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‘संभोग से समाधि की ओर’ को 'पोर्न’ की श्रेणी में रखा.

मां आनंद शीला की किताब के अंश की अंतिम किस्त.

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फोटो - thelallantop

यह लेख डेली ओ से लिया गया है जिसे अंग्रेजी में मां आनंद शीला ने लिखा है. 

दी लल्लनटॉप के लिए हिंदी में यहां प्रस्तुत कर रही हैं शिप्रा किरण

इसे हम दी लल्लनटॉप पर तीन भागों में पढ़वा रहे  हैं  . ये तीसरा एपिसोड  है.

यहां पढ़ें  पहला और दूसरा एपिसोड  : 

पहला एपिसोड : मां आनंद शीला : कैसे ओशो संन्यासिनों को प्रॉस्टिट्यूट्स में रूपांतरित करते थे

दूसरा एपिसोड : जब राजा ने नौजवान संन्यासी को नहलाने के लिए महिलाएं भेजी

दोनों गंगा की तरफ निकल गए. राजा अपने राजसी कपड़ों में और संन्यासी अपने उन्हीं पुराने कपड़ों में. दोनों ने कपड़े उतारे और नहाने उतर पड़े. तभी संन्यासी अचानक चीख पड़ा- महाराज, वहां आग लगी है.’ राजा ने बड़ी शांति से उत्तर दिया- ‘मैं जानता हूं. लेकिन चिंता की कोई बात नहीं बिना ईश्वर की इच्छा के कुछ भी नहीं होता. इसलिए चिंता मत करो. आराम से नहाओ.’

ये क्या कह रहे हैं आप? मेरे कपड़े जल जाएंगे तो मैं पहनूंगा क्या?’ यह कहते हुए वह युवक पानी से निकल अपने कपड़े बचाने दौड़ा.

जहां राजा के कपड़े रखे थे वहीं आग लगी थी लेकिन संन्यासी को सिर्फ अपने कपड़े (लंगोटी) की चिंता थी. पर राजा आराम से नहा रहा था. जब राजा नहा के नदी से बाहर आए तब तक कई चीजें जल कर राख हो चुकी थीं. वह आग राजा के कहने पर ही लगाई गई थी. संन्यासी बेहद डरा हुआ था. वह कह रहा था-‘कितना नुकसान हो गया. हजारों रूपए का नुकसान!’

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राजा ने कहा- तुम क्यों परेशान हो? तुम्हारी चीजें तो सुरक्षित हैं. मेरा क्या है. मेरा तो पूरा राज्य भी जल कर ख़ाक हो जाएगा फिर भी मुझे परवाह नहीं. मेरे बिना भी यह दुनिया चल रही थी. और मेरे जाने के बाद भी ऐसे ही चलती रहेगी. इस दुनिया में मैं सिर्फ एक दर्शक हूं. तो फिर चीजों से इतना मोह क्यों?’

लेकिन तुम अब भी मोहमाया में फंसे हो. जब तुम मेरी चीजों को जलता देख पागल होने की हालत में हो. तुम्हारा अपना नुकसान हुआ होता तब तुम्हारा क्या हाल होता. तुम तो पूरी तरह पागल हो जाते. तुम ये क्यों नहीं समझते कि ये कुछ भी तुम्हारा नहीं है. मैं शराब पीते हुए या सुन्दर औरतों के साथ रहकर भी सिर्फ़ दर्शक ही होता हूं. लेकिन तुम अब भी इन चीजों के मोह में हो. तुम सिर्फ दर्शक होकर इन चीजों को देख नहीं पा रहे. ये चीजें तुम पर असर कर जाती हैं.

लेकिन तुम्हें संसार में रहते हुए भी सांसारिक चीजों के मोह से दूर रहना होगा.

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संन्यासी ने पूछा- ‘मैं आपको कैसे विश्वास दिलाऊं?’

‘आज तुम बस कोशिश करो. मैं तुम्हारी मदद करूंगा. सिर्फ़ देखना. और भागने की कोशिश मत करना. न ही लड़ाई करना सिर्फ देखो और और जो हो रहा है वो होने दो.’ राजा ने जवाब दिया.

आज संन्यासी का वहां आखिरी दिन था. उसे तेल से भरा एक कटोरा दिया गया. जिसमें तेल इतने ऊपर तक भरा था कि हल्के से हिलने पर ही वो छलक सकता था. डांसर्स (नर्तकियां) गोल घेरा बना कर नाच रही थीं. घेरे के बीच में राजा बैठा था. युवक को कहा गया था कि अगर तेल की एक भी बूंद बाहर गिरी वो परीक्षा में फ़ेल हो जाएगा.

अब युवा संन्यासी का ध्यान उनकी तरफ नहीं था. उसका ज़रा सा भी ध्यान भटकता तो उस कटोरे से तेल की बूंद छलक जाती. धीरे-धीरे उसने तेल पर ध्यान केन्द्रित कर लिया. स्त्रियों को, नृत्य को भूल चुका था. उसका पूरा ध्यान तेल को गिरने से बचाने की तरफ था.

