
ये आपको जरूर पढ़ना चाहिए. क्योंकि ये मेज पर बैठ की गई जुगाली नहीं है. बौद्धिक लंतरानी नहीं है. इसमें एक किस्म की गर्माहट है. जैसे कोई अपना परदेस से लौटा हो. और फिर खुलते सूटकेस के साथ किस्सों की भी तह खोल सामने रख रहा हो. दी लल्लनटॉप में हम इसी किस्म की पत्रकारिता करने का ख्वाब देखते हैं. आंखों देखी. भारी शब्दों से मुक्त. बेहद अपनी. कच्ची पक्की जैसी भी हो, पर नितांत सच्ची. जिसमें किस्से बयां हों. और उनके दरमियान जिंदगी के सबक या कि सच भी. इस बार की पोस्ट संजय उवाच का मॉर्डन अवतार है. भूमिका हमें एक रैली में ले चल रही हैं. बर्नी सैंडर्स की चुनावी रैली. वहां के नजारे. दावे. वादे. आइए अब चलते हैं. भूमिका की नजर के सहारे. न्यू हेवन. बिल और हिलेरी क्लिंटन की पढ़ाई का शहर. जहां उन्हें चित्त करने के इरादे से पहुंचे हैं, बर्नी सैंडर्स. - सौरभ द्विवेदी
'कल शाम चार बजे से मजमा है', मेरे हाउसमेट रेने ने बताया. तभी दूसरे हाउसमेट जॉर्ज ने कहा, 'हां, है तो चार बजे से पर पास से देखना और सुनना है तो थोड़ा पहले ही जाना पड़ेगा'. शनिवार की उबासी भरी दोपहर में अचानक से उत्साह आ गया. रेने और जॉर्ज दोनों ही डेमोक्रैट पार्टी के प्रेसिडेंट प्रत्याशी के एक दावेदार बर्नी सैंडर्स के बारे में बात कर रहे थे. मुझे भी शुक्रवार रात को दोस्तों के साथ गप मारने के दौरान पता चला था कि बर्नी रविवार को न्यू हेवन (मैं जिस शहर में रहती हूं) आने वाले हैं. उनकी रैली है एक पार्क में. मंगलवार को कनेक्टिकट (जिस प्रान्त में न्यू हेवन शहर है) स्टेट में डेमोक्रैट पार्टी के प्राइमरी चुनाव होने वाले हैं. यानि वो राउंड जिसमें एक पार्टी अपने ही उम्मीदवारों के बीच चुनाव करती है. ताकि ये तय हो सके कि प्रेसिडेंट के चुनाव के लिए दूसरी पार्टी के प्रत्याशी के विपक्ष में कौन सा उम्मीदवार खड़ा होगा/ खड़ी होगी? रिपब्लिकन पार्टी का उम्मीदवार तो लगभग तय हो ही चुका है, डॉनल्ड ट्रम्प. अब डेमोक्रैट पार्टी को हिलरी क्लिंटन और बर्नी सैंडर्स के बीच चुनाव करना है. और उसमें एक पड़ाव है कनेक्टिकट. इसी सम्बन्ध में बर्नी सैंडर्स न्यू हेवन आने वाले थे. अपने लिए प्राइमरी चुनाव में वोट मांगने. अब यहां तक वो पहुंच ही रहे थे तो मैंने भी तय कर लिया कि जायज़ा तो लेना ही चाहिए.
फील द बर्न के लिए घंटों पहले कतार
रविवार के सर्द दिन में खिलखिलाती धूप ने काम आसान कर दिया. घर बैठने का मन वैसे भी नहीं कर रहा था. सुबह के काम निपटाए जा रहे थे तभी रेने ने याद दिलाया,'आर यू गोइंग टू फील द बर्न?' इसी फ्रेज से बर्नी सैंडर्स का कैम्पेन चला और बढ़ा है, 'फील द बर्न'. मैंने मुस्कुरा कर हां कहा. वैसे भी खिड़की से धूप छनकर कमरे में खेल ही रही थी. 'पर बर्नी तो सात बजे के पहले नहीं आएगा और ठीक ठाक जगह पर खड़े होने के लिए साढ़े तीन बजे तक तो घर से निकलना ही पड़ेगा', रेने ने फिर टोका. मैंने उंगली पर घंटे गिने. रविवार की छुट्टी के चार घंटे बर्नी के नाम? तो काम और आराम कब होगा? फिर एक और बार सोचा. हाथ में किताब लेकर जा सकती हूं. पढूं या न पढूं. आश्वासन तो रहेगा ही. तो काम निपटाकर तीन दोस्तों के साथ चल पड़ी. पर उनको ये नहीं बताया कि रियल एक्शन सात बजे से है. क्या पता वो नदारद हो जाएं? रैली का आयोजन शहर के डाउन टाउन इलाके में फैले एक पार्क में था. पहुंचे तो पता चला कि दो बजे से ही लोग लाइन लगा कर खड़े हुए हैं. काफी लम्बी कतार पार्क का आधे से ज़्यादा चक्कर काट ही चुकी थी. संयम का फल हमें भी मिला. सवा चार बजे तक बर्नी सैंडर्स जिस मंच से बोलने वाले थे, उसके काफी करीब जाकर मैंने भी जगह जमा ली. किताब खोली और धूप की तरफ पीठ कर के बैठ गई.
