इन दिनों सोशल मीडिया पर हीट वेव का एक पोस्ट वायरल है (UK heat wave viral post). दरअसल हुआ ये कि हाल ही में ब्रिटेन में 26 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर हीट वेव की चेतावनी दी गई. जिस पर सोशल मीडिया की जनता कह रही है. कि इतना तापमान तो हमारे घर के AC का रहता है. ब्रिटेन की जनता इतना तापमान नहीं झेल पा रही. (झेल तो हम कितना नहीं लेते? 46°C की गर्मी झेलकर, ये आर्टिकल मैं आपके लिए लिख रहा हूं ) खैर सवाल तो आता है कि हम इंसान अधिकतम कितना तापमान सह सकते हैं? इसका जवाब दिया जाता है- 35°C. चौंकिए मत, ये वो वाला तापमान नहीं है, जो अक्सर आप सुनते हैं. ये है वेट बल्ब टेंपरेचर (wet bulb temperature). अब ये क्या बला है, यह तो आपको आर्टिकल अंत तक पढ़कर ही पता चलेगा.
पारा तो 50 के पार चला जा रहा है, पर आपका शरीर कितना झेल सकता है?
इसी गर्मी के मौसम में Heat wave की वजह से कई लोगों ने अपनी जान गंवाई है. वहीं हजारों लोग Heat stroke का शिकार हुए हैं. भारत समेत दुनिया के कई देशों में चेतावनी जारी हो रही हैं. ऐसे में सवाल उठता है, गर्मी की वजह से शरीर में क्या होता है? कितनी गर्मी इंसानों के लिए खतरनाक मानी जाती है?

सिर्फ 35 डिग्री सेल्सियस वेट बल्ब तापमान, सुनकर कइयों को लग सकता है. कि हम तो पचासा भी झेल लेते हैं. ये क्या ही खतरनाक तापमान है. पर बता दें इंसानों का तापमान से रिश्ता थोड़ा कॉम्पलिकेटेड है. वो क्या चला है आज-कल नया, ‘सिचुएशनशिप’ टाइप चीज. दरअसल मामला ये है, हमारा शरीर एक फिक्स तापमान रखना चाहता है. ये तापमान 37 डिग्री सेल्सियस के आस-पास माना जाता है. इसमें भी अलग-अलग मत हैं. लेकिन सुविधा के लिए हम यही लेकर चलते हैं.
अब ये तापमान शरीर इसलिए रखना चाहता है, क्योंकि शरीर में तमाम केमिकल रिएक्शन इसी तापमान पर होती हैं. तमाम प्रोटीन इसी तापमान पर काम करते हैं. इसलिए जब भी गर्मी होती है, तो शरीर पसीना निकालने लगता है. त्वचा के पास खून की महीन नलियां फैल कर चेहरा लाल कर देती हैं. बहुत सारा केमिकल लोचा होता है शरीर के अंदर, ताकि शरीर का तापमान कम किया जा सके. इसे साइंस वाले लोग होमियोस्टैसिस नाम देते हैं.

हमको मालूम है कि शरीर ना तो बहुत ज्यादा ठंड झेल सकता है, ना ही बहुत ज्यादा गर्मी. सवाल, कि कितनी गर्मी? इसका एक सीधा सा जवाब 35 डिग्री सेल्सियस वेट बल्ब तापमान, एक्सपर्ट्स बताते हैं. लेकिन ये मामला इतना आसान नहीं है. काश कोई ऐसा एक फिक्स तापमान होता, तो हम ये कहानी यहीं खत्म कर देते. पर इसका पेंच समझने के बाद आप भी जान जाएंगे कि हम ऐसा क्यों कह रहे है.
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वेट बल्ब टेंपरेचर में करते ये हैं कि एक थर्मामीटर पर एक गीला कपड़ा लपेट देते हैं. और फिर ये देखते हैं कि कम से कम कितना तापमान रीडिंग में आता है. यानी कपड़े में लगे पानी के भाप बनने के चलते थर्मामीटर कितना ठंडा हुआ, ये भी इसमें देखा जाता है. इसी के चलते इसका नाम भी वेट बल्ब (wet bulb) है.
जैसे हमारे शरीर से पसीना निकलने पर, जब वो भाप बनता है. तो हमें ठंडा करता है. ऐसे ही इस थर्मामीटर पर लगा गीला कपड़ा भी थर्मामीटर को ठंडा करता है. इसलिए इसकी रीडिंग आम थर्मामीटर से कम रहती है. पर ये रीडिंग कितनी कम रहेगी, ये डिपेंड करता है नमी पर कि कितनी नमी हवा में मौजूद है.
दरअसल कपड़े का पानी भाप बनकर हवा में जाता है. लेकिन अगर हवा में नमी पहले से मौजूद होगी, तो कपड़ा धीरे सूखेगा और तापमान धीरे कम होगा. आपने क्रिकेट मैच के दौरान ऐसा अक्सर देखा होगा. जब चेन्नई जैसी आद्रता वाली जगहों पर मैच होता है. तो खिलाड़ी कुछ ही ओवर में गर्मी से पस्त नजर आते हैं. पसीने से लतपत थोड़ी-थोड़ी देर में पानी का इशारा करते हैं. भले वहां तापमान 40 डिग्री या उससे ज्यादा ना हो. लेकिन कम तापमान के साथ नमी मिलकर खिलाड़ियों के लिए बहुत ज्यादा मुश्किलें पैदा करता है.

