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राजीव दीक्षित की मौत को लेकर क्यों उठते हैं सवाल?

विदेशी कंपनियों के खिलाफ मुहीम चलाने वाले राजीव दीक्षित की 30 नवम्बर, 2010 को रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत हो गई थी.

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rajiv Dixit
राजीव के समर्थक दावा करते हैं कि 2009 में भारत स्वाभिमान आंदोलन उन्होंने शुरू किया था,
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30 नवंबर 2022 (Updated: 28 नवंबर 2022, 21:13 IST)
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 'ममता बैनर्जी बीफ खाती हैं. और बीफ खाने की वजह से ही ममता ने अटल बिहारी वाजपेयी को धमकी दी थी कि अगर उन्होंने देश में या पश्चिम बंगाल में बीफ बैन कराया, तो ममता वाजपेयी सरकार गिरा देंगी

‘अमिताभ बच्चन पेप्सी का ऐड इसलिए नहीं करते क्योंकि उनकी आंत पेप्सी पीने की वजह से खराब हो गई थी.’

‘हेमा मालिनी लक्स साबुन से नहीं बल्कि बेसन में मलाई डालकर नहाती हैं. और पूरे देश को ये बात नहीं बताती वरना पूरे देश की महिलाएं हेमा मालिनी की तरह खूबसूरत हो जाएंगी.’

इस तरीके के तमाम दावे करने वाले एक शख्स का नाम था राजीव दीक्षित (Rajiv Dixit). जुकाम से लेकर कैंसर तक सभी बीमारियों का इलाज के जो दावे आज बाबा रामदेव (Baba Ramdev) करते हैं, उनकी शुरुआत राजीव दीक्षित ने ही की थी. समर्थकों की मानें तो राजीव यदि आज जिन्दा होते तो भारत में स्वदेशी और आयुर्वेद का शायद सबसे बड़ा ब्रांड बन चुके होते. लेकिन फिर मात्र 43 की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई. समर्थक दावा करते है कि ये मौत नहीं हत्या थी.

राजीव दीक्षित की रिसर्च जर्मनी खरीदना चाहता था? 

राजीव दीक्षित की पैदाइश 30 नवंबर, 1967 के रोज यूपी के अलीगढ़ में हुई थी. बताया जाता है कि उन्होंने इलाहाबाद से B.Tech और फिर IIT कानुपर से M.Tech की पढ़ाई की थी. हालांकि इसको लेकर कुछ विवाद भी हैं. साल 2015 में एक आरटीआई के जवाब में आईआईटी कानपुर ने बताया कि राजीव दीक्षित नामक छात्र उनके यहां से पास आउट छात्रों की लिस्ट में नहीं हैं. 

राजीव दीक्षित (तस्वीर: rajivdixit.in)

इसके अलावा अपने के विडिओ में राजीव दीक्षित दावा करते हैं कि उन्होंने फ्रांस से पीएचडी की थी और CSIR में एंटी ग्रैविटी पर रिसर्च का काम किया था. वो बताते हैं कि उनकी रिसर्च के लिए जर्मनी का मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट अरबों डॉलर देने के लिए तैयार हो गया था, लेकिन वो नहीं चाहते थे कि उनकी रिसर्च किसी और देश के हाथ लगे, इसलिए उन्होंने रिसर्च बेचने से इनकार कर दिया. हालांकि न इन दावों के समर्थन में वो कोई सबूत पेश करते हैं. नया ही उनके द्वारा एंटी ग्रैविटी पर लिखा कोई रिसर्च पेपर सामने आता है. 

1984 में भोपाल गैस त्रासदी के बाद राजीव का नाम सुर्ख़ियों में आना शुरू हुआ. उन्होंने यूनियन कार्बाइड कंपनी के खिलाफ प्रदर्शन किए. हालांकि उनका एक दावा ये भी था कि युनियन कार्बाइड घटना अमेरिका की एक सोची समझी साजिश थी. और इसे भारतीयों पर एक्सपेरिमेंट के तौर पर अंजाम दिया गया था. यहां से राजीव दीक्षित ने विदेशी कंपनियों के खिलाफ एक मुहीम शुरू की. उन्होंने ने देश भर में घूमकर भाषण देने शुरू किए. इन भाषणों में वो भारतीय शिक्षा व्यवस्था, टैक्स सिस्टम, मॉडर्न मेडिसिन, अन्तराष्ट्रीय कंपनियों की आलोचना करते हैं.