लेओ. नेता जी के नाम का दिल वाला टैटू भी बनवा लिया
कहीं ताश पार्टी तो कहीं डांस जारी
मेरे आसपास की हलचल अनोखी थी. कोई ताश के पत्ते बांटने में लगा पड़ा था. कोई अपनी दो छोटी बेटियों के साथ कैम्पेन के गानों पर नाच रहा था. कोई गिटार की धुन पर बर्नी के लिए गीत बना रहा था. कोई बर्नी के नाम की टी-शर्ट और टोपी बेच रहा था. उधर आयोजक मंच तैयार करने में लगे थे. वॉलंटियर भीड़ में घूम घूमकर और वॉलंटियरों की दरकार कर रहे थे. उजले मौसम की नरम गर्मी में कुछ लोग पिकनिक जैसा आनंद उठा रहे थे और कुछ मेले जैसा. पर्चे बंट रहे थे और किस्सों की अदला बदली भी हो रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे कोई राजनीतिक रैली नहीं बल्कि ग्रैंड पार्टी हो. जहां सब लोग मस्ती करने के लिए इकठ्ठा हुए हों. मैंने किताब की तरफ फिर ध्यान लगाया और सर झुकाकर बैठ गयी. सात बजने में अभी समय था. घण्टे भर में हरकत बढ़ने लगी. स्टेज पर भी हलचल होने लगी. देखते ही देखते पूरे पार्क में सैलाब उमड़ पड़ा था. स्टेज पर आयोजन में मददगार बर्नी समर्थक इकठ्ठा हो चुके थे. हर किसी के हाथ में बर्नी के समर्थन में झण्डा या प्लेकार्ड या बर्नी की रूपरेखा - कुछ न कुछ ज़रूर था. एक लहरनुमा समुन्दर जैसे स्टेज पर जा कर बैठ गया हो. बर्नी के इंतज़ार से पहले. जैसे फिल्म के इंतज़ार के पहले ट्रेलर आते हैं. तीन चार लोगों ने आकर अपनी बात रखी. सहजता और ईमानदारी के साथ.अवैध रूप से अमेरिका आई लड़की का भाषण
मैक्सिको से 2007 में अवैध रूप से आई एक लड़की ने अपनी कहानी बताई. किस जतन से वो अब येल पहुंच गई है. और कैसे वो कभी भी शिक्षा के लिए किसी सरकारी अनुदान का लाभ नहीं उठा पाई पर उसने हार नहीं मानी. और चूंकि बर्नी सैंडर्स ने वादा किया है कि वह स्कूली और कॉलेज की शिक्षा को मुफ्त करा देंगे, इसलिए वह बर्नी का साथ दे रही है. उसके बाद कनेक्टिकट के सेनेटर गैरी विनफील्ड ने अपनी बात रखी. अमरीका के मशहूर कलाकार माइकल स्टाइप का भी नंबर आया. उन्होंने बर्नी का समर्थन करते हुए उन्हें स्टेज पर पुकारा. और उसके बाद ऐसा लगा जैसे एक घंटे में मौसम की नरमी बिजली में बदल गयी हो. लगभग पांच हज़ार समर्थकों की भीड़ ने जब ताली बजानी शुरू की तो बिजली गर्जन में तब्दील हो गई.मीडिया ने बर्नी को नकारा तो फिर सपोर्ट कहां से आया
राजनैतिक विश्लेषज्ञों ने बर्नी सैंडर्स की हिलरी क्लिंटन से हार लगभग तय ही कर दी है. बहुत लोगों को तो यही आश्चर्य है कि सैंडर्स की मुहिम इतनी दूर पहुंची ही कैसे? मेरे भारतीय दोस्त अक्सर सैंडर्स की तुलना अरविन्द केजरीवाल से करते हैं. एक तरह का अचम्भा. ये हुआ तो कैसे? जिस प्रत्याशी का एजेंडा अमरीकी पूंजीवाद के सर्वव्यापी प्रतीकों की अवहेलना को अपना केंद्रबिंदु समझता है, वो इतना प्रभावशाली कैसे हुआ? ज़्यादातर लोग ये भी मानते हैं कि मीडिया ने बर्नी का साथ नहीं दिया. उनके एजेंडा को इतना क्रांतिकारी बना डाला कि लोगों को वह लगभग अविश्वसनीय लगने लगा. इसके बावजूद नॉमिनेशन के आखिरी समय तक बर्नी ने हिलरी की नाक में दम क्यों कर रखा है? अगर इतने सवालों ने घेर कर रखा हुआ है तो पांच हज़ार लोग और न थमने वाली तालियां भी कहां से आईं ? शायद ये सवाल बेतुका था. एक शहर के जमावड़े से किसी के राजनीतिक दांव-पेच का हिसाब कैसे हो सकता है? क्या पता बर्नी के भाषण में ही किसी उत्तर की सम्भावना हो?
