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वह ठकुराइन जो खुदकुशी करने की बजाय 'छिनाल' बन गई

एक कहानी रोज़ में आज की कहानी है अमीश राय की.

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फोटो - thelallantop

वह ठकुराइन जो खुदकुशी करने की बजाय 'छिनाल' बन गई

पहली बात, इस शीर्षक और कहानी से अपनी भावनाएं मत आहत कर लीजिएगा. और अगर कर भी लेंगे तो मेरा क्या उखाड़ लेंगे? दूसरी बात, मेरे एक अजीज ने यह कहानी मुझे सुनाई थी. उनके मुताबिक यह सच्ची कहानी है. मेरे मुताबिक तो हर कहानी ही सच्ची होती है. फिर भी परंपरा का निर्वाह करते हुए मुझे कहना है कि इस कहानी के पात्रों का जीवित और मृत किसी भी व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है. अगर ऐसा होता है तो इसे महज इत्तेफाक समझ कर मुझे बख्श दिया जाए. यह कहानी एक ठकुराइन की है. आप कहेंगे कि ठकुराइन ही क्यों चमाइन क्यों नहीं? तो मैं कहूंगा कि आपको बहुत जल्दी है. पहले कहानी पढ़ लीजिए. ठकुराइन और चमाइन में फर्क होता है. हालांकि फर्क पैदाइश नहीं होता. क्योंकि हम सभी मादरजाद नंगे होते हैं. आगे चलकर अलग-अलग किस्म के कपड़े पहन लेते हैं. खैर. ठाकुर दो किस्म के होते हैं. गरीब ठाकुर और अमीर ठाकुर. पर हमारा समाजशास्त्र दोनों में कोई फर्क नहीं कर पाता. अब भूमिका कुछ ज्यादा लंबी हो रही है आपको सीधे कहानी पर ले चलते हैं. गाजीपुर का हूं, मान लेते हैं कि कहानी भी गाजीपुर की है. हमारे संपादकों ने सिखाया है कि किसी भी स्टोरी को कनेक्ट करना चाहिए. इसलिए मैंने भी इसे गाजीपुर से कनेक्ट कर दिया. एक गांव में गरीब ठाकुर के घर पहली के बाद दूसरी, तीसरी और चौथी भी बिटिया ही होती है. ठाकुर की ठकुराइन तो पहली ही बिटिया के बाद मर जाती है. बांझ कोख तो गाली है पर बेटी की मां होना भी कम संकट वाली बात नहीं है. इसी हूक में ठकुराइन मन से मर जाती है, पर शरीर से जिंदा रहकर ठाकुर को बेटा देने की कोशिश करती रहती है. चौथी बेटी के पैदा होते ही ठकुराइन का शरीर भी मर जाता है. दरअसल ये कहानी इस ठकुराइन की नहीं है. ये कहानी उसकी बड़ी वाली बेटी की है जिसे आगे चलकर ठकुराइन बनना है. इसलिए सीनियर ठकुराइन के मरने या जिंदा रहने से कहानी की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ना था. अब जिसके होने या न होने से दुनिया को कोई फर्क नहीं पड़ता उसका मर जाना ही बेहतर होता होगा शायद. इसीलिए ठकुराइन मर गई. आप ठाकुर से किसी ऐसे जालिम आदमी की छवि तो नहीं बना रहे हैं, जिसकी मूंछें बड़ी-बड़ी और आंखें हमेशा लाल रहती हों? अगर हां तो रुक जाइए. आप गलत छवि बना रहे हैं. आपका कंफ्यूजन दूर कर देता हूं. मैंने पहले ही बता दिया कि ठाकुर साहब गरीब थे साथ ही शीलता और सज्जनता के धनी. स्वभाव बहुत कोमल. कभी किसी से तेज आवाज में बात