The Lallantop
लल्लनटॉप का चैनलJOINकरें

चार्टर्ड अकाउंटेंट्स से जुड़े कानूनों में संशोधन करने वाले बिल का विरोध क्यों हो रहा है?

क्या मोदी सरकार अकाउंटेंट की डिग्री के लिए IIA बनाने वाली है?

post-main-image
लोकसभा में CA, CMA, CS (अमेंडमेंट) बिल 2021 पर चर्चा का जवाब देतीं कॉरपोरेट अफेयर्स मिनिस्टर निर्मला सीतारमण
30 मार्च 2022. लोकसभा ने चार्टर्ड अकाउंटेंट, कॉस्ट एंड वर्क्स अकाउंटेंट और कंपनी सेक्रेटरी (अमेंडमेंट) बिल 2021 को पास कर दिया. ये बिल दिसंबर 2021 में सदन में पेश किया गया था जो चार्टर्ड एकाउंटेंट्स एक्ट 1949, कॉस्ट एंड वर्क्स अकाउंटेंट एक्ट 1959 और कंपनी सेक्रेटरी एक्ट 1980 में संशोधन करता है. इन तीनों एक्ट से बने इंस्टीट्यूट देश में क्रमश: CA, CMA और CS तैयार करने और उन्हें रेगुलेट करने की प्रोफेशनल बॉडी हैं. क्या हैं इनके काम और क्या नए संशोधन हुए हैं, आइए इन्हें समझते हैं. लेकिन सबसे पहले इन तीनों संस्थानों के बारे में जान लेते हैं. चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट इंडिया यानी ICAI भारत में चार्टर्ड अकाउंटेंट यानी CA की परीक्षा कराता है. ICAI के मामलों का प्रबंधन चार्टर्ड एकाउंटेंट्स अधिनियम, 1949 और चार्टर्ड एकाउंटेंट्स विनियम, 1988 के प्रावधानों के अनुसार एक काउंसिल द्वारा किया जाता है. CA का काम फाइनेंशियल अकाउंटिंग करना, सलाह देना, अकाउंट ऑडिट करना, बैलेंस शीट बनाना और टैक्स संबंधित काम होता है. CA बनने के लिए तीन स्टेज की परीक्षा पास करनी होती है. पहला कॉमन प्रोफिशिएंसी टेस्ट (CPT), जो 12वीं के बाद दिया जा सकता है. इसे पास करने के बाद इंटीग्रेटेड प्रोफेशनल कंपीटेंस कोर्स (IPCC) और फिर तीसरा स्टेज होता है फाइनल कोर्स (FC). IPCC के बाद ढाई साल की ट्रेनिंग होती है. ट्रेनिंग पूरी होने के बाद छात्र फाइनल एग्जाम देता है और उसे पास करने के बाद ICAI का मेंबर बन जाता है. इस पूरी प्रक्रिया में तकरीबन 5 साल का समय लग जाता है. कंपनी सेक्रेटरी (CS) जिस तरह से देश में चार्टर्ड अकाउंटेंट्स को तैयार करने और रेगुलेशन का जिम्मा ICAI के पास है, उसी तरह कंपनी सेक्रेटरीज के लिए इंस्टीट्यूट ऑफ कंपनी सेक्रेटरीज ऑफ इंडिया (ICSI) है. ये कंपनी सेक्रेटरी एक्ट, 1980 के अंतर्गत स्थापित एक प्रोफेशनल बॉडी है. कंपनी के मैनेजमेंट, कानूनी जरूरतों और बेहतर प्रशासन के लिए सरकारी और निजी कंपनियों में कंपनी सेक्रेटरी की नियुक्ति की जाती है. उसका काम कंपनी, बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स, शेयर होल्डर्स, सरकार और रेगुलेटरी अथॉरिटी के साथ तालमेल बना कर काम करना होता है. आसान भाषा में कहें तो कंपनी सेक्रेटरी का काम नियम-कानून और प्रक्रियाओं का पालन कराना होता है. कंपनी सेक्रेटरी बनने के लिए भी 12वीं के बाद तीन स्टेज की परीक्षा पास करनी होती है. सबसे पहले फाउंडेशन, फिर एग्जीक्यूटिव प्रोग्राम और फिर उसके बाद प्रोफेशनल प्रोग्राम. इसके बाद ट्रेनिंग होती है और ट्रेनिंग पूरी होने के बाद ICSI की मेंबरशिप मिल जाती है. कॉस्ट मैनेजमेंट अकाउंटेंट CMA ICAI और ICSI की तरह देश में कॉस्ट मैनेजमेंट अकाउंटेंट्स के रेगुलेशन का जिम्मा इंस्टीट्यूट ऑफ कॉस्ट मैनेजमेंट ऑफ इंडिया (ICMAI) के पास है. इसे इंस्टीट्यूट ऑफ कॉस्ट एंड वर्क अकाउंटेंट ऑफ इंडिया और इंस्टीट्यूट ऑफ कॉस्ट अकाउंटेंट ऑफ इंडिया के नाम से भी जाना जाता है. इसका गठन कॉस्ट एंड वर्क्स अकाउंटेंट एक्ट 1959 के अंतर्गत किया गया था. CMA कंपनी में कॉस्ट मैनेजमेंट (लागत प्रबंधन) का काम करते हैं. ये कॉस्टिंग, वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य निर्धारण, कॉस्ट रिकॉर्ड और टैक्सेशन के वेरिफिकेशन और सर्टिफिकेशन का काम करते हैं. CA और CS की तरह CMA के लिए भी तीन लेवल की परीक्षा देनी होती है. सबसे पहले फाउंडेशन, फिर इंटरमीडिएट और फिर फाइनल कोर्स.

