The Lallantop

केस्को वाले सीताराम चौरसिया की मनोहर कहानी

निखिल सचान 'कानपुर की मनोहर कहानियों' की चौथी किस्त ले आए. इस बार केस्को, बिजली, मोदी, केजरीवाल, अखलेस और ताश की गड्डी!

Advertisement
post-main-image
फोटो - thelallantop
निखिल सचान का हर शनिवार एक नया इंट्रो लिखना पड़ता है. इस चक्कर में इनके बारे में काफ़ी बातें निकल चुकी हैं. इतनी नयी बातें तो देश के परधानमंत्री के बारे में नहीं मालूम चली थीं. इंजीनियर, लेखक और आशिक निखिल सचान, कानपुर को अपनी शर्ट की ऊपर वाली जेब में लेके चलते हैं. कहते हैं इससे दिल अपनी औकात में रहता है. हर शनिवार, कानपुर की मनोहर कहानी सुनाने की रस्म को बाकायदे कायम रखते हुए चौथी कहानी सुना रहे हैं. NIkhil Sachan

कानपुर की मनोहर कहानियां, चौथी किस्त

केस्को वाले सीतराम चौरसिया की मनोहर कहानी

   
नौबस्ता में छह दिन से बत्ती नहीं आई थी. कोई कह रहा था कि ट्रांसफार्मर फुक गया है, कोई कह रहा था कि ज़मीन के अन्दर फाल्ट हुआ है. मोहल्ला रात भर अंधेरे में डूबा रहता था. मोबाइल की बैटरी फुकी पड़ी थी सो अलग. ऐसे में लोगों के पास चौधराहट करने के सिवाय और कोई काम नहीं था. "अबे बत्ती आए कहां से, ये साले सपा वालों के पास कोइला हुई गया ख़तम. और अखलेश कह रहे हैं कि हमने तो कोयला मंगाया रहा, ये केंद्र की सरकार ने टाइम पे भेजा नहीं तो हम क्या करें?" "अबे गरज कुएं की होती है या उसकी होती है जिसे हगास आई हो. सपा घुसेगी इस बार यूपी चुनाव में. इन्हें अभी समझ नहीं आ रहा है. साला यादवो न भोट करेंगे इनको और मुसलमान चप्पल मारेंगे सो अलग." "यहां तो सपाहे जीतेगी. मोदी का जलवा केंद्र में ही है. देखे नहीं कैसे दिल्ली में केजरीवाल जैसे झटुल्ली नेता से हार गए मोदी जी." रात भर बतकही चलती. सरकारें बनाई जातीं और गिराई जातीं. पसीना चुआ-चुआ के मोहल्ले के गुस्से की सीमा पार हो रहा थी. अंधेरे का फ़ायदा उठाके चोर-उचक्के अलग मौज ले रहे थे. घड़ी-घड़ी हल्ला उठता था - "मुहनोचवा, मुहनुचवा". कोई कहता था कि कीड़ा है तो कोई कहता था कि एलियन है, बनच्चर है. कोई कहता था कि चीं-चीं करता है तो कोई कहता था कि हुस-हुस करता है. मुहनुचवा नर है कि मादा, इस पर भी बहस ज़ारी थी. Kanpur Manohar Kahaniyan महिलाएं दुखी थीं क्योंकि नागिन, कवच और पवित्र रिश्ता के छह एपिसोड छूट गए थे. पता ही नहीं लग रहा था कि वो औरत जो पिछले एपिसोड में मक्खी बन गई थी वो वापस लौटी या नहीं. कूलर में पानी भरे-भरे महकने लगा था और ऐसे-ऐसे जिद्दी मच्छर जन रहा था जिन पर कछुआ छाप का कोई असर नहीं हो रहा था. कितना भी धुआं कर लो. आदमी मर जाए लेकिन मच्छर पर रत्ती भर असर नहीं था. कानपुर के मच्छर कछुआ छाप पे बैठकर उसके धुएं का ऐसे आनंद लेते थे जैसे चरस या अफ़ीम सूंघ रहे हों. बत्ती इतने दिनों से नहीं थी कि मोहल्ले के प्रेमी प्रेमिका भी अंधेरे का फ़ायदा उठा के बोर हो गए थे. एक वक्त था जब वो बत्ती जाने पे ख़ुश होते थे और अंधेरी गली में इधर-उधर मिल कर फटाफट चुम्मी काट के भाग लेते थे. अब ये आलम था कि पसीना सूख नहीं रहा था. गरमी इतनी थी कि गले लगाते ही ताप छूटता था. जब अत्त हो गई तो मोहल्ले वालों ने तय कर लिया कि जब तक बत्ती नहीं आएगी वो सरकार की नाक़ में दम कर देंगे.  