तक नहीं की. शक्ति के उपासक थे, स्त्री की पूजा करते थे, हालांकि ठकुराइन के चले जाने से बेटे की ख्वाहिश कहीं दबी ही रह गई, पर इसके लिए ठकुराइन को दोष नहीं देते थे. हां कभी-कभी अपने प्रारब्ध को जरूर कोस लेते. खैर, ठाकुर साहब रोज सुबह नहा-धोकर दुर्गा सप्तशती के श्लोक पढ़ते थे. चौथी बेटी काफी छोटी थी. घर में बेटियों के सिवा और कोई नहीं था इसलिए अक्सर उसे गोद में बिठा दुर्गा सप्तशती पढ़नी पड़ती. बड़ी बेटी जिसे इस कहानी में ठकुराइन बनना था उस दौरान घर के काम कर रही होती और उसके कानों में अक्सर ये पंक्तियां गूजतीं, 'या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता . नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः' पिता कभी-कभी अच्छे मूड में होते तो अपनी बेटियों को इन मंत्रों का अर्थ भी समझाते. बड़ी बिटिया ने पिता से मंत्र का अर्थ सुना था, 'जो देवी सब प्राणियों में शक्ति रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारंबार नमस्कार है.' ठाकुर गरीब थे इसलिए बड़ी बेटी पढ़ नहीं पाई. क्योंकि जब वह पैदा हुई तो ठाकुर और भी ज्यादा गरीब थे. बड़ी बिटिया के बाद कुछ बरकत आई तो घर संवरा बेटी का भविष्य नहीं, पर बेटी भागमती जरूर समझ ली गई. जैसा कि बेटियां सयानी हो जाती हैं. हमारे समाज में बेटियों के साथ यह एक शास्वत समस्या है. वे सयानी हो जाती हैं. सयाने तो बेटे भी हो जाते हैं पर इस सयानेपन का मतलब उनकी बुद्धि और बल से लगाया जाता है. बेटियों के सयाने होने का मतलब उनकी छातियों और महीने में आने वाले खून से लगाया जाता है. पुराने लोग कह गए हैं कि सयानी बेटी पिता के सीने पर सांप की तरह लोटती है! आप कहेंगे व्हाट द फक! आप कह लीजिए मैं सुनने के लिए रुका हूं. अब आगे बढ़ते हैं. तो सयानी बेटी की चिंता से मुक्त होने के लिए गरीब ठाकुर शादी खोजने लगते हैं. शादियां सबकी हो ही जाती हैं. क्योंकि इसे विधि का विधान बताते हैं, ऊपर से तय होता है. हर लड़की के लिए कोई लड़का बना ही होता है. वह तो आज की जेनरेशन है जो पता नहीं क्यों लड़की के लिए लड़की और लड़के के लिए लड़के की लड़ाई लड़ रही है. तब हर लड़की के लिए एक लड़का बना ही होता था. आप पहले ही जान चुके हैं कि ठकुराइन भागमती थी. संयोग देखिए कि गरीब ठाकुर की बेटी का रिश्ता एक अमीर ठाकुर के घर तय हो जाता है. अब इस कहानी में दो नए ठाकुर जुड़ेंगे. एक समधी ठाकुर, जो बिल्कुल आपकी कल्पना के ठाकुर की तरह रोबिले हैं और दूसरे दामाद ठाकुर जो शहर में बैरिस्टरी की पढ़ाई करते हैं और बैरिस्टर बनने से पहले ही खुद को बैरिस्टर समझते हैं. समधी ठाकुर को अपने छोटे बेटे के लिए बहू चाहिए थी. ठाकुर ने रिश्ता देखा, सोचे गरीब घर की लड़की ठीक रहेगी. अदब में रहेगी. रिश्ता तय हो जाता है. छोटे ठाकुर को शहर के पते से एक तार भेज दिया