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'राज कपूर अगर रूस में राष्ट्रपति का चुनाव लड़ते तो शर्तिया जीत जाते'

आज पढ़ें हिन्दी सिनेमा के पहले 'शोमैन' राज कपूर की ज़िन्दगी से जुड़ी कुछ खास बातें.

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फोटो - thelallantop

"जब रूस में राज कपूर की फिल्म रिलीज़ होती थी तो देखनेवालों की कई किलोमीटर लम्बी लाइनें लग जाती थीं. पचास के दशक में उनकी लोकप्रियता का आलम ये था कि वो अगर सोवियत रशिया के राष्ट्रपति का चुनाव लड़ते तो वहां भी जीत जाते." पिछले साल गोवा फिल्म फेस्टिवल में लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार जीतने वाले रशियन निर्देशक अौर अॉस्कर विनर निकिता मिखेलकोव ने रशिया में राज कपूर की लोकप्रियता को याद करते हुए यह बातें कहीं थीं.

पर यहां हमारे लिए राज कपूर राष्ट्रपति के उम्मीदवार नहीं, बस 'राजू' थे. एक फक्कड़ अौर भोला-भाला सा चेहरा. कांधे पर लाठी उठाए अौर उसी लाठी के एक सिरे पर अपनी पूरी गृहस्थी को बांधे गांव से शहर चला आया एक ईमानदार अौर भोला लड़का. 'दिल का हाल सुने दिलवाला','जीना यहां मरना यहां' अौर 'प्यार हुआ इकरार हुआ' गाता हुआ जवान लड़का जिसकी सच्चाई ही उसकी इस 'जालिम दुनिया' में उसकी पूंजी है.

हॉलीवुड के सितारे चार्ली चैप्लिन की 'ट्रैंप' की छवि को राज कपूर ने अपनी फिल्मों में जैसे फिर से ज़िन्दा कर दिया था. कितना दिलचस्प है ये रिश्ता, जहां एक इंसान पूंजीवादी मुल्क में उसी व्यवस्था की कठोर आलोचना करने वाली फिल्में बनाता है.  फिर उस इंसान की फिल्मों से एक छवि उठाकर तीसरी दुनिया के एक समाजवादी मुल्क में दूसरा युवा एक नवीन छवि गढ़ता है. अौर फिर वो नवीन छवि उसे तीसरे घोर साम्यवादी मुल्क की जनता का चहेता बना देती है. चार्ली चैप्लिन, राज कपूर अौर सोवियत रशिया के दर्शकों का यह रिश्ता कमाल है, अौर राज कपूर जैसे यहां दो दुनियाअों के बीच पुल का काम करते हैं.

इस भोले 'राजू' राज कपूर का दूसरा चेहरा एक निर्देशक का चेहरा है. राज कपूर की फ़िल्में, जिनमे तेज़ी से बदलते भौतिकवादी बाज़ार और असमान औद्योगीकरण से जूझते आम लोगों की कहानियां मिलती हैं. इनमें विधवा पुनर्विवाह से लेकर फीमेल सेक्सुअलिटी तक बड़े सामान्य तरीके से नज़र आती है. राज कपूर की फिल्मों का फलक बड़ा था. वे न सिर्फ भारत, बल्कि रूस और दक्षिण- पूर्वी देशों में खूब लोकप्रिय थीं. खुद 'राजू' के किरदार में आम आदमी का अक्स और  उसके आसपास की दुनिया दिखाई देती थी. सामान्य सी दिखती कहानी के माध्यम से इंसान के साथ ही पूरे समाज को आइना दिखाने की ताकत ही उनकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण था.

तो आज 'शोमैन' राज कपूर की ज़िन्दगी अौर फिल्मों से कुछ रोचक किस्से पेश हैं,

1.

यूं तो राज कपूर हिन्दी सिनेमा के हीरो पृथ्वीराज कपूर के बड़े बेटे थे, लेकिन पृथ्वीराज ने उन्हें 'लॉंच' नहीं किया. राज कपूर ने अपने फ़िल्मी सफर की शुरुआत उसी दौर के अन्य निर्देशक केदार शर्मा के साथ क्लैपर ब्वॉय के तौर पर की थी. युवा राज कपूर की एक आदत थी. ये फिल्म विषकन्या (1943) की शूटिंग के समय की बात है. राज फिल्म के सेट पर क्लैप देने के लिए अपने बाल संवार कर कैमरे के सामने पोज देते थे. इसी दौरान एक बार उनकी गलती से फिल्म के हीरो की दाढ़ी क्लैपरबोर्ड में फंस गई. अौर इसके जवाब में केदार शर्मा ने पूरी यूनिट के सामने राज कपूर को एक ज़ोरदार थप्पड़ लगा दिया था.

https://www.youtube.com/watch?v=5XOi1GzOgfc

2.

