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मुंबई सीरियल ट्रेन ब्लास्ट के पीछे पूरी साजिश क्या थी, पाकिस्तान में क्या हुआ था और भारत कौन-कौन आया?

भारत में ये पहली बार था जब सैकड़ों जानें लेने के लिए कुकर बम का इस्तेमाल किया गया था

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साल 2006 में एक के बाद एक आधे घंटे के अंदर मुंबई की 7 लोकल ट्रेनों में बम धमाके हुए थे (फोटो सोर्स- आज तक)

साल 2002. गुजरात में दंगे हुए थे. कुछ साल बीते. जिन्होंने अपनों को खोया था उनके मन में इसकी टीस थी, गम था. इधर साल 2001 में लगे प्रतिबंध के बाद सिमी ने एक नए संगठन का नाम और नकाब पहन लिया था. अब सिम्मी इंडियन मुजाहिदीन में तब्दील हो चुका था. लश्कर-ए-तैयबा और मुजाहिदीन का इरादा किसी बात के बदले का था. साल 2006. जुलाई का महीना. मुंबई के पश्चिम रेलवे में लोकल ट्रेनों की कुल चार लाइनें हैं. अप और डाउन की दो लाइनें तेज रफ़्तार ट्रेनों के लिए और इसी तरह दो लाइनें धीमी रफ़्तार वाली ट्रेनों के लिए. कुछ लोग हैं जिन्होंने महीने भर से ज्यादा वक़्त तक इन ट्रेनों की रेकी की है. जिन्हें पता है कि मुंबई की ज्यादातर लोकल ट्रेनें टाइम पर चलती हैं. लोकल ट्रेन लेट न हो, इसलिए कभी-कभी राजधानी जैसी गाड़ियों को भी रोक कर लोकल को निकाला जाता है. ये ट्रेनें मुंबई की लाइफ लाइन हैं. नौकरीपेशा लोग घर और ऑफिस इन्हीं से आते-जाते हैं. उन लोगों को ये भी पता है कि कौन सी ट्रेन कब और किस स्टेशन से रवाना होती है. शाम 6 बजे के बाद का वक़्त भी इसीलिए चुना गया, क्योंकि इस वक़्त बोगियों में भीड़ ज्यादा होती है. और जितनी ज्यादा भीड़, उतनी ही ज्यादा इन्हें शाबाशी मिलने वाली है. शाम 6 बजकर 23 मिनट पर पहला धमाका होता है. और एक के बाद एक सात अलग-अलग ट्रेनों में टाइमर की टिक-टिक बंद होते ही RDX भरे कुकर फट जाते हैं. भारत में ये पहली बार था जब हिन्दुस्तानियों का लहू बहाने के लिए कुकर बम का इस्तेमाल किया गया था.

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आज 11 जुलाई है और आज की तारीख़ का संबंध मुंबई में ट्रेनों पर हुए आतंकी हमले से है.

साजिश कहां हुई?

पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में बहावलपुर जिला है. मार्च 2006 में लश्कर-ए-तैयबा के आज़म चीमा के बहावलपुर स्थित घर में प्लान बना. सिमी और लश्कर के दो गुटों के बीच. दोनों गुटों के चीफ़ ने मिलकर तय किया कि आजम चीमा की देखरेख में लड़कों को ट्रेनिंग दी जाएगी. इसके बाद करीब 50 लड़के ट्रेनिंग के लिए भेजे गए. इन्हीं में से एक जो बम धमाकों में शामिल था उसने एक भारतीय न्यूज़ मीडिया को इंटरव्यू में बताया,

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'मुझे कराची भेजा गया. सबसे पहले हम इस्लामाबाद गए. वहां एक दिन रुकने के बाद हम मुजफ्फराबाद पहुंचे. वहां पहाड़ के ऊपर उम्मुल कुरा नाम का कैंप था. जहां दौरे-आम नाम का एक कोर्स कराया जाता है. वहां पाकिस्तानी लड़के भी ट्रेनिंग कर रहे थे. हमें उनसे अलग रखा गया. कहा गया कि पूछने पर यही बताना कि कराची से हो ये न कहना कि तुम सब इंडियन हो. उस कम वक़्त की ट्रेनिंग में हमसे AK-47 की ट्रेनिंग दी गयी. लाइट मशीन गन का डेमो दिया गया. एक्सप्लोसिव के बारे में भी हल्की ट्रेनिंग दी गई. लेकिन इसके बाद मई, 2006 में बहावलपुर में हमें दोबारा ट्रेनिंग दी गई, तब हमें एक्सप्लोसिव के बारे में ज्यादा जानकारी मिली. c-3,C-4,TNT वगैरह के बारे में बताया गया. हमसे छोटे छोटे बम बनवाकर ब्लास्ट करवाए गए. इसके अलावा डेटोनेटर, टाइमर्स, स्विच वगैरह के बारे में बताया गया.'

