The Lallantop

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने कैसे भारत को दुनिया का पांचवा मिसाइल लैस देश बनाया?

डॉक्टर अब्दुल कलाम के नेतृत्व में बनी थी भारत की पहली मिसाइल

post-main-image
एपीजे अब्दुल कलाम और भारतीय मिसाइल (फोटो सोर्स- India Today)
1983 की एक शाम. डॉक्टर APJ अब्दुल कलाम रक्षा मंत्रालय में एक प्रेजेंटेशन देकर बाहर निकले हैं. काग़ज़ पर मिसाइल तैयार है लेकिन उसे असलियत में लाने के लिए बजट चाहिए. और वो निर्णय दरवाज़े के दूसरी तरफ़ होना है. दरवाज़े के इस तरफ़ डॉक्टर कलाम अपने साथी डॉक्टर वीएस अरुणाचलम के साथ खड़े हैं. दोनों बाहर की तरफ़ निकलते हुए उंगली में कुछ हिसाब लगा रहे हैं.
पैसा करोड़ों में तय होना है. आगे के शून्य वही रहने हैं लेकिन शून्य से पहले लगने वाली संख्या से बात बन या बिगड़ सकती है. मिसाइल प्रोग्राम के लिए डॉक्टर कलाम की टीम को कुछ 400 करोड़ रुपए के आसपास चाहिए लेकिन कितने एलोकेट होंगे, कह नहीं सकते.
400 करोड़ वाला प्लान तो पहले से तय है. लेकिन कलाम कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे. इसलिए उन्होंने अरुणाचलम को दो और प्लान बताए. 100 करोड़ हुए तो प्रोग्राम कैसा होगा, 200 करोड़ हुए तो कैसा, ये सब कुछ उंगलियों में तय हो रहा था. एक बार भी लेकिन ये चर्चा नहीं हुई कि संभव है जो बजट मिले, उसमें मिसाइल डिवेलप करना सम्भव ना हो. ना की कोई गुंजाइश नहीं थी. इसके 5 साल बाद ऐसी ही एक रोज़ सदन में PM राजीव गांधी खड़े होते हैं. और अपनी बात की शुरुआत करते हैं. पांच सालों में गुंजाइश से शुरू हुई बात मिसाइल की गूंज में बदल चुकी थी. आज की तारीख़ आज 25 फरवरी है और आज की तारीख़ का संबंध है भारत के मिसाइल शक्ति बनने से. 1962 में भारत ने चीन से युद्ध लड़ा. 1971 में पाकिस्तान से. एक में हार और एक में जीत मिली. लेकिन सीख दोनों युद्धों में भारत के लिए सेम थी. वो ये कि भारत की सेना को अत्याधुनिक हथियारों की फौरी तौर पर जरूरत थी. जिनमें मिसाइल सबसे अहम थी. गौरतलब है कि उस वक़्त तक दुनिया भर में केवल चार देश ही ऐसे थे जिनके पास अपने मिसाइल सिस्टम थे. जिनमें चीन के पास डोंगफेंग (Dongfeng) मिसाइल सिस्टम, अमेरिका के पास लांस (Lance) मिसाइल सिस्टम, सोवियत के पास स्कड (Scud) मिसाइल सिस्टम और इजराइल के पास जेरिको (Jericho) मिसाइल सिस्टम था.
चीन का डोंगफेंग मिसाइल सिस्टम (फोटो सोर्स- Getty)
चीन का डोंगफेंग मिसाइल सिस्टम (फोटो सोर्स- Getty)


