मलयालम फ़िल्में हिंदी फिल्मों से अच्छी क्यों होती हैं, वहां के बड़े एक्टर रौशन मैथ्यू से जान लीजिए
ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और सिनेमाघर की बहस पर रौशन मैथ्यू ने सबसे करारी बात बोली.

एक इवेंट के दौरान रौशन मैथ्यू. दूसरी तस्वीर में फिल्म 'डार्लिंग्स' के रैप-अप के बाद आलिया भट्ट के साथ रौशन.
20 और 21 अगस्त को इंडिया टुडे का माइंड रॉक्स इवेंट चल रहा है. पैंडेमिक को देखते हुए ये इवेंट भी ऑनलाइन आयोजित करवाया गया है. इसमें कृति सैनन और कैरीमिनाटी के बाद बतौर स्पीकर एक्टर रौशन मैथ्यू को बुलाया गया था. यहां रौशन ने अपने एक्टिंग करियर से लेकर कॉन्टेंट ड्रिवन मलयालम फिल्मों और ओटीटी बनाम सिनेमाघर जैसे विषयों पर चर्चा की. India Today E-Mind Rocks के सारे सेशंस आप क्लिक करके देख सकते हैं- इंजीनियरिंग और फिज़िक्स में ग्रैजुएशन छोड़ एक्टिंग की फील्ड में कैसे आए रौशन? रौशन मैथ्यू केरल के कोट्टायम इलाके से आते हैं. पापा बैंक में मैनेजर थे और मां PWD में इंजीनियर. फिर रौशन को एक्टिंग का चस्का कैसे लग गया? रौशन बताते हैं कि शुरुआती पढ़ाई-लिखाई खत्म करके उन्होंने कोच्चि के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग में एडमिशन लिया. मगर एक साल बाद ड्रॉप आउट हो गए. फिर चेन्नई के क्रिश्चियन कॉलेज से फिज़िक्स में B.Sc करने लगे. इसी दौरान उनके कॉलेज में एक प्रोफेशनल थिएटर ग्रुप आया. स्टेजफ्राइट प्रोडक्शंस नाम की ये थिएटर कंपनी अपने नाटक 'डर्टी डांसिंग' के लिए एक्टर्स ढूंढ रही थी. रौशन ने स्कूल में एकाध नाटक किया हुआ था. उन्होंने जाकर ऑडिशन दिया और नील केलरमैन नाम का कैरेक्टर निभाने के लिए चुन लिए गए. रौशन बताते हैं कि जब उनके इस नाटक का रिहर्सल शुरू हुआ, तब उन्हें रियलाइज़ हुआ कि वो बड़े खुश हैं. इसके बाद वो फुल टाइम एक्टिंग में आने की कोशिश में लग गए. ऐड फिल्मों से लेकर म्यूज़िक वीडियो और वेब सीरीज़ के लिए ऑडिशन देने लगे. इसी प्रोसेस में उन्हें 'टैनलाइन्स' नाम की एक सीरीज़ मिली. 'टैनलाइन्स' में काम करने के दौरान रौशन को महसूस हुआ कि ये एक्सपीरियंस थिएटर एक्टिंग से तो अलग है. इस प्रोजेक्ट के दौरान कैमरे के सामने परफॉर्म करने का अनुभव उन्हें बहुत जबरदस्त लगा. इसके बाद कुछ एक ऐड फिल्मों में काम किया. 2015 में उन्हें जॉन वर्गीज़ डायरेक्टेड मलयाली फिल्म 'आदि कप्यारे कूटामणी' में काम करने का मौका मिला. जो कि उनकी डेब्यू फिल्म थी. मलयालम इंडस्ट्री में कैसे बन रही हैं इतनी शानदार फिल्में? रौशन से पूछा गया कि मलयालम सिनेमा में इतनी अच्छी फिल्में कैसे बन रही हैं? वहां सिनेमा का कॉमर्शियलाइज़ेशन नहीं हुआ. बढ़िया स्टोरीलाइन और इमोशन के ऊपर फिल्में बन रही हैं. ऐसा इंडिया की दूसरी फिल्म इंडस्ट्रियों में कम देखने को मिलता है. रौशन बताते हैं कि मलयाली फिल्ममेकर्स अलग अंडरस्टैंडिंग के साथ फिल्में बनाते हैं. वहां छिछली और सतही फिल्में नहीं बनाई जाती. क्योंकि उसकी डिमांड नहीं है. उनकी समझ के हिसाब से यही बड़ी वजह है. रौशन इस बदलाव के पीछे की वजह ये भी बताते हैं कि अब मलयालम फिल्में ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर रिलीज़ होने लगी हैं. इसलिए उनकी पहुंच बढ़ गई. उन्हें देश ही नहीं दुनियाभर में देखा जाता है. ये चीज़ एक्टर्स को देश के अलग-अलग हिस्सों में पहचान दे रही है. रौशन मैथ्यू ने पिछले दिनों तमिल सुपरस्टार विक्रम के साथ फिल्म 'कोबरा' में काम किया है. इसमें क्रिकेटर इरफान पठान विलन के तौर पर दिखाई देने वाले हैं. अनुराग कश्यप और आलिया भट्ट के साथ फिल्म करने का अनुभव कैसा रहा? रौशन बताते हैं कि उनसे कई बार ये सवाल पूछा जाता है वो मलयालम फिल्मों में भी काम कर चुके हैं और हिंदी फिल्मों में भी. उन्हें इन दोनों इंडस्ट्री के काम करने के तरीके में क्या फर्क लगता है. बकौल रौशन, उन्हें अनुराग कश्यप के साथ 'चोक्ड' में काम करके कुछ खास अंतर समझ नहीं आया. क्योंकि केरल में भी फिल्म उसी तरह बनती हैं. मगर शाहरुख खान के प्रोडक्शन में बन रही आलिया भट्ट, विजय वर्मा और शेफाली शाह स्टारर 'डार्लिंग्स' में काम करना उनके लिए नया अनुभव रहा. क्योंकि 'डार्लिंग्स' बड़े बजट पर बनाई गई फिल्म है. हालांकि रौशन ये भी बताते हैं कि सिर्फ दो हिंदी फिल्मों में काम करके दो इंडस्ट्री के बीच का अंतर बता पाना आसान नहीं है. क्या ओटीटी की मार झेल पाएंगे सिनेमाघर? जब से पैंडेमिक आया है, तब से एक सवाल बार-बार उठ रहा है. सब लोग पूछ रहे हैं कि पिछले एक-दो सालों में जिस तरह ओटीटी की मांग बढ़ी है, क्या ये सिनेमाघरों के लिए बुरी खबर है? इस पर रौशन ने बड़ा समझदारी भरा जवाब दिया. वो कहते हैं कि जिस तरह सिनेमा के आने के बाद हमें लगता था कि नाटक खत्म हो जाएंगे. स्टेज चला जाएगा. भले थिएटर प्ले लंबे समय से संघर्ष कर रहा हो, मगर वो आज भी उसका कल्चर बरकरार है. वैसे ही सिनेमाघरों के साथ भी होगा. क्योंकि वैसा एक्सपीरियंस आपको ओटीटी पर फिल्में देखने में नहीं आएगा. आप ओटीटी पर सैकड़ों अंजान लोगों के साथ सिनेमा नहीं देख सकते. ईद, मोहर्रम से लेकर क्रिसमस तक कोई भी त्योहार बड़ी स्क्रीन पर फिल्म देखे बिना पूरा नहीं हो सकता.