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हलाला के हिमायतियों, कुरआन की ये आयत पढ़ लो, आंखें खुल जाएंगी

हलाला का जो रूप प्रैक्टिस में है वो कुछ कुंठित दिमागों की निजी उपज है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर. इमेज: रॉयटर्स

ये आर्टिकल लल्लनटॉप के लिए ताबिश सिद्दीकी ने लिखा है.




निकाह और हलाला पर इंडिया टुडे के स्टिंग ऑपरेशन में ये ख़ुलासा हुआ कि कैसे मौलाना धर्म की आड़ में सेक्स का सौदा कर के मासूम लोगों के साथ खिलवाड़ करते हैं. हलाला इस्लाम में हमेशा से एक पेचीदा मसला रहा है. या यूं कहा जाए कि इसे पेचीदा बना कर रखा गया है.
इंडिया टुडे के 'हलाला' स्टिंग ने तहलका मचा दिया.
इंडिया टुडे के 'हलाला' स्टिंग ने तहलका मचा दिया.

क्या है हलाला?

आज के प्रचलित सुन्नी इस्लाम के अनुसार, मान लीजिए एक मर्द अपनी बीबी को तलाक़ दे देता है और तलाक़ के बाद उसे अपनी ग़लती का एहसास होता है. ऐसे में अगर वो अपनी पत्नी से दोबारा शादी करना चाहता है, तो इसके लिए उसे पहले अपनी तलाकशुदा पत्नी की शादी किसी और से करवानी होती है. उसके बाद अगर उस औरत का दूसरा पति उसे तलाक़ देता है, तभी पहला पति उस से दुबारा निकाह कर सकता है. इसे ही हलाला कहते हैं.
इस मसले में एक पेंच भी है. इस्लामिक आलिम ये कहते हैं कि वो औरत, जिसका तलाक़ हुआ है, वो पहले दूसरे मर्द से शादी करे. फिर ये दूसरा मर्द उस के साथ सेक्स करे. फिर वो उस औरत को तलाक़ दे. तब जा के पहला पति इस औरत से दुबारा शादी कर पायेगा. अगर इस औरत ने दूसरे आदमी से शादी करने के बाद सेक्स नहीं किया तो हलाला पूरा नहीं होगा. हर इस्लामिक देश के सुन्नी मुसलमानों के बीच ये प्रथा हमेशा से एक चर्चा और बहस का विषय बनी रही है.
पाकिस्तान जैसे देशों में तो से बहुत बड़े पैमाने पर सेक्स का धंधा बना लिया गया है.

कुरान क्या कहता है?

हलाला के साथ एक सबसे दिलचस्प बात ये है कि जैसे एक बार में तीन तलाक़ कुरान सम्मत नहीं है, वैसे ही हलाला कुरान सम्मत नहीं है. कुरान की एक आयत इस तरह के एक कानून का ज़िक्र करती है, मगर वो आज के हलाला जैसा नहीं है.
क़ुरान की आयत (2:230) कहती है कि,
"और अगर उसने उसे (अपनी पत्नी को) तलाक़ दे दिया है, तो फिर वो (उसकी पत्नी) उसके लिए तब तक वैध नहीं हो सकती जब तक वो औरत किसी दूसरे आदमी से शादी न कर ले. और फिर दूसरा पति (अपनी मर्ज़ी से) उसे तलाक़ न दे दे (या वो मर जाए). फिर वो औरत अगर अपने पहले पति के पास वापस जाना चाहती है, तो फिर इसमें उसकी और उसके पति की कोई गलती नहीं मानी जायेगी"
इसी एक आयत को ढाल बना कर इस्लामिक विद्वानों ने हलाला जैसी प्रथा को जन्म दिया है.

