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कानपुर की मनोहर कहानियां: गणेशजी मोटू

तब की बात जब पूरे मुल्क में गणेशजी की मूर्तियां दूध पीने लगी थीं!

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symbolic image. फोटो क्रेडिट: reuters
nikhil'मोहन जोदारो' की सभ्यता में जो रोल ऋतिक रोशन का है. कानपुर की सभ्यता में वैसा ही कुछ रोल निखिल सचान का समझो. इनकी सबसे सही बात ये है कि ये हर जगह घुस जाते हैं. कानपुरियों के बीच 'घुसना' सफल होने का प्रबल प्रमाण माना जाता है. निखिल आईआईटी + आईआईएम में घुसे. क्रमश: लेखनबाजी में लग गए. जइसे एक कनपुरिया कुल्ला भर सामग्री के इकट्ठा होते ही पान मसाले को पिच्च से कहीं भी गिरा देता है. ठीक वैसे ही निखिल भी कनपुरिया किस्सा गिरा देते हैं. दी लल्लनटॉप में आप उनकी मनोहर कहानियां पढ़ रहे हैं. आज पढ़िए मोटू गणेशजी का किस्सा. (एक बात और, यहां कुछ शब्दों को हम वैसे ही जाने दे रहे हैं, जैसे लेखक ने लिखे हैं. ताकि बात उसी तरह पहुंचे, जैसी लेखक ने समझाने की कोशिश की है.)
 

