The Lallantop

इनके लिए मायावती ने अपने एक मजबूत नेता की क़ुरबानी कर दी!

अब आगामी चुनावों में मायावती को ये तीन नेता बचाएंगे?

post-main-image
मायावती अब पार्टी में फेरबदल कर रही हैं.
मायावती फिर से खबरों में हैं. दो दिनों पहले उनकी पार्टी खबरों में थी. क्यों? क्योंकि पार्टी के राज्यसभा सांसद सतीशचंद्र मिश्रा ने खुलकर कश्मीर में धारा 370 में बदलाव लाने का समर्थन किया था. कारण गिनाया था कि अम्बेडकर भी यही नहीं चाहते थे और लद्दाख में बसे बौद्धों के लिए ये ज़रूरी है. लेकिन अब सत्र ख़त्म है और अगले सत्र के पहले ही मायावती ने तैयारी शुरू कर ली है.
क्या तैयारी? मायावती ने लोकसभा में बसपा नेता दानिश अली से बागडोर लेकर श्याम सिंह यादव को दे दी. अब श्याम सिह यादव लोकसभा में बसपा की ओर से ज्यादा बोलते-बतियाते दिखेंगे. उसके अलावा मुनकाद अली हैं. जो आरएस कुशवाहा की जगह प्रदेश अध्यक्ष की जगह लेंगे. और अब हैं अम्बेडकरनगर से पिस्टल पाण्डेय. जो लोकसभा में डिप्टी लीडर बनकर बसपा की ओर से बसपा की बात रखेंगे.
मुनकाद अली
मायावती के करीबियों में मुनकाद की गिनती होती है. जैसा आप सहारनपुर के इमरान मसूद के बारे में सुनते रहते हैं – वही इमरान मसूद जिनके मोदी-विरोधी बयान कभी-कभी इतने तीखे होते हैं कि उनको जेल हो जाती है – वैसा ही कुछ सफ़र मुनकाद अली तय करते हैं. पार्टी की ओर से अब वे नए प्रदेश अध्यक्ष हैं. उनके पहले ये जिम्मेदारी आरएस कुशवाहा के पास थी. लेकिन कहा जाता है कि आरएस कुशवाहा लोकसभा में बसपा के लिए उतने फायदेमंद साबित नहीं हुए. बसपा के लिए उतने वोट-सीट नहीं बटोर सके, जितनी उसे आशा थी. और ओबीसी वोटरों के बीच भी बसपा की स्थिति उतनी अच्छी नहीं हुई है. ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि बसपा अपनी ज़मीन मजबूत करना चाह रही है. ऐसे में उनके पास मुनकाद अली का नाम है.
मुनकाद अली
मुनकाद अली

लेकिन मुनकाद अली का नाम ही क्यों? क्योंकि तल्ख़ हैं, तेवर भी हैं. एक मीटिंग में कहा था कि अगर मुसलमान एकजुट हो जाएं तो 56 इंच का सीना गुजरात वापिस लौट जाएगा. मुनकाद अली राज्यसभा सांसद भी रह चुके हैं. और गुंडागर्दी में उनका नाम आ चुका है. मेरठ, जहां से मुनकाद ताल्लुक रखते हैं, वहां के एक डॉक्टर ने अपने घर के बाहर एक बैनर टांग दिया था कि वे राज्यसभा सांसद मुनकाद अली से तंग आ चुके हैं. इसके बाद मायावती ने मुनकाद अली के बेटे को गुंडागर्दी के बेटे को पार्टी से निकाल दिया. लेकिन अब मुनकाद अली को प्रदेश अध्यक्ष बनाने का मतलब साफ़ लग रहा है कि मायावती अब मुस्लिम वोटों पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाह रही हैं. प्रदेश की 12 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं, और बसपा पहली बार उपचुनाव लड़ने के मूड में दिखाई दे रही है. और लोकसभा में उसे मुस्लिम वोटरों का बहुत साथ मिला है, इस दृष्टि में मुनकाद अली बसपा के लिए कुछ हद तक मददगार साबित हो सकते हैं.
रितेश पाण्डेय
इनके नाम के आगे ‘पिस्टल पाण्डेय’ लिखा जाता है. क्योंकि इनके भाई आशीष पाण्डेय का नाम बहुत फेमस हुआ था. पिस्टल लहराने के लिए. और रितेश पाण्डेय ने खुलकर अपने भाई का साथ दिया. इसी सीट पर रितेश पाण्डेय के पिता राकेश पाण्डेय भी बसपा से सांसद रह चुके थे. लेकिन साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के हरिओम पाण्डेय से हार गए थे. इस बार पार्टी ने रितेश पाण्डेय पर सट्टा लगाया, जो सही बैठा और रितेश पाण्डेय ने जीत दर्ज की.
रितेश पाण्डेय
रितेश पाण्डेय