जुलाई में जब बम धमाके हुए उसके बाद एटीएस ने जांच की थी. एटीएस के मुताबिक़ धमाके करने वालों में से एक फैजल शेख 2002 और 2004 में आतंक का पाठ सीखने पाकिस्तान गया था. उस वक्त उससे कहा गया था कि वह भारत से और लड़के भेजे. इसके बाद फैजल ने पहले अपने भाई मुजम्मिल को भेजा. कैम्प में अबू मुजम्मिल और 26/11 के मास्टरमाइंड जकी उर रहमान उर्फ लखवी जैसे कमांडर आया करते थे. फैसल के बाद डॉक्टर तनवीर, सुहैल मोहम्मद शेख, जमीर रहमान शेख, मोहम्मद अली और कमाल अंसारी को ट्रेनिंग के लिए बांग्लादेश और नेपाल के रास्ते पाकिस्तान भेजा गया. बॉर्डर क्रॉस कराने में उनकी मदद की मोहम्मद साजिद नाम के आदमी ने. ट्रेनिंग के बाद इन्हीं 6 लोगों को बम ब्लास्ट करने का जिम्मा दिया जाना था.

मुंबई में कुकर बम तैयार किए गए-

ट्रेनिंग लेने के बाद ये सभी पाकिस्तान से वापस आ गए. एटीएस ने मुकदमे के दौरान कोर्ट को बताया था कि मोहम्मद माजिद नाम का आदमी इन 6 लोगों को बांग्लादेश के रास्ते मुंबई लाया था. जबकि कमाल अंसारी अपने साथ 3 पाकिस्तानियों को भी लाया. लेकिन नेपाल के रास्ते. मुंबई में फैसल ने सभी के रहने की व्यवस्था की. कुछ मुंबई के मलाड इलाके में रहने लगे तो कुछ बांद्रा, बोरीवली और मुम्ब्रा इस्लाके में.

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धमाके के लिए 20 किलोग्राम आरडीएक्स गुजरात में कांडला पोर्ट के रास्ते मुंबई लाया गया था. जबकि बड़ी तादात में मुंबई से अमोनियम नाइट्रेट खरीदा गया. इसके अलावा पाकिस्तान में बैठा आजम चीमा हवाला के जरिए मोहम्मद फैजल को रुपये भेजता था. कुछ पैसा सऊदी अरब से रिजवान डावरे और दुबई के राहिल अताउर रहमान शेख ने भी दिए थे.

इसके बाद आठ प्रेशर कुकर सांता क्रूज़ की दो अलग-अलग दुकानों से ख़रीदे गए. और गोवंडी में शेख मोहम्मद अली के घर जहां ये सब रुके हुए थे. वहां बम तैयार कर लिए गए. इसके बाद हर एक कुकर में दो-ढाई किलो आरडीक्स और साढ़े तीन से चार किलो तक अमोनियम नाइट्रेट भरा गया. लोहे की कीलें भी भरी गईं. और इसके बाद इनमें टाइमर लगाया गया.

धमाके के दिन की कहानी-

इंडियन एक्सप्रेस को इंटरव्यू देने वाले सादिक शेख नाम के आतंकी ने बताया,

‘हम पांच लोग थे, हमने लोकल ट्रेनों का फ़र्स्ट क्लास पास पहले ही निकाल लिया था. उसके अलावा मुंबई ट्रेनों की टाइम टेबल भी हमारे पास था. 11 जुलाई 2006 को हम पांचों ने सुबह सात कुकर्स में एक्स्प्लोसिव भरा. दोपहर में 2 बजे हमने टाइमर में साढ़े 4 घंटे का टाइम सेट किया था. वजह ये थी कि शाम को ऑफिस से छूटने के बाद भीड़ ज्यादा होती है. तकरीबन 4 बजे हम लोग निकले. हमने जो बम बनाए थे, उन्हें हमने बैग में रखा था. सबसे पहले मैं एक बैग लेकर निकला. सिवड़ी से टैक्सी लेकर दादर और वहां से ट्रेन से चर्च गेट पहुंचा. फिर आतिफ, अबू राशिद, साजिद और डॉक्टर शाहनवाज़ बैग लेकर निकले. चर्च गेट पहुंचकर हमने ट्रेनों में बैग प्लांट कर दिए.’

