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ब्रॉडबैंड भूल जाइए, अब उससे भी जाबड़ इंटरनेट आने जा रहा है

काम शुरू हुआ है गुजरात में.

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गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के साथ वनवेब के अधिकारी (फोटो- आजतक और ट्विटर- Bhupendra Patel )

ऑनलाइन डाटा यूसेज बढ़ता रहे, बढ़ जाए, लेकिन इंटरनेट की स्पीड न कम हो. शायद ये लाइन कोई भला मानुस एलन मस्क (Elon Musk) जैसे लोगों के कान में फूंक आया है. और तभी से सैटेलाइट ब्रॉडबैंड का बिज़नेसन फैलता, फलता, फूलता जा रहा है. सैटेलाइट ब्रॉडब्रैैंड माने अंतरिक्ष में पृथ्वी का चक्कर काट रहे सैटेलाइट की मदद से चलने वाला हाई-स्पीड इंटरनेट. एलन मस्क के स्टारलिंक के अलावा अमैज़ॉन का काइपर और वनवेब ऐसे ही कुछ उदाहरण हैं. कम्युनिकेशन कंपनी वनवेब इंडिया (OneWeb India Communications) गुजरात के मेहसाणा में 'सैटेलाइट नेटवर्क पोर्टल साइट' शुरू करने जा रही है. वनवेब ने बीते दिनों गुजरात सरकार के साथ MoU (समझौते) पर साइन किए हैं.

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ब्रॉडबैंड तो सुना था, ये सैटेलाइट ब्रॉडबैंड क्या है?

ब्रॉडबैंड इंटरनेट कनेक्शन आप जानते ही होंगे. आपके घर पर एक राउटर लगा रहता है. उसमें से एक तार निकलकर सर्विस प्रोवाइडर (जिस भी कंपनी का ब्रॉडबैंड आप चला रहे हैं) तक जाती है. और वहां से सर्विस प्रोवाइडर आपके डेटा को ऑप्टिकल फाइबर के ज़रिए दुनिया भर के नेटवर्क पर डालता है. माने पूरी दुनिया में बड़ी-बड़ी तारें खिंची हैं - ज़मीन के भीतर और समंदर के भीतर भी. ऑप्टिकल फाइबर बहुत भारी मात्रा में और बहुत ज़्यादा स्पीड से डेटा ट्रांसफर कर सकती है. 

अब जो काम आपने तार खींचकर किया, वो आप सैटेलाइट से भी कर सकते हैं. और करते भी हैं. दुनिया में इंटरनेट कनेक्टिविटी के लिए सैटेलाइट भी इस्तेमाल किए ही जाते हैं. यही कहलाता है सैटेलाइट ब्रॉडबैंड. इस काम के लिए जियो-स्टेश्नरी (GEO) सैटेलाइट काम पर लगाए जाते हैं. इनके ढेर सारे फायदे हैं, लेकिन एक दिक्कत है. ये धरती से करीब 36 हज़ार किलोमीटर दूर होते हैं. ऐसे में सिग्नल को धरती से सैटेलाइट तक जाने और सैटेलाइट से लौटकर धरती पर आने में कुछ वक्त लगता है. इसी को हम कहते हैं - लेटेंसी.

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वनवेब जैसी कंपनियां इसी लेटेंसी को कम करने में लगी हैं. इसके लिए धरती के करीब वाली कक्षाओं में चक्कर काटने वाले सैटेलाइट छोड़ती हैं. ये कक्षाएं कहलाती हैं LEO माने लो-अर्थ ऑर्बिट. LEO सैटेलाइट पृथ्वी से सिर्फ 500 से 1,200 किलोमीटर की ऊंचाई पर चक्कर काटते हैं. चूंकि ये सैटेलाइट GEO की तुलना में बहुत करीब उड़ रहे होते हैं, इसीलिए ज्यादा स्पीड से और बेहद कम वक़्त में डाटा भेज सकते हैं. ऐसे में सर्वर और यूजर के बीच डाटा का ट्रांसफर भी जल्दी होता है. 

सैटेलाइट बेस्ड ब्रॉडबैंड (इंटरनेट) और टेलीकम्यूनिकेशन नई चीजें नहीं हैं. लेकिन वनवेब जैसी कंपनियों ने आक्रामक तरीके से इस तकनीक का इस्तेमाल शुरू किया है, और वो बड़ी तादाद में LEO सैटेलाइट लॉन्च कर रही हैं.

वनवेब का सैटेलाइट नेटवर्क पोर्टल

इंडियन एक्सप्रेस अख़बार में छपी सोहिनी घोष की एक खबर के मुताबिक, पृथ्वी से 1000 से 1200 किलोमीटर ऊंचाई पर वनवेब के 648 LEO सैटेलाइट पृथ्वी के चारों तरफ चक्कर काट रहे हैं. वनवेब का सैटेलाइट नेटवर्क पोर्टल (SNP) साइट, सैटेलाइट से आने वाले डाटा और सिग्नल के लिए एक टर्मिनल या बेस स्टेशन की तरह काम करेगा. जमीन पर बना ये स्टेशन, सैटेलाइट से आने वाले डाटा को आगे ट्रांसमिट करेगा.

