The Lallantop

पार्टनर, वो लड़की तो अंग्रेजी बोलती है, हमसे न हो पाएगा: मोहम्मद शाहिद

वो अस्सी के दशक का सबसे कमाल खिलाड़ी था. भारत को हॉकी का अंतिम अोलंपिक गोल्ड जिताने वाला. लेकिन हम उसे भूल गए.

Advertisement
post-main-image
फोटो - thelallantop
मैंने मोहम्मद शाहिद को कभी खेलते नहीं देखा. सच बात तो ये है कि उनकी बीमारी की सूचना आने से पहले तक मैंने उनका नाम भी नहीं सुना था. लेकिन मैंने नोटिस किया कि उनकी असमय बीमारी से उनके जाने की सूचना तक, मेरी सोशल मीडिया टाइमलाइन पर वो एक ख़ास उमर वाला सेक्शन है, जो लगातार उनकी बातें कर रहा है. ये था मुझसे थोड़ा उम्रदराज़ तबका. वो, जिनकी कनपटियों पर सफेदी झांकने लगी है. बातें जिनमें कुछ ख़ास पास होने वाला उत्साह छुपा है. बातें जिनमें कुछ अपना खो जाने वाली उदासी घुली है.

ये तमाम नाम वो थे जो अस्सी के दशक में जवान हो रही पीढ़ी के सदस्य थे. ये वो लोग थे जिन्होंने मोहम्मद शाहिद को खेलते देखा था. साक्षात. बड़े भाई के दोस्त बता रहे थे कि कैसे वो लखनऊ में दीवार फांदकर शाहिद का खेल देखने जाया करते थे. खेल पत्रकारों की पुरानी पीढ़ी उन्हें जिस मोह से याद कर रही थी, उस प्रेम को देखकर जलन होती थी. हमारी पीढ़ी ने शायद अपने प्यारे खेल अौर खिलाड़ियों से ऐसा सच्चा अौर खरा प्यार नहीं कमाया, अौर कमाया भी तो ज़िन्दगी के किसी अंधे मोड़ पर खो दिया.

इनमें ही एक नाम शाहरुख खान का था. नायक, जिसने कभी बचपन में मोहम्मद शाहिद जैसा हॉकी प्लेयर बनना चाहा होगा. इनमें ही एक नाम हर्षा भोगले का था, जो हम जैसे अनपढ़ों को बता रहे थे कि वो खिलाड़ी अपने फन में बेस्ट था. राहुल बोस याद कर रहे थे उस अस्सी के दशक में खेली आक्रमण तिकड़ी को, जिसने कभी भारत को खेलों की दुनिया में सर्वश्रेष्ठ कहलाने का मौका दिया.

Advertisement
https://twitter.com/iamsrk/status/755716841729691648 https://twitter.com/bhogleharsha/status/755662683136024576 https://twitter.com/RahulBose1/status/755694495577075712 मैं रुककर आज के अखबारों, खबरों को टटोलने लगा. उस खिलाड़ी के बारे में जानने के लिए जिसके स्मृतिशेष से समाचार जगत भरा था, लेकिन जिसकी स्मृतियों से मेरी यादें खाली थीं. चंद उजले किस्से मिले. उनके सुनाए, जो मैदान पर उनके हमसाया थे. उनके लिखे, जिन्होंने मोहम्मद शाहिद को खेलते देखा था. साक्षात. मैं वही किस्से आपके लिए समेट लाया. पहले वे पढ़ें. Mohd. Shahid

1. ड्रिबलिंग का चैम्पियन

हॉकी के मैदान में मोहम्मद शाहिद अपने बाएं हाथ का कमाल दिखाने को मशहूर थे. वे स्वाभाविक खब्बू प्लेयर थे. गेंद लेकर तेज़ी से विपक्षी खिलाड़ियों को छकाते हुए आगे बढ़ते अौर गोल तक पहुंचकर ही रुकते. हॉकी में अटैक करते खिलाड़ी का नैचुरल टर्न दायें होता है अौर डिफैंडर उसे ही एंटीसिपेट करते हुए उनका रास्ता रोकता. शाहिद की चालाकी ये थी कि वो पहले दायें मुड़ने का फेक मूव बनाते, अौर जब डिफेंडर उनके झांसे में आ जाता तो फौरन अपने नैचुरल टर्न बाएं मुड़कर फुर्ती से निकल जाते.

2. मैच के पहले किशोर कुमार के गाने गाता था

मोहम्मद शाहिद जितने अच्छे खिलाड़ी थे. उतने ही कमाल के संगीत प्रेमी इंसान थे. ड्रेसिंग रूम में घूमते हुए उनकी ज़बान पर या तो किशोर कुमार का कोई फड़कता हुआ गाना होता था, या मोहम्मद रफ़ी की कोई उदासी भरी गज़ल. बड़े मैचों के पहले जहां बाक़ी खिलाड़ी तनाव की रेखाअों से घिरे, चुपचाप बैठे मिलते, मोहम्मद शाहिद की ज़बान पर सदा कोई तराना होता. शायद इस मायने में भी वो पक्के बनासी थे. दूसरे साथी को उदास देखते तो कहते, 'तुम क्यों फिकर करते हो. मेरे को बॉल दे देना. फिर मैं खेलूंगा.' शिवरात्रि के दिनों में अगर अपने शहर में होते तो वहीं गंगा घाट पर बैठ जाया करते अौर  सबके साथ मिलकर घंटों भजन गाया करते, सुना करते.