तलाक वाली आयत

इस आयत के पहले की आयत (2:229) में तलाक़ का ज़िक्र है. जिसमें मर्द को समझाया जा रहा है कि अगर तुम अपनी पत्नी से तलाक़ चाहते हो, तो पहले एक बार तलाक़ बोलो फिर एक महीने का इंतज़ार करो. फिर एक महीने बाद भी लगता है कि तुम अभी भी नहीं उसके साथ रह पाओगे, तो फिर दूसरी बार तलाक़ बोलो. और फिर तीसरे महीने तीसरी बार. अगर आप ध्यान से समझें तो देख पाएंगे कि इस आयत में ये समझाने की भरपूर कोशिश की जा रही है कि आप तलाक़ न दें. और दें भी तो तीन महीने का वक़्त लें. उसके बाद भी ये लगे कि अब नहीं रह सकते साथ, तो फिर उस से अलग हो जाएं.
अब इसके बाद अगर फिर ये लगता है कि आपने ग़लती कर दी है, तो आप उस औरत से दोबारा शादी तभी कर सकते हैं, जब तक कि उसने एक दूसरे मर्द से शादी के बाद उस से तलाक़ न ले लिया हो. मतलब पहले पूरा मौक़ा दिया गया कि तीन महीने में समझ लो. अगर उतने दिनों में भी तुम्हारे समझ में नहीं आया, तो अब वो औरत तुम्हारी नहीं है, अब उसे किसी और से शादी करने दो.
कहने का मतलब ये है इस आयत में ये कहने की कोशिश की गयी है कि अगर तलाक़ दोगे, तो फिर ये औरत अब तुम्हारी कभी नहीं बन पाएगी. अगर बनाना भी चाहोगे, तो सिर्फ तब ही बन सकती है, जब तक उसका दूसरा पति उसे तलाक़ न दे दे, या मर जाए.
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आयत का मौलवी वर्जन

अब इस आयत को अपने हिसाब से आलिमों ने तोड़ के अपनी मर्ज़ी का सिस्टम बना लिया. अब अगर कोई अपनी ही पत्नी से दोबारा शादी करना चाहे, तो आलिम कहता है कि पहले इससे मैं शादी करूंगा. सेक्स करूंगा. फिर तलाक़ दूंगा. जिसके लिए तुम मुझे एक लाख दो, फिर तुम दोबारा उस से शादी कर लो. बात क्या थी और इन लोगों ने इसे क्या बना दिया.
अब दूसरी शादी के बाद सेक्स ज़रूरी है, इसके लिए मौलाना लोग एक हदीस का हवाला देते हैं. ध्यान रहे कि हदीस सुनी सुनाई बातें हैं. एक अनुमान है कि ऐसा हुआ था, या हुआ होगा. वो हदीस कुछ इस तरह है,
इकरामा कहते हैं कि: रिफ़ा नामक व्यक्ति ने अपनी पत्नी को तलाक़ दे दिया. जिसके बाद उसकी पत्नी से अब्दुर्रहमान नाम के व्यक्ति ने शादी कर ली. आयशा (पैगंबर मुहम्मद की पत्नी) कहती हैं कि वो औरत एक दिन उनके पास हरा लबादा ओढ़ कर आई और अपने पति द्वारा मारे जाने से आई चोट के निशान  दिखाए. जिसे देखकर आयशा बहुत विचलित हो गईं. ये औरतों की आदत थी उस समय कि वो एक दूसरे को बहुत सपोर्ट करती थीं.
इसलिए जब पैगम्बर मुहम्मद घर आए, तो आयशा ने उन से कहा "मैंने आज तक सबसे ज्यादा जिन औरतों को प्रताड़ित पाया है, उनमें सब से ज्यादा मुसलमान औरतें ही होती हैं. देखिए इसकी चोट को. कैसी इसके कपड़ों के जैसी ही हरे रंग की हो गयी है."
जब अब्दुर्रहमान ने ये सुना कि उसकी पत्नी पैगम्बर के पास गुहार लगाने गई है, तो वो अपनी पहली पत्नी से पैदा हुए दो बच्चों को लेकर पैगंबर के पास पहुंचा. उसकी पत्नी ने मुहम्मद साहब से कहा कि अल्लाह की क़सम मैंने कुछ गलत नहीं किया है इसके साथ, जबकि ये नपुंसक है और मेरे लिए ऐसे ही बेकार है जैसे कपडे का ये टुकड़ा. ये बात उसने अपने लबादे का एक कोना दिखाते हुए कही. जिसके जवाब में अब्दुर्रहमान ने कहा अल्लाह की क़सम ये औरत झूट बोल रही है. मैं शारीरिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ हूं. इसे संतुष्ट कर सकता हूं. ये सिर्फ़ मुझ पर ये इल्ज़ाम इसलिए लगा रही है क्योंकि अब ये अपने पुराने पति रिफ़ा के पास वापस जाना चाहती है.
पैगंबर ने उस औरत से (गुस्से से) कहा कि अगर तुम इस वजह से ये सब कर रही हो तो ये जान लो कि तुम अपने पहले पति के पास तब तक वापस नहीं जा सकती, जब तक तुम अब्दुर्रहमान के साथ सेक्स न कर लो.
उसके बाद पैगंबर अब्दुर्रहमान के दोनों बच्चों की तरफ़ मुड़े और अब्दुर्रहमान से पूछा ये दोनों बच्चे तुम्हारे हैं? अब्दुर्रहमान ने कहा जी हां. जिसके जवाब में पैगंबर ने कहा तुम्हारा दावा बिलकुल सही है. क्योंकि अल्लाह जानता है कि ये बच्चे तुम्हारी तरह ऐसे ही दिख रहे हैं, जैसे एक कव्वे की तरह दूसरा कव्वा दिखता है.
(सहीह बुखारी हदीस, किताब 77, हदीस नंबर 42)

