ये सीन मनोज की शानदार फिल्म 'अलीगढ़' का है. इस सीन में मनोज बाजपेयी उर्फ़ प्रोफ़ेसर सिरास गाना सुन रहे हैं. कैसेट प्लेयर से आती लता मंगेशकर की आवाज़ गूंज रही हैं. 'आपकी नज़रों ने समझा प्यार के काबिल मुझे'. मनोज साथ साथ गुनगुना रहे हैं. लता की मखमली आवाज़ के साथ अपनी खुरदुरी आवाज़ को घुलने दे रहे हैं. साथ में उनके पैर का पंजा जिस तरह से हिलता है, उसमें भी कलात्मकता है.
प्रोफ़ेसर सिरास.
प्रोफ़ेसर सिरास गाने को सराह भी रहे हैं और अपनी पीड़ा को बहने भी दे रहे हैं. गाने के हर एक बोल के साथ ढेर सारे भाव उनके चेहरे पर आ जा रहे हैं. गुनगुनाते हुए अचानक से उनकी आवाज़ टूटती है, कंपकंपाती है और रुक जाती है. पलकों की कोर पर एक आंसू की एक बूंद झिलमिलाने लगती है. अदाकारी क्या होती है, ये उस एक सीन से आज के तमाम पांच सौ करोड़ी स्टार्स सीख सकते हैं. महज़ चेहरे की रेखाओं द्वारा सामने वाले को हिला कर रख देने वाला अभिनय करना, मनोज बाजपेयी जैसे समर्थ कलाकारों के ही बस की बात है.
उस चंद मिनट के दृश्य में मनोज ने अभिनय का एवरेस्ट छू लिया. दर्द को यूं ज़िंदा होते देखना सिहराने वाला अनुभव है. होता है ऐसा कोई-कोई लम्हा जब दर्द का ट्रिगर किसी भी शय से दब सकता है. आंखों में शबनम उतारने के लिए कोई गीत, कविता, किस्सा-कहानी कब स्विच बन जाते हैं, पता ही नहीं चलता. ऐसे लम्हों का क्या करे कोई? क्या ही कर सकते हैं! सिवाय उस छटपटाहट को किसी चीज़ से रिलेट करके खुद को व्यक्त कर देने के. प्रोफ़ेसर सिरास इस सीन में यही कर रहे हैं. ये सीन, फिल्म ख़त्म होने के हफ़्तों बाद तक आपके साथ रहता है.
हैट्स ऑफ मनोज साहब! आप जैसे लोगों से ही थमी हुई है बॉलीवुड की लाज.
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