कुलमंदन खान जिन्होंने बाद में "शाह" की उपाधि ली थी वो लामजूंग क्षेत्र के राजा थे. लामजूंग आज के नेपाल देश के 77 ज़िलों में से एक है. उनके बाद उनके बेटे यशोब्रह्म शाह राजा बने. यशोब्रह्म के तीन बेटे तीन अलग-अलग राज्यों के राजा बने. सबसे बड़े ने लामजुंग पर शासन किया, दूसरे बेटे ने कास्की और सबसे छोटे बेटे ने गोरखा पर शासन किया.
यशोब्रह्म शाह के सबसे छोटे बेटे थे द्रव्य शाह ने गोरखा राज्य पर साल 1559 से 1570 तक पर राज किया. उनके बेटे पुरंदर शाह को पूर्ण शाह के नाम से भी जाना जाता है, इन्होंने 1570 से 1605 तक यानी करीब 35 साल गोरखा राज्य पर शासन किया. लेकिन उनके शासन के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताया गया है. किताबों से बस इतना मालूम होता है कि 1605 में उनकी मृत्यु हो गई.
पूर्ण शाह के पहले बेटे छत्र शाह ने अपने पिता की मृत्यु के बाद 1605 से 1609 तक शासन किया था. 1609 में उनकी मौत हो गई. उनका कोई वारिस नहीं था. पूर्ण शाह के दूसरे बेटे राम शाह ने 1609 से 1633 तक शासन किया. उन्होंने गोरखा राज्य में कई नए सिस्टम्स की शुरुआत की. उन्होंने न्याय व्यवस्था की भी स्थापना की. ‘न्याय नैयके गोरखा जानू' (गोरखा जाओ अगर आपको न्याय चाहिए) एक लोकप्रिय कहावत बन गई. नेवार के व्यापारियों से गोरखा लोगों को मिलने वाले वो पहले राजा थे. 1633 में उनकी मौत हो गई.
राम शाह के बेटे दंबर शाह ने 1633 में राजगद्दी संभाली. लेकिन 1645 में उनकी मौत हो गई. 1645 से 1661 तक दंबर शाह के पुत्र कृष्ण शाह का शासन था. इसके बाद कृष्ण शाह के पुत्र रुद्र शाह ने 1661 से 1673 तक शासन किया.
जिसके बाद शाह वंश के पृथ्वीपति ने 1673 से 1716 तक शासन किया. वो पहले ऐसे राजा थे जिन्होंने गोरखा साम्राज्य के विस्तार का सपना देखा था. पृथ्वीपति के पोते नरभूपाल शाह, जिन्होंने 1716 से 1743 तक शासन किया वह गोरखा साम्राज्य के विस्तार का प्रयास करने वाले पहले राजा थे. लेकिन वो 1743 में नुवाकोट के साथ लड़ाई में जीत हासिल करने में असफल रहे. उनकी पत्नी चन्द्रप्रभावती और उनके बेटे पृथ्वी नारायण ने उनकी मौत के बाद तीन साल तक राज संभाला. यानि 1746 तक.

राजा पृथ्वीपति, फ़ोटो- विकिपीडिया
नए नेपाल का गठन अब आपको बतातें कि नए नेपाल का गठन कैसे हुआ था, नरभूपाल शाह के बेटे पृथ्वी नारायण शाह का जन्म 1723 में हुआ था. वे गोरखा साम्राज्य के अंतिम राजा माने जाते हैं और साथ ही साथ उन्हें आधुनिक नेपाल का पहला शाह राजा भी कहा जाता है. उन्होंने तीन राज्यों में जीत हासिल की थी. 1769 में उन्होंने काठमांडू के मल्ला, पाटन और भदगांव को जीतकर मॉडर्न नेपाल का गठन किया. जिसकी राजधानी राजधानी काठमांडू थी. 1775 में उनकी मौत हो गई थी.
बात पहले से शुरू करते हैं, पृथ्वी नारायण एक महत्वाकांक्षी शासक थे. वह गोरखा के आसपास की कमजोर रियासतों पर जीत हासिल करके अपने क्षेत्र का तेजी से विस्तार कर रहे थे. 1767 में जब पृथ्वी नारायण ने पहली बार मल्ला, पाटन और भदगांव राज्यों पर क़ब्ज़ा करने की कोशिश की तब काठमांडू के राजा ने ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनका रास्ता रोक दिया. लेकिन ठीक 2 साल बाद यानी 1769 में जब ईस्ट इंडिया कम्पनी ने काठमांडू के राजा से समर्थन वापस लिया तब मौक़ा देख पृथ्वी नारायण ने हमला बोल दिया और तीनों राज्यों पर क़ब्ज़ा जमा लिया. जिसके बाद उन्होंने "नेपाल साम्राज्य" को बनाया और नए नेपाल को एक मजबूत और स्वतंत्र राज्य में तब्दील किया. उसके बाद उन्होंने तराई , कुमाऊं , गढ़वाल, शिमला और सिक्किम साथ ही तिब्बत के बड़े हिस्से और इनर हिमालय की घाटियों पर कब्जा कर लिया. यहां तक तो सब ठीक था लेकिन उसके बाद उनकी महत्वकांक्षा ने उन्हें मुश्किल में डाल दिया.

