तकषी शिवशंकर पिल्लै (17 अप्रैल, 1912 -10 अप्रैल, 1999), मलयालम भाषा के विख्यात रचनाकार हैं. उनकी रचनाएं भारतीय साहित्य की धरोहर हैं. उन्होंने कई उपन्यास और लगभग 600 कहानियां लिखीं. तकषी की रचनाएं उस दौर में समाज के निचले तबके की आवाज़ बनीं जब मलयालम समाज में छुआ-छूत का बोलबाला था. 'चेम्मीन' (हिन्दी अनुवाद- मछुआरे) उपन्यास के लिए उन्हें साहित्य अकादमी से सम्मानित किया गया. यह तकषी का ऐसा उपन्यास था जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि मिली. दुनिया की कई भाषाओं में इसके अनुवाद हुए. यह उपन्यास मछुआरों के संघर्षों, उनके जीवन के लगभग हर पहलू का बयान है.
'इस तरह की बात सुनकर क्या कोई मां चुप रह सकती है?'
आज तकषी शिवशंकर पिल्लै का जन्मदिन है. पढ़िए उनके उपन्यास 'चेम्मीन' का एक अंश.
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सभी फोटो सांकेतिक हैं
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तकषी शिवशंकर पिल्लै
आज तकषी शिवशंकर पिल्लै की पुण्यतिथि है. पढ़िए केरल के मछुआरों की प्रेम कथा पर आधारित उपन्यास 'मछुआरे' का एक अंश.
खण्ड- एक
1
'बप्पा नाव और जाल खरीदने जा रहे हैं.''तुम्हारा भाग्य.'
करुत्तम्मा से कोई जवाब देते नहीं बना. लेकिन उसने तुरन्त परिस्थिति पर काबू पा लिया. उसने कहा,'रुपए काफी नहीं है. क्या उधार दे सकते हो ?'
हाथ खोलकर दिखाते हुए परी ने कहा,'मेरे पास रुपए कहां हैं?'
करुत्तम्मा हंस पड़ी और कहा,'तब अपने को छोटा मोतलाली कहते क्यों फिरते हो?'
'तुम मुझे छोटा मोतलाली क्यों कहती हो?'
‘नहीं तो क्या कहकर पुकारूं?’
‘सीधे परीकुट्टी कहकर पुकारा करो!’
करुत्तम्मा ने ‘परी’ तक कहा और खिलखिलाकर हंस पड़ी. परी ने पूरा नाम कहने का अनुरोध किया. करुत्तम्मा ने हंसी को रोका और गम्भीर भाव से असहमति प्रकट करने के लिए सिर हिला दिया. उसने कहा,‘ऊं हूं मैं नाम लेकर नहीं पुकारूंगी.’‘तो मैं भी करुत्तम्मा कहकर नहीं पुकारूंगा ?’
‘तो फिर क्या कहकर पुकारोगे ?’
‘मैं तुम्हें बड़ी मल्लाहिन कहकर पुकारूंगा.’
करुत्तम्मा हंस पड़ी. परीकुट्टी ने भी ठहाका मारा, खूब हंस. क्यों ? दोनों इस तरह क्यों हंसे? कौन जाने! दोनों मानो दिल खोलकर हंसे.
‘अच्छा, नाव और जाल खरीदने के बाद नाव में जो मछली आयगी उसे व्यापार के लिए मुझे देने को अपने बप्पा से कहोगी?’
‘अच्छा दाम दोगे तो मछली क्यों न मिलेगी ?’
फिर जोरों से हंसी हुई. भला इससे इतना हंसने की क्या बात थी. कोई मज़ाक था ! कोई भी बात हो, आदमी इस तरह कहीं हंसता है ! हंसते-हंसते करुत्तम्मा की आंखें भर आई थीं. हंसते-हंसते उसने कहा,‘ओह मुझे इस तरह न हंसाओ, मोतलाली !’‘मुझे भी न हंसाओ, बड़ी मल्लाहिन जी’ – परीकुट्टी ने कहा.
‘बाप रे कैसा आदमी है यह छोटा मोतलाली !’