जाता है. तार में बड़े ठाकुर का आदेश था, घर आओ, तुम्हारी शादी है. छोटे ठाकुर को जिस वक्त यह तार मिला उस वक्त ठंड का मौसम था. छोटे ठाकुर अपनी प्रेयसी मिस मालिनी के साथ ब्रांडी पी रहे थे. गांव से आया उनका नौकर उनकी पसंदीदा सिगरेट पनामा लेने बाजार गया था और बैकग्राउंड में रफी साहेब गा रहे थे, 'देखो रूठा न करो, बात नजरों की सुनो.' हम-आप गूगल की पीढ़ी वाले हैं इसलिए आप सर्च करके बेजा मेहनत करें उससे पहले बता दूं कि फिल्म तेरे घर के सामने (1963), गायक रफी और लता, संगीत एसडी बर्मन. जाहिर सी बात है कि गाने के बोल के मुताबिक मिस मालिनी और छोटे ठाकुर के चेहरे के हाव-भाव भी बदल रहे थे. तार मिलने से कुछ देर पहले ही छोटे ठाकुर ने मिस मालिनी से वादा किया था कि दुनिया की कोई ताकत उन्हें जुदा नहीं कर सकती और वे जांत-पांत जैसे दकियानूसी ख्यालों को नहीं मानते. तभी तार मिला. तार पढ़ते ही छोटे ठाकुर का चेहरा उतर गया. मिस मालिनी ने चिंता में पूछा, डार्लिंग इज एवरीथिंग ओके? ठाकुर के कांपते हाथों से तार छूटा, मिस मालिनी ने उठाकर पढ़ लिया. ताज्जुब की बात कि मिस मालिनी के चेहरे के भाव कुछ ज्यादा नहीं बदले, उसने बस इतना पूछा, अब क्या? तार में दी गई तारीख पर घर पहुंचने के लिए छोटे ठाकुर को तत्काल निकल देना था. उन्होंने मिस मालिनी से वादा किया कि वह अपने पहले के वादे पर कायम हैं. उनका रिश्ता किसी संबोधन या कस्टम का मोहताज नहीं. सुधि पाठकों अगर आपको लग रहा है कि छोटे ठाकुर ने झूठा वादा किया, तो आप गलत हैं. कहानी के अंत में आपको पता चलेगा कि छोटे ठाकुर ने मिस मालिनी से किया अपना वादा पूरा किया. खैर छोटे ठाकुर को देर रात की गाड़ी पकड़नी थी. करीब आधे घंटे और थे उनके पास. दोनों ने फिर एक गाना सुना, ठाकुर ने दर्द के समय का अपना फेवरिट गाना लगा दिया. शहर की रात और मैं, नाशाद और नाकारा फिरूं, जगमगाती जागती सड़कों पे आवारा फिरूं' 'ऐ गम-ए-दिल क्या करूं, ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं'. अब इस गाने को आप गूगल करके ही जानें, सबकुछ बना बनाया नहीं मिलेगा आपको, पकाना भी पड़ेगा. दरअसल छोटे ठाकुर ने मिस मालिनी को बताया कि पिताजी बड़े संगदिल हैं. जवान हो चुके बेटे पर भी हाथ उठाने से नहीं चूकते और सबसे बड़ी बात कि उन्हें बैरिस्टर बनने से पहले बाप से मिलने वाले पैसों की सख्त जरूरत है. एक बार बैरिस्टर बन गए, तो इस भव सागर को भी पार कर जाएंगे, इस वादे के साथ छोटे ठाकुर रुखसत हुए. छोटे ठाकुर गांव पहुंचे तो शादी का माहौल तैयार था. हालांकि छोटे ठाकुर शादी के लिए कत्तई तैयार नहीं थे, पर हल्की सी इच्छा थी कि शादी किससे हो रही है, कुछ पता चल जाए. आखिरकार खाते वक्त भौजाई ने वज्र गिरा ही दिया. गर्म रोटी देते वक्त भौजाई फुसफुसाई, आ रही है अनपढ़ देवरानी, अब दिखाना तेवर. अगर आप इसे भौजाई की चुहल समझ रहे हैं, तो गलत हैं. दरअसल भौजाई ने अपना बदला पूरा किया था. छोटे ठाकुर ने अपने बड़े भाई की पत्नी को एक दफा सार्वजनिक तौर पर जलील किया था. उन्होंने उसे गंवार कहा था, जबकि भौजाई आठवीं पास थी. भौजाई ने उस दिन तंज कहकर अपने मन की फांस निकाल दी. 