75 साल के जवान आदमी बर्नी के वनलाइनर
बर्नी सैंडर्स 75 साल के हो चुके हैं. इतना प्रचार करने से थक तो गए ही होंगे. ऐसा अंदाजा लगाकर मैं बैठी हुई थी. पर बर्नी के 'हैलो' में ही काफी ऊर्जा थी, उस किस्म की जो उत्साह से भरी हो. वह बोले, 'आज कल की राजनीति में हम कुछ बहुत अनोखा कर रहे हैं. हम सच बोल रहे हैं.' आंकड़ों के मुताबिक बर्नी सैंडर्स के चाहने वालों में अमेरिकी युवाओं का बड़ा तबका है. ये वो नई पीढ़ी है, जो नए के स्वागत को बेताब है. जो मुल्क की दो पार्टी वाली राजनीति से निराश है. इन्हें उम्मीद है कि ये कैंडिडेट, जिसे वह सुनने आए हैं, कुछ अलग होगा. ज़ाहिर है कि बर्नी इस बात को भांप चुके हैं. वह अपने भाषण में एक नहीं, अनेक बार इसी नब्ज़ को पकड़ते रहे. कुछ अलग करके दिखाऊंगा, कुछ हट के.
अमरीका में बढ़ती हुयी गैर-बराबरी पर धावा बोलते हुए सैंडर्स ने बड़ी ही आसानी से कहा, 'बराबरी कोई क्रांतिकारी विचार नहीं है, ये तो मीडिया वालों ने आपका दिमाग भर दिया है, नहीं तो यह देश बना ही बराबरी के वादे पर था. ये न तो क्रांतिकारी है और न ही असंभव." इतना सुन तालियां और भी तेज़ हो चलीं.
सैंडर्स जहां जाते हैं, वहां की बात तो करेंगे ही. उन्होंने येल यूनिवर्सिटी के अंतर्राष्ट्रीय दबदबे के साथ-साथ ही येल से ही कुछ मील दूर ही रहने वाले उन नौजवानों और बच्चों की बात भी एक ही सांस में कर डाली, जो कभी आईवी लीग वाली इस प्रतिष्ठित मगर महंगी यूनिवर्सिटी में पढ़ने का सपना भी नहीं देख सकते. बर्नी ने कनेक्टिकट प्रान्त से काम बंद कर सरकती हुई इंडस्ट्रियों की भी बात की, जो सस्ते लेबर के फेर में दूसरे देशों में निवेश कर रही हैं. जाहिर है कि इसके चलते अमरीका में रोज़गार कम हो रहा है. बर्नी के कटाक्ष ने लोन लेकर पढ़ाई कर रहे स्टूडेंट्स को खूब राहत दी. उन्होंने कहा, 'क्या पढ़ाई करने की इच्छा करने वाले लोगों को दण्ड देना चाहिए? क़र्ज़ का दण्ड? उच्च शिक्षा को मुफ्त करना कोई क्रांतिकारी बात नहीं है. ये तो हमारे देश की विडम्बना है कि जो काम बाकी देशों में बड़ी सरलता से और कई समय से होता आ रहा है. उसे हम क्रांतिकारी समझते हैं.' बर्नी छक्के पे छक्का मारे जा रहे थे और भीड़ ताली पे ताली.
