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जब कोर्ट में चला भूतों को मारने का केस!

साल 1958 में उड़ीसा में रहने वाले राम बहादुर ने एक व्यक्ति को भूत समझकर उसपर खुकरी से हमला कर दिया, जिससे उसकी मौत हो गई. हत्या के आरोप में राम बहादुर पर मुकदमा भी चला लेकिन उसे कोई सज़ा नहीं दी गई.

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1958 में उड़ीसा में रहने वाले राम बहादुर ने एक औरत को भूत समझकर उसकी हत्या कर दी(तस्वीर-NDTV/Google)

यूट्यूब के वो वीडियो देखें है आपने, जिनकी शुरुआत होती है, “दोस्तों क्या आप जानते हैं…. ” से. आज हमने सोचा अपन भी कुछ ऐसे ही शुरुआत करेंगे . तो दोस्तों क्या आप जानते हैं कि भारत वो पहला देश और इकलौता देश है जिसने अपने संविधान में वैज्ञानिक सोच को अपनाने की बात जोड़ी है. संविधान में दर्ज़ मौलिक कर्तव्यों में से एक में कहा गया है,

“भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वो वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवतावाद, सुधार और कौतूहल की भावना का विकास करे.”

इसके बावजूद हमारे देश में वैज्ञानिक सोच की अभी भी काफी कमी है. इसलिए नेताओं से लेकर वैज्ञानिक तक तमाम अंधविश्वासों को मानते दिखाई देते हैं. अन्धविश्वास का आम मतलब, भूत प्रेत, टोना टोटका आदि को मानना है. बिल्ली रास्ता काट दे तो रास्ता बदल देना, कोई छींक दे तो अपशकुन हो जाना, ये कुछ सामान्य अन्धविश्वास हैं. इस बारे में भी कुछ सुधी जन तर्क देते हैं कि कोई मानता है तो मानने दो. आप जबरदस्ती किसी को विश्वास को झूठ क्यों साबित करना चाहते हैं. इसमें किसी का बुरा तो नहीं हो रहा. फिर दिक्कत क्या है. तो जो दिक्कत है, उसी के लिए पेश है आज की हमारी कहानी.

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भूत समझकर आदमी को मार डाला

साल 1958 की बात है. उड़ीसा के बालेश्वर जिले के एक गांव रसगोविन्दपुर के पास एक पुराना हवाई अड्डा हुआ करता था. हवाई अड्डा उपयोग किए जाने लायक नहीं था. इसलिए खाली पड़ा रहता था. हवाई अड्डे में दो चौकीदार लगे रहते थे ताकि आवारा लोग वहां अपना अड्डा न बना लें. एक रोज़ कलकत्ता के एक व्यापारी, जगत बंधु चटर्जी रसगोविन्दपुर आए. उनके साथ में उनका एक नेपाली नौकर राम बहादुर भी था. चटर्जी हवाई अड्डे की जमीन को खरीदना चाहते थे. इसके किए उन्हें कुछ महीने गांव में गुजारने पड़े. हवाई अड्डे के आसपास आदिवासियों के गांव थे, जिनमें संथाल और माझी जनजाति के लोग रहते थे. 20 मई 1958 की बात है. पास ही के एक गांव में रहने वाला एक व्यक्ति, चंद्र मांझी रात 9 बजे एक चाय की टापरी के पास पहुंचा. उसी दुकान पर चटर्जी और राम बहादुर भी खड़े थे. बातों-बातों में माझी ने बताया कि वो आज रात अपने गांव नहीं जा पाएगा. चटर्जी ने उससे कारण पूछा तो उसने बताया कि उसके घर का रास्ता हवाई अड्डे से होकर जाता है. और रात को वहां भूत आते हैं.

Superstition
21वी सदी में भी भारत में बहुत से अन्धविश्वास प्रचलित हैं और कई पढ़े लिखे लोग भी इन पर विश्वास करते हैं (तस्वीर-Indiatoday)

चटर्जी के मन में कौतुहल जागा. उन्होंने मांझी से कहा कि वो उन्हें भूत दिखाने ले चले. मांझी की हिम्मत नहीं थी. इसके बाद चटर्जी ने चाय की दुकान वाले से गुजारिश की. चाय की दुकान वाले का नाम कृष्ण चंद्र था. वो साथ चलने के लिए राजी हो गया. इसके बाद चटर्जी, राम बहादुर, मांझी और कृष्ण चंद्र, चारों लोग रात के अंधेरे में हवाई अड्डे की ओर निकल गए. चारों हवाई अड्डे से कुछ 600 फ़ीट की दूरी पर थे कि चटर्जी ने सबको रोक दिया. उन्होंने उंगली से आगे की ओर इशारा किया. सबने देखा कि कुछ दूरी पर एक रोशनी दिख रही है. हवा का रुख तेज़ था. और ऐसा लग रहा था मानों रौशनी के इर्द गिर्द दूधिया रंग की कई परछाइयां हवा में लहरा रही हैं.

