न दैन्यं न पलायनम्
कर्तव्य के पुनीत पथ को हमने स्वेद से सींचा है, कभी-कभी अपने अश्रु और— प्राणों का अर्ध्य भी दिया है.
कर्तव्य के पुनीत पथ को हमने स्वेद से सींचा है, कभी-कभी अपने अश्रु और— प्राणों का अर्ध्य भी दिया है.
किंतु, अपनी ध्येय-यात्रा में— हम कभी रुके नहीं हैं. किसी चुनौती के सम्मुख कभी झुके नहीं हैं.
आज, जब कि राष्ट्र-जीवन की समस्त निधियां, दांव पर लगी हैं, और, एक घनीभूत अंधेरा— हमारे जीवन के सारे आलोक को निगल लेना चाहता है;
हमें ध्येय के लिए जीने, जूझने और आवश्यकता पड़ने पर— मरने के संकल्प को दोहराना है.
आग्नेय परीक्षा की इस घड़ी में— आइए, अर्जुन की तरह उद्घोष करें : ‘‘न दैन्यं न पलायनम्.’’