दोनों फिर ऐसे हंसे पड़े मानो एक दूसरे को गुदगुदा दिया हो. हंसी भी कैसी चीज़ है! आदमी को कभी गंभीर बना देती है, तो कभी रुलाकर छोड़ती है. करुत्तम्मा का चेहरा लाल हो गया था. इसने शिकायत के तौर पर नहीं, गुस्से में कहा,'मेरी तरफ इस तरह मत ताको !’‘करुत्तम्मा के मुंह से निकला. वह अपनी छाती को हाथों से ढंकती हुई घूमकर खड़ी हो गई. वह एकाएक सकुचा गई. उसकी कमर में सिर्फ एक लुंगी थी
उसकी हंसी खत्म हो चुकी थी. भाव बदल गया था. ऐसा लगा, मानो परीकुट्टी ने अनजाने में कोई गलती कर दी हो.
‘ओह, यह क्या है ? छोटे मोतलाली!’

इतने में घर से करुत्तम्मा को बुलाने की आवाज़ सुनाई पड़ी. चक्की, उसकी मां, जो मछली बेचने के लिए पूरब गई थी, लौट आई थी. करुत्तम्मा नाराज होकर चली गई है. वह दुखी हुआ. उधर करुत्तम्मा को भी लगा कि वह परीकुट्टी के ही सामने क्यों, कहीं भी इस तरह नहीं हंसी थी.
वह एक अजीब तरह का अनुभव था. कैसी थी वह हंसी! दम घुटाने वाली छाती फाड़-डालने वाली.करुत्तम्मा को लगा था कि वह नग्न रूप में खड़ी है और एकदम अदृश्य हो जाना चाहती है. ऐसा अनुभव इसके पहले उसे कभी नहीं हुआ था. उस अनुभूति की तीव्रता में दिल को चुभने वाले कड़े शब्द उसके मुंह से निकल गए थे.
करुत्तम्मा का यौवन मानो जाग उठा था और प्रतिक्षण पूर्णत्व की ओर बढ़ रहा था. परी की नजर अचानक जब करुत्तम्मा की छाती पर जा टिकी था तब उसे लगा उसका सारा शरीर सिहर उठा है. क्या इसी से हंसी की शुरूआत हुई थी ? करुत्तम्मा एक ही कपड़ा पहने हुए थी वह भी पतला !
परीकुट्टी को लगा कि करुत्तम्मा नाराज होकर चली गई. उसे भी डर लगा कि करुत्तम्मा फिर उसके पास नहीं आयेगी.
परी ने सोचा कि वह करुत्तम्मा से माफी मांग ले और उससे कह दे कि फिर ऐसी गलती नहीं होगी.
दोनों को एक दूसरे से क्षमा मांगने की ज़रूरत महसूस हुई. करुत्तम्मा जब समुद्र-तट पर सीप बटोरकर खेलने वाली चार-पाँच साल की एक छोटी बच्ची थी तब उसे जो एक छोटा साथी मिला था वह साथी परीकुट्टी ही था. पाजामे के ऊपर पीला कुर्ता पहने, गले में रेशमी रुमाल बांधे और सिर पर तुर्की टोपी लगाये परीकुट्टी को अपने बाप का हाथ पकड़े समुद्र-तट पर पहले-पहल जैसा उसने देखा था उसे खूब याद था. उसके घर के दक्खिन की तरफ उन लोगों ने डेरा डाला था. अब वह डेरा वहीं पर था. पर अब परीकुट्टी ही वहां का व्यापार चलाता था.समुद्र के किनारे पड़ोस में रहते हुए दोनों बड़े हुए थे.
रसोईघर में बैठी चूल्हा जलाती हुई करुत्तम्मा को एक-एक बात याद हो आई. आग चूल्हे के बाहर जलने लगी. उसी समय मां आई और करुत्तम्मा की अन्यमनस्कता और बाहर जलने वाली लकड़ी-दोनों को थोड़ी देर तक देखती रही.
