वीसीआर और सिंगल स्क्रीन थिएटर से अलग जब आम पब्लिक की पहुंच फिल्मों तक हुई तो टेस्ट बड़ी तेजी से बदला. बनावटी एक्शन से अलग ओरिजनल लगने वाली कहानी और करेक्टर्स पर लोगों का फोकस बढ़ा. भारत में जकड़ के चलने वाली 'गॉडजिला', 'जुरासिक पार्क', 'टाइटेनिक', 'मैट्रिक्स' के बाद सुपरमैन, स्पाइडरमैन, बैटमैन और आयरनमैन का जमाना आया. 'पाइरेट्स ऑफ द कैरिबियन' की सीरीज देखने के बाद जॉनी डेप का फैन हुआ करता था. बैटमैन देखने के बाद क्रिश्चियन बेल का हो गया.ये वो फिल्में थीं जो पूरी दुनिया में कमाई बढ़ाने के लिए रिलीज की जाती थीं. हॉलीवुड वालों को भी पता था कि हम लोग मसालेदार खाने के कितने शौकीन हैं. वैसी ही फिल्मों के भी. अक्ल लगाने वाली फिल्में तो इंटरनेट की घर घर पहुंच होने के बाद देखी जाने लगीं. वैसे ही तकरीबन 5-6 साल पहले यूट्यूब पर टहलते हुए एक ट्रेलर दिख गया. 'द मशीनिस्ट' फिल्म का. पूरा देख गया. थोड़ा रोचक लगा. फिर वापस रिवाइंड करके देखा और दिमाग पर जोर डाला. यार ये हीरो तो देखा हुआ है. कौन है? उस वक्त हॉलीवुड एक्टर्स के नाम फिल्मी नामों से याद रहते थे. नीचे देखा क्रिश्चियन बेल लिखा था. उसे गूगल किया तो दिमाग सन्न रह गया. ये तो अपना बैटमैन है. इसने अपने साथ क्या कर लिया.

'द मशीनिस्ट' 2004 में आई. ये फिल्म नहीं चैलेंज थी बेल के लिए. इस चैलेंज को पूरा करने के लिए उनको अपनी डायट पर काम करना था. धीरे धीरे करके उन्होंने अपनी खुराक आखिरी सीमा तक कम कर दी. दिन भर काम और खाने के नाम पर सिर्फ एक सेब और कॉफी. मुंह को खाने की तलब न लगे इसलिए दिन भर चेविंग गम चबाते और सिगरेट पीते थे. ऐसे काम नहीं होता साहब. पूजा होती है. एक पैर पर डेढ़ सौ साल तक खड़े होकर तपस्या करने वाले ऋषि मुनि विशेष उद्देश्य लिए होते थे. भगवान के प्रसन्न होने पर उनको अमरत्व, अमृत, आजीवन यौवन जैसी चीजों की दरकार होती थी. क्रिश्चियन बेल ने कई महीनों तक ऐसी तपस्या की सिर्फ अपने करेक्टर को ओरिजनल बनाने के लिए. ऐसी योग साधना होती है. कोई संगीतज्ञ सुरों पर अपनी पकड़ बनाने के लिए रोज घंटों रियाज़ करता है. जिससे उसे जीवन में कभी बहकने का मौका न आए. लेकिन सिर्फ एक फिल्म के लिए कोई चौबीस घंटे रियाज़ करता है क्या? ऐसा काम अनाज उगाने वाले किसान करते हैं. सर्दी गर्मी बरसात कभी उनका वीक ऑफ नहीं होता. वो हमेशा ऑन रहते हैं. उनकी मेहनत के पीछे भी परफेक्शन की चाह होती है. एक एक दाना बढ़िया हो. फसल अच्छी हो. क्रिश्चियन बेल वैसे ही किसान हैं. ऐसी साधना से उन्होंने आधा वजन घटा दिया. तकरीबन तीस किलो. 55 किलो की बॉडी बना ली. ट्रेलर देखो 'द मशीनिस्ट' का.https://www.youtube.com/watch?v=bAhBZXw1Kak ये तपस्या तब और बड़ी हो जाती है जब उनको अगले साल यानी 2005 में 'बैटमैन बिगिन्स' को हिट कराने का वरदान पाना होता है. इस फिल्म में धाकड़ बैटमैन भयानक बॉडी के साथ नजर आता है. इस बीच में फिर से भारी मेहनत और डायट पर काम करके बेल ने अपना वजन फिर से 86 किलो कर लिया. फिल्म क्या थी और करेक्टर क्या था, ये बताने की जरूरत नहीं है. https://www.youtube.com/watch?v=vJKDXq8gRok उसके अगले साल आई 'रेस्क्यू डॉन'. फिर तपस्या शूरू. इसमें बेल ने जर्मन अमेरिकन पायलट डीटर डेंगलर का रोल किया था. जो वियतनाम युद्ध के दौरान पकड़ लिया जाता है. कहानी असली थी. इसके लिए फिर से वजन कम करना शुरू किया. क्योंकि युद्ध कैदी की शक्ल जैसी होती है कि दूर से देखकर ही डर लगने लगे. वापस 61 किलो पर आ गए. https://www.youtube.com/watch?v=BRMG2GhQRRQ दो साल बाद आई 'बैटमैन: द डार्क नाइट'. उसके लिए वापस 85 किलो. फिर दो साल बाद 2010 में आई 'द फाइटर'. इसके लिए वापस वजन कम करके लाए 66 किलो पर. ये सब लिखने में मुझे जितना नॉर्मल लग रहा है हो सकता है आपको पढ़ने में भी लग रहा हो. लेकिन ये पागलपन है. जुनून है. जब कोई आदमी हवस की हद तक अपने काम से प्यार करने लगता है तो क्रिश्चियन बेल बन जाता है. 2013 में 'अमेरिकन हसल' आई. ठग आर्टिस्ट का रोल था. जिसकी वाइफ का मूड ऐसा था कि ऊंट, जाने किस करवट बैठेगा. जिसे एक FBI एजेंट खास काम करने के लिए फंसा लेता है. इसके लिए बेल ने बड़ा सा तोंद रखकर वजन कर लिया 90 किलो. इस नश्वर शरीर से जितना काम क्रिश्चियन बेल ने ले लिया उतना योगी और ज्ञानी ध्यानी नहीं ले पाते. https://www.youtube.com/watch?v=znbOM3Sud98
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