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14 साल का चमत्कारी गायक, जिसे शायद मर्करी देकर मार दिया गया!

कहानी उस बालक की, जो अपनी अविश्वसनीय गायकी से बचपन में ही 'मास्टर' कहलाने लगा था. उसकी उम्र में कोई उसके जैसा नहीं गाता!

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मास्टर मदन.
devanshu jha the lallantopसंगीत की दुनिया में वह बालक चमत्कार था. भारतीय घरों में उसकी चर्चाएं आम थी. आज भी उसे भारतीय इतिहास की सबसे नामवर बाल हस्तियों में गिना जाता है. मैथिलीशरण गुप्त की 'भारत भारती' किताब में उसकी प्रतिभा का खास जिक्र है. हजार कयास इस बात पर लगाए गए कि अगर वह जवानी की उम्र तक भी जिंदा रहता तो क्या मुकाम हासिल करता. वो बालक था मदन, जो बचपन में ही अविश्वसनीय गायकी की वजह से 'मास्टर' कहलाने लगा था. मास्टर मदन पर यह लेख देवांशु झा के की-बोर्ड से निकला है. पसमंजर में 'मास्टर' को सुनें, आनंद लें.
भला उस उम्र में कोई वैसा भी गा सकता है क्या.. दलीलों की दाल नहीं गलती. कोई मिसाल नहीं मिलती. आठ साल की उम्र में वे जैसा गाते थे, वैसा गायन लोग परिपक्व होने पर भी नहीं कर पाते. उनकी गाई हुई कुल आठ गजलें ही बची हैं. आठ में भी एक-दो नहीं मिलतीं. दो-तीन बेहद प्रचलित गजलें आसानी से मिल जाती हैं. और मैं तो ये मानता हूं कि एक ठुमरी और दो गजलें ही सुन लीजिए, कुछ और सुनने की जरूरत ही नहीं है. ये तीन छोटी-छोटी टुकड़ियां आपकी रूह में तीर ए नीमकश की तरह अटक कर रह जाएंगी. आप उन्हें भूल नहीं पाएंगे. पहली ग़ज़ल, यूं न रह-रह कर हमें तरसाइये... https://www.youtube.com/watch?v=I0vDvwYE59Q और दूसरी गजल है, हैरत से तक रहा है जहान-ए-वफा मुझे. https://www.youtube.com/watch?v=PXxXACgUURI इन्हें सुनने के बाद आप तय कीजिए, क्या आठ साल के कंठ को कभी इस तरह से खुलते सुना है आपने ? मास्टर मदन का गानगेह भव्य है, आप देहरी से लेकर छत तक घूम आइये, हर जगह तराशे हुए सुरों का स्थापत्य मिलेगा. मुझे याद है भलीभांति कि नब्बे के दशक के आखिरी सालों में एचएमवी ने शास्त्रीय संगीतज्ञों के साथ श्रेष्ठ गजल गायकों की सीरीज निकाली थी. उस सीरीज में बीसवीं सदी के बड़े गजल गायकों के बीच मास्टर मदन पूरी धज के साथ मौजूद थे.
सिर्फ साढ़े चौदह साल जीने वाले उस कलाकार की तान, टीस की एक टेर है. एक कोमल, बाल्यसुलभ स्वर जिसमें हर पहर की पीड़ा है. उफ! कैसा आलाप! कैसे सुर! कैसा अदभुत नियंत्रण!
https://www.youtube.com/watch?v=AKYTOqPipCM&list=PL176E840253C87D74&index=2 एक-एक शब्द की गेयता को गुन लेने की काबलियत! बच्चा साक्षात शारदा पुत्र है! मास्टर मदन का जन्म 26 दिसंबर 1927 को जालंधर के एक सिख परिवार में हुआ था. तीन साल की उम्र में जब बोलियों की कोपलें फूटती हैं तब उनकी तान फूट गई थी. बच्चा बस दिखने में बच्चा था, उनकी आवाज अपनी प्रकृति में कच्ची थी लेकिन प्रस्तुति में प्रौढ़, नैसर्गिक प्रभा से प्रदीप्त. पांच साल की उम्र में एक बार उन्होंने गुरु तेग बहादुर का शबद गाया था, चेतना है तो चेत ले, विडंबना देखिए कि सुनने वाले अपनी सुध-बुध खो बैठे. तब उनकी दीदी ने कहा था कि मास्टर गुरु नानक की छवि सदैव अपने साथ लिए चलते थे. https://www.youtube.com/watch?v=fFM9iKWpf5w साढ़े तीन साल की उम्र में जब उन्होंने ध्रुपद शैली का गायन किया तो श्रोता उनकी लय, तान और सुरों को सुनकर स्तब्ध रह गए. लोगों ने मान लिया कि गायन का एक नया सूरज उदय हो रहा है. मास्टर मदन अपने घर वालों के लिए पुरस्कार बन कर आए. जहां गाते वहीं तोहफों की बारिश होने लगती. उनका पहला प्रदर्शन अखबारों की खबर बना था और रातों-रात मास्टर मदन गायकी की नई सुबह बन कर सबकी आंखों में उतर आए. शिमला में पहला प्रदर्शन होने के बाद वे वहीं रहने लगे थे. कई बार उनके बड़े भैया मास्टर मोहन और महान कुंदन लाल सहगल के साथ उनका गायन-वादन होता था.
एक कहानी विख्यात है. 1940 में एक बार गांधी जी शिमला गए थे लेकिन उनकी बैठक में बहुत कम लोग आए, बाद में पता चला कि ज्यादातर लोग मास्टर मदन का गाना सुनने चले गए थे.
तेरह साल की उम्र तक आते-आते वे मशहूर हो चुके थे और इस प्रसिद्धि में चुपके से उन्हें एक बीमारी घेर रही थी. समृद्ध होते सुरों को सन्नाटे में संभालने वाला शरीर खाली हो रहा था. किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि उन्हें थकान रहने लगी थी और हल्का बुखार घेरे रहता था. बाद में नीम-हकीम और वैद्य अस्पताल कुछ काम नहीं आया.
उनकी असमय मौत शक के घेरे में है. बहुत लोगों का कहना है कि मास्टर को ईर्ष्या में ज़हर दिया गया. कहते हैं, कलकत्ता में एक मंत्रमुग्ध कर देने वाली ठुमरी, बिनती सुनो मेरी, सुनने के बाद उऩ्हें किसी ने धीमा जहर दे दिया. ऑल इंडिया रेडियो की कैंटीन से लेकर मास्टर मदन दूध पिया करते थे. सुगबुगाहटें रहीं कि एक दूसरे गायक ने उन्हें दूध में मर्करी मिलाकर दे दिया. 
https://www.youtube.com/watch?v=PXt1VWe4gJ4 दैव का खेल देखिए कि इस प्रदर्शन के बाद उनका स्वर जाता रहा. जिस मास्टर मदन को बचपन में लोगों ने उनकी बोली से नहीं बल्कि श्रुतियों से सुनकर जाना. वही मास्टर लोकश्रुत होते-होते शांत हो गए. वे फिर गा नहीं सके. उनके सुरों के अनगिनत चाहने वालों के बीच उनसे ईर्ष्या करने वालों की आह शायद अनल जैसी थी. तभी तो इस दैवीय गायक को सिर्फ साढ़े चौदह साल की उम्र में धरती छोड़ ईश्वर में दरबार में गाना पड़ा.

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