कुरान की आयत को भुला कर अलग ही खेला है भाइयों का

अब इस हदीस का सहारा लेकर और ऊपर की कुरान की आयत को जोड़कर इस्लामिक विद्वानों ने हलाला की प्रक्रिया तैयार की. जबकि ऊपर की आयत बिलकुल अलग परिस्थितियों की बात कर रही है. और ये हदीस बिलकुल अलग परिस्थिति की बात करती है.
हलाला का तरीका समझाने के लिए टेक्नोलॉजी का भी इस्तेमाल हो रहा है.
हलाला का तरीका समझाने के लिए टेक्नोलॉजी का भी इस्तेमाल हो रहा है.

मगर धर्म और धर्म के नियम ऐसे ही बनाए जाते हैं. इधर का उधर जोड़ कर अपने फायदे का ध्यान रखते हुए. जिसमें हलाला करवाने वाले को भी अपनी वासना शांत करने का मौक़ा मिल जाए. ये नियम बना दिया गया और बेचारे आम मुसलमान, अल्लाह से डरने की वजह से इनकी बातों को मानते गए. कभी कोई सवाल नहीं उठाया. वक़्त बीतते ये नियम इतना पुराना हो गया कि इसे ही सब इस्लाम समझने लगे.
वो आयत और हदीस, दोनों का संदर्भ मैंने ऊपर दे दिया है. इसे ख़ुद पढ़िए और सोचिए कि कैसे ये लोग अपने हिसाब से नियम बना कर आपकी भावनाओं से खेलते हैं. अपने हिसाब से बनाई गई चीज़ों को इस्लाम बता कर आपके सामने पेश कर देते हैं.


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ताबिश एक मुखर विचारक हैं. अपनी लॉजिकल सोच की वजह से फेसबुक पर फेमस हैं. इसी वजह से आसपास के कट्टर धार्मिक विचारधारा वाले लोगों के निशाने पर रहते हैं. ताबिश का मानना है कि सबसे पहले खुद के घर से शुरुआत करनी चाहिए. इसीलिए अपने ही मज़हब की कुरीतियों पर खुलकर लिखते हैं. फेसबुक पर फॉलोअर्स और विरोधक समान मात्रा में हैं इनके. अक्सर दोनों तरफ के कट्टरपंथियों के निशाने पर रहते हैं.



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