना जाता है. इन्हीं देवता प्रॉमेथियस के नाम पर रूस के एयर डिफेंस का नामकरण हुआ है.

इस सिस्टम को मुख्य तौर पर इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल्स यानी ICBMs को रोकने के लिए बनाया गया है. 600 किलोमीटर की रेंज में ये किसी भी ICBM का पता लगाकर उसे मार गिराने में सक्षम है. साथ ही 500 किलोमीटर के दायरे में ये हाइपरसॉनिक क्रूज मिसाइल्स और स्टेल्थ एयरक्राफ्ट्स का पता लगा लेता है. दूरी के मामले में ये सिस्टम अमेरिका के THAAD, Patriot और ATACMS से बेहतर है. S-500 एक साथ Mach 20 (1 Mach में 1234.8 किलोमीटर प्रति घंटा) की रफ्तार से आ रहे 10 बैलिस्टिक/हाइपरसॉनिक टारगेट्स को इंगेज करने में सक्षम है.

साथ ही जो तकनीक इसे दुश्मन के लिए और भी खतरनाक बनाती है, वो है इसकी सैटेलाइट्स को नेस्तनाबूद करने की क्षमता. S-500 जमीन से 200 किलोमीटर की ऊंचाई तक अपने टारगेट को तबाह कर सकता है. यानी ये पृथ्वी की निचली कक्षा (Low Earth Orbits-LEO) में मौजूद सैटेलाइट्स को मार गिराने के काबिल है. दावा है कि इस सिस्टम का रिस्पॉन्स टाइम मात्र 4 सेकंड है. यानी टारगेट मिलने पर ये मात्र 4 सेकंड में उसे रोकने के लिए मिसाइल लॉन्च कर सकता है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक रूस ने पहले से ही S-500 को क्रीमिया के मोर्चे पर डिप्लॉय किया हुआ है. इस सिस्टम के 5 हिस्से हैं जिन्हें एक साथ जोड़ने पर ये पूरे S-500 सिस्टम का रूप लेते हैं.
कमांड पोस्ट वाहन-CPVS-500 में 55K6MA CPV वाहन का इस्तेमाल किया जाता है. कमांड पोस्ट वो जगह होती है जहां इस बैटरी को ऑपरेट करने वाली यूनिट बैठती है. इसे पूरे S-500 सिस्टम का दिल कहा जाता है. टारगेट को एंगेज करना , टारगेट को सेलेक्ट करना, उसकी रफ्तार,ऊंचाई को ट्रैक करने के सारे काम इसी पोस्ट पर किये जाते हैं. साथ ही मिसाइल दागनी है या नहीं, ये फैसला इसी कमांड पोस्ट में बैठे अधिकारी लेते हैं.
रडारइस रडार का नाम 91N6A(M) है. पर इसे इसके निकनेम Big Bird के नाम से ख्याति प्राप्त है. दावा है कि ये रडार एक साथ 10 खतरों को एंगेज कर सकता है. इस रडार की वजह से ही S-500 के लिए टारगेट को समय रहते ढूंढना आसान हो जाता है. इसके अलावा भी इसमें टारगेट को इंगेज करने के लिए कई और रडार जैसे मल्टीमोड इंगेजमेंट रडार, एक्युज़िशन रडार आदि लगे हैं. एक साथ कई टारगेट्स को पहचानने और उनपर हमला करने में इनका रोल अहम होता है.
टारगेट की स्पीड, उनका नेचर (एयरक्राफ्ट या मिसाइल) और उनकी दूरी के हिसाब से ये रडार पता लगाकर कमांड पोस्ट को ये बताते हैं कि एयरक्राफ्ट या मिसाइल को उन तक पहुंचने में कितना टाइम लगेगा. इन्हीं रडार्स की बदौलत ये सिस्टम 600 किलोमीटर की दूरी पर ही टारगेट को इंटरसेप्ट कर लेता है. 600 किलोमीटर की दूरी से पता चलने पर कमांड पोस्ट में बैठे कमांडर को फैसला लेने के लिए कुछ समय मिल जाता है.
