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एक कविता रोज़ - अंतिम सुख

जो अंतिम दुख होगा/सुख की तरह होगा.

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एक कविता रोज़ में आज पढ़िए राजस्थान के युवा कवि अहर्निश सागर की कविता 'अंतिम दुख'.
अहर्निश सागर राजस्थान के नए खेप के कवियों में आते हैं. उदयपुर के एमएलएसयु से इन्होने पढ़ाई की है और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहते हैं. इनकी कविताओं को अगर इनके ही शब्दों में समझें तो ये वो हैं जो पहाड़ पर चढ़कर उसे जीतना नहीं, बल्कि उसके पार निकल जाना चाहते हैं. चाहते हैं जीवन की उन असीम संभावनाओं में गोते लगाना, जो पहाड़ की चोटी जीतने के बाद हमारी आंखों से ओझल हो जाती हैं. आज एक कविता रोज़ में आपको पढ़ाएंगे अहर्निश की ही एक कविता - 'अंतिम सुख'.

अंतिम सुख

अहर्निश अंतिम सुख में कितनी पीड़ा होती हैं ! नदी में घुटनों तक उतर कर तुम्हें अंतिम बार चूमता हूँ और डोंगी को अनंत की ओर धकेल देता हूँ इस घाटी में बसे गाँव के चारो ओर कितनी पहाड़ियां हैं और उनके शिखर हैं लेकिन मैं उन्हें फतह नहीं करूँगा चढूंगा और उस पार उतर जाऊँगा उस पार भी गाँव हैं गड़ेरिये हैं और घास हैं अनंत कि तरफ जा चुके लोग कहीं भी मिल सकते हैं, हर गाँव में, गड़ेरियों में, घास में कहीं भी मिल सकते हैं, मसलन एक डोंगी रेत पर तैरती हुई भी मेरी तरफ आ सकती हैं पहली सांस लेते हुए कितनी पीड़ा होती हैं नवजात को अंतिम निःश्वास में राहत होगी जो अंतिम दुःख होगा सुख की तरह होगा.

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