The Lallantop

मछलियां सोती कैसे हैं? एक अद्भुत 'वरदान' है इनके पास

मछलियों में पलकें नहीं होतीं, कुछ मछलियों को सांस लेने के लिए पानी से ऊपर आना पड़ता है. अब पानी तो लगातार बहता ही रहता है. ऐसे में पता चले ये सोएं एक जगह और जागें शिकारी के मुंह में, तो फिर ये मछलियां सोती कैसे हैं (how do fishes sleep)?

post-main-image
अपनी छोटी सी गुफा में सोती पैरट फिश (Image: Wikimedia commons)

'घनी मेरी जान सोना नहीं है!' वांटेड फिल्म में गैंगस्टर घनी भाई को पुलिस वाले पकड़कर ले जाते हैं. तब घनी भाई के मुंह से यही डायलॉग निकलता है. या कहें मजबूरी में ये स्वर उसके मुंह से फूट पड़ते हैं. मजबूरी, ना सो पाने की… सोए तो पिटाई पड़ी. ना सो पाने की मजबूरी में घनी भाई अकेला नहीं है, उनके साथ हैं तमाम मछलियां. जो हम इंसानों जैसे नहीं सो पातीं. इसमें एक दिक्कत ये है कि मछलियों में पलकें ही नहीं होती हैं. जिससे वो मूंद कर झपकी ले सकें. लेकिन फिर भी कुदरत ने उन्हें कुछ नायाब तरीके दिए हैं ताकि वो सुस्ता सकें.

व्हेल को सांस लेने पानी के ऊपर आना पड़ता है

मछलियों में नींद को समझने से पहले, हमें समझना होगा कि नींद के मायने हर जानवर में अलग-अलग हो सकते हैं. जैसे पेंग्विन दिन में 4 सेकेंड के लिए झपकी लेते हैं. पर 10,000 से भी ज्यादा बार. ऐसा करके ये करीब 11 घंटे की नींद निकाल लेते हैं. पेंग्विन की इन शक्तियों की जरूरत स्कूल के दिनों में महसूस होती थी.

खैर, इससे हम ये समझ सकते हैं कि जानवरों में नींद के मायने क्या हो सकते हैं. कुछ में ये आधा दिन सोने के लिए है तो कुछ में कुछ सेकंड. जमीनी जानवरों से इतर पानी में रहने वाले जानवरों की अपनी कहानी है. पहले बात करते हैं व्हेल और डॉल्फिन जैसी मछलियों की. जो दरअसल मछलियां हैं नहीं, ये हैं समुद्री स्तनधारी जीव. जो पानी के भीतर सांस नहीं ले सकती हैं. उन्हें सांस लेने पानी के बाहर आना पड़ता है.

जागते हुए तो ठीक लेकिन सोते समय क्या?

व्हेल जैसी कुछ मछलियां नींद में पानी से ऊपर आती हैं. सांस लेती हैं. और फिर नीचे चली जाती हैं. वहीं स्पर्म व्हेल को नींद में किसी गुब्बारे की तरह पानी में ‘टंगे’ देखा जा सकता है.

डॉल्फिन भी हवा में सांस लेती हैं. एक्सपर्ट्स के मुताबिक डॉल्फिन सोने से पहले अपना आधा दिमाग बंद कर सकती हैं. इसे टेक्निकल भाषा में ‘यूनिहेमिस्फेरिक स्लो वेव स्लीप’ कहा जाता है. जिसमें उनका आधा दिमाग सोता है. आधा दिमाग उनको तैरने में मदद करता है. सांस लेने के लिए पानी की सतह पर आने का काम भी इसी से कंट्रोल होता है. ये आधा हिस्सा स्लो वेव स्लीप में होता है. ताकि दिमाग की मरम्मत की जा सके और याददास्त को दुरुस्त रखा जा सके.

एक हिस्से की नींद पूरी होने के बाद, दूसरी आंख बंद करके दूसरे हिस्से को सुलाती हैं. ये सब कैसे पता चला? साइंटिस्ट्स ने उनके दिमाग के इलेक्ट्रिकल सिग्नल को देखा, जो नींद जैसी अवस्था बता रहे थे, उन्होंने अनुमान लगाया कि डॉलफिन ऐसा करके सोती होंगी.

वहीं जू वगैरह में कई डॉल्फिन ‘लॉगिंग’ करते दिखती हैं. माने लकड़ी की तरह तैरते रहना. कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है ये ऐसे भी सोती हैं.

ये भी पढ़ें: 'सर पर कफन' बांधकर खड़ी पहाड़ी क्यों चढ़ती हैं ये बकरियां?

दूसरी तरफ शार्क को हमेशा तैरते रहना पड़ता है ताकि वो लगातार पानी के साथ ऑक्सीजन ले सकें. वहीं कुछ शार्क एक जगह रुक कर सो सकती हैं. मतलब मछलियों में नींद लेने के तमाम तरीके हैं. लेकिन उनकी नींद हमारी नींद से काफी अलग होती हैं.

क्या है ये नींद?

मछलियों की नींद को फोन के पावर सेविंग की तरह समझें. जैसे फोन में बैटरी बचाने के लिए पावर सेविंग मोड होता है. वैसे ही मछलियां भी ऐसी ही अवस्था में चली जाती हैं. जहां वो शारीरिक क्रियाओं में कमी कर देती हैं. उनकी आंखें हमारी तरह बंद नहीं होतीं. वो नींद जैसी अवस्था में तो होती हैं. लेकिन खतरों के लिए चौकन्नी भी रहती हैं. 
ऐसा करके ये आराम भी कर लेती हैं, साथ ही शिकारी जानवरों से भी बच लेती हैं.

ये भी पढ़ें: क्या जन्म से दृष्टिहीन लोग भी सपने देखते हैं? ये बातें आपको सोचने पर मजबूर देंगी

वीडियो: चंद्रयान 3 के लैंडर पर 'सोने की चादर' लगाने के पीछे का साइंस क्या है?