3. ज़फर इक़बाल के साथ की जुगलबन्दी

जवान मोहम्मद शाहिद गोल मारने का चैम्पियन नहीं था, गोल बनाने का चैम्पियन था. इस मायने में वो आज के लियोनल मैस्सी का बंधु था. अपनी जगप्रसिद्ध ड्रिबलिंग से मिडफील्ड को छकाते हुए अटैकिंग लाइन में खेल रहे साथी खिलाड़ियों ज़फ़र इक़बाल अौर मेरवन फर्नांडिस तक गेंद पहुंचाना उनकी ज़िम्मेदारी थी. आक्रमण पंक्ति में उनके जोड़ीदार ज़फ़र इकबाल लिखते हैं कि उनके साथ खेलना दर्शनीय तो था, लेकिन फ्रस्ट्रेटिंग भी था. वजह, "अरे गेंद उनके पास होती तो वे पास ही नहीं करते. पिच के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक खुद ही विपक्षी खिलाड़ियों को छकाते ऐसे गेंद ले जाते जैसे खाली मैदान में खेल रहे हों". ज़फर मज़ाक में कहते थे कि इसके साथ तो मैं कभी डिसकशन में भी ना जाऊं, क्योंकि एक बार माइक इसे मिल गया तो ये कभी मुझे पास नहीं करेगा!

4. आधी रात की प्रैक्टिस ने बनाया चैम्पियन

बेचैन आत्मा ऐसी थे कि रातों में सोते हुए भी दिमाग़ से हॉकी की हरी पट्टी खिसकती नहीं थी. साथी खिलाड़ी परेशान रहते थे. शाहिद अचानक आधी रात को उठ जाते अौर गेंद को दीवार से मार-मार कर प्रैक्टिस करने लगते. आस-पास के दूसरे कमरों में रुके खिलाड़ी नाराज़ होते, उन्हें कोसते, चिल्लाते. लेकिन वो भी ज़िद्दी. ना सुनते, ना मानते. तभी मानते जब रात 2-3 बजे जाकर खुद थक जाते, अौर सो जाते. उनके कप्तान रहे वी भास्करन बताते हैं कि साथी खिलाड़ियों ने बाद में उनकी इस रात में प्रैक्टिस की आदत से खुद ही दोस्ती कर ली थी अौर उसे ही लोरी मानकर आराम से सोने लगे.

5. यार, शादी तो कर लूंगा, लेकिन अंग्रेज़ी में बात कैसे होगी!

शाहिद उस दौर की हॉकी के पोस्टर ब्वॉय थे. लड़कियों का मरना तो लाज़मी था. स्टाइलिश थे. मैदान पर बिजली थे. मुखर थे. लेकिन खांटी बनारसी शाहिद का अंग्रेज़ी में हाथ तंग था. फिर एक दिन खुद भारतीय महिला टीम की खिलाड़ी ने आगे बढ़कर उन्हें शादी का प्रस्ताव दे दिया. लगते भी थे शाहिद 'लव मैरिज' मैटीरियल. लेकिन वो इनकार हो गए. वजह पूछने पर मैदान पर अपने जोड़ीदार जफ़र इक़बाल को उन्होंने बताया, "यार, वो तो सिर्फ़ अंग्रेज़ी बोलती हैं. हमसे तो बोला जाएगा नहीं." वैसे बाद में जब शादी हुई मोहम्मद शाहिद की तो थी वो भी लव मैरिज ही.

6. जब पाकिस्तानी खिलाड़ी की टांग के नीचे से बॉल निकाली थी

पाकिस्तानी खिलाड़ी हसन सरदार से उनकी राइवलरी तो हॉकी का लेजैंड है. मैदान के भीतर वो कठोर प्रतिद्वद्वी थे, लेकिन मैदान के बाहर उनमें दोस्ती का रिश्ता था. लेकिन मैदान में शाहिद सरदार को छकाने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे. एक बार तो उन्होंने अपनी ड्रबलिंग के दौरान बॉल पहले हसन सरदार के पैर के नीचे से निकाली अौर उनके पीछे मुड़ने से पहले ही वापस अपनी अोर खींच ली. हसन सरदार मैदान पर ही मूरख बन गए थे. ऐसा था शाहिद का जलवा.

पता रहे, ये हसन सरदार वही हैं जिन्होंने 1982 के दिल्ली एशियन गेम्स फाइनल में भारत की 7-1 से शर्मनाक हार की कहानी लिखी थी. वो इस मैच के हैट्रिक होल्डर थे अौर 1880 की अोलंपिक चैम्पियन टीम के पतन की कहानी यहीं से लिखनी शुरु हुई थी. मोहम्मद शाहिद भी इस फाइनल का हिस्सा थे. अपने दर्शकों के सामने ये हार अपमानजनक थी. इस मैच में हार से वो इतने उदास हुए कि उन्होंने हसन सरदार से उस दिन तक दोबारा बात नहीं जब तक अॉस्ट्रेलिया में अगले टूर्नामेंट के फाइनल में भारत ने पाकिस्तान को हरा नहीं दिया. "ये होना था असली रिजल्ट एशियाड का" शाहिद ने मैच जीतने के बाद सरदार से कहा था.


Mohd. Shahid

अचानक समझ आया, कि यह सिर्फ़ एक खिलाड़ी का स्मृतियों से जाना नहीं है. मोहम्मद शाहिद दरअसल उस हॉकी के खेल के अंतिम प्रतिनिधि खिलाड़ी थे, जिसे भारत ने जिया अौर जीता. मोहम्मद शाहिद की कहानी अस्सी के दशक की कहानी है, जब हिन्दुस्तान में राष्ट्रीय खेल हॉकी का सितारा डूब रहा था, अौर क्रिकेट का सूरज ऊपर चढ़ रहा था. 1980 में भारत ने अपना अंतिम हॉकी अोलंपिक गोल्ड जीता अौर 1983 में पहला क्रिकेट विश्वकप.

Advertisement

उधर खुद हॉकी का खेल भी बदल रहा था. मोहम्मद शाहिद ड्रिबलिंग के चैम्पियन थे, लेकिन हॉकी का खेल अब वो नहीं रहा था, जो पहले था. एस्ट्रोटर्फ़, एरियल शॉट्स, लम्बे पास इस खेल को कुछ अौर ही चीज़ बना रहे थे. ऐसा कुछ, जिससे उपमहाद्वीप के खिलाड़ी परिचित नहीं थे. एशियाई हॉकी का दौर जा रहा था अौर तकनीक आधारित यूरोपियन हॉकी अपना रंग जमा रही थी.

मोहम्मद शाहिद उस पुराने दौर की हॉकी स्टाइल के सबसे सफ़ल, लेकिन शायद सबसे आखिरी प्रतिनिधि थे. वो एक असफ़ल टीम के सफ़ल खिलाड़ी थे. ब्रायन लारा की तरह वो एक महान विरासत का अंतिम अवशेष थे. इसका इससे अच्छा उदाहरण अौर क्या होगा कि 1986 में लंदन विश्वकप में जब उन्हें 'प्लेयर अॉफ दि टूर्नामेंट' चुना गया, खुद उनकी टीम हिन्दुस्तान 12 टीमों की प्रतियोगिता में 12वें नंबर पर थी. ये सच है कि अस्सी के दशक में उन्होंने हॉकी के मैदान पर सबसे चमकीला करियर जिया. लेकिन आठ ही साल के अन्तरराष्ट्रीय करियर के बाद वो वापस लौट गए. उस समय वो तीस साल के भी नहीं थे.

हॉकी के मैदान का सबसे तेज़ खिलाड़ी. लेकिन उसने भी आखिर उस शहर में ही चैन पाया, जो 'गति के आख्यान में फुर्सत का खंड' था. तमाम बुलावों के बाद भी वो कभी बनारस नहीं छोड़ पाए. गए भी तो उसका बिछोह नहीं सहन कर पाए.

Advertisement

आज उन्हें याद करते हुए तमाम चाहनेवालों ने इस बात पर दुख जताया कि ऐसे कमाल प्लेयर की ढूंढने पर भी यूट्यूब पर एक भी वीडियो नहीं मिलती है. याने जिन्होंने उन्हें साक्षात खेलते नहीं देखा, उनके पास यह जानने का कोई ज़रिया नहीं कि वो क्या चमत्कार थे. लेकिन इस तथ्य में एक संतोष भी है. कि अब वो किसी सिम, हार्ड डिस्क या पेन ड्राइव में सिमटी डिज़िटल याद भर नहीं. वो सिर्फ हमारी यादों में रहेंगे. सुरक्षित. मैं याद करता हूं झुंपा लाहिड़ी के उपन्यास 'नेमसेक' में आए उस क्षण को, जहां पिता अशोक गांगुली छोटे से गोगोल को कहते हैं, 'कैमरा नहीं है. गोगोल, इसका मतलब ये कि अब तुम्हें ये पल हमेशा याद रखना होगा. कि हम दोनों साथ एक ऐसी जगह आए थे, जिसके आगे अौर कोई राह नहीं थी.'

मोहम्मद शाहिद, आप खास हैं. आप अब हमेशा आपके चाहनेवालों की स्मृतियों में रहेंगे. सबसे करीब.

Advertisement