भगवान ने आश्रम के प्रशासन को थेरेपी ग्रुप (चिकित्सकों/डॉक्टरों का समूह) के उद्देश्यों के बारे में ठीक से समझा रखा था. ‘याद रखना कि ये ग्रुप हमारी कमाई का बड़ा साधन हैं. अगर हम किसी एक को मुफ्त में यहां आने देंगे तो दूसरे भी यही चाहेंगे. तुम्हें लोगों का मनोविज्ञान समझना होगा. मुफ्त में मिली चीज का महत्व कम हो जाता है.

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संन्यसिनें थेरेपी ग्रुप को लेकर उत्साह में थीं. भगवान ने उन्हें भाग लेने कहा था. लेकिन जिन संन्यासिनों के पास पैसे नहीं थे उनपर बहुत दबाव था. वो इसमें हिस्सा लेना चाहती थीं. वहां सब सिर्फ़ आगे जाना चाहते थे. और यही सब मिलकर उनके शोषण का कारण बना.

वहां सब ‘अहं’ (ईगो) से बचना चाहते. यहां तक कि इस शब्द से सब नफरत करते. कहीं न कहीं सब के भीतर यह ‘अहं’ था. लेकिन सब उसे छुपाने की कोशिश करते. मुझे लगता है कि ईगो (अहं), ध्यान या ज्ञान जैसे भारी भरकम और गंभीर शब्द सिर्फ भावनाओं से खिलवाड़ करने के लिए इस्तेमाल किए जाते थे. ‘ज्ञान’ लिए लोग पागल थे. इस पागलपन को पूरा करने के लिए वो किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाते.ये एक नशा था. संन्यासिनें तमाम तरह की सेक्सुअल क्रियाओं में हिस्सा लेतीं थीं. रजनीश को खुश करने के लिए वे महंगे उपहार दिया करतीं. जिसमें उनके सारे पैसे खर्च हो जाते. सब गलत हो रहा था.

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लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि उनसे बहुत चीजें सीखने को भी मिलतीं. बशर्ते अगर कोई सीखना चाहे. रजनीश संन्यासिनों का शोषण कर रहे थे. यह शोषण, ज्ञान की कीमत थी. गुरु दक्षिणा जैसी. और मैंने वह कीमत ख़ुशी ख़ुशी अदा की.

ये थेरेपी ग्रुप खूब चलते. इन्हीं समूहों की वजह से भगवान रजनीश के आश्रम को पूरी दुनिया में पहचान मिली. जल्द ही भगवान ने इन ग्रुप्स की बुकिंग और नए सदस्यों को अलग-अलग ग्रुप्स में बांटने की जिम्मेदारी हमें दे दी. हम ही संन्यासिनों को अलग-अलग समूहों में बांटा करते. नए लोगों के लिए बनाए गए समूह सामान्य थे लेकिन एडवांस ग्रुप अधिक मुश्किल और कठोर थे. ऐसे समूहों में सिर्फ़ वही लोग भाग ले सकते थे जो उसके पहले भी दस समूहों की थेरेपी में हिस्सा ले चुके हैं.

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आश्रम में जब भी कोई बीमार होता या किसी भी तरह की कोई दिक्कत आती हम सिर्फ भगवान रजनीश के कहे पर चलते. चिकित्सक भी उन्हीं के दिशानिर्देश में काम करते. वो आश्रम की हर गतिविधि पर नजर रखते. उन्होंने तीर्थ को एनकाउंटर समूह को अपने हिसाब से चलाने की पूरी आजादी दे रखी थी. लेकिन तभी उस समूह में हो रही हिंसा और बलात्कार की खबरें प्रेस में आ गईं. इस घटना के बाद से किसी पत्रकार को इन समूहों में शामिल नहीं होने दिया गया. थेरेपिस्ट भी कैमरों से सावधान रहने लगे. उन्हें इस तरह के दुष्प्रचार से बचने की सलाह दी गई. हिंसक थेरेपी के लिए भी मना कर दिया गया.

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भगवान रजनीश के बारे में कहा जाता है कि वो लगातार सेक्स-पार्टनर बदलते रहने की शिक्षा देते थे. भारत में तो बहुतों ने उनकी किताब ‘संभोग से समाधि की ओर’ को ‘पोर्न’ की श्रेणी में रखा. उनकी धार्मिक भावनाएं इस बात से आहत हुईं कि कोई संन्यासी सेक्स के बारे में इस तरह खुलेआम कैसे बात कर सकता है. वे कई साधु-संतों के दुश्मन बन गए. लेकिन सेक्स के लिए लालायित कुछ लोगों को उनकी शिक्षा ने और उत्साहित किया.

उनपर यह भी आरोप लगते रहे कि वे आश्रम की औरतों के साथ सेक्स-संबंधों को लेकर बहुत खुले थे. एक बार मुझे मेरी आंटी ने कहा भी- ‘संभल के रहना. तुम जवान लड़की हो. ओशो से मिलने कभी अकेली मत जाना. ’

आम हिन्दुस्तानी उनसे ऐसे ही डरा करता. उनसे जुड़ी किसी भी खबर से बहुत दूर रहता. सेक्स से जुड़े मुद्दे पर उन्हें धमकियां भी मिलीं. उनके दुश्मनों की संख्या लगातार बढ़ती गई.


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