शाम का उजाला धीरे-धीरे अंधेरे में बदल रहा था. कुछ के सर टोपी से ढकने लगे थे. काफी लोगों के जैकेट-स्वेटर कमर से कन्धों पर आ गए थे. अफ्रीकी-अमरीकी समुदाय की बात बर्नी ने जैसे ही छेड़ी, भीड़ ने ताली से नहीं, गहरी सांस की आवाज़ से हामी भरी. बेरोज़गारी, गरीबी, अनियमित पुलिस बल का इस्तेमाल, बेघरी, ड्रग्स की विषमता. बर्नी ने एक एक कर समस्याएं गिनानी शुरू कीं और उनके समाधान भी बताते गए. लोग एक दूसरे से फुसफुसा कर कह रहे थे कि टीवी पर ये सारी बातें सुनी हैं. पर यहां सामने सुनकर एक अलग किस्म का आश्वासन और उत्साह मिल रहा है. बर्नी-बर्नी की पुकार लगा लगाकर कुछ के गले बैठ गए थे पर दिल नहीं.
बुजुर्ग क्यों तोड़ते हैं अपनी दवा की गोली दो हिस्सों में
रिपब्लिकन पार्टी पर सीधे निशाना मार कर बर्नी ने कहा, 'वे पारिवारिक मूल्यों की बात करते फिरते हैं, पर ये नहीं चाहते कि औरतों का अपने शरीर पर हक हो. या फिर परिवारों को हेल्थकेयर का फायदा मिले. या फिर बीमारी के समय मेहनताने सहित छुट्टी मिले. ऐसे पारिवारिक मूल्यों का क्या फायदा?' इस बार ताली और आवाज़ें और तेज़ गूंजीं. अंधेरे में जैसे जैसे रोशनी बर्नी के चेहरे पर चमक रही थी, उनका उत्साह भी वैसे-वैसे बढ़ता जा रहा था. वह बोले, 'आपको इस बात का अचम्भा नहीं है कि हमारा देश दुनिया में सबसे अमीर देश है पर फिर भी यहां का पांच में से एक इंसान वो दवाई नहीं खरीद सकता जो डॉक्टर उसको पर्चे पर लिख कर देता है. या फिर ये कुरूप सच कि हमारे बुज़ुर्ग दवाई की एक गोली के दो टुकड़े करके रखते हैं क्योंकि उनके पास और दवाई खरीदने के पैसे ही नहीं हैं.' लोगों ने इस दलील पर हामी भरी और एक बार फिर 'बर्नी, बर्नी' के नारे लगाने शुरू कर दिए.बिल और हिलेरी यहीं से पढ़ाई कर आगे बढ़े हैं

येल यूनिवर्सिटी के दिनों में बिल और हिलेरी. फोटो- ट्विटर से
मंगलवार के प्राइमरी चुनाव में बहुत देर नहीं है. बर्नी ने पूरे कैम्पेन में एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रखा है. मज़े की बात तो यह है कि हिलरी क्लिंटन खुद हमारी येल यूनिवर्सिटी की ग्रेजुएट हैं. उन्होंने यहां वकालत की पढ़ाई की है. उनकी बिल क्लिंटन से मुलाकात भी कैंपस में ही हुई थी. पूर्व राष्ट्रपति बिल भी येल में वकालत के छात्र थे. खबर मिली कि शनिवार शाम को हिलरी भी न्यू हेवन आईं थी. पर उनकी सारी मुलाक़ातें बंद दरवाज़ों के पीछे, आमंत्रण सहित हुई थीं. हिलरी और बिल क्लिंटन की न्यू हेवन में मुलाक़ात कुछ दशकों पहले हुई थी. पर आज न्यू हेवन की मुलाक़ात एक नए किस्म की राजनीति से या ईमानदारी से कहें तो एक प्रकार की नई राजनैतिक सम्भावना के साथ हुई. या तो वो सम्भावना केवल एक भावना के प्रतिरूप में रह जायेगी. या फिर कुछ और संभावनाओं से जुड़कर एक नई दिशा बन जायेगी. दिन के उजाले और गर्मी से गुज़रकर और बर्नी सैंडर्स का भाषण सुनने के बाद, गहराती हुई रात की ठंडी हवा में मुझे भी एक सिहरन सी महसूस होने लगी.
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अमेरिका में हिंदुओं के कमल पर सवार ट्रंप
येल यूनिवर्सिटी में उस दिन हिंदी कूल हो चली थी