The Lallantop
Advertisement

'सर पर कफन' बांधकर खड़ी पहाड़ी क्यों चढ़ती हैं ये बकरियां?

बीसियों फुट की ऊंचाई. ऐसी कि पैर फिसला तो जान के लाले पड़ जाएं. फिर भी ये बकरियां अपने छोटे मेमनों के साथ इतनी ऊंचाई पर चढ़ती हैं?

Advertisement
dam wall mountain goat
बांध की दीवार पर चढ़ी बकरियां.
23 फ़रवरी 2024 (Updated: 24 फ़रवरी 2024, 01:07 IST)
Updated: 24 फ़रवरी 2024 01:07 IST
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

स्विट्जरलैंड से सटे उत्तरी इटली के बॉर्डर के पास एक जगह है, वेर्बानो कुसियो ऑसोला (Verbano-Cusio-Ossola). नाम थोड़ा जटिल है. बोलते वक्त जुबान में मोच आने का जोखिम है. खैर, नाम बोलने का जोखिम तो कुछ भी नहीं. उस रिस्क के सामने, जो यहां की जांबाज बकरियां (mountain goat) उठाती हैं. 

जांबाज निडर बकरियां, जो करीब-करीब सीधी खड़ी सिंजिनो (Cingino Dam) डैम की दीवार पर सीना ताने चढ़ती हैं. डैम की उंचाई इतनी कि चींटी भी गिरे तो एकाध हड्डी टूट जाए. (जानते हैं, अतिशयोक्ति है). मगर ऐसा क्यों करती हैं बकरियां? ये उनकी जरूरत है. बकरियां ये जोखिम लेती हैं, क्योंकि-

 
सीधी दीवार पर चढ़ने की वजह

जैसे हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी, वैसे ही होती हैं कम से कम दस-बीस बकरियां. जो सबसे आम प्रजाति है, वो तो जग ज़ाहिर है. (मेंऽऽऽऽह) 

जिन निडर बकरियों की बात यहां हो रही है, वो हैं ‘एल्पाइन इबेक्स’ या पहाड़ी बकरियां. पश्मीना शॉल सुना है? वो भी एक तरह की पहाड़ी बकरी के ऊन से ही बनता है. इबेक्स आम बकरियों की विदेशी  कज़न हैं. इनकी खासियत ये है कि ये खड़ी पहाडियों पर भी चढ़ सकती हैं. एक और बात: नैशनल जियोग्राफिक के मुताबिक, ये करीब 12 फुट की छलांग भी लगा सकती हैं. मतलब अगर ‘महाबली खली’ को लिटा दें, तो ये बकरियां उन्हें लांग जाएंगी. इनकी टांगें और खुर खासतौर पर खड़ी पहाड़ियों पर चढ़ने के लिए बने होते हैं. लेकिन कुदरत ने इन्हें इतना ताम-झाम क्यों दिया?

तो इसका सीधा जवाब होगा - जिसके लिए महात्मा गांधी ने दांडी मार्च किया, जिसके लिए प्रेमचंद का ‘दारोगा’ दुविधा में था, जो खा लो तो कर्ज चढ़ जाता है – ‘नमक’. जी, ये बकरियां जान जोखिम में डालकर नमक चाटने पहाड़ों पर चढ़ती हैं. ऊपर बताए इटैलियन डैम के साथ भी यही केस है. इस पर भी ये बकरियां नमक की खुराक लेने जाती हैं. 

नीचे सटा वीडियो देखिए. फिर बताते हैं नमक के लिए इस जोखिम की वजह.

बकरियों के लिए नमक क्यों जरूरी?

नमक को हम हमेशा ‘खट्टे’ में लेते हैं. माफ कीजिएगा, ‘हल्के’ में लेते हैं. इतना तो मालूम है कि ब्लड प्रेशर कम हो तो ‘लवणभाष्कर चूर्ण’ सुझाया जाता है. लेकिन क्या आपको मालूम है कि नमक हम इंसानों सहित इन जानवरों के लिए कितना जरूरी है. 

अच्छा, यहां जिस नमक की बात हो रही है, वो किचन का सफेद समुद्री नमक नहीं. वो पहाड़ों की चट्टानों का नमक है. जो थोड़ा बहुत काले नमक जैसा माना जा सकता है. इसे मिनरल्स भी कहते हैं. दरअसल किचन के सफेद नमक में सोडियम ज्यादा होता है. वहीं इन पहाड़ों की चट्टानों में ‘कैल्शियम’ और ‘पोटैशियम’ जैसे मिनरल्स भी होते हैं. 

ये भी पढ़ें - क्या गुलाबी रंग को 'लड़कियों का रंग' हिटलर ने बनाया?

कैल्शियम और सोडियम दो बड़े जरूरी मिनरल हैं. नर्वस सिस्टम यानी दिमागी तंत्र के लिए बहुत जरूरी हैं. दरअसल ये मिनरल तंत्रिकाओं के बीच कंम्युनिकेशन करती हैं. यानी संदेश यहां से वहां. मतलब शरीर के अंदर कोई बात इधर से उधर करनी हो, तो उसके लिए ये तत्व जरूरी हैं. अगर ये न हों, तो शरीर के कई जरूरी काम ठप पड़ जाएंगे. इनके बिना हाथ-पैर को पता नहीं चलेगा कि दिमाग उनसे क्या करवाना चाह रहा है. इसके अलावा कैल्शियम का एक काम और होता है. हड्डियों और मसल्स को मजबूती देना.

लेकिन पहाड़ों में एक दिक्कत है, कि यहां पेड़-पौधे कम उगते हैं. क्योंकि उपजाऊ मिट्टी कम होती है. पत्थर ज्यादा होते हैं. जो थोड़े-बहुत पौधे उगते हैं, उनमें उतने जरूरी तत्व नहीं होते जितना कि इन बकरियों को जरूरत पड़ती है. तभी जग्गू दादा बोलते हैं -

तो कारण साफ है. कैल्शियम और सोडियम जैसे जरूरी तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए इन बकरियों ने ये अनोखा तरीका निकाला है. इसीलिए वो पत्थरों को चाटती हैं. जुबान के जरिए तत्वों को सोखती हैं और जरूरी तत्वों की कमी को पूरा करती हैं.

thumbnail

Advertisement

Advertisement