The Lallantop

"जाति मेरे पास जन्म से बहुत पहले पहुंच गई थी"

एक कविता रोज़ में पढ़िए देवेन्द्र अहिरवार की कविता, शर्मिंदा

Advertisement
post-main-image
एक कविता रोज़ में आज पढ़िए देवेन्द्र अहिरवार को.

नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा के स्टूडेंट या कलाकारी की तमाम पहचानों से इतर देवेन्द्र अहिरवार, दी लल्लनटॉप के लिए दोस्त हैं. इंतज़ार है, कोरोना टले और लल्लनटॉप अड्डे पर देवेन्द्र पेटी बाज़ा बैंड के साथ बैठें, दुनिया अपनी जगह लौटे, तब तक एक कविता रोज़ में पढ़िए उनकी एक सामयिक कविता.

Advertisement

शर्मिंदा

खिलाड़ियों को मैंने मैडल जीतने के बाद जाना, समाज सेवकों को गिरफ़्तारी या हत्याओं के बाद, सैनिकों को परमवीर चक्र पाते हुए या शहादत वाले दिन. एक बेहद मीठी ठुमरी सुनते हुए गूगल किया, तो पता चला 'गिरजा देवी' गा रहीं हैं जो आज से कई साल पहले गुज़र गईं. बहुत से महान कवियों, लेखकों का बायो पढ़ने के बाद मुझे पता चला कि जीते जी उन्हें मेरे जैसों ने कभी महान नहीं माना.
मैंने महिलाओं की प्रताड़ना को तब जाना जब मैं अपनी कई प्रेमिकाओं को प्रताड़ित कर चुका था.
इतिहास में मेरी रुचि तब जगी जब मन माफ़िक उसे बदला जा रहा था, वैज्ञानिकों और गणितज्ञों को तो मैं अभी तक न जान पाया. ये कहना ठीक होगा कि जहां-जहां मुझे कई साल पहले पहुंचना था, वहां मैं कई-कई सालों बाद पहुच रहा हूं. और हां, भूगोल का नक्शा देखकर मेरी दिशाएं हमेशा गड़बड़ाईं
पर फिर भी 'जाति' मेरे पास जन्म से बहुत पहले पहुंच गई थी.
इस अंतिम पंक्ति को छोड़ कर पूरी कविता के लिए मैं बेहद शर्मिंदा हूं बाकी अब तुम्हारी बारी है.
वीडियो देखें: Devendra Ahirwar | Lallantop Adda | Sahitya Aajtak

Advertisement
Advertisement
Advertisement