एटीएम मशीन के केबिन और ‘रेव मोती’ मॉल पे कब्ज़ा कर लिया गया. एक-एक एटीएम में पांच-पांच लोग बिस्तरा लगा के चैन से एसी में हमक गए और बैटरी चार्ज करने की सुविधा का अदद आनंद उठाने लगे. एटीएम के गार्ड या तो ख़ुद भाग लेते थे या उन्हें बांध के बाहर डाल दिया जाता था. केस्को (कानपुर इलेक्ट्रीसिटी सप्लाई कंपनी)  ऑफिस में दिन भर पथराव हुआ और वहां के प्रमुख सीताराम चौरसिया को उनके आफ़िस में ही बंधक बना लिया गया. “गुरु अब जब तलक़ बत्ती नहीं आएगी, तुम हईं बंधे रहो" "अरे हमें बांध के क्या करोगे भाई जी. अब जब बत्ती है ही नहीं तो क्या पैदा कर दें?" "तुम्हई इच्छा. पैदा कर सको तो कर दो. यहीं जनो या मंतर फूंक दो. छोड़े तभी जाओगे जब हमाए मुहल्ले में बत्ती जगेगी." "अरे भाई सरकार के पास कोयला ख़तम हो गया है. बत्ती है ही नहीं. हमाए मोहल्ले में ख़ुद छह दिन से लाईट नहीं है." "हैं ? यार चौरसिया ! तुम भी नौबस्ता में रहते हो?" "हां तो और कहां रहते हैं. हम यहां रात 12 बजे ऑफिस में और काहे बैठे हैं. यहां कम से कम पंखा तो चलता है. आजकल यहीं सो रहे हैं. तुम लोग भी सुस्ता लो. दुपहर भर पत्थर चलाए हो. अरे राकेस जग में भर के ठण्डा पानी लाओ इन लोग के लिए." मोहल्ले वालों का दिल पिघल गया. केस्को प्रमुख चौरसिया जी छोड़ दिए गए. "अबे यार ये ख़ुद नौबस्ता वाले हैं. अब जो बिजली आएगी तो खुदई से आएगी. हम कह रहे थे कि ये सपा वाले गदहे हैं एकदम." "अबे चलो. आता न जाता, चुनाव चिह्न छाता. तुम्हाए मोदी जी के दम हो तो बना लें सरकार." "ज्यादा औरंगज़ेब मत बनो. तुम्हाए केजरीवाल के दम हो तो वो बना लें." "अरे क्या कीजिएगा नेता लोग को गरियाकर. बैठिए. पत्ते खेलेंगे?" सीताराम चौरसिया ने पूछा. "और क्या ही कर सकते हैं. पंखा थोड़ा इधर घुमा दीजिए चौरसिया जी. दहिला पकड़ हो जाए कि तीन-दो-पांच होए?"   "तीन दो पांच हो जाए. पीसो फिर.” "तुरुप बोलिए, सीताराम जी.” "तुरुप होगी हुकुम!"
निखिल की कहानियों की दो किताबें आ चुकी हैं. नमक स्वादानुसार और जिंदगी आइस पाइस. इनके अमेजन लिंक नीचे दिए गए हैं. पसंद आए तो जरूर खरीदें. किताबें हैं. काटती नहीं हैं.
    1. Namak Swadanusar
    2. Zindagi Aais Pais

  कानपुर में कुछ सवा सौ लड़के, पिछले छह आठ साल से उसके पीछे पड़े थे बाप से पिटा, मां से लात खाई, तुमाई चुम्मी के लिए गुटखा छोड़ दें?

दरोगा जी की जिंदगी के डेड वायर में नया करंट दौड़ गया

Advertisement

Advertisement
Advertisement
Advertisement