कानपुर की मनोहर कहानियां: गणेश जी मोटू

गणेश जी की मूर्ति दूध पी रही है. पूरे देश में हल्ला था. हमाए कानपूर में भी हल्ला था की गणेश जी दूध सुटुक ले रहे हैं. मंगत का बेटा स्कूल से लौटा तो रस्ते भर दोस्तों से क़िस्से सुनता हुआ आया. कोई कह रहा था की सूंड़ से लप्प करके पी जा रहे हैं, कोई कह रहा था कि मोटे वाले दांत पे चम्मच लगाओ तो चम्मच ख़ाली हो जा रहा है. राजू उछलते, कूदते, हैरान सा घर लौटा तो मम्मी की नाम के दम कर के बैठा था. “पापा कहां है, गणेश जी को दूधू पिलाएंगे, पापा कब आएंगे”. मंगत चमड़ा फैक्ट्री में काम करता था, देर शाम सात बजे तक घर आ जाता था. अभी सात नहीं बजे थे, फिर भी राजू एक डग बैठ नहीं पा रहा था. वो ‘लिटिल स्टुअर्ट’ वाली पोएम जल्दी-जल्दी याद कर रहा था ताकि पापा को सुनाकर ख़ुश कर सके और पापा उसे गणेश जी को दूध पिलवाने ले चलें. “पापा! पापा आ गए. पापा गणेश जी...पापा...दूध...पापा...आपको पता है कुछ”? राजू मंगत से चिपट गया था और ज़ोर से हांफ रहा था. “क्या! अरे हुआ क्या बाबू”, मंगत ने चमड़ा फैक्ट्री की सारी थकान कंधे पर टंगे झोले के रूप में उतारकर रख दी. उसका शरीर अब चमड़े से नहीं, बल्कि राजू के सर पर लगे सरसों के तेल की चटक महक से गमक रहा था. “पापा गणेश जी दूध पी रहे हैं. जल्दी मंदिर चलो” “अरे ऐसे थोड़ी होता है”, मंगत ने बात टालने की कोशिश की. घर में दूध नहीं था. Kanpur Manohar Kahaniyan “नहीं पापा. सच्ची. सोनू, विक्की, अन्नू सब दूध पिला के आए हैं. मूर्ति ऐसे..सुटुक करके...दूध पी जाती है”, राजू ने एक हाथ से रिंग बनाकर उसमें से दूसरा हाथ घुसा के सूंड़ बनाई. मंगत को हंसी आ गई. वो समझ गया था कि बच्चा उसकी बात नहीं मानेगा. मंगत की जेब में बीस रुपये थे, इतने में आधा लीटर दूध आ जाएगा, ये सोचकर उसना साइकिल निकाली और दोनों फटाफट मंदिर की और निकले. “पापा चम्मच भूल गए, इश”, बच्चा वापस घर की ओर दौड़ा. “गणेश जी बिना चम्मच दूध कैसे पिएंगे, बुद्धू”, माथे पे थपकी मारकर वो चकरी जैसा दनदनाता हुआ चम्मच ले आया और फिर साइकिल के डंडे पर उछल कर बैठ गया. दस मिनट में दोनों मंदिर के भीतर थे. “चम्मच कहां लगाऊं”, राजू ने पूछा “सूंड पर शायद”, मंगत ने कहा “पिया क्या? थोड़ा सा पिया है शायद”, राजू ने कहा “नहीं पिया क्या”, राजू ने पुछा “पापा नहीं पी रहे हैं गणेश जी, तुम पिलाओ न”, राजू ने कहा कुछ देर मंगत ने भी कोशिश की. लेकिन गणेश जी दूध पीने को तैयार नहीं थे. उसने पुजारी जी से पूछा तो पुजारी जी बोले कि मूर्ति दूध पी रही है. सुबह से कितने लोग दूध पिला के गए हैं. मन में गणेश जा का भाव करके पिलाओ. राजू और मंगत ने “जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा” का जाप करके फिर कोशिश की लेकिन मूर्ति ने दूध नहीं पिया. “कौन जात हो”, पुजारी ने पूछा “जी. हरिजन हैं” “हरिजन क्या होता है बे. पूरा बोल” “दलित हैं महाराज”, मंगत ने डरते हुए कहा “अब चप्प. ये दलित हरिजन क्या बकते हो. चमार हो”? “जी. चमार हैं. चमड़ा उधेलते हैं”, मंगत रुआसा हो रहा था. राजू मंगत को सकपकाया सा देख रहा था. “हां तो भागो यहां से. मूर्ति रुष्ट हो जाएगी तो किसी और से भी नहीं पिएगी”
राजू दुखी हो गया. “गणेश जी चमार का दूध नहीं पीते क्या”? उसने पूछा. मंगत ने मुस्कुराते हुए मूर्ति के पेट की ओर इशारा किया. “देखो कितना पेट फूल गया है गणेश जी का. एकदम फुल हो गया है. तुम भी तो रात में रोज़ दूध पीने से मना करते हो. क्या बोलते हो तुम”?
“मम्मी पेटू फुल है. दूध नहीं पी पाउंगा प्लीज़”, राजू खिलखिलाते हुए बोला “हां. तो बस. गणेश जा का पेटू फुल हो गया है. पुजारी ऐसे ही बक रहा है” राजू ज़ोर से हंसा. उसने गणेश जी के पेट की और देखा तो उसकी हंसी रुक ही नहीं रही थी. “पापा गणेश जी इतने मोटे क्यों होते हैं”? “क्योंकि सब लोग उनको दूध पिला पिला के मोटा कर दिए हैं. मम्मी भी रोज तुमको दूध पीने को इसीलिए कहती है. देखो तुम कैसे टिटिहरी जैसे हो और गणेश जी कितने मोटू हैं”
“गणेश जी मोटू”, राजू ज़ोर से हंसा. और उचक के साईकिल के डंडे पर बैठ गया. वो रस्ते भर मंगत को लिटिल स्टुअर्ट वाली पोएम गाकर सुनाता रहा. मंगत भूल गया की वो हरिजन है, या चमार, या फिर दलित. वो राजू का बाप है, उसे बस यही याद रहा.
निखिल की कहानियों की दो किताबें आ चुकी हैं. नमक स्वादानुसार और जिंदगी आइस पाइस. इनके अमेजन लिंक नीचे दिए गए हैं. पसंद आए तो जरूर खरीदें. किताबें हैं. काटती नहीं हैं.
  1. Namak Swadanusar
  2. Zindagi Aais Pais
 
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