फ़ोटो- मैप ऑफ़ द डमिन्यंस ऑफ़ द हाउस ऑफ़ गोरखा, फ़्रैन्सिस हैमिल्टन की 1819 में लिखी किताब एन अकाउंट ऑफ़ द किंगडम ऑफ़ नेपाल से ली गई है.
उन्होंने मकवानपुर पर भी जीत हासिल कर ली. मकवानपुर तब बंगाल साम्राज्य के तहत आता था. जिसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी और बंगाल के नवाब के संयुक्त सैन्य बलों के आगे पृथ्वी नारायण ने आत्मसमर्पण कर दिया, और बंगाल ने मकवानपुर वापस ले लिया. उस समय नेपाल की सीमा पंजाब से सिक्किम तक थी, अगर इसकी तुलना आज के वक़्त के नेपाल से करें तो ये लगभग दोगुनी थी. गोरखाओं का सिक्किम में प्रवास मकवानपुर में मिली हार के बाद पृथ्वी नारायण ने अपनी नेपाल की सीमा को सुरक्षित कर शांतिपूर्ण तरीक़े से अंग्रेजों से दूरी बना ली. उनके साथ व्यापार भी बंद कर दिया. इससे पहले कि वो प्रभावी ढंग से अपने नए देश को व्यवस्थित कर पाते, 1775 में उनकी मृत्यु हो गई. उनके बाद उनके बेटे, प्रताप सिंह शाह ने गद्दी संभाली.
18वीं शताब्दी के बीच में सिक्किम पर गोरखा साम्राज्य द्वारा आक्रमण किया गया था और सिक्किम 40 से अधिक सालों तक गोरखा शासन के अधीन रहा. 1775 और 1815 के बीच, पूर्वी और मध्य नेपाल के लगभग 1,80,000 नेपाली और गोरखा सिक्किम में बस गए. आज के पश्चिम बंगाल का दार्जीलिंग तब सिक्किम का हिस्सा था. यानी यहां भी नेपाली लोग बहुसंख्यक थे. जब अंग्रेजों ने भारत पर क़ब्ज़ा जमाया तब सिक्किम ने अंग्रेज़ी हुकूमत के साथ समझौता कर लिया क्योंकि दोनो का एक दुश्मन एक था,और वो था...नेपाल. जिसके बाद नेपाल ने बदले में सिक्किम पर हमला किया और तराई सहित अधिकांश क्षेत्र पर दोबारा क़ब्ज़ा जमा लिया.
तब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1814 में नेपाल पर हमला किया, जिसके परिणामस्वरूप एंग्लो-नेपाली युद्ध हुआ. इसके ब्रिटेन और नेपाल के बीच की सुगौली संधि और सिक्किम और ब्रिटिश भारत के बीच टिटलिया की संधि हुई. जिसमें नेपाल को बाध्य होकर सिक्किम को ब्रिटिश भारत में सौंपना पड़ा.
इसके बाद ब्रिटिश हुकूमत को दार्जीलिंग भा गई, इसका कारण था यहां का ठंडा मौसम, और भूटान और नेपाल जाने के रास्ते में इसका होना. और इसके बाद ब्रिटिश हुकूमत ने 1835 में सिक्किम के राजा से दार्जीलिंग को छीन लिया और अपना क़ब्ज़ा जमा लिया. 1850 में दार्जीलिंग को बंगाल प्राविन्स का हिस्सा बनाया गया. लेकिन 1905 में इस बिहार के भागलपुर ज़िले का हिस्सा बनाया गया. लेकिन सिर्फ़ 7 सालों में इसे वापस बंगाल में जोड़ दिया गया.
इस इतिहास को बताने का मकसद इतना था की आप पश्चिम बंगाल की उत्तरी इलाक़े में स्थित दार्जीलिंग और अन्य पहाड़ी लोगों की गोरखालैंड की मांग और उनके गोरखावंश की राजनीति का इतिहास समझ सकें.