ये सत्तर के दशक की बात है. छह सालों में पूरी हुई फ़िल्म 'मेरा नाम जोकर' बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह पिट गयी थी और राज कपूर की आर के प्रोडक्शंस घाटे में चली गई. कहा गया कि राज कपूर अपनी ही यादों के जंगल में खो गए हैं अौर फिल्म बहुत लम्बी हो गई है. हालांकि बाद में इस फ़िल्म को वो सराहना मिली जिसकी वो हकदार थी, और 'मेरा नाम जोकर' कई आलोचकों की पसंदीदा फ़िल्मों में भी गिनी जाने लगी. खासकर उसका पहला हिस्सा. लेकिन इस 'अंत' की घोषणा को राज कपूर ने चैलेंज के तौर पर लिया. उन्होंने जवाब में ऋषि कपूर और डिंपल कपाड़िया को लेकर फ़िल्म 'बॉबी' बनाई. यह फ़िल्म घिसी-पिटी प्रेम कहानियों से अलग टीनएज प्रेम कहानियों की संभावनाअों और संवेदनाअों की फिल्म थी. फिल्म दो नए चेहरों के साथ ले कर आई, बच्चन अौर राजेश खन्ना के दौर में भी सबसे सुपरहिट फिल्म साबित हुई.

https://www.youtube.com/watch?v=MD3uEfByFZ4

3.

इसके बाद 1970 के दशक में राज कपूर ने 'राम तेरी गंगा मैली', 'सत्यम शिवम् सुन्दरम' और 'प्रेम रोग' जैसी स्त्री विषयक फ़िल्में बनाई. ये फ़िल्में विषयों अौर उनके चित्रण  को लेकर बोल्ड थीं, जिन्हें ज़माने और परंपराओं की सहमति की कोई दरकार नही थी. हालांकि ये फ़िल्में अपनी अपने विषयों में सेक्सुअलिटी और जेंडर रोल की रूढ़िवादिता को खंडित करने की ताकत रखती थीं, लेकिन अब राज कपूर 'काम निकालने' वाली दुनिया की उबड़-खाबड़ ज़मीन पर मस्ती में चलते पचास के दशक के अपने सच्चे, आशावादी किरदारों से काफी दूर आ चुके थे. बदलते वक़्त की ज़रूरतों के जवाब में 'ग्रेट इंडियन शोमैन' को भी बाज़ार को भांपने और समझने की कोशिश करनी पड़ी.

4.

राज कपूर हालांकि शादीशुदा थे, लेकिन अभिनेत्री नर्गिस के साथ उनकी जोड़ी दर्शकों के बीच बहुत लोकप्रिय थी और नर्गिस के साथ उनके प्रेम के किस्से भी बड़े मशहूर हुए. जब राज कपूर नर्गिस के घर पहली बार उनकी माँ से मिलने गए, तो नर्गिस भजिया तल रहीं थीं और हाथों में आटा लगाये हुए ही दरवाज़ा खोलने चली आईं. बालों को माथे से हटाते वक्त सर पर आटा लग जाने की नर्गिस की तस्वीर राज कपूर के दिमाग में गहरे अंकित हो गयी. बाद में उन्होंने फिल्म 'बॉबी' में ठीक यही सीन ऋषि कपूर और डिंपल कपाड़िया के पहली बार मिलने पर फ़िल्माया.

https://www.youtube.com/watch?v=y01uvU0UAoU

5.

आर के प्रोडक्शंस की शुरूआती असफलता के बाद 'बरसात', 'बूट पॉलिश', 'जागते रहो' और 'श्री 420' जैसी फिल्में सफल रहीं. पचास के दशक में इन फिल्मों ने राज कपूर की फ़िल्म कंपनी को सिनेमा की दुनिया में स्थापित कर दिया. नर्गिस के साथ फ़िल्म 'बरसात' में राज कपूर ने मधुर गानों और खूबसूरत सीन से न सिर्फ मोहब्बत को फिल्मों में एक नया आयाम दिया, बल्कि आर के प्रॉडक्शंस को पहचान दिलाई. इसी फिल्म 'बरसात' की एक तस्वीर को कंपनी के लोगो में इस्तेमाल किया गया है.

यह स्टोरी 'दी लल्लनटॉप' के साथ इंटर्नशिप कर रही पारुल तिवारी ने लिखी है.