
खबर आई है कि 2020 में भारतीयों का स्विस बैंक में रखा पैसा पिछले 13 साल में सबसे ज्यादा हो गया है.
स्विस बैंक में अकाउंट कैसे खोल सकते हैं? स्विटजरलैंड में कम से कम 400 बैंक हैं. वहां की जनसंख्या सिर्फ 85 लाख है. हमने कुछ बैंकिंग एक्सपर्ट्स से बात की तो उन्होंने बताया कि बैंकों के मूल नियम तो एक जैसे हैं, लेकिन हर बैंक अपने हिसाब से भी नियम-कायदे बनाने के लिए आजाद हैं. मिसाल के तौर पर कुछ बैंक बिजनेस अकाउंट्स या कंपनी अकाउंट्स पर ही ज्यादा फोकस करते हैं तो कुछ आम कामगारों और स्टूडेंट्स आदि पर. जिस अकाउंट को लेकर ज्यादा हल्ला होता है वो हैं एक खास नंबर वाले अकाउंट्स. इन्हें बैंकिंग की भाषा में 'नंबर्ड अकाउंट' कहा जाता है. इसके बारे में आपको आगे बताएंगे. अगर आपको भारत से स्विस बैंक में अकाउंट खुलवाना है तो साधारण अकाउंट खुलवाने की सुविधा ही मिलेगी. स्पेशल 'नंबर्ड अकाउंट' यहां से नहीं खुलवा सकते.
आम अकाउंट खुलवाने की ये प्रक्रिया है.
# 18 साल या उससे ज्यादा की उम्र का कोई शख्स स्विस बैंक अकाउंट खुलवा सकता है. # ऑनलाइन बैंकिंग के जरिए ईमेल या वेबसाइट से रिक्वेस्ट करने पर आपको एक बैंकिंग रिप्रेजेंटेटिव अलॉट कर दिया जाएगा. # वह आपको पूरी प्रक्रिया के लिए गाइड करेगा. # आपको अपना वैलिड पासपोर्ट की नोटैरी अटेस्टेड कॉपी देनी होगी. अगर स्विस बैंक की ब्रांच भारत में है तो वहां ओरिजनल पासपोर्ट लेकर दे सकते हैं. # इनकम कहां से हो रही है इसकी जानकारी. (मतलब नौकरी कर रहे हैं या बिजनेस जो भी हैं उसके डॉक्युमेंट्स) # आपके पते का वेरिफिकेशन. इसके लिए बैंक लिखे गए पते पर पोस्ट भेजते हैं जिसमें एक कन्फर्मेशन कोड होता है. मिनिमम बैलेंस कितना रखना होगा? यह भी बैंक पर निर्भर करता है. हर बैंक का सिस्टम अलग-अलग है. फिर भी बेसिक अकाउंट कम से कम एक हजार डॉलर या तकरीबन 72 हजार रुपए से खुलता है. इसके अलावा इंटरनेशनल ट्रांजैक्शन का चार्ज भी लिया जाता है. मतलब अगर आप भारत में हैं और स्विस बैंक का अकाउंट ऑपरेट कर रहे हैं तो आपको चार्ज देना होगा. यह 5 से 10 डॉलर सालाना 3500 से 7200 रुपए सालाना तक होता है. अगर क्रेडिट कार्ड या डेबिट कार्ड चाहिए तो उसके लिए अलग से 5 से 10 हजार रुपए तक चार्ज किए जाते हैं. इसके अलावा एक सालाना अकाउंट मेंटिनेंस चार्ज भी लिया जाता है. ये प्रति ट्रांजैक्शन 50 रुपए तक होता है. सबसे भौकाली 'नंबर्ड अकाउंट' इस अकाउंट का ही अब तक भौकाल रहा है. इसमें बैंक के आम कर्मचारियों को यह पता नहीं होता कि जिसका अकाउंट है उसका नाम क्या है. बैंक से उसे एक चार डिजिट का नंबर और आगे अपने मन का नाम अलॉट कर दिया जाता है. मिसाल के तौर पर अगर कोई लल्लन प्रसाद अकाउंट खुलवाने जाएंगे तो उन्हें बैंक 8285 नंबर देगा. उसके आगे वो सुपरमैन, कूलबॉय या जाटबॉय टाइप का कुछ भी नाम लगा सकते हैं. माना कि उन्होंने जाटबॉय दे दिया. अब बैंक में उन्हें 'मिस्टर 8285 जाटबॉय' के नाम से जाना जाएगा. उनका असली बैंक अकाउंट नंबर और नाम बैंक के पास गोपनीय रहेगा. हालांकि बैंक के आला अधिकारी इस नाम का पता लगा सकते हैं.
ये अकाउंट कैसे खुलता है - ये खुलवाना मुश्किल काम है. इसके लिए अमूमन स्विटजरलैंड में बैंक की ब्रांच में जाना होता है.
इसका मिनिमम बैलेंस कितना होता है- इसमें 1 लाख डॉलर या 73 लाख रुपए के आसपास होता है. अकाउंट पर 300 डॉलर या तकरीबन 22 हजार रुपए का मेंटेनेंस चार्ज भी लगता है.

नंबर्ड अकाउंट वही लोग खुलवा सकते हैं जिनके पास करोड़ों रुपए हो.
तो पता नहीं चलता स्विस बैंक में किसने कितना पैसा रखा है? वो दिन अब लद गए. अब स्विटजरलैंड के साथ भारत ने एक खास अनुबंध कर लिया है. इसके मुताबिक स्विटरलैंड अपने बैंकों में पैसा जमा कराने वाले भारतीयों और कंपनियों की जानकारी भारत के साथ साझा करेगा. यह अनुबंध साल 2018 से लागू हो गया है. हालांकि इसमें एक पेच है. भारत सरकार किसी भी ऐसे बैंक अकाउंट की डिटेल नहीं मांग सकती जो 2018 से पहले स्विटजरलैंड में खोले गए थे.
स्विटजरलैंड के बैंक 1713 से चले आ रहे हैं. ये बैंक सीक्रेसी के कानून का सख्ती से पालन करते थे. इसके मुताबिक अगर किसी ने स्विटजरलैंड में कोई अपराध नहीं किया है तो उसके बारे में बैंक कोई भी जानकारी शेयर नहीं करता था. यहां तक कि स्विस सरकार के साथ भी नहीं. इस छूट की वजह से दुनिया के कई ड्रग माफिया और भगोड़ों ने अपना पैसा यहां छुपा रखा था. साल 2017 में विश्व समुदाय ने स्विटरजरलैंड पर दबाव बनाया और इस कानून को ढीला कराया. अब अनुबंध करने का सिस्टम बन गया है. स्विटजरलैंड का जिन देशों के साथ अनुबंध है उनके साथ वह सारी जानकारी साझा करते हैं.
हालांकि मजेदार बात यह है कि 2019 में जब पहली बार भारत सरकार को स्विस बैंक में भारतीय खाताधारकों की लिस्ट मिली तो सरकार ने भी नाम और डिटेल बताने से मना कर दिया. सरकार का कहना था इंफॉर्मेशन का आदान-प्रदान गोपनीयता प्रावधान के तहत आता है. यानी इसे कॉन्फिडेंशियल रखना उनकी ज़िम्मेदारी है.