अगर ये देखने की कोशिश की जाए कि देश में कब-कब Protest शब्द ज्यादा बार search किया गया है. तो फरवरी 2016, दिसंबर 2019 और दिसंबर 2020 जैसी तारीखें सामने आती हैं. ये तारीखें हैं 2016 के JNU protest, farmers' protest 1.0 और 2.0 वगैरह की हैं. नीचे लगे ग्राफिक से आप 2014 से लेकर अब तक मोदी सरकार में हुए बड़े प्रोटेस्ट्स की टाइमलाइन समझ सकते हैं.
Farmers Protest: जेएनयू प्रोटेस्ट से लेकर CAA-NRC विरोध तक, पिछले दस सालों के बड़े आंदोलन
आजादी के बाद देश के इतिहास में अब तक सिर्फ एक ऐसा आंदोलन हुआ है, जिसकी वजह से चुनी हुई सरकार को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी हो. लेकिन मोदी सरकार में हुए आंदोलन कितने हद तक सफल रहे.
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पीएम मोदी भी ले चुके हैं आंदोलन में हिस्सा
आजादी के बाद देश के इतिहास में अब तक सिर्फ एक ऐसा आंदोलन हुआ है, जिसकी वजह से किसी चुनी हुई सरकार को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी हो. ये था 1974 का नव निर्माण आंंदोलन. इस आंदोलन में छात्रों और आम लोगों ने मिलकर तब की गुजरात सरकार के खिलाफ आंदोलन किया. आंदोलन इतना बढ़ गया कि उस समय के मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ गई. इसी आंदोलन से जयप्रकाश नारायण के ‘सम्पूर्ण क्रांति’ आन्दोलन की नींव पड़ी. उस आंदोलन की बात इसलिए हो रही है क्योंकि आंदोलन के युवा चेहरों में एक चेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी था. जो उस समय गुजरात के इस आंदोलन में सक्रिय थे. गौर करने वाली बात ये है कि मोदी सरकार के खिलाफ भी कई Protests हुए हैं. तो आखिर उन protests के पी़छे क्या वजहें रही हैं और उनका क्या अंजाम निकला.
मोदी सरकार में हुए बड़े आंदोलन
कहानी शुरू होती है 2016 से, जब सरकार में पहला ऐसा बड़ा प्रोटेस्ट हुआ जो काफी सुर्खियों आया. शुरुआत दिल्ली की जवाहर लाल यूनिवर्सिटी (JNU) से होती है. जब JNU में संसद हमले के दोषी अफजल गुरु और कश्मीरी अलगाव वादी मकबूल भट्ट को दी गई फांसी की सजा के खिलाफ प्रदर्शन किए जा रहे थे. वहां देश विरोधी नारे लगने के आरोप लगाए गए और JNU स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को sedition के चार्ज में दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार भी कर लिया. जिसके बाद JNU समेत देश की अलग-अलग यूनिवर्सिटी में इसके विरोध में कई Protests हुए.
ये तो थी शुरुआत अब बात करते हैं मोदी सरकार में हुए सबसे बड़े प्रोटेस्ट में से एक की.
तारीख थी 11 दिसंबर साल था 2019. देश की संसद ने एक कानून पास किया Citizenship amendment act, 2019 या CAA. कानून का ड्राफ्ट बिल आने पर ही असम में इसकी चर्चा होने लगी थी. लेकिन बिल पास होने के बाद पहले असम और फिर देश के बाकी के हिस्सों में इसके विरोध में जगह जगह लोग इकट्ठे होने लगे.
आम आदमी से लेकर मशहूर हस्तियां तक इसका हिस्सा बनीं. जाने माने इतिहासकार रामचंद्र गुहा भी इसका हिस्सा बने. यहां तक कि protest करते वक्त पुलिस ने उन्हें डिटेन भी किया था. हर तरफ बस इसी सब की खबरें थी. एक तरफ थे वो लोग जो CAA-NRC के समर्थन में थे और दूसरी तरफ वो जो इसके विरोध में थे…

इन सब में दिल्ली के शाहीनबाग का protest कुछ ज्यादा सुर्खियों में आया. कई आरोप प्रत्यारोप भी लगे. लेकिन इससे पहले सरकार और प्रदर्शनकारियों में कोई सहमती बन पाती, दुनिया में covid-19 आ गया. देश समेत दुनियाभर में लॉकडाउन लगाना पड़ा. आखिर अंत में बिना किसी ठोस नतीजे के CAA प्रोटेस्ट्स खत्म हुए.
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Farmer’ Protest दिसंबर, 2020
सितंबर, 2020 में सरकार ने एक और बिल लेकर आई. जिसमें तीन फार्म लॉ लाने की बात कही गई थी. बिल देश की संसद में पास हुआ. लेकिन देश के किसान संगठनों खासकर उत्तर भारत के किसान संगठनों के गले ये कानून नहीं उतरा. The Tribune ने ये तक लिख दिया कि ये कानून किसानों को कार्पोरेट्स की दया पर छोड़ देगा (Ordinance to put farmers at mercy of corporates).

फिर क्या था देश भर के कई किसान संगठनों ने किसानों के साथ मिलकर protests किए. इसमें खासकर कई प्रोटेस्ट दिल्ली के बार्डर से जुड़े एरिया थे. कई दिनों तक किसान वहां धरने में बैठे. सरकार और किसान नेताओं के बीच कई राउंड की बैठकें हुई लेकिन कोई हल नहीं निकला. फिर आती है 26 जनवरी, देश गणतंत्र दिवस मना रहा था. और किसान प्रदर्शन करने के लिए दिल्ली में दाखिल हुए. प्रोटेस्ट के लिए तय रास्ते से अलग गए और लाल किले तक जा पहुंचे. लाल किले में किसान झंडे भी पहराए गए.
इस सब के बाद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बयान जारी किया और दोनों सदनों से कानून वापस ले लिए गए.
Agniveer Protests, जून 2022
सेना से जुड़े protests देश में शायाद ही देखने को मिलते हैं. अग्निवीर या अग्निपथ प्रोटेस्ट इस मामले में अलग था. हलांकि ये protests सीधे तौर पर सेना से जुड़े नहीं थे बल्कि सेना भर्ती को लेकर नौजवान सरकार से खफा थे. मामला ये था कि जून 2022 में सरकार अग्निपथ योजना लेकर आती है जिसमें कम उम्र से ही नौजवानों को सेना में जाने का मौका दे रही थी. लेकिन पेच ये था कि ये पर्मानेंट सेना की नौकरी नहीं थी. न ही इसमें पेंशन जैसी सुविधाएं थीं. बाकी इस योजना के बारे में आप नीचे लगी लिंक से और जान सकते हैं.
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खैर इस योजना से जुड़ी ये सब बातें तैयारी करने वाले अभ्यार्थियों को खास रास नहीं आई. देश के कई हिस्सों में युवा सड़कों पर उतर गए. कई जगह सड़कों और रोड़ों पर आगजनी और तोड़-फोड़ भी हुई.
मामला बढ़ता देख सरकार ने ज्यादा कुछ तो नहीं किया बस साल 2022 की भर्ती के लिए उम्र 21 साल से बढ़ा कर 23 साल कर दी.
वीडियो: किसान आंदोलन पर विदेशी मीडिया ने क्या लिखा है?