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वनवेब इंडिया कम्युनिकेशंस के डायरेक्टर राहुल वत्स ने अख़बार को बताया,

"पूरी पृथ्वी को कवर करने करने के लिए हमें ऐसी 40 SNP साइट्स की जरूरत है. इनमें से कम से कम दो की आवश्यकता भारत में है. भारत का क्षेत्रफल ज्यादा है, इसलिए हमने एक SNP गुजरात में स्थापित करने का फैसला किया है और दूसरा देश के दक्षिणी हिस्से (संभवतः तमिलनाडु) में लगाने का प्लान कर रहे हैं.

वनवेब की साल 2021-2022 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक, अभी तक दुनिया भर में वनवेब की 9 SNP साइट्स एक्टिव थीं. ये लाइव कवरेज के लिए सर्विस दे रही थीं. वनवेब ने दुनियाभर में 27 देशों के साथ कुल 38 SNP साइट्स लगाने के लिए समझौते किए थे.

गुजरात में SNP प्रोजेक्ट के लिए वनवेब 100 करोड़ रुपए तक का खर्च करेगी. गुजरात सरकार के मुताबिक, इस SNP के जरिए टेलीकॉम, इलेक्ट्रॉनिक्स और इंस्ट्रूमेंटेशन से जुड़ी 500 नौकरियां पैदा होंगी.

गुजरात वाला प्रोजेक्ट कब तक और कैसे शुरू होगा?

राहुल वत्स बताते हैं,

"गुजरात की SNP साइट पर करीब 20 एकड़ जमीन में 20 बड़े-बड़े एंटीने लगाए जाएंगे. एंटीनों का रुख सैटेलाइट की तरफ रखा जाएगा. ये सेटअप भीड़-भाड़ वाले इलाके में नहीं लगाया जा सकता. इससे सिग्नल आने में दिक्कत होगी. इस सेट-अप को फाइबर कनेक्टिविटी की भी जरूरत होती है. 

गुजरात सरकार के अधिकारियों के मुताबिक, गुजरात में SNP प्रोजेक्ट लगाने के लिए वनवेब ने 25 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया है. प्रोजेक्ट के लिए शुरुआती कंस्ट्रक्शन के बाद जमीन का कर्वेचर (जमीन की ढाल) और सैटेलाइट्स के साथ इसके कनेक्शन वगैरह की तकनीकी जांच की जाएगी. राहुल वत्स के मुताबिक, अगर जमीन का झुकाव मुफीद हुआ, तो कम एंटीने लगाकर भी काम चल सकता है. 

आप पूछ सकते हैं कि यहां कौनसे झुकाव की बात हो रही है. तो सीन ये है कि जब हम दूर क्षितिज की तरफ निहारते हैं तो हमें जमीन समतल और सपाट दिखती है. लेकिन असल में पृथ्वी गोल है और उसकी जमीनी सतह में भी ये गोलाई (कर्वेचर) है. हम जब कुछ किलोमीटर दूर जमीन की सतह देखते हैं तो हमें ये गोलाई महसूस नहीं होती. लेकिन लंबी दूरी में जमीन झुकती जाती है.

वनवेब को अभी इस प्रोजेक्ट के लिए कुछ अप्रूवल और चाहिए. प्रोजेक्ट के लिए IN-SPACe यानी इंडियन नेशनल स्पेस प्रमोशन एंड ऑथराइजेशन सेंटर और TRAI (टेलिकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया) से अप्रूवल और ऑथराइजेशन की जरूरत होगी. इसकी कोशिश जारी है.

प्रोजेक्ट गुजरात में क्यों शुरू हो रहा है?

राहुल वत्स के मुताबिक, SNP के लिए गुजरात का इलाका चुनने के पीछे भौगोलिक और व्यावसायिक कारण हैं. वत्स कहते हैं,

"हम समुद्री क्षेत्र को भी कवर करना चाहते हैं. और भारत में गुजरात की कोस्टलाइन (तटरेखा) सबसे लंबी है."

राहुल आगे कहते हैं,

"SNP इनस्टॉल करने के लिए गुजरात को चुनने की वजह पॉलिसी और इंसेंटिव मुहैया होना भी है. हमने गुजरात को इसलिए चुना क्योंकि हम यहां कारोबार का माहौल देख रहे हैं. यहां व्यापार ज्यादा तेजी से होता है."

बता दें कि वनवेब मूल रूप से इंग्लैंड बेस्ड कंपनी है. लेकिन भारत की भारती एंटरप्राइजेज, वनवेब के बड़े शेयरधारकों में से एक है. इसी साल 26 मार्च 2023 को, ISRO (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) ने वनवेब के 36 सैटेलाइट्स स्पेस में लॉन्च किए थे. ISRO का सबसे बड़ा रॉकेट LVM-3 इन सैटेलाइट्स को अन्तरिक्ष लेकर गया था.

वीडियो: मास्टरक्लास: इसरो ने 72 सैटेलाइट लॉन्च किए, साइंटिस्ट उपलब्धि की जगह बड़ा खतरा क्यों बता रहे?

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