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'सभी लुजलुजे हैं, थुलथुल हैं, लिब लिब हैं'

रघुवीर सहाय ने खिन्न होकर लिखी होगी ये कविता. आज ही देहांत हुआ था उनका. बातें बाद में, पहले कविताएं पढ़िए.

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फोटो - thelallantop
रघुवीर सहाय कवि थे. साल 2016 की आखिरी सांसों में ये वाक्य कितना अकेला लगता है. कवि आखिर में अकेला ही होता है. अपने ही लिखे शब्दों को अलाव में जलाता. तापता ताकि देह की गर्मी बची रहे. सब कुछ ठंडा न पड़ जाए. कुख्यात विख्यात साहित्य अकादमी पुरस्कार उन्हें भी मिला था. उसी साल, जिस साल गोल्डन टेंपल में फौज गई थी. जिस साल इंदिरा गांधी को गोली मारी गई थी. जिस साल सिखों को गले में टायर डाल जलाया गया था. जिस साल की याद अब तक सालती है. किताब का नाम था ‘लोग भूल गए हैं’. लोग वाकई भूल जाते हैं. क्योंकि याद रखना बहुत मेहनत, लगन और जिम्मेदारी का काम है. इसलिए क्या फर्क पड़ेगा जो मैं आपको गिना दूं रघुवीर की कुछ और किताबों के नाम. रघुवीर सहाय हिंदी की एक चर्चित मैगजीन ‘दिनमान’ के एडिटर भी रहे दशकों तक. उनकी एक बेटी है. मंजरी जोशी. दूरदर्शन पर समाचार पढ़ती थीं. खैर, ये सब तो बातें हैं. असल बात है कविता. आप रघुवीर की कविताएं पढ़िए.

1. सभी लुजलुजे हैं

Sabhi Lujluje hain- Raghuvir Sahay The Lallantop

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