पुलिस के मुताबिक़ 11 जुलाई 2006, यानी आज ही के दिन ये सभी आरोपी 7 गुटों में बंटे. हर गुट में दो भारतीय और एक पाकिस्तानी था. इन्होने सातों ट्रेनों में जो बम प्लांट किए उनमें धमाके होने के वक़्त में 2 मिनट का फासला रखा गया था. एक के बाद एक. दो बातें और तय की गई थीं. एक कि जिन ट्रेनों में धमाके होने हैं उनके बीच में कम से कम दो ट्रेनें और गुजरें. और दूसरा कि सातों धमाके 50 किलोमीटर के दायरे में करने हैं. पहला बम खार रोड-सांता क्रूज वाली ट्रेन में , दूसरा बांद्रा-खार रोड, तीसरा- जोगेश्वरी, चौथा- माहिम जंक्शन, पांचवां- मीरा रोड-भयंदर, छठा- माटुंगा-माहिम जक्शन, और सातवां- बोरीवली की ट्रेन में. बम रखने के बाद ये लोग अगले स्टेशनों पर उतर गए.  

इसके बाद पहला धमाका शाम के ठीक 6 बजकर 23 मिनट पर हुआ था. ये ट्रेन थी खार रोड-सांता क्रूज. टीवी मीडिया तक खबरें आईं कि सिलेंडर फटा है. लेकिन कुछ ही मिनट बाद दूसरा बम धमाका हुआ. बांद्रा-खार रोड के बीच चलने वाली ट्रेन में. खबरें सुनाने और सुनने वाले लोग समझ गए कि ये कोई दुर्घटना नहीं है. सीरियल ब्लास्ट हैं जो पता नहीं कब रुकेंगे. लोगों को 1993 में हुए बम धमाके याद आ रहे थे. आधे घंटे से भी कम वक़्त में सातों कुकर बम फट चुके थे. ब्लास्ट के बाद ट्रेनें रोक दी गईं. सुबह होते-होते धमाकों में जान गंवाने वालों की गिनती शुरू हुई.

माहिम में ट्रेन में 43, सांताक्रूज में 22, मीरा रोड-भयंदर में 32, माटुंगा में 28, खार की ट्रेन में 9 और बोरीवली रेलवे स्टेशन की लोकल ट्रेन में हुए आख़िरी धमाके में 26 लोग मारे गए थे. जबकि घायल होने वालों की तादात 700 से ज्यादा थी. माटुंगा रेलवे स्टेशन वाली ट्रेन में हुए ब्लास्ट में सलीम नाम का एक . पाकिस्तानी आतंकी भी मारा गया. क्योंकि ये वक़्त रहते ट्रेन से उतर नहीं पाया था.

धमाकों के बाद अगले दिन मुंबई की पश्चिमी रेलवे पूरे एक दिन के लिए बंद रही. ये मुंबई के इतिहास में पहली बार था. इस कायराना हमले के तीन दिन बाद लश्कर-ए-तैयबा की विंग लश्कर-ए-कहार ने धमाकों की जिम्मेदारी ली. इसकी तरफ़ से कहा गया कि गुजरात और कश्मीर में जो कुछ हो रहा है हमने उसका बदला लिया है.  

पुलिस की तफ्तीश-

एटीएस ने भी मुकदमे के दौरान कोर्ट में कहा कि लश्कर-ए-तैयबा और आईएसआई ने ये बम धमाके 2002 का बदला लेने के लिए मिलकर करवाए. एटीएस के मुताबिक़, आरोपियों का मानना था कि फर्स्ट क्लास में गुजराती ज्यादा सफर करते हैं, इसलिए फर्स्ट क्लास को निशाना बनाया गया.

धमाके के कुछ घंटे बाद महाराष्ट्र सरकार ने केस एटीएस को सौंप दिया था. उस वक्त के.पी.रघुवंशी एटीएस चीफ़ थे, जबकि मुंबई के पुलिस कमिश्नर ए.एन.राय थे. रघुवंशी ने मुंबई पुलिस के साथ मिलकर 7 टीमें बनाईं. जिनमें सदाशिव पाटिल, सुनील देशमुख, दिनेश अग्रवाल, भीमराव राठौर, प्रसाद खांडेकर, अरविंद बोडकर, इकबाल शेख जैसे उस वक़्त के सबसे काबिल ऑफिसर्स थे.

