गोविंदा गोविंदा गोविंदा गोविंदा गोविंदा!!! सरकार. गाड़ी से निकला हुआ, हिलता हुआ एक बूढ़ा हाथ. और हज़ारों लोगों को इस बात की संतुष्टि कि उनका 'रक्षक' उनके साथ है. वो रक्षक जिसे जो सही लगता है, वो करता है. फिर वो चाहे भगवान के खिलाफ़ हो, समाज के ख़िलाफ़ हो, पुलिस, कानून या फिर पूरे सिस्टम के ख़िलाफ़ हो. वो सरकार, जिसके बारे में कहा जाता है कि सरकार एक विचार, जो माने ना, जाने जा. जिसके बारे में कहा जाता है कि अन्याय के साथ कैसे जिया जाए, सरकार के द्वार पे जाके ठहर जायें. वही सरकार जिसके दो अध्याय आ चुके हैं. उसी सरकार का तीसरा अध्याय आने वाला है. अलाउंसमेंट हो चुकी है. गाड़ी खुल चुकी है. ड्राइवर... आई मीन डायरेक्टर होंगे अपने वर्मा जी. वर्मा. राम गोपाल वर्मा. (जेम्स बॉन्ड के फैन देखते ही लाइक करें.) राम गोपाल वर्मा पिछले काफी वक़्त से सरकार के अगले पार्ट की खोज में माथा फोड़ रहे थे. लगे हुए थे कि कैसे भी कहानी को आगे बढ़ाया जाए. और इसी बीच उन्होंने कई बार स्क्रिप्ट्स लिखीं और उन्हें फाड़ के डस्टबिन के हवाले किया. मामला कुछ जम नहीं रहा था. उन्हें चाहिए थी एक स्क्रिप्ट जो सरकार को सरकार जैसा रहने दे. बात ये है कि सरकार का कैरेक्टर भी ऐसा बन चुका है कि हल्की चीज़ें उन्हें सूट नहीं करतीं. हल्की चीज़ें जैसे - "सरकार तो गॉडफादर का रीमेक है." अरे काहे का रीमेक भाई? गॉडफ़ादर गॉडफ़ादर है और सरकार,
सरकार. हिंदी में कैपिटल लेटर नहीं होते इसलिए बोल्ड करके लिखना पड़ा. इस तीसरे पार्ट में भी सरकार का रोल अमिताभ बच्चन ही रोल करेंगे. ये वाकई सुखद खबर है. मज़े की बात तो ये होगी कि इसमें कोई भी विलेन नहीं होगा. कहानी होगी. कैरेक्टर होंगे लेकिन अमिताभ बच्चन किसी के खिलाफ़ नहीं खड़े होंगे. ऐसे में सरकार के कॉन्सेप्ट्स, उनकी सोच, उनके मेथड्स को देखने में और भी मज़ा आएगा. ऐसे में हमें सरकार के असली रूप को भी देखने का मौका मिल सकता है जहां हम उनके काम को देखेंगे, न कि किसी से बदला लेने के प्रोसेस को. काफ़ी कुछ कहानी पर भी डिपेंड करता ही है. इसी बीच करते हैं रिवीज़न. सरकार के कल्ट का. सरकार के भौकाल का. उनके डायलॉग्स के रूप में
1.

“देखो रशीद, मुझे नहीं मालूम कि तुम मेरे बारे में क्या सुनकर आये हो. मैं इस बात को ज़रूर मानता हूं कि मैं कई ऐसे काम करता हूं, जिन्हें कानूनी नहीं कहा जा सकता. वो इसलिए कि मुझे जो सही लगता है, मैं करता हूं. वो चाहे भगवान के खिलाफ़ हो, समाज के खिलाफ़ हो, पुलिस, कानून या फिर पूरे सिस्टम के खिलाफ़ क्यूं न हो. मेरे ये काम तरह-तरह के लोग अपने-अपने नज़रिए से देखते हैं. और मेरे बारे में अपनी एक राय बना लेते हैं.”
2.

“सुभाष नागरे और सरकार को मारने में बहुत फ़र्क है. सुभाष नागरे एक आदमी है. सरकार एक सोच. आदमी को मारने से पहले, उसकी सोच को मारना ज़रूरी है.”
3.

“तुम्हें मारने के लिए मेरा यहां होना ज़रूरी नहीं. लेकिन तुम्हें मरते हुए देखने का मज़ा मैं खोना नहीं चाहता था.”
4.

“अब तुम्हारे पास एक ही चॉइस है. या तो अपने भगवान से मिलो, या मुझसे.”