तब चक्की ने करुत्तम्मा को एक लात लगा दी. करुत्तम्मा मानो सपने में से चौंक उठी. नाराजगी के साथ चक्की ने पूछा,'किसके बारे में बैठी-बैठी सोच रही है री
?’ करुत्तम्मा का भाव देखकर कोई भी उससे ऐसा ही सवाल करता. चक्की का इसमें कोई दोष नहीं था. करुत्तम्मा दूसरी ही दुनिया में थी.
'अम्मा, समुद्र-तट पर रखी हुई उस बड़ी नाव की आड़ में दिदिया खड़ी-खड़ी छोटे मोतलाली के साथ हंस रही थी'उसकी बात सुनकर करुत्तम्मा एकदम चौंक गई. वह दोषपूर्ण भेद- जो किसी को नहीं मालूम था, खुल गया. पंचमी नहीं रुकी. उसके आगे कहा,'ओहो, कैसी हंसी थी अम्मा, कुछ कहा नहीं जा सकता.’ इतना कहकर वह कुरुत्तम्मा को इशारे से जताती हुई कि उसके पीछे पड़ने का यही नतीजा है, वहां से भाग गई.
- उसकी छोटी बहन पंचमी ने कहा.

करुत्तम्मा पंचमी को घर पर छोड़कर नाव की तरफ गई थी. इस कारण पंचमी पड़ोस के बच्चों के साथ खेलने के लिए नहीं जा सकी थी. चेम्पन (बाप) का आदेश था कि कभी ऐसा न हो कि घर में एक आदमी भी न रहे. नाव और जाल खरीदने के लिए वह कुछ रुपये बचाकर घर में रखे हुए था. इस कारण पंचमी को घर पर रहना पड़ा था. उसी का उसने करुत्तम्मा से गुस्सा उतारा.
इस तरह की बात सुनकर क्या कोई मां चुप रह सकती है ! चक्की ने करुत्तम्मा से पूछा,'अरे मैं क्या सुन रही हूं ?’
करुत्तम्मा ने कोई उत्तर नहीं दिया.
‘तू क्या करने पर तुली है री ?’
करुत्तम्मा के लिए जवाब देना जरूरी हो गया. एक जवाब उसे सूझ गया - 'यूं ही समुद्र तट पर जब गई...’
‘छोटे मोतलाली नाव पर बैठे थे.’
‘उसमें तेरे हंसने की क्या बात थी ?’
करुत्तम्मा को एक और जवाब सूझा,'नाव और जाल खरीदने के लिए रुपया जो कम है वह मैं मोतलाली से मांग रही थी.’
‘अरी उससे रुपए मांगने का तेरा क्या काम था ?’
‘उस दिन बप्पा और तुम आपस में बातें कर रहे थे कि मोतीलाली से रुपया मांगना है ?’
वह सब तर्क व्यर्थ था. वह जवाब में कुछ-न-कुछ कहने की करुत्तम्मा की कोशिश-मात्र थी. चक्की ने बेटी को एड़ी से चोटी तक ध्यान से देखा.चक्की भी उस उम्र से होकर गुज़र चुकी थी. यह भी हो सकता है कि जब चक्की करुत्तम्मा की उम्र की थी तब तट पर डेरा डाले कुछ मोतलाली लोग भी रहते होंगे. उन्होंने भी किनारे पर रखी नाव की आड़ में चक्की के मन को गुदगुगदाकर उसे हंसाया होगा. लेकिन चक्की एक ऐसी मल्लाहिन थी, जो उसी समुद्र-तट पर जन्म लेकर बड़ी हुई थी. इसलिए वह वहां के परम्परागत तत्त्वज्ञान की अधिकारिणी थी.

