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मालाबार विद्रोह की पूरी कहानी, जिसे केरल बीजेपी के चीफ पहला जिहाद बता रहे हैं

1921 में हुआ था मालाबार विद्रोह.

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बीजेपी ने 3 अक्टूबर से केरल में जनरक्षा यात्रा शुरू की है.
अगले लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने दक्षिण भारत में पूरी ताकत झोंक दी है. पार्टी का ध्यान खास तौर पर केरल में है. यहां बीजेपी और संघ कार्यकर्ताओं की हत्याओं का आरोप लगाकर पार्टी पी विजयन सरकार को घेरने की कोशिश में लगी हुई है. इसी के तहत पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की अगुवाई में बीजेपी ने तीन अक्टूबर को केरल से जनरक्षा यात्रा की शुरुआत की है. नौ अक्टूबर को ये यात्रा केरल के मुस्लिम बहुल इलाके मलप्पुर से गुजरी, जिसका नेतृत्व बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष कम्मनम राजशेखरन कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने कहा कि 1921 में जो मालाबार विद्रोह हुआ था, वो केरल में हुआ पहला जिहाद था. इसमें बड़े पैमाने पर हिंदुओं का नरसंहार हुआ था.
तुर्की में खलीफा की गद्दी छीने जाने के बाद भारत में खिलाफत आंदोलन की शुरुआत हुई थी.
तुर्की में खलीफा की गद्दी छीने जाने के बाद भारत में खिलाफत आंदोलन की शुरुआत हुई थी.

जब भारत गुलाम था तो 1919 में देश में एक आंदोलन हुआ, जिसे खिलाफत आंदोलन के नाम से जानते हैं. 1908 में तुर्की में खलीफा का पद ख़त्म कर दिया गया. जब दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हुआ तो ब्रिटेन ने तुर्की पर हमला कर दिया. इसके अलावा भारत में भी जालियां वाला बाग हत्याकांड और रौलट एक्ट जैसी कई चीजें हुईं, जिससे लोगों में और भी असंतोष हो गया. मुस्लिम अंग्रेजों की वजह से और भी ज्यादा नाराज़ हो गए. देश के मुस्लिम नेता अबुल कलाम आजाद, ज़फर अली खां और मोहम्मद अली ने इसे व्यापक रूप दिया. अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी ने जमियत उलेमा के साथ मिलकर खिलाफत आंदोलन का संगठन किया.
Khilafat leader
महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू और मौलाना आजाद ने भी खिलाफत आंदोलन की वकालत की थी.

मालाबार के एरनद और वल्लुवानद तालुका में इस खिलाफत आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने हर हथकंडा अपनाया. इसके विरोध में केरल के मालाबार क्षेत्र में मोपलाओं ने 1920 ई. में विद्रोह कर दिया. मोपला केरल के मालाबार क्षेत्र में रहने वाले इस्लाम धर्म में धर्मांतरित अरबी और मलयाली मुसलमान थे. अधिकांश मोपला छोटे किसान या व्यापारी थे. उन पर काजियों और मौलवियों का प्रभाव था, जिन्हें थंगल कहा जाता है. ये मोपला मालाबार के उच्च जाति वाले हिंदू नम्बूदरी और नायर भूस्वामियों के बटाईदार और काश्तकार थे.
शुरुआत में तो यह विद्रोह अंग्रेजों के ही खिलाफ था. इसे महात्मा गांधी, शौकत अली, मौलाना अबुल कलाम आजाद जैसे नेताओं का सहयोग हासिल था. आंदोलन के बड़े नेता के तौर पर ली मुसलियार थे. 15 फरवरी 1921 का दिन था. अंग्रेज़ सरकार ने पूरे इलाके में निषेधाज्ञा लागू करवा दी. खिलाफत आंदोलन के नेता याकूब हसन, यू. गोपाल मेनन, पी. मोइद्दीन कोया और के. माधवन नायर को गिरफ्तार कर लिया. नेतृत्व के बिखरते ही आंदोलन स्थानीय मोपलाओं के हाथ में चला गया. मोपलाओं ने खिलाफत आंदोलन की खीज भूस्वामियों पर उतारनी शुरू कर दी. एक जुट हुए मोपलाओं ने भूस्वामियों के खिलाफ ही हल्ला बोल दिया. ऐसे में आंदोलन ने सांप्रदायिक रूप ले लिया और जो आंदोलन अंग्रेजों के खिलाफ था, वो हिंदू बनाम मुस्लिम हो गया.
खिलाफत को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने पूरी ताकत झोंक दी थी.
खिलाफत को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने पूरी ताकत झोंक दी थी.

20 अगस्त 1921 को पुलिस ने अर्नाड के खिलाफत आंदोलन के सेक्रेटरी वडाकेविट्टील मुहम्मद को गिरफ्तार करने की कोशिश की लेकिन 2000 मोपलाओं ने उसे घेर लिया और पुलिस को घुसने नहीं दिया. अगले दिन पुलिस के दस्ते ने खिलाफत से जुड़े कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया और तिरुरंगदी की मम्बरम मस्जिद से दस्तावेज जब्त कर लिए. भीड़ ने तिरुरंगदी और स्थानीय पुलिस थाने को घेरने की कोशिश की, जिसके बाद पुलिस ने फायरिंग कर दी. इसमें कई मोपला मारे गए. मोपलाओं ने कई थानों में आग लगा दी, सरकारी खजाने को लूट लिया और दस्तावेज नष्ट कर दिए. 24 अगस्त 1921 को कुंजअहमद हाजी ने अली मुसलियार की ओर से विरोधियों की कमान संभाली. इसके बाद पुलिस और अंग्रेज सिपाहियों ने विरोध को कुचल दिया. साल के अंत तक इस आंदोलन की चिंगारी बनी रही.
Mopla arresting new गिरफ्तार किए गए मोपलाओं की ट्रेन में ले जाते समय दम घुटने से मौत हो गई थी.

19 नवंबर 1921 को 100 मोपला विद्रोहियों को ट्रेन के जरिए मालाबार से कोयंबटूर भेजा जा रहा था. उन्हें सामान ढोने वाली बोगी में बंद रखा गया था. पांच घंटे के बाद जब उनके दरवाजे खोले गए तो सभी की मौत हो चुकी थी. कहा जाता है कि मोपला विद्रोह के दौरान हजारों हिंदुओं का कत्लेआम हुआ और हजारों हिंदुओं को धर्म बदलने के लिए बाध्य होना पड़ा. इसके बाद जब आर्य समाज की ओर से शुद्धि आंदोलन चलाया गया तो जिन हिंदुओं को जबरन मुस्लिम बना दिया गया था, उन्हें वापस हिंदू धर्म में लाया गया. इस आंदोलन के दौरान ही इसके नेता स्वामी श्रद्धानंद को 23 दिसंबर 1926 को उनके ही आश्रम में गोली मार दी गई.


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