मिसाइल प्रोग्राम को लेकर भारत में सुगबगाहट शुरू हुई 70 के दशक में. 1970 में DAE (Department of Atomic Energy) ने PMO को एक चिट्ठी लिखी. जिसमें बताया गया कि चीन ने एक हज़ार मील की दूरी तक न्यूक्लियर हमला करने की क़ाबीलियत प्राप्त कर ली है. इस चिट्ठी में ये भी कहा गया कि अगर भारत ने जल्द ही कुछ ना किया तो भारत और चीन के बीच दूरी बढ़ती जाएगी.
उसी साल सोवियत सूत्रों ने भारतीय अधिकारियों को बताया कि चीन 1 मेगाटन तक की पेलोड कैपेसिटी हासिल कर चुका है. साथ ही 6 हज़ार किलोमीटर की दूरी तक हमला करने वाली ICBM (इंटर कोंटिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइल) के टेस्ट की तैयारी कर रहा है. अगले 5 साल में चीन 80-100 मिसाइल बनाने की तैयारी कर रहा था. मिसाइल प्रोग्राम की शुरुआत घटनाक्रम कुछ यूं बना कि 1972 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने MGK मेनन को एक पत्र लिखा. मेनन तब ISRO के अंतरिम चेयरमैन नियुक्त किए गए थे. इंदिरा ने इस लेटर में लिखा कि भारत के स्पेस प्रोग्राम और डिफ़ेंस प्रोग्राम में एक लिंक स्थापित किया जाना चाहिए. तब भारत SLV लॉन्च की तैयारी कर रहा था. 1980 में भारत ने पहली बार SLV-3 का सफलतापूर्वक लॉन्च  किया. इसरो के निदेशक सतीश धवन ने इस मौक़े पर कहा,

'इस लॉन्च से भारत ने बलिस्टिक मिसाइल तैयार करने की क़ाबीलियत हासिल कर ली है'

धवन 1980 में ये बात कर रहे थे. लेकिन भारत 70 के दशक से ही मिसाइल बनाने की सीक्रेट कोशिश में लगा हुआ था. इसरो में रहते हुए डॉक्टर कलाम मिसाइल डिवेलपमेंट के दो प्रोजेक्ट पर काम कर चुके थे. प्रोजेक्ट डेविल और प्रोजेक्ट वेलिएंट. तब यूनियन कैबिनेट ने इन प्राजेक्ट्स को डिस्प्रूव कर दिया था. लेकिन इंदिरा गांधी ने अपनी विवेकाधीन शक्तियों के तहत इसके लिए सीक्रेट फंड अलॉट किए.
इसके बावजूद दोनों प्रोजेक्ट फेल रहे. लेकिन इनसे जो सीख मिली, वो आगे बहुत काम आने वाली थी. 1 जून 1982 को डॉक्टर APJ अब्दुल कलाम ने DRDL (डिफेन्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट लेबोरेटरी) को जॉइन किया. DRDL, DRDO (डिफेन्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट आर्गेनाईजेशन) की ही एक विंग है जो मिसाइलों के क्षेत्र में काम करती है.
डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम
डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम


DRDL जॉइन करते ही सबसे पहले डॉक्टर कलाम ने मिसाइल के कामों में तेज़ी लाने के लिए एक हाई लेवल बॉडी का गठन किया. इसका नाम था, ‘मिसाइल टेक्नोलॉजी कमिटी’. इस कमिटी ने कई दिनों की डिबेट और कई हफ्तों के विचार विमर्श के बाद एक लॉन्ग टर्म प्रोग्राम बनाया. जिसको नाम दिया गया. गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम. यह वो वक्त था जब भारत की पहली मिसाइल कागजों पर आकार लेना शुरू कर चुकी थी. कलाम का हिसाब कमिटी ने मिसाइल डेवेलपमेंट के लिए एक प्रपोज़ल बनाकर कैबिनेट कमिटी फॉर पॉलिटिकल अफेयर्स के पास भेजा. इस प्रपोज़ल में कमिटी ने अगले 12 सालों के लिए 390 करोड़ रुपए की मांग की थी. इस एस्टीमेट में फेज वाइज दो प्रकार की मिसाइल सिस्टम का वर्णन था. एक ‘लो लेवल क्विक रिएक्शन टैक्टिकल कोर व्हीकल’ और दूसरी ‘मीडियम रेंज सर्फेस टू सर्फेस वैपन सिस्टम’.
पहले भी कैबिनेट मिसाइल प्रोजेक्ट को लेकर बजट के लिए आनाकानी कर चुकी थी. इसलिए नए प्रपोज़ल में कितना बजट मिलेगा, इस पर संशय था. इसी प्रपोजल के सम्बन्ध में कलाम ने साउथ ब्लॉक में प्रेजेंटेशन दिया. जिसकी अध्यक्षता रक्षा मंत्री आर. वेंकटरमन कर रहे थे. और अन्य मेंबर्स में तीनों सेनाओं के प्रमुख, जनरल कृष्ण राव, एयर चीफ मार्शल दिलबाग सिंह और एडमिरल डावसन मौजूद थे. इसके अलावा कैबिनेट सेक्रेटरी, डिफेंस सेक्रेटरी और सेक्रेटरी ऑफ एक्सपेंडिचर भी मौजूद थे. कलाम इस प्रेजेंटेशन के बारे में लिखते हैं,