मिसाइल लॉन्चर यूनिटये वो हिस्सा है जिससे फाइनल हमला यानी मिसाइल लॉन्च की जाती है. इसे एक वाहन पर लगाया जाता है जिसे 77P6 Self Propelled Transporter Erector Launcher (TEL) नाम दिया गया है. इसमें मिसाइल लॉन्च करने के लिए दो ट्यूब्स हैं. S-400 के मुकाबले इसके मिसाल की साइलो लंबी है. वजह है इससे लॉन्च की जाने वाली मिसाइल्स का साइज़ पहले के S-400 मुकाबले काफ़ी बड़ा है. मिसाइल लॉन्चर यूनिट को एक 8X8/10X10 के वाहन पर लगाया जाता है.
8X8/10X10 का मतलब वाहन में जितने भी 8 या 10 चक्के होते हैं, सभी में इंजन की पावर जाती है. इससे किसी भी तरह के इलाके में भारी-भरकम S-500 सिस्टम से लैस ये वापन आसानी से चल सकता है. हम और आप जो गाड़ियां चलाते हैं. उनमें अधितकर या तो आगे के 2 चक्के या पीछे के 2 चक्कों में इंजन की पावर जाती है. पर मिलिट्री के वाहनों में सभी चक्के इंजन से कनेक्टेड होते हैं. ये खासियत इन भारी-भरकम सिस्टम्स को लादकर कहीं भी, किसी भी तरह के रास्ते पर चल सकता है.
मिसाइलS-500 में टारगेट की रफ्तार और ऊंचाई के हिसाब से कई तरह की मिसाइल्स का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें इस्तेमाल होने वाली 40N6M मिसाइल्स को एयरक्राफट्स और क्रूज मिसाइल्स को रोकने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इनकी रेंज 400 किलोमीटर है. सॉलिड फ्यूल का इस्तेमाल कर ये मिसाइल्स Mach 9 की रफ्तार तक जा सकती है. दावा है कि इसकी सटीकता 95 प्रतिशत है.
दूसरी मिसाइल जो S-500 में इस्तेमाल होती है, वो है 77N6 और 77N6-N1 मिसाइल. ये लॉन्ग रेंज मिसाइल्स होती हैं जो 500 से 600 किलोमीटर की दूरी तक टारगेट पर हमला करने में सक्षम हैं. इन दोनों मिसाइल्स के वॉरहेड में एक खास तरीके के हथियार 'इनर्ट वॉरहेड' को फिट किया जाता है जो इसे न्यूक्लियर हमले को रोकने में सक्षम बनाते हैं. इनकी 5 से 7 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार इन्हें हाइपरसॉनिक रफ्तार से आ रही मिसाइल्स को रोकने में प्रभावी बनाती है.
एंटी स्टेल्थआपने अगर बैटमैन सीरीज़ की मूवीज़ देखी हैं तो आपको एक सीन याद दिलाते हैं. इसमें बैटमैन हॉन्ग-कॉन्ग जाकर लाओ नामक एक मुजरिम को पकड़ कर लाता है. अब चूंकि लाओ को जहाज से लाना था इसलिए ब्रूस वेन यानी बैटमैन ने ऐसे पायलट्स को हायर किया जो रडार से बचकर प्लेन उड़ाने में माहिर थे. अगर बैटमैन के पास ऐसे जहाज होते जो स्टेल्थ तकनीक से लैस होते तो पायलट हायर करने का खर्च बच जाता. पर वो ब्रूस वेन था इसलिए उसे पैसे की कमी नहीं थी. किसी देश को अगर किसी दुश्मन देश में चुपके से घुसना हो, जासूसी करनी हो तो उसे चाहिए ऐसी तकनीक जिससे कितना भी उड़ो, कोई देख न पाए. और यही आवश्यकता जननी बनी स्टेल्थ तकनीक के आविष्कार की.