जैसा कि हम जानते हैं कि गर्मी में तापमान कम करने के लिए हमारा शरीर भी कई तरकीबें लगाता है. जिनमें से एक पसीना भी है. पसीना जब शरीर की त्वचा पर आता है और भाप में बदलता है. तो यह साथ में शरीर की गर्मी भी कम करता है. हमने ये भी जाना कि अगर वातावरण में नमी ज्यादा हो, तो पसीना देर से सूखता है. जिसकी वजह से तापमान कम करने में शरीर को दिक्कत होती है. जैसे हम जानते ही हैं कि उमस के दिनों में कपड़े देर से सूखते हैं वैसे ही.
यही वजह है कि यह नहीं कहा जा सकता कि इतनी बहुत गर्मी है. क्योंकि मामला सिर्फ तापमान का नहीं है. मामला है कि किस कंडीशन में हमारा शरीर खुद को कितना ठंडा कर सकता है. यही कारण है कि एक्सपर्ट्स 35 डिग्री सेल्सियस वेट बल्ब टेंपरेचर को इंसानों के लिए खतरनाक मानते हैं. आमतौर पर इसे 40 डिग्री सेल्सियस तापमान और 75% आद्रता (मौसम में नमी) के पास माना जाता है.
यह तापमान खतरनाक हो सकता है. जानलेवा भी हो सकता है. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि इतने तापमान पर पहुंचते ही, जान चली जाएगी. एक्सपर्ट्स बताते हैं कि लगातार 6 घंटे तक ऐसी ही परिस्थिति में रहने पर जान भी जा सकती है.

इस बारे में सीके बिरला हॉस्पिटल, गुरुग्राम के इंटरनल मेडिसिन लीड कंसल्टेंट, डॉ तुषार तायल ने हमें बताया,
जब वातावरण का तापमान बहुत ज्यादा बढ़ जाता है. जैसा कि हाल ही में हमने दिल्ली जैसे शहरों में देखा कि तापमान 50 डिग्री के करीब पहुंच गया था. यह तापमान शरीर के सामान्य तापमान (37) से 13-14 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा.
ऐसी गर्मी में शरीर के अंगों में अलग-अलग बदलाव होने शुरू हो जाते हैं. सबसे पहले कोशिकाओं के बाहर की परत या मेंबरेन टूटना शुरू हो जाती है. शरीर का प्रोटीन प्रभावित होता है और शरीर के एंजाइम्स काम करना बंद कर देते हैं.
वो आगे बताते हैं कि स्ट्रेस की वजह से शरीर में साइटोकाइनिन नाम के तत्व बनने लगते हैं. इन्फ्लेमेटरी रिस्पॉन्स होता है. ऐसी वजहों से खून गाढ़ा हो सकता है और ब्लड प्रेशर कम हो जाता है. जिसकी वजह से दिमाग की तरफ खून नहीं पहुंच पाता है. और बेहोशी हो सकती है. ऐसे में मांसपेशियां हमेशा के लिए खराब हो सकती हैं. सही समय पर इलाज ना मिले तो मौत भी हो सकती है.
हाल में हमने देखा कि ब्रिटेन जैसे देशों में 26 डिग्री सेल्सियस पर ही हीट वेव की चेतावनी जारी कर दी गई. वहीं हमारे देश में तापमान इसका दोगुना तक पहुंच जाता है. समझा जा सकता है. जिन जगहों पर लोग ठंडे मौसम के आदी हैं. वहां कम तापमान पर भी हीट वेव को खतरनाक माना जाता है. वहीं दूसरी जगहों पर यह तापमान ज्यादा हो सकता है.
माने इंसानों के अधिकतम तापमान सहने की क्षमता, उनके रोजमर्रा के तापमान पर. तापमान के साथ उस जगह की नमी के हाल. अगर नमी या उमस ज्यादा होगी, तो शरीर कम तापमान पर भी खुद को उतना ठंडा नहीं कर पाएगा. ऐसे में ऐसी तमाम चीजें यह तय करती है कि कोई इंसान कितना अधिकतम तापमान झेल सकता है.
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