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नीतीश के 'मानसिक स्वास्थ्य' की बात करने के पीछे तेजस्वी का कौन सा गेम-प्लान?

Nitish Kumar और Tejashwi Yadav एक दूसरे के विपक्षी हैं. साथ में भी रहे हैं. तेजस्वी नीतीश पर हमला करते हुए भविष्य में साथ आने की संभावना का ख्याल रखते थे. लेकिन अब चीजें बदल गई हैं. 20 मार्च को राष्ट्रगान के दौरान हुई चूक को लेकर तेजस्वी ने नीतीश कुमार के मेंटल हेल्थ पर जमकर सवाल उठाए हैं. उनकी इस बदली रणनीति को समझते हैं.

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तेजस्वी यादव ने अब खुलकर नीतीश कुमार को घेरना शुरू कर दिया है. (इंडिया टुडे)

20 मार्च. पटना का पाटलिपुत्र स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स. सेपक टाकरा वर्ल्ड कप का उद्घाटन समारोह. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) उद्घाटन के लिए पहुंचे थे. समारोह की शुरुआत में राष्ट्रगान बज रहा था. राष्ट्रगान के दौरान अचानक CM अपने पास खड़े एक अधिकारी से बात करने की कोशिश करने लगे. अधिकारी ने उन्हें याद दिलाने की कोशिश की कि राष्ट्रगान चल रहा है. नीतीश कुमार की इस भूल को विपक्ष ने अवसर की तरह लिया. राजद समेत विपक्ष के तमाम नेता के सोशल मीडिया हैंडल पर ये वीडियो घूमने लगा. लालू यादव (Lalu Yadav) का पूरा कुनबा नीतीश कुमार को ‘मानसिक तौर पर अस्वस्थ’ बताने में जुट गया.

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ये कोई पहला मौका नहीं है जब नीतीश कुमार की ओर से इस तरह का व्यवहार किया गया हो. पिछले डेढ़ सालों से उनके खराब स्वास्थ्य की बात चल रही है. इसकी शुरुआत 7 नवंबर 2023 को विधानसभा में दिए उनके भाषण से शुरू हुई. जिसमें उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण को लेकर महिलाओं की समझदारी पर जो कहा वो विवाद खड़ा कर गया. इसके कुछ दिनों बाद वो पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी पर बरस पड़े. आम तौर पर शांत और संयमित व्यवहार करने वाले नीतीश कुमार के व्यवहार में आए इस बदलाव पर लोग सवाल उठाने लगे. उस वक्त नीतीश कुमार महागठबंधन खेमे में थे. और तेजस्वी यादव इन सवालों को टाल जाते थे. वहीं बीजेपी इन मसलों पर हमलावर रहती थी.

 तेजस्वी ने लॉन्च किया ऑल आउट अटैक 

इसके बाद से कई और ऐसे वाकये हुए जिसको लेकर नीतीश कुमार पर सवाल उठे. इसमें बार-बार लोगों के सामने झुकना, पैर छूने की कोशिश करना, अपनी भाषा पर काबू नहीं रख पाना. कभी दो नेताओं का सर आपस में टकरा देना. या फिर विधानसभा में अजीबोगरीब इशारे करना. जैसी हरकतें शामिल हैं. तेजस्वी इन मुद्दों पर तंज तो कसते थे. लेकिन इशारों-इशारों में. कभी खुलकर नीतीश कुमार के मानसिक स्वास्थ्य को निशाना नहीं बनाया. लेकिन इस बार तेजस्वी एंड फैमिली ने ऑल आउट अटैक लॉन्च कर दिया है.

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तेजस्वी ने सदन से बाहर पत्रकारों से बातचीत में मुख्यमंत्री को अस्वस्थ बताते हुए बिहार की जान छोड़ देने की अपील की. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने सदन में ही कहा कि उनका ‘दिमाग ठीक नहीं है’, तो वे इस्तीफा देकर अपने बेटा या किसी ढंग के आदमी को मुख्यमंत्री बनाएं. लालू यादव भी इनके सुर में सुर मिलाते दिखे. नीतीश कुमार को लेकर इनके बदलते रुख को पिछले कुछ महीनों के घटनाक्रम से समझना होगा.

तेजस्वी समझ गए अब नीतीश ‘सबके नहीं’

दिसंबर 2024 में एजेंडा आजतक के कार्यक्रम में अमित शाह ने बिहार में सीएम फेस को लेकर एक बयान दिया. बयान से संदेश गया कि नीतीश कुमार बिहार में सीएम फेस नहीं होंगे. इसके बाद नीतीश कुमार की नाराजगी की खबरें आईं. उन्होंने मौन साध लिया. मकर संक्राति से पहले के खरमास में उनके पलटने की बात चलने लगी. इस दौरान लालू यादव और उनके कई करीबी नेताओं ने नीतीश को अपने पाले में आने का ऑफर दिया. बिहार बीजेपी के नेता सफाई देने में जुट रहे.

तेजस्वी यादव का टोन भी उनको लेकर नरम रहा. बीजेपी और नीतीश के बीच मनाने और रूठने का ये खेल फरवरी के अंत तक चला. लेकिन फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक जेस्चर ने चीजें बदल दीं. 24 फरवरी को भागलपुर की रैली में पीएम ने नीतीश कुमार को लाडला सीएम बताया. इसके बाद माना गया कि नीतीश कुमार की मांगों को ग्रीन सिग्नल मिल गया है. जिसमें मुख्यमंत्री का चेहरा, सीटों के बंटवारे और निशांत की राजनीति में एंट्री जैसे मुद्दे शामिल हैं.