‘मीटिंग में उपस्थित मेंबर्स को अलग-अलग डाउट्स थे. किसी को हमारी कैपेबिलिटी को लेकर तो किसी को फीजिबिलिटी को लेकर. हालांकि सभी मेंबर्स भारत की स्वनिर्मित मिसाइल के आइडिया से काफी उत्साहित थे.'

प्रेजेंटेशन खत्म होने पर कलाम को सूचना दी गई कि रक्षा मंत्री वेंकटरमन लगभग तीन घंटे बाद उनसे अलग से मिलना चाहते हैं. कलाम और उनके साथी डॉक्टर वीएस अरुणाचलम, जो कि उस वक्त डिफेंस मिनिस्ट्री में साइंटिफिक एडवाइजर के पद पर थे, इस बीच अपने हिसाब लगा रहे थे कि अगर सिर्फ 100 करोड़ सैंक्शन किए गए तो वह इन्हें कैसे एलोकेट करेंगे? और अगर मान लो 200 करोड़ सैंक्शन कर दिए गए तो भी हम इनका कैसे उपयोग करेंगे.
खैर, जब कलाम शाम को रक्षा मंत्री से मिले तो उन्हें रक्षा मंत्री के प्रस्ताव को सुनकर अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ. रक्षा मंत्री ने कलाम को कहा कि अलग-अलग फेज में मिसाइल बनाने से बेहतर है कि एक “इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम” लॉन्च किया जाए. कलाम अपने शब्दों में इस घटना के बारे में लिखते हैं,

‘हम रक्षा मंत्री के प्रस्ताव को सुनकर भौंचक्के थे. कुछ देर के सन्नाटे के बाद डॉक्टर अरुणाचलम ने रक्षा मंत्री से कहा, हमें इस बारे में सोचने के लिए कुछ वक्त चाहिए. जिसके ज़वाब में रक्षा मंत्री ने कहा, आप कल सुबह आइए.’

उस रात कलाम और डॉक्टर अरुणाचलम ने अपने प्लान पर फिर से काम किया. उन्होंने प्लान को सभी डाइमेंशन में सोचा और जब तक उनका काम खत्म हुआ, सुबह हो चुकी थी. सुबह उन्होंने रक्षा मंत्री से दोबारा मिलकर उन्हें अपने रिवाइज्ड प्लान के बारे में बताया. रक्षा मंत्री को प्लान पसंद आया. और उन्होंने कलाम की ओर इशारा करते हुए कहा,

‘चूंकि, तुमको मैं यहां लाया हूं. मुझे तुमसे कुछ ऐसे ही काम की उम्मीद थी. मैं तुम्हारे काम से बहुत खुश हूं.’