'भौजाई रॉक, छोटे ठाकुर शॉक' कुछ ऐसा ही माहौल था. छोटे ठाकुर ने एक बारगी विरोध का मन बनाया, पर पिता की सोने की मूंठ वाली छड़ी याद आ गई. खैर कहानी कुछ ज्यादा लंबी हो रही है जबकि असली कहानी शेष है. इसलिए अब कहानी सीधे ठाकुर की शादी के बाद से शुरू होगी. गरीब ठाकुर की बेटी अब ठकुराइन बन चुकी है. सुहागरात फिल्मों में ही नहीं असल में भी होती है बस उसमें तब ग्लैमर का तड़का नहीं हुआ करता था. छोटे ठाकुर की सुहागरात थी. पर वे बागी हुए जा रहे थे और उस रात सोने के लिए अपने पिता ठाकुर के बनवाए मंदिर के सामने बनी एक छोटी बैठकी में चले गए. मंदिर गांव जाने वाले मुख्य रास्ते में ही था. पाठक गण इस मंदिर को याद रखें, कहानी में इसकी अहम भूमिका है. ठकुराइन रोज की तरह सो गई. सुबह बड़े ठाकुर घर में खंखारते हुए घुसे. कड़क कर पूछा, 'बबुआ अब तक सोकर नहीं उठे क्या?' भौजाई ने एक बार फिर अपने मन की फांस निकाली, 'बबुआ तो रात में मंदिर की तरफ चले गए थे, लौटे ही नहीं.' बवंडर हो गया ये तो! बड़े ठाकुर का गुस्सा फूटा, 'शहर जाकर नामर्द हो गए क्या जनाब', कोई समझाएगा कि हम उन्हें समझाएं, छिनाल बन जाएगी पत्नी तो कौन संभालेगा.' ठकुराइन कमरे में अकेले थी, दुर्गा सप्तसदी सुनने के अभ्यस्त कानों के लिए ये शब्द बिल्कुल नया तो नहीं था पर नया ही लगा. छोटे ठाकुर घर लौटे, तो बड़े ठाकुर रास्ता रोके खड़े थे. छोटे ठाकुर समझ गए, पिटने से पहले गलती मानी, कहा आगे से ऐसा नहीं होगा बाबूजी. अगली रात दोनों साथ में सोए, सुहागरात थी, छोटे ठाकुर को बुरा नहीं लगा. ठकुराइन के मन से इस कहानी को अभी कोई लेना-देना नहीं. शादी के बाद छोटे ठाकुर शहर लौटने की प्लानिंग कर रहे थे, उन्होंने इस बाबत मिस मालिनी को तार भी कर रखा था. पर अचानक बड़े ठाकुर बीमार पड़े और चल बसे. बड़े भाई को खेती की तो समझ थी पर कारोबारी बुद्धि नहीं. छोटे ठाकुर ने हिसाब लगाया. भगवान का दिया उनके पास बहुत था, अब बड़े ठाकुर के बाद लंबी-चौड़ी जायदाद के अकेले खेवनहार थे. सो इस बार मिस मालती को तार नहीं, खत लिखा. लंबा-चौड़ा खत. खत का पूरा मजमून देने का वक्त नहीं है क्योंकि मैं भी कहानी के सबसे अहम बिंदु पर आना चाहता हूं. छोटे ठाकुर जो कि अब बड़े हो चुके थे लिखते हैं, 'प्रिये, हमारा प्रेम अमर है. मैं बैरिस्टर नहीं बन पाया, घर का बोझ आ गया. पर तुम बैरिस्टर जरूर बनोगी. तुम्हें मनी ऑर्डर मिलते रहेंगे. मैं आता-जाता रहूंगा. तुम एक बार बैरिस्टर बन जाओ फिर हम साथ रहेंगे.' कुछ ऐसा लिख ठाकुर मुस्कुराए, उन्होंने आखिरकार एक क्रांति को अंजाम दे दिया था. दो साल बीत गए. ठकुराइन उनकी पत्नी थीं यह केवल उस रात के वक्त पता चलता जिस रात ठाकुर उनके साथ सोते. ठाकुर ने ठकुराइन का चेहरा तक नहीं देखा था. दिन में ठकुराइन घूंघट में होती और रात में अंधेरे में. ठाकुर गांव में शान से अपने पिता की सोने की मूंठ वाली छड़ी लेकर निकलने लगे थे. आखिर वह खुशी का दिन आ गया. ओह शायद आप फिर गलत समझ बैठे, ठकुराइन गर्भवती नहीं हुईं थीं, मिस मालिनी बैरिस्टर बन गईं थीं. ठाकुर को तार से सूचना मिली तो उन्होंने गांव में एक जलसे का आयोजन किया. मिस मालिनी का आना तय हुआ. घर में रौनक छा गई. ठाकुर ने छत पर अपना खास कमरा बनवाया. शानदार कालीन, झाड़-फानुस, लाखों खर्च किए. आखिरकार वह दिन भी आ गया. जश्न की महफिल सजी. ऊपर के कमरे में ठाकुर का परिवार, दोस्त और लागा चुनरी में दाग पर मिस मालिनी के ठुमके. ठकुराइन नीचे से ऊपर और ऊपर से नीचे के इंतजाम में लगी हुई थीं. मिस मालिनी थक कर बैठी ही थीं कि ठकुराइन की गलती से जाम की ट्रे उनपर पलट गई. और बवाल, ठाकुर ने कहा, गंवार कहीं की, देखती नहीं क्या कर डाला. मिस मालिनी ने पूछा कौन है घूंघट में यह औरत. सब खामोश, मिस मालिनी समझ गई, मुस्कुरा कर बोलीं कि ओह आपकी पत्नी ठाकुर साहब. ठाकुर साहब ने जलती निगाहों से ठकुराइन को देखा और उन्हें वहां से भाग जाने को कहा. यहां से असल कहानी शुरू हुई. शुक्रिया पाठकों की आप धैर्य पूर्वक यहां तक पढ़ते हुए पहुंचे. फिर ठकुराइन ने अपना घूंघट हटा दिया. समाज ने पहली बार ठकुराइन का चेहरा देखा. गोरा दगदग चेहरा. गाढ़ा सिंदूर, लाल बिंदी, ठकुराइन महफिल के बीच में दुर्गा की तरह दिख रही थी. वैसा ही जैसा पोस्टरों में दुर्गा दिखती हैं. पूरी महफिल स्तब्ध, ठकुराइन की आवाज गूंजी. किसे भाग जाने कहा आपने, मुझे? ठकुराइन ने पूछा. ठाकुर सकपका चुके थे एकबारगी जवाब नहीं सूझा. ठकुराइन ने फिर कहा, 'छिनालपंथी तुम करो और भाग मैं जाऊं?' ठाकुर अब अवाक थे. तुम! ठकुराइन उन्हें तुम बोल रही थी, वही ठकुराइन जिसने आजतक उन्हें पुकारा तक नहीं था. मिस मालिनी भी अवाक थीं, उन्हें लग रहा था कि ठकुराइन ने भरी महफिल में उन्हें छिनाल बना दिया. ठाकुर बोले यह क्या बदतमीजी है. मिस मालिनी ने आंखों में आंसू भरकर ठाकुर की ओर देखा, ठाकुर का गुस्सा सातवें आसमान पर. 'निकल जा कुलटा इस घर से, गंवार कहीं की, बेशर्म औरत, तेरी इतनी औकात नहीं कि तूं अब यहां रुके' ठकुराइन यह सुनने से पहले जाने के लिए पलट चुकी थी. पर वह फिर पलटी, इस बार उसने ठाकुर को घूर कर देखा. ऐसी नजर कि ठाकुर की रूह कांप गई. ठकुराइन ने अपने प्यारे नौकर को आवाज लगाई. राम बालक! जी मालकिन! अब राम बालक के बारे में भी जान लीजिए. बचपन से ठाकुर के घर में रहा 14 साल का