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'फसल-खेत-बारी बही जा रही है रे दुनिया हमारी बही जा रही है'

एक कविता रोज़ में पढ़िए प्रबुद्ध सौरभ की कविता, 'बाढ़'.

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मूलतः बिहार के रहने वाले कलमकार प्रबुद्ध सौरभ MBA और B.Tech. कर चुके हैं. लेकिन मन कविता, ग़ज़ल और शायरी में रमा हुआ है. आज तक के प्रसिद्ध कार्यक्रम KV Sammelan समेत तमाम और कार्यक्रमों के लिए स्क्रिप्ट और शीर्षक कविताएं लिखते हैं.
बाढ़(Flood) हर साल भारत के कई राज्यों में कहर ढाती है. इस साल जून के महीने में बिहार में बाढ़ से भीषण नुकसान हुआ है. बाढ़ में जब गांव के गांव कट जाते हैं तो क्या हालात होते हैं. रेखांकित करती है - आज की कविता, जिसका शीर्षक है - 'बाढ़'. इसे लिखा है प्रबुद्ध सौरभ ने. पिछले कई सालों में प्रबुद्ध सौरभ ने कविता और ग़ज़लों से जुड़े कार्यक्रमों के लिए स्क्रिप्टिंग का काम किया है. अमिताभ बच्चन सहित कई बड़े नामों ने तमाम मौकों पर प्रबुद्ध सौरभ की कविताएं क्वोट भी की हैं. आज की कविता 'बाढ़' को बॉलीवुड सिंगर सोनू निगम ने कंपोज़ भी किया है और इसे एमटीवी के लिए गाया गया है.

बाढ़ धनेसर का छप्पर उधर बह रहा है किसन का टिरेक्टर उधर बह रहा है इधर बह रही है सनिचरा की बुढ़िया उधर बह रही है गनेसा की गुड़िया गनेसा को बेटी बिहानी थी अबके बताता था खुद से ही घर जा के सबके नहा लेंगे गंगा, इ कादो निबट ले बिहा देंगे बिटिया, इ भादो निबट ले कमर कस के रक्खे हैं पूरी तयारी औ पटना से लाए जमुनिया की सारी जमुनिया की सारी बही जा रही है रे दुनिया हमारी बही जा रही है   बहा जा रहा है चनरमा का सीसम झगड़ता था जिसके लिए सबसे हरदम वो बकरी जो खाती थी सीसम की डारी बही जा रही देखो वो भी बेचारी बियाने ही वाली थी बचुआ की गइया बही उसके साथे कन्हैया की मइया अजहरवा जो दस का था, उ भी बहा है दया दो बरस का था, उ भी बहा है अदितिया, सुनाली, अजय्या, महेसर अकीला, सुबरना, सुरेन्दर, महेन्दर बहा है उमर भर का सपना सभी का कि कोई न कोई था अपना सभी का फसल-खेत-बारी बही जा रही है रे दुनिया हमारी बही जा रही है हे भोले भंडारी, बही जा रही है   रे दुनिया हमारी बही जा रही है रे पकड़ो रे पकड़ो, बही जा रही है रे रोको रे रोको, बही जा रही है सम्हालो, सम्हालो, बही जा रही है बचा लो बचा लो, बही जा रही है हे राधे मुरारी, बही जा रही है रे दुनिया हमारी बही जा रही है रे दुनिया हमारी बही जा रही है

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