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100 साल की बूढ़ी औरत मदद मांगने आई, DM ने उसे गोद ले लिया

अगर आपको लगता है कि सरकारी अधिकारी ठीक से काम नहीं करते, तो ये जरूर पढ़िए.

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कोई बड़ा सरकारी अधिकारी अच्छा काम करता है, किसी अच्छी वजह से खबरों में आता है, ऐसी मिसालें कम ही देखने को मिलती हैं. फैजाबाद के DM अनिल पाठक और इस बूढ़ी महिला की कहानी ऐसी ही गिनी-चुनी अच्छी खबरों में गिनी जानी चाहिए ( सांकेतिक तस्वीर)
हममें से ज्यादातर को लगता है कि सरकारी अधिकारी थोड़े खडूस होते हैं. अपना काम ठीक से नहीं करते. ये बात कुछ हद तक सही भी है. मगर, हाथ की पांचों अंगुलियां बराबर कहां होती हैं. ये खबर ऐसे ही एक सरकारी अधिकारी की है.
फैजाबाद में एक गांव है. मुमताज नगर. यहां रहती हैं एक बुजुर्ग महिला. नाम रमापति, उम्र 100 बरस से कुछ ज्यादा. एक तो इतनी उम्रदराज, ऊपर से अकेली. परिवार के नाम पर कोई नहीं. रमापति एकदम बेसहारा थीं. आमदनी का भी कोई जरिया नहीं था. हार-थककर रमापति ने प्रशासन का दरवाजा खटखटाया. सर्दी में ठिठुरते हुए किसी तरह घिसटकर वो जिलाधिकारी के ऑफिस पहुंचीं. पहचान पत्र वगैरह साथ लाई थीं. इस उम्मीद में कि शायद सरकारी मदद मिल जाए उन्हें. वो इतना सा मांगने गई थीं, लेकिन उन्हें बहुत सारा मिल गया. अब रमापति अपनी आगे की पूरी जिंदगी चैन और आराम के साथ गुजारेंगी. बिना किसी तकलीफ के. और ये सब मुमकिन हुआ है फैजाबाद के जिला मैजिस्ट्रेट अनिल कुमार पाठक की वजह से. DM पाठक ने बुजुर्ग रमापति की गुजर-बसर का जिम्मा लिया है. वो जब तक जिंदा रहेंगी, तब तक. लोग बच्चा गोद लेते हैं, DM पाठक ने इस बूढ़ी महिला को मां बनाकर गोद लिया है. सरकारी योजनाओं की मदद से तो वो रमापति की सहायता कर ही रहे हैं. इसके अलावा निजी तौर पर भी उन्होंने रमापति का खर्च उठाने का वादा किया है.
DM अनिल कुमार पाठक के साथ रमापति. सरकारी तंत्र लोगों की परेशानी सुनने में इतना धैर्य दिखाए और जरूरतमंदों को जल्द से जल्द मदद मुहैया कराए, तो इसकी तारीफ तो होनी ही चाहिए.
DM अनिल कुमार पाठक के साथ रमापति. सरकारी तंत्र से उम्मीद होती है कि वो लोगों की परेशानी सुनने में धैर्य दिखाए और जरूरतमंदों को जल्द से जल्द मदद मुहैया कराए. मगर आमतौर पर ऐसा होता दिखता नहीं है.

'आउट ऑफ द वे' जाकर मदद की DM पाठक की तारीफ बस इसलिए नहीं है कि उन्होंने एक बूढ़ी और बेसहारा महिला की मदद की. उनकी तारीफ इस बात में भी है कि जब दफ्तर के बाहर इंतजार कर रहे लोगों की भीड़ में जब उन्होंने रमापति को देखा, तो मीटिंग छोड़कर बाहर आए. खुद आकर रमापति को अपने दफ्तर ले गए. भूखी रमापति को चाय-नाश्ता कराया. फिर तसल्ली से उनकी बात सुनी. रमापति ने अपनी परेशानी बताई. मदद मांगी. फिर देखा कि उनके लिए क्या-क्या किया जा सकता है. इसके बाद उन्होंने कुछ नकद रुपये देकर रमापति को वापस उनके घर भेजने का इंतजाम किया. इतना प्यार पाकर जब रमापति घर के लिए चलीं, तो उनकी आंखें गीली थीं.
ये तस्वीर हमें फेसबुक पर मिली. DM अनिल पाठक की किताब 'पारस बेला' की लॉन्चिंग के मौके की.
ये तस्वीर हमें फेसबुक पर मिली. DM अनिल पाठक की किताब 'पारस बेला' की लॉन्चिंग के मौके की. ये किताब उन्होंने अपने माता-पिता की याद में लिखी है.

अच्छा काम कर रहे हैं फैजाबाद के DM DM अनिल पाठक खुद जौनपुर के रहने वाले हैं. DM बनने से पहले भूमि अधिग्रहण विभाग में डायरेक्टर थे. उनका रूटीन तय है. सुबह 9 बजे आकर अपने दफ्तर में बैठ जाते हैं. आने वालों से मिलते हैं. फिर दोपहर को जिले के किसी गांव में पहुंचते हैं. वहां ग्रामीणों को जमा करके उनके साथ चौपाल करते हैं. उन्हें सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी देते हैं. कौन सी सरकारी योजना कैसी मदद दे सकती है, ये सब. बेटे-बेटी में फर्क न करने, बच्चों को पढ़ाने, नशा न करने जैसी चीजों की अहमियत बताते हैं. गांववालों की दिक्कतें, शिकायतें सुनते हैं. फिर रात को उसी गांव में रुकते हैं. उन्हें फैजाबाद का DM बने बस चार ही महीने हुए हैं. लेकिन अपने काम की वजह से इतने कम वक्त में ही उन्होंने बड़ी तारीफें कमा ली हैं.
हमने DM पाठक से बात की. रमापति के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया:
मैं अपनी मां की तरह उनकी देखभाल करुंगा. प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत उनके लिए एक घर बनवाया जाएगा. वृद्धा पेंशन योजना और बीपीएल राशन कार्ड भी मुहैया कराया जाएगा. नजदीकी सरकारी अस्पताल का एक डॉक्टर नियमित तौर पर उनके घर जाकर उनकी जांच किया करेगा.
ऐसी पॉजीटिव न्यूज पढ़कर अच्छा लगता है DM अनिल पाठक के अपने माता-पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं. पिता की मौत करीब 10 साल पहले हुई थी. कोई सात बरस पहले मां भी चल बसीं. पिता का नाम पारस था. मां का नाम बेला था. उन दोनों की याद में अनिल पाठक ने एक किताब 'पारस बेला' भी लिखी है. वो कहते हैं कि जब भी उन्हें कोई ऐसा बुजुर्ग मिलता है, जिसे उसके बच्चों ने छोड़ दिया होता है, तो वो उसकी हरसंभव मदद करने की कोशिश करते हैं. उनके लिए ये सब करना अपने माता-पिता को थैंक्यू कहने जैसा है. और हमारे लिए? हमारे लिए किसी सरकारी अधिकारी की इतनी पॉजीटिव न्यूज ही खुशखबरी है.


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