एक भाषण में वो कहते हैं कि भारत का वर्तमान लीगल सिस्टम, अंग्रेजों के बनाए हुए कानून की फोटोकॉपी जैसा है, और इसे बदला जाना चाहिए. इकॉनमिक सिस्टम के बारे में राजीव दीक्षित कहते हैं कि देश का टैक्सेशन सिस्टम डिसेंट्रलाइज्ड कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि यही देश में भ्रष्टाचार की जड़ है. उनका दावा था कि देश का 80% टैक्स रेवेन्यू नेताओं और ब्यूरोक्रेट्स के हिस्से में जाता है. भारत के बजट सिस्टम को ब्रिटेन से प्रेरित बताने वाले राजीव 500 और 1000 के नोट बंद करने की सलाह देते थे. उनके हिसाब से लिबरलाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन और ग्लोबलाइजेशन भारत के सबसे बड़े दुश्मन हैं, जो भारत को आत्मघाती स्थिति में ले जा रहे हैं. राजीव कहते थे कि देश के विचारकों ने खेती के क्षेत्र में पर्याप्त काम नहीं किया, जिसकी वजह से आज किसान खुदकुशी करने को मजबूर हैं.

नेहरू को लेकर दावे 

राजीव दीक्षित ने विदेशी कंपनियों के खिलाफ भी खूब बोला. मॉडर्न मेडिसिन की आलोचना करते हुए कहते हैं कि विदेशी कंपनियों ने अपना कारोबार बढ़ाने के लिए मॉडर्न मेडिसिन को बढ़ावा दिया, जिसके कारण लोग और बीमार हो गए और कंपनियों ने मोटा मुनाफा कमाया. वो आयुर्वेद को मॉडर्न मेडिसिन से बेहतर बताते हुए कहते हैं कि भारत का मेडिकल सिस्टम आयुर्वेद पर आधारित होना चाहिए. स्वदेशी की वकालत करते हुए उन्होंने ऐसे पर्चे बंटवाए, जिनमें लिखा होता था कि कौन सी कंपनी विदेशी है और कौन सी भारतीय.

१५ अगस्त 1947 के दिन जवाहरलाल नेहरू, एडविना और लुइस माउंटबेटन (तस्वीर: Wikimedia Commons)

अंग्रेज़ी का एक मुहावरा है, द रोड टू हेल इज़ पेव्ड विद गुड इंटेंशन. आसान शब्दों में अच्छी नीयत कभी कभी गलत राह पर ले जाती है. स्वदेशी और भारतीयता की वकालत करने वाले राजीव दीक्षित की नीयत निसंदेह अच्छी रही होगी. लेकिन इस बीच उन्होंने ऐसे ऊटपटांग दावे भी करने शुरू कर दिए, जिनका न कोई सर था न पर. उदाहरण के लिए उनका दावा था कि अमेरिका जम्मू-कश्मीर को अपने कब्ज़े में करना चाहता है और इसी वजह से वो पाकिस्तान को पैसा देता है, ताकि पाकिस्तान आतंकवाद को पाल सके और कश्मीर मसले पर भारत की नाक में दम कर सके.

ऐसा ही एक दावा उनका प्रधानमंत्री नेहरू को लेकर भी था. जिसमें वो कहते हैं 

"जवाहरलाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना और एडविना एक ही कॉलेज में पढ़े थे और एडविना से दोनों लगे हुए थे. एडविना इतनी चालाक महिला थी कि दोनों को हैंडल करती थी. जिन्ना और नेहरू चरित्र के बेहद हल्के आदमी थे. एडविना के पास नेहरू की आपत्तिजनक तस्वीरें थीं, जिनके आधार पर नेहरू को ब्लैकमेल करके भारत का बंटवारा कराया गया." 

ऐसे ही कई और दावें हैं जिनका कोई तुक नहीं है. एक जगह वो अमेरिका में हुए 9/11 आतंकी हमलों की कॉन्सपिरेसी थियोरी का समर्थन करते हुए कहते हैं कि ये हमला खुद अमेरिका ने करवाया था.इन दावों ने उनकी प्रसिद्धि में खूब इजाफा किया और देश भर में उनके लाखों फॉलोवर इकठ्ठा हो गए. 

बाबा रामदेव के साथ मुलाक़ात 

साल 2009 में राजीव ने बाबा रामदेव के साथ काम करना शुरू किया. रामदेव ने अब तक अपने योग शिविरों और पतंजलि योगपीठ के जरिए नाम कामना शुरू कर दिया था. दोनों ने मिलकर काले धन के खिलाफ भारत स्वाभिमान आंदोलन नाम की के मुहीम शुरू की.