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चारों तेज़ी से रौशनी की तरफ भागे. राम बहादुर उनमें सबसे तेज़ था. इसलिए सबसे पहले वो पहुंचा. रौशनी के पास पहुंचते ही उसने अपनी कमर में बंधी खुकरी निकल ली. और तेज़ी से हवा में लहराती परछाइयों पर खुकरी से वार करने लगा. कुछ देर में बाकी तीन लोग भी वहां पहुंचे. डर से बदहवास राम बहादुर हवा में खुकरी चलाता जा रहा था. उसने ध्यान नहीं दिया कि कब उसकी खुकरी का एक वार पीछे खड़े कृष्ण चंद्र को लगा गया. कृष्ण चंद्र जोर से चिल्लाया. तब जाकर राम बहादुर ने अपनी खुकरी रोकी. कुछ देर में चटर्जी भी वहां पहुंचे. उन्होंने देखा कि कुछ और लोगों के चिल्लाने की आवाज भी आ रही है. उन्होंने गौर से देखा तो पता चला जिन्हें वो भूत समझ रहे थे, वो माझी जनजाति की कुछ औरतें थीं. जो लालटेन की रौशनी में महुआ के फूल तोड़ने की कोशिश कर रही थीं. राम बहादुर ने उन्हीं को भूत समझके उनके ऊपर खुकरी चला दी. जिसमें एक महिला की मौत हो गयी और दो महिलाएं घायल हो गयी.

मुक़दमे के बाद मिली रिहाई 

ये तो थी कहानी. जिसमें आपने देखा कि अन्धविश्वास, भूत प्रेत आदि पर विश्वास कभी-कभी लोगों की जान पर भी खतरा बन सकता है. लेकिन इस कहानी को बताने का एक दूसरा कारण भी है. वो है इस हत्यकांड का केस और अदालत का निर्णय , जिसे भारतीय न्याय तंत्र में मील का पत्थर माना जाता है. और ये केस न्याय के एक बहुत जरूरी सिद्धांत को समझने में हमारी मदद भी करता है. क्या था ये सिद्धांत? उससे पहले जानिए कि कहानी में आगे हुआ क्या.

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राम बहादुर ने रात के अँधेरे में कुछ महिलाओं को भूत समझकर उनपर खुकरी से हमला कर दिया (तस्वीर-Indiatoday)

राम बहादुर के हाथों एक औरत का खून हो गया था. इसलिए पुलिस आई और राम बहादुर को धारा 302, हत्या और धारा 326, गंभीर रूप से जख्मी करने के आरोप में जेल में डाल दिया गया. मुक़दमा सेशंस कोर्ट तक गया. जहां कुछ महीने चली सुनवाई के बाद राम बहादुर को रिहा कर दिया गया. यहीं से ये मामला और रोचक हो जाता है. राम बहादुर ने हत्या की थी. गवाह और सबूत भी मौजूद थे. हालांकि उसका इरादा हत्या का नहीं था, फिर भी हत्या तो हुई थी. फिर राम बहादुर रिहा कैसे हो गया.

कानून क्या कहता है?

इस फैसले को समझने के लिए हमें न्याय के एक बड़े जरूरी सिद्धांत को समझना होगा. सिद्धांत जो तब पैदा हुआ था जब ऐतिहासिक मनुष्यों ने पहली बार क़ानून पर विचार करना शुरू किया था.

सिद्धांत क्या है- पहले ये सुनिए

“इग्नोरेटिया फैक्टी एक्सकूजैट, इग्नोरेटिया जूरिस नॉन एक्सकूजैट”

इसका क्या मतलब है? दरअसल न्याय का ये सिद्धांत कहता है कि अगर व्यक्ति को सही सही तथ्यों की जानकारी न हो, तो उसे माफ़ किया जा सकता है. लेकिन अगर उसे क़ानून की जानकारी न हो तो उसे माफ़ नहीं किया जा सकता.

Indian Law
कानून कहता है कि अगर व्यक्ति को सही सही तथ्यों की जानकारी न हो, तो उसे माफ़ किया जा सकता है (तस्वीर-Indiatoday)

मसलन एक उदहारण लीजिए. आप विदेश में कहीं हैं. आपको एक चूहा दिखा. और आपने उसे मार डाला. अब उस देश का क़ानून कहता है कि चूहा देश के लोगों के लिए पवित्र है. और उसे मारना अपराध है. अब इस केस में आप ये दलील दे सकते हैं कि आपको ऐसे किसी क़ानून की जानकारी नहीं थी. तो ऐसे केसों में ये सिद्धांत कहता है कि क़ानून क्या हैं, ये जानना आपकी ज़िम्मेदारी है. ये सिद्धांत इसलिए ज़रूरी है क्योंकि अगर ऐसे केसों में कोई रियायत दी गई, तो कोई भी दावा कर सकता है कि उसे क़ानून की जानकारी नहीं थी. और ये पता लगाना असंभव है कि किसी को क़ानून की जानकारी है या नहीं.

 IPC सेक्शन 79

अब इसी सिद्धांत का एक दूसरा पहलू भी है. ये पहलू कहता है कि अगर आपको तथ्यों की जानकारी नहीं हो तो आपको माफ़ किया जा सकता है. भारतीय दंड संहिता यानी IPC का सेक्शन 79 इसका प्रावधान रखता है. एक और केस का उदाहरण सुनिए. साल 1952 की बात है. चिरंजी और उसका बेटा पहाड़ी पर कुछ पत्तियां खोजने गए थे. अचानक चिरंजी का पैर फिसला, उसका माथा एक पत्थर से टकराया और वो बेहोश हो गया. कुछ देर बाद उसे होश आया और उसने अपने बेटे की हत्या कर दी. अदालत में पता चला कि चोट लगने से चिरंजी को मति भ्रम हो गया था. जिसके चलते उसने अपने बेटे को बाघ समझकर मार डाला. अदालत ने माना कि चिरंजी को सही तथ्यों का पता नहीं था. इसलिए उसे कानूनन माफ़ किया जा सकता है. इसी तरह राम बहादुर केस में भी अदालत ने माना कि हमला करते हुए राम बहादुर को ये पता नहीं था कि वहां पर इंसान हैं. उसने भूत समझकर हमला किया, इसलिए उसे इस केस में निर्दोष मानते हुए रिहा कर दिया गया.

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