किसी जहाज को डिटेक्ट करने के लिए रडार का इस्तेमाल किया जाता है. रडार एक सिम्पल कान्सेप्ट पर काम करता है. इस कान्सेप्ट को इंसानों से काफ़ी पहले चमगादड़ इस्तेमाल कर रहे हैं. रडार दरअसल लगातार हवा में या पानी में तरंगें छोड़ता है. अगर ये तरंगें किसी चीज से टकराती हैं तो रडार अपने ऑपरेटर को बताता है कि ये आगे क्या है? उसका आकार क्या है? वो चीज कितनी बड़ी है? और किस तरह की चीज है? पर स्टेल्थ तकनीक इस रडार के साथ कर देती है एक प्रैंक.
अगर आपने गौर से देखा हो तो अधिकतर जहाज गोलाकार टाइप के शेप में दिखते हैं जबकि स्टेल्थ जहाजों में सतह एकदम फ्लैट होती है. साथ ही इसके कोने भी काफ़ी तीखे या शार्प होते हैं. इन कोनों और सतह की वजह से ये जहाज आसानी से रडार की तरंगों को दूसरी दिशा में भेज देते हैं. इसके अलावा स्टेल्थ तकनीक से लैस जहाज रडार की तरंगों को सोख लेते हैं. इन जहाजों पर एक ऐसा मैटेरियल इस्तेमाल किया जाता है जो रडार की तरंगों को सोखने की क्षमता रखता है. सोखने के बाद ये जहाज गर्मी के रूप में उन तरंगों को वापस निकाल देते हैं.
दुनिया में फिलहाल कई विमान ऐसे हैं जो स्टेल्थ तकनीक से लैस हैं. अमेरिका का F-35 lightning, F-22 Raptor,B-2 Spirit Bomber; चीन का Chengdu J-20, J-35 और रूस के Sukhoi Su-57 और Sukhoi Su-75 Checkmate इनमें प्रमुख हैं. रूस के S-500 एयर डिफेंस सिस्टम रडार से बचने में माहिर इन विमानों को भी ढूंढने और उन्हें तबाह करने में सक्षम है. इसमें लगा 91N6A(M) रडार स्टेल्थ विमानों को भी लोकेट कर लेता है. अमेरिका दुनिया भर में स्टेल्थ तकनीक में अग्रणी माना जाता है. ऐसे में रूस ने अमेरिकन जहाजों को ध्यान में रख कर S-500 एयर डिफेंस सिस्टम को बनाया है.
भारत को एक्सपोर्ट21 दिसंबर 2021 को फाइनेंशियल टाइम्स में एक रिपोर्ट छपी. इस रिपोर्ट में कहा गया कि लंबे समय से रूस का सामरिक पार्टनर होने के नाते, सबसे पहले भारत को S-500 एयर डिफेंस सिस्टम एक्सपोर्ट किया जा सकता है. फाइनेंशियल टाइम्स ने मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया तत्कालीन रूसी डिप्टी प्रधानमंत्री यूरी बोरिसॉव ने संकेत दिए हैं कि भारत वो देश है जो S-500 का पहला खरीददार बन सकता है.
रूस की सेना में ये 2007 से अपनी सेवा दे रहा है. बदलते वॉरफेयर को देखते हुए रूस ने इसे अपग्रेड कर S-500 बनाया है. जब ये खबर छपी थी, उसी समय भारत को S-400 की डिलीवरी दी जा रही थी. अमेरिका ने भारत के S-400 खरीदने पर चिंता भी जाहिर की थी. यूरेशियन टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार रूस ने हाल ही में इसे क्रीमिया के कर्च ब्रिज पर तैनात किया है.
वीडियो: तारीख: कहानी उस योगी की जिसने सबसे पहले हथियार उठाए