भारत की पहली अंतर्राष्ट्रीय महिला वेटलिफ्टर
हिंदुस्तान में वेटलिफ्टिंग खेल के तौर पर 1935 में शुरू हुआ. मगर महिलाओं को पहली बार वर्ल्ड चैंपियनशिप में हिस्सा लेने का मौका 1989 में मिला था. मणिपुर की एक छोटी सी लड़की थी. कुल 21 साल की उम्र और 4 फुट 8 इंच के कद के साथ देश को नई ऊंचाई पर लेकर जा रही थी. कुंजरानी ने इस चैंपियनशिप में कुल 3 सिल्वर मैडल जीते. इसके बाद लगातार 7 सात साल तक वो वर्ल्ड चैंपियनशिप में हिस्सा लेती रहीं और कोई न कोई मैडल लाती रहीं.2000 ओलंपिक में मौका ही नहीं मिला
कुंजरानी ने 1994 एशियन गेम्स में सिल्वर मैडल जीता. 1996 में उन्हें राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार दिया गया. मगर घुटने के ऑपरेशन से उबरती कुंजरानी 1998 के एशियन गेम्स में कोई भी मैडल जीत नहीं पाई और कुंजरानी के करियर पर सवाल उठने लगे. ये भी कहा जाने लगा कि वो हमेशा सिल्वर या ब्रॉन्ज़ ही मैनेज कर पाती हैं, कभी गोल्ड नहीं जीत पातीं. इसी बीच 2000 का सिडनी ओलंपिक भी आ गया. कुंजरानी कह रही थीं कि वो सिडनी में मैडल जीत कर ही लाएंगी, ये उनकी आखिरी ख्वाहिश है. तभी किस्मत ने कुंजरानी देवी के साथ धोखा कर दिया. सिडनी ओलंपिक में हिंदुस्तान से सिर्फ दो खिलाड़ियों को भेजा जाना था और दावेदार तीन थे. 32 साल की कुंजरानी देवी को सिडनी नहीं भेजा गया. इस फैसले पर विवाद भी हुए मगर इसी सिडनी ओलंपिक में कर्णम मल्लेश्वरी ने वेटलिफ्टिंग में ब्रॉन्ज़ मैडल जीता. मल्लेश्वरी के ओलंपिक में मैडल जीतने वाली पहली महिला बनने के साथ ही कुंजरानी देवी को हाशिए पर पहुंचा हुआ मान लिया गया.डोपिंग में निलंबन और वापसी
कुंजरानी अभी ओलंपिक के सदमे से उबर भी नहीं पाई थीं कि डोपिंग के चलते 6 महीने के लिए बैन कर दी गईं. उस समय की खबरें बताती हैं कि सैंपल लेने में लापरवाही हुई थी. गलती किसी और की थी मगर खामियाजा इस खिलाड़ी को भुगतना पड़ा. उस समय पर लगभग सबने मान लिया कि 15 साल के शानदार करियर का ये दुखद अंत है. मगर किस्मत को धता बताते हुए इस वेटलिफ्टर ने एक बार फिर एथेंस ओलंपिक के लिए क्वॉलिफाई किया. 36 की उम्र में जब बाकी एथलीट कोच बनने की संभावनाएं देखते हैं, वो मैदान में उतर रहीं थीं. एथेंस में कुंजरानी को चौथी पोज़ीशन मिली. मिल्खा सिंह, पीटी ऊषा वाली लिस्ट में एक और नाम. जिसमें बाद में दीपा कर्मकार का भी नाम आया. ओलंपिक में मैडल मिलने का सपना तो टूट गया मगर इस एथलीट ने अपने लड़ने का जज़्बा नहीं छोड़ा. 2006 के मेलबर्न कॉमनवेल्थ में हिंदुस्तान के लिए टूर्नामेंट का पहला गोल्ड मैडल जीता. 2006 की इस जीत के बाद भारत सरकार ने उन्हें 2011 में पद्मश्री से सम्मानित किया.आगे आने वालों के लिए रास्ता
1980 के दशक में वेटलिफ्टिंग को करियर बनाना कितना मुश्किल रहा होगा सबको पता है. इसके बाद भी वो सफल हुईं और मणिपुर की कई लड़कियों की प्रेरणा बनीं. खेल से संन्यास लेने के बाद कुंजरानी देवी ने कोचिंग देना शुरू किया. खेल को डोपिंग फ्री बनाने का कैंपेन भी चलाया. आज अगली पीढ़ी के खिलाड़ी तैयार कर रहीं कुंजरानी अपने बारे में कहती हैं:'मैंने इस खेल को भारत के नक्शे पर जगह दिलवाई. मेरे दौर के बाद ये खेल उस स्तर तक नहीं पहुंच पाया है. आने वाले सालों के लिए मैं खिलाड़ी तैयार कर रही हूं. हमारे पास टैलेंट की कमी नहीं है बस उसे अच्छे से गाइड करने की ज़रूरत है.'
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