ये भी बात बताने की है कि रितेश जलालपुर विधानसभा से विधायक भी रह चुके हैं और उनके सांसद बनने के बाद ये सीट अब खाली है. कहा जाता है कि अम्बेडकरनगर के आसपास के पूर्वांचल में रितेश की ब्राह्मण वोटों पर पकड़ अच्छी है, और चूंकि जलालपुर में चुनाव होंगे और लोकसभा में पार्टी के डिप्टी लीडर रितेश पाण्डेय बारहा डायलाग करते हुए दिख सकते हैं, ऐसे में जलालपुर में बसपा को रितेश पाण्डेय का परिवार काफी फायदा पहुंचा सकता है, ऐसी आशंकाएं चल रही हैं.
श्याम सिंह यादव
अब दानिश अली की जगह लेंगे. कहा जा रहा कि श्याम सिंह यादव को लोकसभा में बसपा लीडर की जगह देकर मायावती ने ओबीसी कार्ड दुरुस्त किया है. साथ ही साथ यादव नाम होने से शायद पार्टी को थोड़ी मजबूती मिलेगी. ऐसे में श्याम सिंह यादव का ओहदा भी बहुत मायने रखता है. पीसीएस अधिकारी रह चुके हैं. राइफल शूटिंग के खेल के महारथियों में श्याम सिंह यादव की गिनती होती है. ओलंपिक के साथ-साथ राष्ट्रमंडल खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं, लेकिन इसके साथ ही उनके नाम के साथ एक ठीकठाक बात दर्ज होती है. बात ये कि वे तीन इंडिया की शूटिंग टीम के कोच रह चुके हैं. और भाजपा नेता राज्यवर्धन सिंह राठौर के भी. इसके अलावा प्रशासनिक अधिकारी का करियर भी कई जिलों में एसडीएम, एडीएम, अपर नगर आयुक्त और सिटी मजिस्ट्रेट के पद पर कार्यरत रहे.
श्याम सिंह यादव
श्याम सिंह यादव

ये हैं मायावती के आंख के वो नए तारे, जिनके बलबूते मायावती अब फिर से ताज़ा कोशिश में जुटी हैं. नयी योजना में वे अब विधानसभा उपचुनाव लड़ेंगी. नयी योजना में वो उस सोशल इंजीनियरिंग को पार्टी के भीतर ही आजमाएंगी, जिसको आजमाने का श्रेय अक्सर अखिलेश यादव के सिर जाता है.
और स्पेशल मेंशन में दानिश अली
अमरोहा से बसपा सांसद. अब तक लोकसभा में बसपा की ओर से मोर्चा सम्हाले हुए थे. लेकिन बसपा, जिसके बारे में कहते हैं कि वो पार्टी है जहां से टिकट मिलने में सबसे ज्यादा मशक्कत करनी पड़ती है, में लोकसभा चुनाव के एक महीने पहले ही दानिश अली शामिल हुए थे. दानिश अली का यूपी की राजनीति से नया रिश्ता हो सकता है, लेकिन सक्रिय राजनीति में कर्नाटक में उनकी मौजूदगी बेहद महत्त्वपूर्ण रही है. कैसे? पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की पार्टी जनता दल (सेकुलर) से जुड़े हुए थे. कहा जाता है कि देवगौड़ा के भी बहुत करीब थे. और उनकी पार्टी के महत्त्वपूर्ण नेताओं में उनकी गिनती होती थी. जब बसपा यूपी के बाहर अपने पांव पसारने की जुगत में अब भी लगी हुई है, उसमें बसपा का सबसे बड़ा साथ दानिश अली ने दिया है. दानिश अली ने बसपा और जेडीएस का गठबंधन कराया है. तभी मार्च 2019 में दानिश अली जब बसपा से जुड़ रहे थे, ताकि वे अमरोहा से चुनाव लड़ सकें तो इसके लिए कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारास्वामी बाकायदा इसकी जानकारी दी. ट्वीट किया और कहा कि दानिश अली के बसपा में शामिल होने में उनकी और उनके पिता और पार्टी के अध्यक्ष एचडी देवगौड़ा की सहमति है.
दानिश अली
दानिश अली

शायद दानिश अली का ही ये मेयार था कि मायावती ने उन्हें लोकसभा में अपनी पार्टी का नेता नियुक्त किया था. लेकिन बात ये भी हो रही है कि आर्टिकल 370 हटाने के मसले के दरम्यान दानिश अली और मायावती में एक खींचतान चल रही थी, जिसकी वजह से मायावती ने जौनपुर से सांसद श्याम सिंह यादव को दानिश अली की जगह लाकर बिठाया है.


लल्लनटॉप वीडियो : प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारी की बात आने पर सुषमा स्वराज ने मीडिया से क्या कहा?