इसके बाद रक्षा मंत्री ने उस प्लान को प्रपोजल के रूप में कैबिनेट के समक्ष प्रस्तुत किया. और कैबिनेट ने भी इस प्रपोजल के सभी रिकमेंडेशन को मानकर अभूतपूर्व 388 करोड़ रुपए सैंक्शन करने की अनुमति दे दी. इस प्रकार भारत के प्रतिष्ठित इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (IGMDP) की शुरुआत हुई. मिसाइलों के नाम रखे गए प्रोजेक्ट सैंक्शन होने से उत्साहित डॉक्टर कलाम DRDL पहुंचे. उन्होंने अपनी टीम को ये खबर दी. अब सिर्फ़ एक सवाल बचा था. मिसाइलों के नाम क्या होंगे. तब पता चला कि उत्साहित मेंबर्स ने लगे हाथ अलग-अलग किस्मों कीं मिसाइलों के नाम भी सोच रखे थे.
सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइल का नाम रखा गया ‘पृथ्वी’. टैक्टिकल कोर व्हीकल का नाम रखा गया, ‘त्रिशूल’. सतह से आकाश में मार करने वाली मिसाइल का नाम रखा गया, ‘आकाश’. एक एंटी टैंक मिसाइल भी इनमें शामिल थी जिसका नाम रखा गया ‘नाग’. और कलाम का सबसे महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट REX यानी कि री-एक्सपेरिमेंट लांच व्हीकल का नाम रखा गया, ‘अग्नि’.
27 जुलाई 1983 को डॉक्टर अरुणाचलम के द्वारा IGMDP आधिकारिक रूप से लांच कर दिया गया. इस इंटीग्रेटेड प्लान के तहत सभी मिसाइलों पर एक साथ काम शुरू हो गया. इसी कड़ी में पृथ्वी मिसाइल का जिम्मा सौंपा गया कर्नल वी जे सुंदरम को, जो भारतीय सेना की EME कॉर्प्स से ताल्लुक रखते थे. काम जोरों शोरों से चल रहा था. आए दिन दिल्ली से इसकी खबर भी ले ली जाती थी. प्रोजेक्ट में मिल रही निरंतर सफलताओं से खुश होकर उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 19 जुलाई 1984 को DRDL विजिट किया. जहां उन्होंने एक घंटे के अपने दौरे में IGMDP के विभिन्न कार्यक्रमों की जानकारी ली.
कलाम और इंदिरा गांधी
कलाम और इंदिरा गांधी


दौरा ख़त्म होने से जस्ट पहले इंदिरा ने डॉक्टर कलाम से पूछा, ‘आप पृथ्वी का परीक्षण कब करने वाले हैं?’. जवाब में कलाम ने तत्काल कहा, ‘जून 1987 में’.
लेकिन फिर 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई. और पूरे देश में हिंसा भड़क उठी. हैदराबाद में भी कर्फ्यू लगा दिया गया. DRDL में काम करने वाले इंजीनियरों को दफ्तर आने जाने में दिक्कत होने लगी. कई हफ़्तों ऐसा ही चलने के बाद आख़िरकार हालात धीरे धीरे सामान्य हुए. राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद 3 अगस्त 1985 को इमारत कांचा (जो कि अब तेलंगाना राज्य में आता है) में मिसाइल टेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर का शिलान्यास किया. पृथ्वी मिसाइल का परीक्षण हुआ इंदिरा की तरह ही राजीव ने भी DRDL का निरीक्षण किया और डॉक्टर कलाम से मुलाक़ात की. दोनों नेताओं की तुलना करते हुए डॉक्टर कलाम लिखते हैं,

‘राजीव गांधी में एक बच्चे के समान जिज्ञासा थी. लगभग एक साल पहले जब उनकी मां श्रीमती गांधी हमसे मिलीं थी, तो उनमें धैर्य और दृढ़ संकल्प दिखा था. कुछ ऐसा ही राजीव गांधी में भी मौजूद था, हालांकि थोड़े अंतर के साथ. मैडम गांधी एक टास्कमास्टर थीं, जबकि राजीव करिज़्मा से काम चलाते हैं”

DRDL के लगभग 2000 कर्मचारियों के लगातार काम करने के बाद साल 1987 के अंत में पृथ्वी मिसाइल का निर्माण अपने आखिरी चरणों में पहुंचा. अब सिर्फ़ लॉन्चिंग करने की तैयारी बची थी. बालासोर की टेस्ट रेंज निर्माणाधीन थी. इसलिए पृथ्वी मिसाइल का परीक्षण स्पेशल अरेंजमेंट से श्रीहरिकोटा रेंज में करने का निर्णय लिया गया. इसके बाद आज ही के दिन यानी 25 फरवरी 1988 को भारत की पहली सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइल पृथ्वी का सफल परीक्षण किया गया.
पृथ्वी की लॉन्चिंग के बाद भारत ने मिसाइल के क्षेत्र निरंतर प्रगति की. अगले चार दशकों में भारत ने पारम्परिक सहित सामरिक महत्व की कई मिसाइलें डेवेलप की. जो 250 से लेकर 5000 किलोमीटर तक की रेंज में टारगेट कर सकती हैं.