नए बिल में क्या है?

द चार्टर्ड अकाउंटेंट्स, द कॉस्ट एंड वर्क अकाउंटेंट्स एंड द कंपनी सेक्रेटरीज (अमेंडमेंट) बिल 2021 इस साल 30 मार्च को लोकसभा से पास हो गया. इस बिल में किए गए कुछ प्रमुख बदलाव इस तरह से हैं- 1. को-ऑर्डिनेशन कमेटी तीनों संस्थानों ICAI, ICMAI और ICSI के बीच प्रोफेशन्स के आपसी सामंजस्य और विकास के लिए एक को-ऑर्डिनेशन कमेटी का गठन. तीनों संस्थानों के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सचिव इसके सदस्य होंगे. इस कमेटी के अध्यक्ष मिनिस्ट्री ऑफ कॉरपोरेट अफेयर्स के सेक्रेटरी होंगे. हर तीन महीने में इस कमेटी की बैठक होगी. 2. बोर्ड ऑफ डिसिप्लिन एंड डिसिप्लिनरी कमेटी बिल में संशोधन के जरिए दो डिसिप्लिनरी बॉडी में नॉन-अकाउंटेंट्स की संख्या बढ़ाई जाने की बात है. इन मेम्बर्स के नाम संस्थानों के काउंसिल द्वारा प्रस्तावित किए जाएंगे और केंद्र सरकार इनका चयन करेगी.
- बिल में संशोधन के जरिए तीनों काउंसिल को कई डिसिप्लिनरी बोर्ड बनाने का अधिकार देता है. बोर्ड के प्रमुख समेत तीन में से दो सदस्य काउंसिल के सदस्य नहीं होंगे. बल्कि काउंसिल की ओर से केंद्र सरकार को दिए जाएंगे. इसके बाद केंद्र सरकार की ओर से इन्हें नामित किया जाएगा. - अब तक तीनों काउंसिल अपने-अपने एक्ट्स के अंतर्गत डिसिप्लिनरी कमेटी का गठन करती रही हैं. इसमें 5 मेम्बर होते हैं. तीन सदस्य काउंसिल के मेम्बर होते हैं और 2 सदस्य केंद्र सरकार द्वारा नामित होते हैं. बिल में संशोधन के जरिए अब कमेटी में तीन बाहरी सदस्यों का प्रावधान किया गया है. कमेटी का प्रमुख भी संस्थानों का सदस्य नहीं होगा बल्कि केंद्र सरकार द्वारा नामित किया जाएगा. हालांकि इसके लिए नाम काउंसिल की ओर से ही सरकार को दिया जाएगा.
3. टाइमलाइन ऑफ डिसिप्लिनरी एक्शन बिल में संशोधन के जरिए प्रावधान किया गया है कि अनुशासनात्मक शिकायतों का निवारण एक निश्चित समय-सीमा के भीतर हो जाए. इसके लिए बोर्ड ऑफ डिसिप्लिन को 90 दिन और डिसिप्लिनरी कमेटी को 180 दिन की समय-सीमा दी गई है. 4. फर्म का रजिस्ट्रेशन और कार्रवाई का अधिकार बिल में संशोधन के जरिए फर्म्स के रजिस्ट्रेशन का प्रावधान किया गया है. साथ ही इंस्टीट्यूट्स को फर्म्स के खिलाफ कार्रवाई करने की शक्ति दी गई है. अगर किसी फर्म का पार्टनर या मालिक पिछले पांच वर्षों के दौरान दुर्व्यवहार का बार-बार दोषी पाया जाता है तो फर्म के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है.

