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हिंदी मीडियम इंजीनियर-डॉक्टर बनाने की तैयारी तेज है, पर इससे कुछ फायदा होगा भी?

आईआईटी बीएचयू से शुरु हो सकता है इसका पायलट प्रोजेक्ट

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आईआईटी बीएचयू में पायलट प्रोजेक्ट के तहत हिंदी मीडियम में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कराने की तैयारी हो रही है.
'निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटन न हिय के सूल'
भारतेंदु हरिश्चंद्र की ये अमर पंक्तियां आप हर हिंदी दिवस पर कई जगह लिखी देखते होंगे. लेकिन सरकार ने अब इन पंक्तियों को साकार रूप देने की ठानी है. शुरुआत पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस के आईआईटी बीएचयू से हो रही है. सरकार का इरादा है कि तकनीकी विषय जैसे इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई 'अपनी भाषा' में कराई जाए.
'अपनी भाषा' मतलब क्या?
फिलहाल मेडिकल और इंजीनियरिंग दोनों की पढ़ाई अंग्रेजी में ही होती है. चाहें वह सरकारी इंस्टिट्यूट हो या प्राइवेट. लेकिन अब सरकार इस बात पर गंभीरता से काम कर रही है कि तकनीकी शिक्षा भी मातृभाषा में दी जाए. इसकी शुरुआत हिंदी से हो रही है. एजुकेशन मिनिस्टर रमेश पोखरियाल निशंक ने अक्टूबर में इस संबंध में एक उच्चस्तरीय मीटिंग भी की थी.
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आईआईटी बीएचयू को उसकी फैकल्टी की खासियत को देखते हुए इस पायलट प्रोजेक्ट के लिए चुना जा रहा है. तस्वीर आईआईटी बीएचयू के कंप्यूटर साइंस डिपार्टमेंट की है.

इकॉनमिक टाइम्स के मुताबिक, 29 अक्टूबर को हुई मीटिंग में तय किया गया कि बनारस को इसके लिए चुना जाए क्योंकि वहां पढ़ाने वाले टीचर अंग्रेजी के अलावा हिंदी में भी बेहतर पकड़ रखते हैं. ऐसे में वो एक भाषा से दूसरी भाषा में तेजी से स्विच कर सकते हैं.
पीएम मोदी बिहार में 23 अक्टूबर को दिए एक चुनावी भाषण में इसका जिक्र कर चुके हैं. उन्होंने कहा था,
बिहार में शिक्षा का गौरवशाली इतिहास रहा है, राष्ट्रीय शिक्षा नीति से प्रेरित होते हुए अब एक कोशिश होगी, जिसमें तकनीकी कोर्स जैसे इंजीनियरिंग और मेडिकल भी मातृभाषा में पढ़ाए जाएंगे.
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पीएम मोदी ने बिहार इलेक्शन के दौरान हिंदी में इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई की बात कही थी.

ये इंतजाम कैसे होगा?
जानकारों का कहना है कि अकैडमिक मैटीरियल का इंतजाम करना सबसे बड़ी चुनौती है. आईआईटी बीएचयू की फैकल्टी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि फिलहाल हिंदी में इंजीनियरिंग कोर्स पढ़ाना चुनौती भरा काम है, लेकिन कोशिश करने में हर्ज नहीं है.
देश के बड़े इंजीनियरिंग और मेडिकल कोर्सेज की किताबें पब्लिश करने वाले नई दिल्ली के खन्ना पब्लिकेशन के क्रिएटिव डायरेक्टर बुद्धेश खन्ना कहते हैं-
हमारे पास यूपी के आईटीआई कॉलेजों से हिंदी में तकनीकी किताबों की डिमांड पहले भी आईं, लेकिन ऐसी किताबों का हिंदी में ट्रांस्लेशन करने वाले उपलब्ध न होने की वजह से हम ऐसा नहीं कर पाए. अभी इस तरह का कोई अधिकृत तकनीकी शब्दकोष भी नहीं है, जिसे हम फॉलो करें. हम अपना ही एक शब्दकोष बनाने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि अगर हमसे इंजीनियरिंग के लिए हिंदी में किताबें लाने को कहा जाएगा, तो एक साल के कोर्स की किताबें निकालने के लिए हमें कम से कम 1 साल का वक्त चाहिए.
'हिंदी चलेगी या नहीं इकॉनमिक्स तय करेगा'
आईआईटी दिल्ली की फैकल्टी रह चुके और फिलहाल शिव नादर यूनिवर्सिटी से जुड़े डॉ. सुनीत तुली ने बताया,
कोर्स उस भाषा में ही चलेगा, जो इकॉनमिक्स की भाषा है. मतलब जिस भाषा में नौकरी मिलेगी, वही हिंदी का कोर्स कारगर होगा. दुनियाभर में प्लेसमेंट पाने के लिए तो अंग्रेजी ही पढ़नी होगी. रूस अकेला ऐसा देश है, जो अपनी भाषा में इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई कराता है, लेकिन वहां पर भी अब अंग्रेजी की डिमांड बढ़ रही है. चीन से लेकर फ्रांस और इटली तक, जहां पर अपनी भाषा में पढ़ने को लेकर काफी जोर दिया जाता रहा है, वहां पर भी अब तकनीकी कोर्स अंग्रेजी में पढ़ाने की शुरुआत हो चुकी है. ऐसे में हिंदी में कोर्स शुरू करने से पहले यह ख्याल रखना भी जरूरी है कि आखिर स्टूडेंट्स को इसका क्या फायदा होगा. कौन कंपनियां ऐसी हैं, जो हिंदी मीडियम में पढ़कर आए इंजीनियर को अपने यहां नौकरी देने को तैयार होंगी.
आईआईटी दिल्ली के प्रोफेसर जीएन तिवारी का कहना है-
जिन स्टूडेंट्स की कम्यूनिकेशन स्किल खराब है, उनके लिए हिंदी में चलाया गया कोर्स जरूर फायदेमंद साबित हो सकता है, लेकिन उन्हें हिंदी में कोर्स करने के बाद प्लेसमेंट कहां मिलेगा, यह जरूर सोचना होगा. इसके अलावा हिंदी में अच्छा अकैडमिक मटीरियल मिलना भी बहुत मुश्किल काम है. लेकिन कम से कम शुरुआत करके तो देखी ही जा सकती है.
फिलहाल जब हमने इस बारे में आईआईटी बीएचयू की इंजीनियरिंग फैकल्टी से संपर्क किया तो कोई भी ऑन रिकॉर्ड कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हुआ. इस पायलट प्रोजेक्ट से क्या हासिल होगा, ये तो वक्त ही बताएगा लेकिन यह जरूर है कि इससे हिंदी और अंग्रेजी की एक नई बहस जरूर शुरू हो गई है.