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इस रैली में और इसके बाद कई मौकों पर नीतीश ने बीजेपी का साथ न छोड़ने की बात दोहराई. उनके इस मूव के बाद राजद ने अपना स्टैंड बदल लिया. अब उनको लग गया कि नीतीश कुमार पर डोरे डालने का कोई फायदा नहीं है. अब चीजें शीशे की तरफ साफ हैं. राज्य में दो ध्रुव हैं. और नीतीश कुमार सत्ताधारी खेमे का चेहरा हैं. इसलिए वे तेजस्वी यादव की लाइन ऑफ फायर में आ गए हैं. अब चाहे राज्य की बिगड़ती कानून व्यवस्था का मुद्दा हो या नीतीश कुमार के बिगड़ते स्वास्थ्य का, तेजस्वी अटैक का कोई मौका छोड़ना नहीं चाहते. वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेश्वर बताते हैं, 

नीतीश कुमार को डिफेम नहीं करेंगे तो मुख्य प्रतिद्वंद्वी कैसे बनेंगे. अब तो राजद और जेडीयू के एक साथ आने की कोई संभावना नहीं बची. अब जब नीतीश कुमार से सीधी लड़ाई है तो इसमें वो उन पर हमला करने का कोई भी मौका क्यों चूकेंगे. सवाल चाहे उनके मानसिक स्वास्थ्य का हो. या राज्य की कानून व्यवस्था का.

नीतीश कुमार का इरादा देख रणनीति बदली

तेजस्वी यादव जिन मुद्दों को लेकर पराजित होते रहे हैं उसमें सबसे बड़ा मुद्दा है जंगलराज, अपराध, सुशासन और परिवारवाद. तेजस्वी लगातार अपराध बुलेटिन जारी कर रहे हैं ताकि जंगलराज के आरोप को काउंटर किया जा सके. वहीं लगातार निशांत को जदयू की कमान संभालने के लिए आमंत्रण दे रहे हैं ताकि एनडीए के हाथ से परिवारवाद का मुद्दा छिटक जाए. अब तेजस्वी ने नीतीश के स्वास्थ्य को सबसे बड़ा मुद्दा बनाया है. वरिष्ठ पत्रकार रमाकांत चंदन बताते हैं, 

रोजगार, पलायन और नौकरी जैसे मुद्दों को छोड़कर इस मुद्दे को हाईलाइट करने के पीछे तेजस्वी की एक खास रणनीति है. दरअसल तेजस्वी यादव नीतीश कुमार के कोर वोटर माने जाने वाले राज्य की बहुजन आबादी को ये मैसेज देना चाह रहे हैं कि नीतीश कुमार स्वस्थ नहीं हैं. राज्य की सत्ता नीतीश नहीं बल्कि राज्य के कुछ सवर्ण अधिकारी और नेता चला रहे हैं. इसलिए उनको हटाना जरूरी है. नहीं तो फिर से राज्य की सत्ता पर फिर से सवर्णों का कब्जा हो जाएगा.

मुसलमान वोटों की सदारत का मसला

नीतीश कुमार पर राजद के हमले के पीछे मुसलमान वोटर्स को भी मैसेज देना है. नीतीश कुमार ने हाल में इफ्तार पार्टी बुलाई थी. जिसका कई मुस्लिम संगठनों ने बहिष्कार किया था. क्योंकि वक्फ संशोधन बिल का जदयू ने समर्थन किया था. लालू यादव की बेटी और सारण से लोकसभा चुनाव लड़ चुकीं रोहिणी आचार्य ने इस बहाने नीतीश कुमार की ‘मानसिक हालत’ पर सवाल उठा दिया.

दरअसल पिछले साल नवंबर में बिहार की चार सीटों के लिए उपचुनाव हुए थे. इनमें बेलागंज, तरारी, रामगढ़ और इमामगंज सीट शामिल हैं. इन चुनावों में जदयू मुस्लिमों की पहली पसंद रही. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बेलागंज विधानसभा में लगभग 13 हजार मुस्लिम वोट जदयू को मिले. वहीं राजद को लगभग 9 हजार और 7 हजार वोट प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज के खाते में गए. यानी मुस्लिम वोट बंटता हुआ दिखा. और उनका सबसे बड़ा हिस्सा जेडीयू की ओर गया.

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बीजेपी के साथ रहने के बावजूद मुस्लिमों का एक हिस्सा सुशासन के नाम पर नीतीश कुमार को वोट करता रहा है. वक्फ बिल पर जेडीयू के स्टैंड. और कथित तौर पर नीतीश कुमार का खराब मानसिक स्वास्थ्य. इन दोनों मुद्दों के माध्यम से राजद मुस्लिमों को संदेश देना चाहती है कि नीतीश कुमार को अब कोई और चला रहा है. और उन्होंने बीजेपी-RSS के सांप्रदायिक एजेंडे के सामने समर्पण कर दिया है.

अब तेजस्वी यादव अपने इस दांव में कितना सफल हो पाएंगे ये तो वक्त ही बताएगा. हालांकि नीतीश कुमार को लेकर कोई भी प्रिडिक्शन करना खतरे से खाली नहीं है. लेकिन अब लालू परिवार की तल्खी बता रही है कि उन्होंने कम से कम 2025 विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार के पाला बदलने की आस छोड़ दी है.

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