क्या है इन पर आपत्तियां?

1. को-ऑर्डिनेशन कमेटी तीनों संस्थानों के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए पहले से कमेटी बनी हुई हैं. इसलिए ये सवाल पूछा जा रहा है कि एक और कमेटी की जरूरत क्या है. साथ ही बिल में प्रस्तावित को-ऑर्डिनेशन कमेटी का चेयरमैन मिनिस्ट्री ऑफ कॉरपोरेट अफेयर्स के सेक्रेटरी को बनाया जाएगा, जिससे तीनों संस्थानों की स्वतंत्रता प्रभावित होने की बात कही जा रही है. 2. बोर्ड ऑफ डिसिप्लिन एंड डिसिप्लिनरी कमेटी बिल में दोनों डिसिप्लिनरी बॉडी में बाहरी सदस्यों की संख्या बढ़ाए जाने का प्रावधान है. इसी पर तीनों संस्थानों की ओर से सबसे ज्यादा आपत्ति जताई जा रही है. सवाल उठाया जा रहा है कि बार काउंसिल में वकील ही मेम्बर होते हैं, मेडिकल काउंसिल में डॉक्टर ही मेम्बर होते हैं, लेकिन CA के डिसिप्लिनरी कमेटी या बोर्ड ऑफ डिसिप्लिन में एक गैर- CA चेयरमैन क्यों होगा. दलील दी जा रही है कि गैर-CA मेम्बर्स को अकाउंटिंग और ऑडिट के बारे में उतनी जानकारी नहीं होगी जितनी एक CA को होगी, इसलिए प्रोफेशनल्स के व्यवहार को केवल प्रोफेशनल्स द्वारा ही आंका जाना चाहिए. 3. टाइमलाइन ऑफ डिसिप्लिनरी एक्शन अनुशासनात्मक शिकायतों को निपटाने के लिए बिल में एक निश्चित समय-सीमा का प्रावधान किया गया है. इस पर ये कहकर आपत्ति जताई जा रही है कि बहुत सारे मामले ऐसे होते हैं जिनकी जांच में निर्धारित समय से ज्यादा वक्त लग सकता है. जल्दी-जल्दी मामलों को निपटाने के लिए न्याय के नैसर्गिक सिद्धांत से समझौता नहीं किया जा सकता. 4. फर्म के खिलाफ कार्रवाई का अधिकार बिल में CA फर्म्स के खिलाफ कार्रवाई का अधिकार है. अब तक ICAI के पास केवल अपने मेम्बर्स यानी CA पर कार्रवाई का अधिकार था. संशोधन बिल में अनुशासनात्मक जांच में दोषी पाए जाने पर फर्म को सस्पेंड, स्थायी निष्कासन या जुर्माने की सजा का प्रावधान है. इस संशोधन पर ये कहकर आपत्ति जताई जा रही है कि किसी एक पार्टनर के गलत आचरण की वजह से फर्म को या फिर अन्य पार्टनर्स और कर्मचारियों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है. क्या IIA आएगा? जब ये बिल आया तो चार्टर्ड अकाउंटेंट की पढ़ाई करने वाले या इस फील्ड से जुड़े लोगों के लिए ये सबसे बड़ा सवाल था. IIA यानी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ अकाउंटेंट्स. जैसे देश में IIT, IIM हैं, उसी तरह से अकाउंटेंट्स के लिए IIA यानी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ अंकाउंटेंट्स. कहा जा रहा था कि IIA 5 साल की डिग्री देगा, जो CA के बराबर होगा. फाइनेंस की संसदीय स्टैंडिंग कमेटी की ओर से इसका सुझाव दिया गया था. चार्टर्ड अकाउंटेंट्स की पढ़ाई कर रहे छात्रों और इस फील्ड से जुड़े लोगों के बीच इसे लेकर खूब चर्चा थी. सोशल मीडिया पर इसका खूब विरोध भी हो रहा था. हालांकि इसका बिल में कोई जिक्र नहीं है.