symbolic image. फोटो क्रेडिट: reuters
गोलिये की बहू के मरने की ख़बर मिली दोपहर को. स्कूल से आए और बैग फेंका. और पता चला गोलिये की बहू मर गई थी. नाम याद नहीं है उसका. गांव में सब गोलिये के बहू ही कहते थे. पांचवी क्लास में थी उस वक़्त. पर इतना पता था की गोलिये की बहू बड़ी दिलदार औरत है. मम्मी से कहा करती थी कि कुछ भी हो जाए अपने छोटे बेटे को पढ़ाएगी. जैसे भी करके. गूंगा-बहरा था. बड़े वाला गुरुकुल में पढ़ने भेजा हुआ था. किरोसिन छिड़क कर आग लगा ली थी. वह चार-पांच शाम पहले ताई जी को बता रही थी कि उसे तो कांटे का दर्द भी सहन नहीं होता. फिर कैसे लगा ली थी खुद को आग. इसी सब सोच में पड़े थे सब. दादाजी भागे गए थे जैसे ही पता चला, पर तब तक वो ख़त्म हो चुकी थी.
"न्यू कह री थी की ओ ताऊ बचा ले रै मनै. मै मरणा ना चाहूं. इधर-उधर आंगण मै भाग री थी. सारे लत्ते उतर कै फैंक दिए. अर धीरे-धीरे सारी जल गी. कुछ नहीं बच्या. एक तो इणके घरआलों नै पानी फैंक दिया. रेत फैंकणा था या कंभल से ढक देणा था. के बेरो बच जाती. उसकी जेठानी कह री थी कि सोने के लिए गयी थी भीतर कमरे मै, दस ही मिनट मै आंच लगा के बाहर आइ. जेठानी तो न्यू शुक्र मना रही सै कि अच्छा हुआ बाहर आगी आग लगा कै, अगर कमरे में ही रहती तो उसके कपड़े भी जल जाते "
पहली बार किसी के मरने के बारे में इतना डिटेल में सुना था. दोपहर की रोटी भी नहीं खाई गई. फिर नीम तले बैठ कर औरतों की पंचायत हुई रोज़ की तरह ही हुई. फर्क इतना था कि आज चाची-ताइयों के साथ कुछ पड़ोस की लुगियां भी आ गई थीं. सबने मिलकर कौसा गोलिये की बहू को.
"अपने बालकों की तरफ तो देख लेती.
बाप बिना तो फेर भी मां बच्चे पाल ले, पर किसी की मां नहीं मारनी चाहिए.
सूणया है भांणजे के साथ सोती पकड़ी गई, के मुंह दिखाती.
ऐ बिरा, जैसी भी थी, अपणा घर संभाल री थी "
गोलिये की बहू के मरते ही गूंगे बेटे को स्कूल से बुला लिया गया. बड़े वाले से खेतों में काम करवाया गया. प्राइवेट स्कूल से सरकारी में डाल दिया. गांव में कहते हैं कि काका ताऊ, काका ताऊ ही होते हैं आखिर. गोलिया दारू पीता. पूरी-पूरी रात घर नहीं आता. गोलिये की बहू मर तो गयी थी. पर लोगों की यादों में तो काफी दिन तक रही. एक पड़ोस के बाबा ने बात फैलाई कि उन्होंने गोलिये की बहू का भूत देखा. उनका बैंत पकड़ लिया था. बिलकुल सफ़ेद साड़ी पहने हुए थी. धीरे-धीरे गोलिये की बहू सबको दिखने लग गई. आज इसने देखी तो किसी और ने. किसी की खाट के पास आकर बैठ जाती तो किसी का हाथ पकड़ लेती. कोई कहता कि वो गोलिये से बदला लेने आई है. कोई कहता ममता खींच लाई उसको. एक औरत तो इतनी डर गयी थी कि सुबह चार बजे भैंसों को चारा डालने भी दो तीन लोगों को साथ लेकर जाती. दो महीने बाद गोलिये की लाश मिली. गांव के एक प्राइवेट स्कूल में. आंखें और जीभ बाहर निकले हुए थी. और गले में कच्ची रस्सी का फंदा. जिस लड़की ने उसकी लाश सबसे पहले देखी. उसे एक महीने तक बुखार रहा. गोलिये के घरवाले बोल रहे थे ज्यादा दारू पी ली होगी. सुसाइड कर ली नशे में. गांव वाले फुसफुसा रहे थे कि जमीन के लिए भाई को मार दिया. गोलिये की बहू थी तब तक किसी की हिम्मत नहीं थी. अब इनके वंश को कोई नहीं बचा सकता. पुलिस के आने से पहले ही सारे क्रिया-कर्म निपटा दिए. अभी 12 साल बाद गोलिये का बड़ा बेटा मर जाता है. फिर से घरवालो नें बोला कि बीमार हो गया था. गांववाले बोला कि मारा गया है. भाइयों की नज़रें हैं जमीन पर. ये गूंगा-बहरा तो किससे लड़ेगा. गोलिये की बहू मर गई. गोलिया नहीं रहा. गोलिये का बड़ा बेटा भी अब मर गया. रह गया है तो गोलिये का गूंगा-बहरा बेटा और डेढ़ किला जमीन.
(ये स्टोरी ज्योति ने लिखी है.)