टीवी सीरियल की दुनिया इन दिनों यूनीक नाम से सीरियल बनाने लगी है. उनमें से सबसे ऊपर नाम रखो ब्रह्मराक्षस का. ब्रह्मराक्षस- जाग उठा शैतान. शैतान जागेगा कि नहीं, इसका तो पता नहीं. लेकिन इंसान के अंदर उत्सुकता जागना लाजमी है. कि आखिर ये ब्रह्मराक्षस है क्या चीज? महज शब्द तो हो नहीं सकता. और शब्द भी हो तो इतना भयानक. इसके पीछे की कोई कहानी जरूर होगी. बात करते हैं उसी कहानी के बारे में.

ज़ीटीवी पर दिखाया जाने वाला ब्रह्मराक्षस माइथॉलजी के ब्रह्मराक्षस से कितना मिलता-जुलता है, या कॉपी है, या इंस्पायर्ड है, ये तो देखने वाले बताएंगे. अहम शर्मा और क्रिस्टल डिसूज़ा का किस ब्रह्मराक्षस से कनेक्शन दिखाया गया है सीरियल में, ये भी वो जानें. अपन असली वाले ब्रह्मराक्षस के बारे में बता रहे हैं.
किसने हमको मिलाया ब्रह्मराक्षस से
हम बचपन में इसका नाम सुनते तो थे. लेकिन बिगड़े रंग-ढंग में. देहात में लोग इसको बरम राकस कहते थे. बुजुर्गवार शाम होते ही अपना भौकाल जमाने और बच्चों को डराने के लिए कहानी सुनाते थे, अगिया बेताल की. जो जंगल में नाचता है. आग की लपटों के रूप में. आंखों से आग निकलती है. मुंह से भी. माने हर जगह से. ये वही ब्रह्मराक्षस है क्या?
असली, माने काल्पनिक
कहते हैं ब्रह्मराक्षस दरअसल ब्राह्मण आत्मा होती है. मरने के बाद शरीर खत्म, बस आत्मा. वो भी पूरी तरह समझदार. माने उसने जीवन में जितना कुछ देखा, पढ़ा और सीखा होता है. वेद, पुराण और शास्त्र सब कुछ याद रहता है. पिछले जन्म की भी जानकारी रहती है. लेकिन सब जानते हुए भी इसने अपनी जिंदगी में बहुत बुरे काम किए होते हैं. मतलब शैतानी टाइप. इसलिए मरने के बाद उसकी आत्मा शैतान हो जाती है. सारा ज्ञान होने के बाद भी वो इंसानों का शिकार करने लगता है. उनको खा जाता है.

ज्ञान तो इसके अंदर होता ही है. ताकत भी बेइंतेहा होती है. तमाम सारी शैतानी शक्तियों के दम पर लोगों को परेशान करता है.
किस्सों का हिस्सा
पुरानी कहानी मिलती है मयूरभट्ट की. कहते हैं कि ये हुए सातवीं सदी में. संस्कृत के बहुत बड़े ज्ञानी कवि थे. सूरज भगवान के भगत. सूरज की नजर करने के लिए 100 श्लोकों का ग्रंथ लिखा. इनको ब्रह्मराक्षस कसके धमकाइस था. हुआ ये कि कवि जी तपस्या करने पहुंचे सूर्य मंदिर. बताते हैं कि ये औरंगाबाद, बिहार में है. तो वहां तपस्या शुरू किए. और अपने श्लोक जोर-जोर से दोहराते जाते थे. वहीं पीपल के पेड़ पर एक ब्रह्मराक्षस अपना डेरा जमाए था. उसकी खोपड़ी सटक गई. वो मयूरभट्ट को झेलाने के लिए नाक से पतली आवाज में उनकी नकल करने लगा. इधर 100 श्लोक पूरे हुए, उधर ब्रह्मराक्षस बाबू औकात में आ गए. पीपल छोड़कर भाग खड़े हुए. वो पेड़ तुरंत सूख गया. कहते हैं कि तभी से इनके नाक नहीं होती है. और आवाज वहीं से लीक होने की वजह से हमेशा नोजल टोन में आती है.

विक्रम बेताल की कहानी तो पढ़े ही होगे. बेताल पच्चीसी सीरियल भी देखा ही होगा. बेताल पच्चीसी में शहबाज खान बेताल बनते थे. लेकिन इंसानियत की मदद करने के लिए. ये ब्रह्मराक्षस का कैरेक्टर नहीं है. इनकी काल्पनिक तस्वीरों में आंख से ज्वाला, लंबी सी जुबान और सिर में निकली सींगें दिखती हैं. 2014 में विक्रम भट्ट ने क्रीचर 3D पिच्चर भी बनाई थी इसी थीम पर.
दुश्मन ही नहीं, दोस्त भी हैं
ऊपर से डराते आ रहे हैं कि इसका मतलब ये नहीं कि ब्रह्मराक्षस का भौकाल कम है. महाराष्ट्र और साउथ इंडिया के कुछ स्टेट्स में इसकी पूजा होती है. भले प्यार से या डर से. केरल में तो घरों की बाहरी दीवारों पर उकेरे हुए मिल जाते हैं. बाकायदा इनकी पूजा होती है. मल्लियोर मंदिर है कोट्टयम जिले में. कहते हैं कि कोई बिल्डिंग-विल्डिंग बनवाने का काम शुरू करो, तो इनको चढ़ावा चढ़ा लो पहले. नहीं तो ये चढ़ गए तो सब उलट पुलट हो जाएगा. ब्रह्मराक्षस का रौला हर उस जगह पर है, जहां संस्कृत भाषा कभी न कभी यूज हुई हो. थाईलैंड, कंबोडिया जैसे साउथ ईस्ट कंट्री में भी ब्रह्मराक्षस का जिक्र कहीं न कहीं मिल जाएगा. जैन धर्म ग्रंथों में भी ब्रह्मराक्षस कहीं-कहीं पढ़ने में आता है. बस देखो, ये सीरियल इसका डर कहीं खत्म न कर दे.