प्रथम मल्लाह जब पहले-पहल लकड़ी के एक टुकड़े पर चढ़कर समुद्र की लहरों और ज्वार-भाटे का अतिक्रमण करके क्षितिज के उस पार गया तब उसकी पत्नी ने तट पर व्रत-निष्ठा के साथ पश्चिम की ओर देखकर खड़े-खड़े तपस्या की. समुद्र में तूफान उठा शार्क मुंह बाए नाव के पास पहुंचे, ह्वेल ने नाव को पूंछ से मारा और जल की अन्तर-धारा ने नाव को एक भंवर में खींच लिया. लेकिन आश्चर्यजनक रीति से वह मल्लाह सब संकटों से बचाकर एक बड़ी मछली के साथ किनारे पर लौट आया. उस तूफान के खतरों से वह कैसे बचा ? शार्क उसे क्यों नहीं निगल गया ? ह्वेल की मार से उसकी नाव क्यों डूब गई. भंवर से उसकी नाव कैसे निकल आई ? यह सब कैसे हुआ ? समुद्र-तट पर खड़ी उस पतिव्रता नारी की तपस्या का ही वह फल था.’समुद्र-माता की पुत्रियों ने इस तपश्चर्या का पाठ पढ़ा. चक्की को भी इस तत्त्व-ज्ञान की सीख मिली थी. यह भी सम्भव हो सकता है कि जब चक्की एक नवयुवती थी तब एक मोतलाल ने उसे भी आंख गड़ाकर देखा होगा और चक्की की मां ने उस समय उसको भी समुद्र-माता की पुत्रियों की तपश्चर्या की कहानी और जीवन का तत्त्व-ज्ञान समझाया होगा.
चक्की ने करुत्तम्मा की गलती समझी हो या नहीं उससे आगे कहा,'बिटिया अब तू छोटी बच्ची नहीं है. एक मल्लाहिन हो गयी है.’
परीकुट्टी के शब्द ‘बड़ी मल्लाहिन’ करुत्तम्मा के कानों में गूंज गए.
चक्की ने आगे कहा,'इस महासागर में सब कुछ है बिटिया, सब कुछ. इसमें जाने वाले लोग कैसे लौटकर आते हैं यह तुझे क्या मालूम ! तट पर उनकी स्त्रियों के पवित्रता से रहने से ही यह होता है. वे पवित्रता का पालन न करें तो मल्लाह नाव सहित भँवर में पड़कर खत्म हो जाए. मछुआरों का जीवन वास्तव में तट पर रहने वाली उनकी स्त्रियों के हाथ में ही है.’यह पहला अवसर नहीं था जब कि करुत्तम्मा ने उपयुक्त आशय की बात सुनी हो. जहां चार मल्लाहिन इकट्ठी होती हैं वहां इन शब्दों को दुहराना मामूली बात थी.
फिर भी परीकुट्टी के साथ हंसने में क्या गलती हुई थी ? किसी मछुआरे का जीवन उसे सौंपा तो गया नहीं था. जब सौंपा जाएगा तब उसकी रक्षा वह ज़रूर करेगी. कैसे करना है यह भी उसे मालूम था. मल्लाहिनों को यह बात किसी से सीखने की ज़रूरत नहीं है.

चक्की ने आगे कहा,'क्या तुझे मालूम है कि यह समुद्र कभी-कभी क्यों रंग बदलता है ? समुद्र-माता क्रोध आ जाने पर एक साथ सब नष्ट कर डालती है. नहीं तो अपनी सन्तान के लिए सब-कुछ देती है. उसमें सोने की खान है बेटी, सोने की खान.'
चक्की ने बेटी को फिर एक बड़ा उपदेश दिया -
'पवित्रता ही सबसे बड़ी चीज़ है, बेटी ! मल्लाह की असली सम्पत्ति मल्लाहिन की पवित्रता ही है.'कभी-कभी छोटे मोतलाली लोग समुद्र-तट को अपवित्र कर देते हैं. पूर्व से स्त्रियां झिंगी पीटने और सूखी मछली को बोरों में भरने के लिए आया करती हैं और वह तट को अपवित्र कर देती हैं. समुद्र-तट की पवित्रता का महत्त्व उन्हें क्या मालूम ! वे समुद्र-माता की सन्तान तो हैं नहीं. लेकिन उसका फल भोगना पड़ता है मछुआरों को. ...तट पर रखी हुई नावों की आड़ और यहां की झाड़ियां बहुत खतरनाक जगह हैं वहां सतर्क रहने की जरूरत है.'
पुस्तक का नाम: मछुआरे
लेखक: तकषी शिवशंकर पिल्लै
प्रकाशक: साहित्य अकादमी
ऑनलाइन उपलब्धता: अमेज़न
मूल्य: 100 रुपए (पेपरबैक)
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