लड़का. ठकुराइन की इज्जत करने वाला बस एक ही शख्स. वरना जिस औरत की इज्जत पति न करे उसकी इज्जत करता ही कौन है. राम बालक उस आवाज के साथ हाजिर हुआ. ठकुराइन ने आदेश दिया, मेरे कमरे से सामान उठाओ. ठाकुर ने तंज कसा, कहां जाओगी, मायके? ठकुराइन बोली, राम बालक मंदिर वाले बैठके में ले चलो मेरा सामान. ठाकुर को सांप सूंघ गया, घर की इज्जत घर से निकलकर बैठके में जा रही थी. महापाप, घोर बेइज्जती. ठाकुर ने रोकने की कोशिश की, अगले ही पल ठकुराइन के हाथों में दीवार पर लटकी कटार थी. खबरदार! काट कर रख दूंगी. ठकुराइन की आवाज गूंजी. महफिल स्तब्ध थी. ठकुराइन मंदिर वाले बैठके में जम गई थी. फिर इसके आगे की कहानी आपकी भाषा में वीयर्ड है. बताते हैं कि ठुकराइन ने उस बैठके से धंधा शुरू कर दिया. पैसा लेकर लोगों के साथ सोने लगी. ठकुराइन हर जात के लोगों के साथ सोने लगी. क्या चमार, क्या धोबी और क्या दुसाध. गांव में चर्चे आम हो गए. ठाकुर का घर से निकलना दूभर हो गया. ठाकुर की इज्जत को कालिख पुत चुकी थी. ठुकराइन पर कोई फर्क नहीं था. लोग बताते हैं कि ठकुराइन ने मरघट पर शव साधना कर ली थी. बदनामी की हूक में ठाकुर बूढ़े होते जा रहे थे और ठकुराइन जवान. रोज सुबह मंदिर धोती और रात को धंधा करती. गांव में किसी को कुछ बोलने की हिम्मत नहीं थी क्योंकि एक तो उनका नौकर राम बालक जवान हो चुका था और लाठी भांजने में सिद्धहस्त. दूसरा ठकुराइन के बारे में यह कहानी प्रचलित हो गई थी कि इलाके के एक मशहूर डाकू का किसी-किसी रात उस बैठके में आना-जाना रहता है. खौफ था, इसलिए ठकुराइन के खिलाफ उनके मुंह पर किसी ने चूं तक नहीं कसी. एक दिन राम बालक दरवाजे से आवाज लगाकर बोला, ठकुराइन, हो ठकुराइन! अंदर से आवाज आई, क्या है रे? ठाकुर मर गए. अंदर से आवाज आई अच्छा. चलोगी नहीं देखने? नहीं. अरे एक बार देख लो? नहीं तूं देख आ. राम बालक दाह संस्कार कराकर लौटा, तो बैठके का दरवाजा खुला था. बैठके में सारा सामान मौजूद था पर ठकुराइन नहीं. लाश मिली नहीं, इसलिए कह सकते हैं कि ठकुराइन ने खुदकुशी नहीं की, या शायद वह अबतक मरी ही नहीं. कभी-कभी अफवाह उड़ जाती है कि ठकुराइन अमावस की रात मंदिर में आती है. राम बालक से पूछो तो मुस्कुरा देता है. लोग कहते हैं कि पागल हो गया है! आप इसे ठकुराइन का बदला कहने के लिए स्वतंत्र हैं. मंदिर आज भी वहीं, बैठका भी वहीं हैं, आप चाहें तो ठाकुर के गांव जाकर इस कहानी की तस्दीक कर सकते हैं. पर आप जाएंगे कैसे, मैंने तो बताया ही नहीं कि ठाकुर का गांव कौन सा था? आप सोच रहे होंगे कि उस पार्टी के बाद मिस मालिनी का क्या हुआ? आपको बता दें कि मिस मालिनी शहर लौट गईं. वह बैरिस्टर बन चुकी थीं और जहां भी हैं खुश हैं. आप चाहें तो उनसे पूछ सकते हैं? किस्सा खत्म!

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