3 और 4 दिसम्बर 1984 की रात को भोपाल में यूनियन कार्बाइड कारखाने में भीषण गैस रिसाव हुआ था जिसमें हजारों लोगों प्रभावित हुए थे (तस्वीर: Wikimedia Commons)

आंदोलन के तहत राजीव और रामदेव ने योजना बनाई कि लोगों को अपने साथ जोड़ने के बाद 2014 में वो देश के सामने अच्छे लोगों की एक नई पार्टी का विकल्प रखेंगे और लोकसभा चुनाव में दावेदारी पेश करेंगे. उस दौर में रामदेव आस्था और संस्कार चैनल के जरिए योग का प्रचार किया करते थे. राजीव दीक्षित भी इन्हीं चैनलों के माध्यम से भाषण दिया करते थे. जिसके चलते उनकी प्रसिद्धि में खूब इजाफा हो रहा था. भारत स्वाभिमान आंदोलन की शुरुआत के कुछ महीने बाद ही 30 नवंबर, 2010 को राजीव दीक्षित की मौत हो गयी. डॉक्टरों के अनुसार उनकी मौत का कारण हार्ट अटैक था. लेकिन उनके समर्थकों का कहना है की ये स्वाभाविक मृत्यु नहीं साजिश थी. चलिए जानते हैं क्या हुआ था राजीव दीक्षित की मृत्यु के रोज़.

राजीव दीक्षित की मृत्यु या हत्या? 

नवंबर के आखिरी सप्ताह में राजीव छत्तीसगढ़ दौरे पर थे, जहां उन्होंने अलग-अलग जगहों पर व्याख्यान देने थे. 26 से 29 नवंबर तक अलग-अलग जगह व्याख्यानों के बाद जब 30 को वो भिलाई पहुंचे, तो वहां उनकी तबीयत खराब हो गई. वहां से दुर्ग जाने के दौरान कार में उनकी हालत बहुत खराब हो गई और उन्हें दुर्ग में रोका गया. दिल का दौरा पड़ने पर उन्हें भिलाई के सरकारी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया और फिर वहां से अपोलो BSR हॉस्पिटल शिफ्ट किया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें डेड डिक्लेयर कर दिया. इसके बाद एक चार्टेड विमान से राजीव के शव को हरिद्वार लाया गया. राजीव के समर्थकों का कहना है कि उस रोज़ राजीव का शव बैंगनी और नीला पड़ गया था. उनकी स्किन उधड़ी लग रही थी, नाक के आसपास काले नीले रंग का खून जमा हो गया था. ये देखकर वहां मौजूद लोगों को शक हुआ कि ये स्वाभविक मौत हीं हत्या हो सकती है. ये देखकर कई लोगों ने पोस्टमार्टम की मांग की. लेकिन राजीव के परिवार ने पोस्टमार्टम से इंकार कर दिया. अंत में राजीव का हरिद्वार में अंतिम संस्कार कर दिया गया. 

बाबा रामदेव (तस्वीर: India Today)

चूंकि शव का पोस्टमार्टम नहीं हुआ था, इसलिए आगे चलकर राजीव से जुड़े लोगों ने उनकी हत्या की आशंका जताई. कई बार उंगलियां बाबा रामदेव के ऊपर भी उठी. लेकिन रामदेव इन आरोपों से इंकार करते रहे. बाबा रामदेव के अनुसार उन्होंने राजीव से बात कर उन्हें समझाने की कोशिश की थी. राजीव की तबीयत ख़राब थी लेकिन वो एलोपैथी इलाज से इंकार कर रहे थे. एक मुद्दा ये भी उठा कि राजीव की बॉडी को वर्धा लाने के बजाय हरिद्वार में रामदेव के पतंजलि आश्रम क्यों ले जाया गया.   

साल 2017 में बाबा रामदेव से जुडी एक किताब आई थी- “गॉडमैन टू टाइकून”. किताब में इस राजीव की हत्या से जुड़े कई और सवालों को उठाया गया था. बाबा रामदेव इस किताब के खिलाफ कोर्ट में गए और दलील दी कि किताब में कही बातों से उनकी छवि को नुक़सान हो सकता है. कोर्ट ने बाबा रामदेव के दावों को स्वीकार करते हुए किताब पर बैन लगा दिया था.

इसके बाद भी सालों से राजीव समर्थक सालों से उनकी मौत में किसी षड्यंत्र का आरोप लगाते रहे हैं. इसी के चलते साल 2019 में प्रधानमंत्री कार्यालय के द्वारा इस केस को दोबारा खोले जाने के निर्देश दिए गए. लेकिन राजीव की हत्या हुई थी या स्वाभाविक मृत्यु, इस सवाल का जवाब आज तक नहीं मिल पाया है. 

वीडियो देखें- आंबेडकर इसलिए मानते थे ज्योतिबा फुले को अपना गुरु!

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