ATS ने धमाकों के बाद मुंबई के अलग-अलग हिस्सों से 300 से ज्यादा लोगों को हिरासत में लिया था. धमाकों के मलबे से कुकर के हैंडल मिले थे. जिनके जरिए जल्द ही उन दुकानों का पता लग गया जहां से ये कुकर ख़रीदे गए थे. इसके बाद तफ्तीश एक-एक कर सारी कड़ियां जुड़ती गईं. पहली गिरफ्तारी कमाल अंसारी की हुई. और उसके बाद एक-एक करके 12 आरोपी और पकड़े गए. 4 महीने 29 दिन तक चली जांच के बाद मामले में पहली चार्जशीट 30 नवंबर 2006 को दायर की गई, जबकि पूरक चार्जशीट 9 अप्रैल 2007 को. सुनवाई के दौरान एटीएस की तरफ़ से करीब 200 गवाह और आरोपियों की तरफ से भी बचाव में करीब 50 गवाह लाए गए. इतने गवाह किसलिए? कहा गया था कि इस केस में कई ऐसे लोगों को भी आरोपी बनाया गया था, जिनका ब्लास्ट से कोई लेना-देना नहीं था.  

गिरफ्तार हुए 13 आरोपियों की तरफ़ से कुछ मानवाधिकार संगठनों को पत्र लिखकर कहा गया कि पुलिस इस मामले में असली गुनाहगारों को नहीं पकड़ सकी है. और उनके साथ थर्ड डिग्री का इस्तेमाल करके जबरदस्ती जुर्म क़ुबूल करवाया गया है.

इसके बाद 11 सितंबर, 2015 को मकोका कोर्ट के जज Y.D. शिंदे ने 13 में से 12 आरोपियों को दोषी करार दिया. जबकि एक आरोपी अब्दुल वाहिद को अदालत ने बरी कर दिया था.

30 सितंबर 2015 को कोर्ट ने 5 आरोपियों को फांसी और 7 को आजीवन कैद की सजा सुनाई.  

फांसी की सजा पाने वालों में 41 साल का कमाल अहमद अंसारी बिहार के मधुबनी का रहने वाला था, जबकि मोहम्मद फैसल अताउर्रहमान शेख मुंबई से, एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी ठाणे से, नवीद हुसैन खान सिकंदराबाद से, और आसिफ जलगांव का रहने वाला था. इन सभी पर UAPA, MCOCA और रेलवे एक्ट सहित IPC की कई धाराओं में मुक़दमे चले थे. इन्हीं पांचों ने ट्रेनों में बम प्लांट किए थे. इनके अलावा तनवीर अहमद अंसारी ने बम प्लांट करने की पूरी प्लानिंग तैयार की थी. मोहम्मद मजीद मोहम्मद शफ़ी और शेख मोहम्मद अली आलम ने बम तैयार किए थे. मोहम्मद साजिद ने बमों के लिए सामान जुटाया था. इनके अलावा मर्गब अंसारी, मुजम्मिल अताउर्रहमान शेख, सुहैल महमूद शेख और जमीर अहमद शेख को भी कोर्ट ने धमाकों के लिए जिम्मेदार ठहराया था. इन सभी को UAPA, MCOCA और IPC की धाराओं के तहत आजीवन कैद की सजा सुनाई थी.

फैसला क्या हुआ?

मामले में ATS ने सिमी के शामिल होने की भी बात कही थी. जबकि उस वक़्त क्राइम ब्रांच चीफ़ रहे राकेश मारिया ने कहा था कि ये लोग इंडियन मुजाहिदीन से जुड़े थे. फैसल और मुजम्मिल जिन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी उनके पिता अताउर्रहमान ने मकोका कोर्ट के फैसला सुनाए जाने के बाद कहा था,

‘ये जजमेंट नहीं बल्कि पॉलिटिकल डिसीजन है. फैक्ट्स कहां हैं? ATS ने अपनी खुद की कहानी बुनी है.’

इसके बाद मामला हाईकोर्ट में गया. साल 2015 से लेकर अब तक इसका कोई नतीजा नहीं आ सका. एक तरफ़ NIA की तरफ़ से चार्जशीट दाखिल की जाती रहीं और दूसरी तरफ़ आरोपियों के पक्ष से अपने बचाव में अपील. केस की जांच करने वाली कई एजेंसीज़ ने कोर्ट में जो दस्तावेज पेश किए थे. बचाव पक्ष ने उन्हें भी अपील का आधार बनाया.

कुलमिलाकर धमाकों में मारे गए 189 लोगों के परिवारों को आज भी कोर्ट के फैसले और न्याय का इन्तजार है.  

 

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